ईश्वर अवतार नहीं लेता
– डॉ. ब्रजेन्द्रपाल सिंह
ईश्वर सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, अनादि व अनन्त अजन्मा आदि गुणों वाला है, ऐसा वेद में वर्णन है, परन्तु पौराणिक भाई मानते हैं कि ईश्वर जन्म लेता है, जिसे अवतारवाद कहते हैं। राम को ईश्वर का अवतार मानते हैं, कृष्ण को भी ईश्वर का अवतार मानते हैं। यह भी मानते हैं कि किसी भी रूप में ईश्वर धरती पर जन्म लेकर आता जाता है।
अवतारवाद पूर्णतः वेद विरुद्ध है। वेद में ईश्वर के जन्म लेने व अवतार का कहीं वर्णन नहीं, अपितु वह अजन्मा है, जन्म नहीं लेता, अनादि है। उसका न आदि है, न अन्त है। वह एक स्थान पर नहीं रहता, सर्वव्यापक है, कण-कण में समाया है। हमारे अन्दर बाहर है, आकाश- जल- थल- पृथ्वी- चन्द्रमा- सूर्य और उससे आगे तक भी है, जहाँ हमारा मन नही पहुँचता, वहाँ भी है। पहले से है, सृष्टि की उत्पत्ति से पहले भी रहता है, प्रलय के बाद भी रहता है, सर्वशक्तिमान् है, अपनी शक्ति से ग्रह, तारों को घुमा रहा है। यह सब जगत् उसी का है, उसने ही तो बनाया है, नियम से चला रहा है-
ईशावास्यमिदं सर्वयत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन व्यक्तेन भुञ्जीथा मा ग्रधः कस्यस्विद्धनम्।।
– ईशोपनिषद्
अर्थात् इस संसार में जो भी यह जगत् है, सब ईश्वर से आच्छादित है, अर्थात् ईश्वर सृष्टि के कण-कण में बसा है, सर्वव्यापक है। यह सब धनादि जिसका हम उपयोग कर रहे हैं, सब उसका ही है। हम यह सोच कर प्रयोग करें कि यह हमारा नहीं है। जो कुछ हमें उस प्रभु ने दिया है, उस सबका त्याग के भाव से प्रयोग करें।
सृष्टि में जो कुछ भी है, उसी का है। ग्रह, उपग्रह, पृथ्वी व चन्द्रमा आदि निश्चित वेग से घूम रहे हैं, एक नियम से चक्कर काट रहे हैं, गति कर रहे हैं। समय पर ऋतुएँ आती है, जाती हैं। वह जगत् को नियम में चला रहा है।
वह बिना जन्म लिए ही सब काम कर रहा है। उसे जन्म लेने की क्या आवश्यकता है? कहते हैं, रावण को मारने के लिए राम के रूप में ईश्वर ने अवतार लिया या जन्म लिया- ये सब बातें काल्पनिक हैं, मन गढ़न्त हैं। पूरी सृष्टि को चलाने वाला बिना जन्म लिये ही सब कार्य कर रहा है, सब पर उसकी दृष्टि है, सब देख रहा है। ब्रह्माण्ड में ग्रह तारे सब गति कर रहे हैं, कभी किसी से टकराते नहीं, जैसे कि चौराहे पर ट्रैफिक कण्ट्रोलर यातायात को कण्ट्रोल करता रहता है। यदि यातायात को नियन्त्रण न किया जाय तो यातायात अवरुद्ध हो जाएगा, गाड़ियाँ आपस में टकराएँगी, परन्तु यातायात नियंत्रक के कारण सब ओर की गाड़ियाँ बिना अवरोध के ही आती-जाती रहती हैं। यही प्रक्रिया सृष्टि को चलाने वाले उस परमात्मा की है, वह सबको देखने वाला है, कर्मों के अनुसार फल देने वाला है, जो हम सोचते हैं वह सब जानता है, परन्तु वह भोक्ता नहीं, वह सत्य चेतन आनन्द स्वरूप है। यहाँ जन्म तो वही लेगा, जिसे कर्मों का फल भोगना है। जीव बार-बार जन्म लेता है, मोह माया में बँधा हुआ है। ईश्वर मोह माया में बँधा नहीं, वह तो जगत् नियन्ता है, जगत् को चला रहा है, सबको देख रहा है, अनादि है, अनन्त है। तीन तत्त्व अनादि अनन्त है- परमात्मा, जीवात्मा और प्रकृति –
द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते
तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नवन्यो अभिचाक शीतिः।
– ऋग्वेद 1/164/20
यहाँ यही बताया है कि एक वृक्ष पर दो पक्षी बैठे हैं, उनमें एक उस वृक्ष के खट्टे-मीठे फलों का स्वाद चख रहा है, दूसरा उस पक्षी को देख रहा है, स्वाद नहीं चख रहा। आलंकारिक भाषा में यहाँ त्रिविध अनादि तत्त्व ईश्वर, जीव व प्रकृति का वर्णन है। वृक्ष प्रकृति के रूप में दर्शाया है, देखने वाले पक्षी का संकेत ईश्वर के लिए तथा फल खाने वाला पक्षी का जीव की ओर संकेत है। ईश्वर इस प्रकृति में जीव के कर्मों को देख रहा है। वह कर्मों का भोक्ता नहीं है। जब भोक्ता नहीं तो जन्म किसलिए? वह तो सर्वव्यापक विभु है, सर्व शक्तिमान् है, अपनी शक्ति से सृष्टि को चला रहा है। रावण हो या दुर्योधन, सबने अपने कर्मों को भोगा। ईश्वर के अवतार से राम का कोई समबन्ध नहीं। वे कौशल्या के गर्भ से पैदा हुए, संसार में आए और उन्होंने अपने कर्म किए। उनका कर्म उनके साथ था। वे दशरथ के पुत्र थे। ईश्वर किसी का पुत्र नहीं, अपितु सबका पिता है। कर्मफल भोक्ता तो गर्भ में भी रहेगा, जन्म भी लेगा, दुःख भी सहेगा, क्लेश भी सहेगा, माया-मोह के बन्धन में भी रहेगा, मृत्यु भी होगी। यह गुण कर्मफल भोक्ता जीव के तो हैं, ईश्वर के नहीं, अतः राम को ईश्वर बताना न तर्कसंगत है, न युक्ति युक्त। राम दशरथ नन्दन थे, राजा मर्यादा पुरुषोत्तम थे। वेदानुसार चलने वाले थे। उनका जीवन हमारे लिए प्रेरणा प्रदान करता है।
एक ओर हम महापुरुषों को अवतार बताते हैं, दूसरी ओर उनके चरित्र पर लांछन लगाते हैं। जिन राम का हम सुबह-शाम, उठते-बैठते जागते-सोते समय नाम लेते हैं, उनके आचरणों का पालन नहीं करते, उनके जीवन से शिक्षा नहीं लेते। मुँह में पान, तबाकू, बीड़ी, सिगरेट, हुक्का लगा रहता है और राम का नाम लेते हैं। उससे क्या लाभ? राम तो धूम्रपान नहीं करते थे, मद्य नहीं पीते थे, हुक्का, तमबाकृ नहीं लेते थे, फिर हम क्यों करते हैं? हमें इन मादक द्रव्यों को त्याग कर जैसा आचरण राम का भाइयों के साथ माताओं के साथ प्रजा के साथ था, वैसा करना चाहिए। राम मनुष्य थे, राजा थे, कर्त्तव्य परायण थे, माता पिता के आज्ञाकारी थे, धर्म व मर्यादा पालक थे, निराभीमानी थे, प्रजा वत्सल थे, जन-जन के प्यारे थे, वह ईश्वर नहीं थे, अवतार नहीं थे।
हमें सत्यासत्य का विवेकपूर्ण निर्णय लेना चाहिए और अपने सत्याचारी वेदानुयायी महापुरुषों को जैसे थे वैसा ही मानकर उनके सद्गुणों को जीवन में उतारने का प्रयत्न करना चाहिए।
– चन्द्रलोक कॉलोनी खुर्जा (बुलन्दशहर)
मो. 8979794715
आपको शायद पूर्ण वेदों का ज्ञान नही है । चलो में आपको बताता हूँ ।
यजुर्वेद अध्याय 32 श्लोक 19 पढ़ो
यहां आपको खुद ही पता लग जाएगा कि ईश्वर जन्म लेता है या नही ।
अभी और भी है । अगर गीता को वेदों का निचोड़ माना जाता है । तो उसी में कहा गया है
यदा यदा ही अधर्मस्य…………
जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब में सर्वशक्ति मां ईश्वर इस धरती पर पुनः धर्म की स्थापना के लिए जन्म लेता हूँ ।
वेदों में कहा गया है कि वो अजन्मा है कभी जन्म नही लेता । यह बात तो सही है पर आपने इसका गलत अर्थ निकाला है । आपने इसे पढ़ा पर समझा नही । सुनो
उसने कहा कि वो कभी जन्म नही लेता वो अपने जन्म की बात कर रहा है जो निराकार है । जो न मरता है पर वो इंसान के रूप या किसी भी जीव के रूप में जन्म ले सकता है ।
भाई साहब यजुर्वेद अध्याय 32 श्लोक 19 पढ़ो ऐसा बोलना आपका है आपको यह जानकारी दे दू यजुर्वेद में कोई श्लोक नहीं होता | और ना १९ श्लोक जो आप बोल रहे हो आपके हिसाब से अध्याय ३२ में ही है | पहले अछि तरह से जानकारी लें फिर यहाँ पर अपना पक्ष रखना | धन्यवाद
Gadhe ho tum kuchh vyakaran ka gyan hai tumhe murkho jaisi baat karte ho mujhe lagta hai ki tum se jyada bebkuf aadmi nahi hai duniya me koi
Itana kosane ke sthan par tark diya hota to ho sakata hai kuch bhala ho jata
गलती से गलत लिख गया
आप ध्यान से यजुर्वेद 31/4
और 31/19 पढ़ो ।
एक एक करके बताये आप क्या समझे यजुर्वेद 31/4
और 31/19 पढ़ो ।
यजुर्वेद 31/4 इससे आप क्या समझे पहले इस पर चर्चा करे फिर आगे 31/19 पर भी करेंगे | यह बताये इससे आप क्या जानकारी लिए क्या समझे |
आपको वेद को समझने की जरूरत है वेद को समझने के लिए भगवद गीता अध्याय 13 से 15 और अध्याय 18 पर विशेष ध्यान देना चाहिए
आपको ईश्वर की पहचान और वेद में लिखे शब्दो का रहस्य पता चल जाएगा