ओउम॒
हवियों से यज्ञ अग्नि को बढावें कभी बुझने न दें
यज्ञकर्ता जिस यग्य अग्नि को जलाते हैं ,जिस को अपनी अनेक प्रकार की आहुतियां देकर बढाते हैं, वह यज्ञाग्नि हमारे परिवार से , हमारे घर से कभी बुझने न पावे । यह तथ्य ही इसके दूसरे मन्त्र का मुख्य विशय है , जो इस प्रकार है : –
तमग्निमस्तेवसवोन्यृण्वन्सुप्रतिचक्षमवसेकुतश्चित्।
दक्षाय्योयोदमआसनित्यः॥ ऋ07.1.2
अपने निवास को जो लोग उत्तम बनाना चाहते हैं, श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं , वह लोग इस यज्ञ की अग्नि को अपने निवास पर , अपने घर में स्थापित करते हैं । यज्ञ की यह अग्नि हम सब का पूरा ध्यान रखती है । यज्ञ की यह अग्नि हमारे संकटों को दूर करने का सदा यत्न करती रहती है । यदि हमारे घर में कहीं रोग के कीटाणु छुपे हैं , निवास कर रहे हैं , तो यह अग्नि उन किटाणुओं को नष्ट करके बाहर निकालने का कार्य करती है, यदि हमारे घर में दुर्गन्ध है तो यह अग्नि उसे दूर कर पवित्रता लाती है तथा यदि घर का वातावरण अशुद्ध है तो यह यज्ञ की अग्नि उसे शुद्ध कर वातावरण को शुद्ध , पवित्र करती है । घर में होने वाले सब प्रकार के भय को दूर कर हमें निर्भय बनाती है ।
यज्ञ की यह अग्नि हवियों से बढती है। हम जो आहुतियां इस आग मे देते हैं , वह आहुतियां इस अग्नि को तीव्र करती हैं । अग्नि की इस तीव्रता से हमारी रक्षा के कार्य, हमें निर्भय करने के कार्य, हमें रोगों से मुक्त करने के कार्य ओर भी तीव्रता से होते हैं ।
जिस यज्ञाग्नि के इतने लाभ हैं , जो यज्ञाग्नि हमें इतने लाभ देती है , वह यज्ञाग्नि हमारे घरों में निरन्तर जलती रहे , हम, कभी भी इसे बुझने न दें |
डा. अशोक आर्य