ओउम
हमारा जीवन मधुरता से भरपूर हो
डा. अशोक आर्य
यह युग विज्ञान का युग है | समय बड़ी गति से भाग रहा है और इसके साथ भाग रहा है जन सामान्य | इस कलयुग में कलपुर्जों को ही महत्त्व दिया जा रहा है | कलपुर्जों के इस युग में पुर्जों की सहायता से भागने वाली गाड़ियां आज चींटियों की संख्या में शेर की गति से भाग रही हैं | सब को जल्दी लगी हुई है | किसी के पास समय ही नहीं है किसी दूसरे की समस्या सुनने का किसी दूसरे की सहायता करने का | इस सब अवस्था में किसी के जीवन में भी मधुरता दिखाई नहीं देती , जबकि मधुरता के बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता | जीवन में मधुरता ला कर हम बड़े बड़े कार्यों को सरलता से संपन्न कर सकते हैं | इस चर्चा पर ही ऋग्वेद में इस प्रकार विचार किया गया है : –
मधुमनमे परायणम मधुमत पुनरायनम |
ता नो देवा देवतया युवं मधुमतस्क्रितम || ऋग्वेद १०.२४.६ ||
एक दूसरे से मिलाने मिलने को अश्विनी कुमार कहा जाता है | अश्विनी कहते हैं वह साधन जिससे एक चैन बनती है | एक कुण्डी में दूसरी कुड़ी डालकर संकल बनती है , यह कुण्डी जोड़ने का कम ही अश्विनी कुमार का है | प्रस्तुत मन्त्र एक को दूसरे से जोड़ने का कार्य करता है | इसलिए यहाँ अश्विनी देव की स्तुति की गई है | मन्त्र में कहा गया है कि हमारा बाहर जाना तथा वापिस लौटकर आना दोनों ही मधुमय हों | प्रसन्नता से भरपूर हों, खुशियाँ लाने वाला हो | आनेजाने का कार्य अथवा एक दूसरे को जोड़ने का कार्य ही अश्विनी देव का होने के कारण यहाँ कहा गया है कि हे अश्विनी देवो तुम देवत्व के गुण से भरपूर हो | देवता के अर्थ के अनुरूप तुम संसार के प्रत्येक प्राणी को कुछ न कुछ देते रहते हो | आप के इस गुण के कारण ही आप से कुछ माँगने का यत्न करते रहते हैं तथा इस मन्त्र के माध्यम से आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप हमें मधुरता दें , मधुरता से भर दें | ताकि हमारी सब दुर्भावनाएं दूर हो जावें, समाप्त हो जावें |
अपने निकटस्थ वातावरण को मधुर बनाना अथवा कटु बनाना मानवीय कर्मों पर ही निर्भर होता है | यदि वह अपने वातावरणको मधुरता से भरपूर बनाने की लालसा है तो उसे अश्विनी देव से प्रेरणा लेनी होती है | जिस प्रकार अश्विनी देव एक को दूसरे से जोड़ने का काम करते हैं ,उस प्रकार ही मानव को भी जोड़ने के साधन अपनाने होते हैं | इन साधनों से ही वह अश्विनी कुमारों की भाँती अपने कर्तव्यों को पूरा कर पावेगा | इस कार्य हेतु मनुष्य को परस्पर स्नेह , अनुराग तथा उदारता पूर्ण व्यवहार का प्रयोग करना होता है | यह वह व्यवहार है ,जिससे जोड़ने का कार्य किया जा सकता है | जब हम किसी के साथ सहानुभूति दिखाते हैं तो वह व्यक्ति भी हमारी और खींचता ही चला जाता है | जब हम किसी के साथ स्नेहिल व्यवहार बनाते हैं तो वह भी प्रत्युतर में स्नेह ही दिखाता है | हम यदि किसी के प्रति अनुराग प्रकट करते हैं , उसके स्नेहिल को अपना संकट समझाते हुए उसके सहयोगी बनते हैं तो वह भी उसी प्रकार का ही व्यवहार हमारे से करता है | जब हम किसी की गलती पर भी उदारता पूर्वक उसके समीप जाने का यत्न करते हैं तो उसके विचारों में भी परिवर्तन आता है तथा अपने व्यवहार को वह भी उदार कर लेता है | इस प्रकार हम अपने विरोधियों को अपने विचारों में , अपने रंग में रंगते चले जाते हैं | उनके मन से विरोध की भावना दूर होकर हमारे प्रति आकर्षण पैदा कर देती है | जिस प्रकार अश्विनी एक दूसरी कड़ी को जोड़ कर एक चैन बनाते हैं , उस प्रकार ही अपने स्नेहिल व मधुरता पूर्ण व्यवहार से , उदारता से हम अपने आस पास के वातावरण को मधुर बनाते चले जाते हैं , जिसमें आसपास के लोग भी जुड़ते चले जाते हैं | इस प्रकार हमारे साथियों की , हितैषियों की , शुभ चिंतकों की पंक्ति निरंतर लम्बी होती चली जाती है | इस प्रकार हमारे सहयोगियों की संख्या बढती ही चली जाती है |
प्रेमपूर्ण व्यवहार से सदा मधुरता बढती है तथा द्वेषपूर्ण व्यवहार से कटुता बढती है | कटुता के कारण एसे कटु व्यक्ति के प्रति उदासीनता भी पैदा होती है | वेद चाहता है कि मानवों में एक दूसरे के प्रति प्रेम पूर्वक व्यवहार हो | इसलिए वेद का यह मन्त्र आदेश देता है कि हम अपने जीवन को मधुर बनावें | जब हमारा जीवन मधुर होगा, दूसरों के प्रति भी मधुरता रखेंगे तो दूसरों की द्वेष भावना भी धुल जावेगी, नष्ट हो जावेगी तथा वह हमारे मित्रों की पंक्ति में आ जावेंगे | जब हम अपने चारों और मधुरता को पैदा कर लेंगे तो हम अपने इस मधुर व्यवहार से ही शत्रुओं को मित्र बनाने में सफल होंगे | जब हमारे निकट सब मित्र ही मित्र होंगे तो हम लड़ाई झगडा किस से करेंगे ? , यह संभव ही न होगा | इस प्रकार मन शांत होगा , समय की बचत होगी तथा इस बचे हुए समय को हम किसी अन्य निर्मात्मक दिशा में प्रयोग कर अपनी आय के साधन तथा जन सेवा के कार्य पहले से कहीं अधिक कर सकेंगे |
हम घर में ही मधुर व्यवहार न रखें अपितु घर से बाहर जाकर भी हम जहाँ भी हों वहां पर भी मधुर व्यवहार करें, मधुर वातावारण बनाने का यत्न करें तथा घर लौट कर भी मधुरता का ही दामन थामें रखें, सब से प्रीति पूर्वक, प्रेम पूर्ण व्यवहार करें | इस से हमें विशेष प्रकार की प्रसन्नता मिलेगी | हमारे शत्रु भी शत्रुता छोड़ मैत्री करने लगेंगे | हम परेशानियों से बच जावेंगे | जो समय हम परेशानियों को रोगों को दूर करने में लगाते थे वह समय हम अपार धन सम्पदा प्राप्त कारने में लगा सकेंगे , अपने मित्रों की मंडली बढाने में लगावेंगे , हमारी आय बढ़ सकती है, जिससे हम पहले से अधिक दान पुण्य करने में भी सक्षम होंगे | इससे हमारा नाम होगा तथा हमारा सम्मान भी बढेगा | इस प्रकार मन्त्र की भावना के अनुसार चलकर हम अपने घर के अन्दर का ही नहीं घर के बाहर का वातावरण भी मधुर, सुखद व सौहार्दपूर्ण बना सकते हैं , जीवन को सफल बना सकते हैं |
डा.अशोक आर्य
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