औ३म
हम उत्तम सन्तानों वाले तथा वीर बनें
हम सब मिलकर पर्मपिता के उपासक बने , उस पिता के समीप आसन लगावें , उस के निकट बैथें । हम अपने कर्म से कुछ प्राप्त कर उसका उपभोग करं , किसी आश्रित न हों , किसी पर बोझ न बनें । अपने घरों में भी दरिद्रता न आने देम , द्रिद्रता से र्हित हो तथा इस प्रकार हम उत्तम सन्तान्को प्राप्त करें । इस घर मेम हम वीरता से युक्त होकर निवास करें । इस तथ्य को रिग्वेद के इस सप्तम मण्डल के प्रथम सूक्त में आये एकादश मन्त्र में इस प्रकार उप्देश किया गया है : –
मा शूने अग्ने नि शदाम न्रिणां माशेश्सो॓वीरता परित्वा ।
प्रजावतीशु सुर्यमु दुर्य ॥ रिग्वेद ७.१.११ ॥
हे प्रभि ! आप की उपासना करते हुये हम चाह्ते हैं कि हम सद अपने निवास पर हि आ कर विश्राम करें, अपने घर मेही रहें, अन्य लोगों के घर पर हीन बैथे रहें । जिन घरों में धन क अभाव हो , जो घर शून्य कि स्थिति में हों , जिन घरों में आर्थिक अभाव हो, एसे घरों मेम हम निवास न करें । धन वैभव की हमें कमीं न हो । हम अभाव से टूटे हुये होकर दूसरों के घरों में ही न बैथे रहेण, दूसरों पर बोझ हीन बने रहेण । हमार निवास शून्य स्से भरे घरों में , जिन्घरों में धनाभाव हो, एसे घरों मं कभी भी न हो । जो हमारे सम्पन्न घर हैं , उनमें भी हम भर पूर परिवार सहित हों , उत्तम सन्तान सहित हों । सन्तान्क हमें अभाव न हो । इतना ही नहिं अपने घरों में उत्तम सन्तान के साथ ही साथ हम वीरता से युक्त हों, भर्पूर वीरता के स्वामी हों । हमारी वीरता में कभी कमीं न आव्द ।
हमारे घरों के रक्शक हे पिता ! हम सदा आप के निकट बैथ्ने वाले हों, आप की उपासना करने वाले हों , आप की सदा स्तुति पूर्वक प्राथना करते हुये आप ही के निकत बैथें । इस प्रकार आप के पास रहते हुये भी हम उत्तम व वॊर सन्तानों वाले हों ।
हमारा घर दतक सन्तान से भी सदा व्रिद्धि को ही बधे
हम प्रशतेन्द्रिय होकर ही उस पिता की अपने घर में उपासना करें , उस पिता के पास बैथें । हमारे घर उत्तम सन्तान से युक्त हों यदि किन्ही कारण से हमें दतक सन्तान लेनी पडती है तो भी हम व्रिद्धि को उन्नति को ही प्राप्त हों । इस बात को इस मन्त्र मे इस प्रकर प्रकाशित किया गया है : –
यमश्वी नित्यमुपयाति यग्यं प्रजावन्तं स्वपत्यं क्शैये न: ।
स्वजन्मना शेशसा वाव्रिधानम ॥ रिग्वेद ७.१.१२ ॥
हे प्रभो ! हम प्रतिदिन प्रात: सायं प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाला पुरुश आप की उपासना के लिये आप के चरणों में उपस्थित होते हैं । इस लिये हे प्रभु ! आप हमें एसा ग्रह दें, जो उत्तम प्रकार के पुरूशों से भरा हो, उत्तम सन्तानों से भरा हो । इस का भाव यह है कि इस घर में जो बडे लोग अर्थात माता पिता आदि निवास करते हैं ,वह उत्तम जीवन मूल्यों से भरपूर हो , उत्तम मार्ग पर चलने वाले तथा उत्तम कार्य करने वाले हों । इतना ही नहीं इस प्रकार के मुखिया से युक्त इस घर की सन्तानें भी उत्तम ही हों ।
यहां प्रभु से इस मन्त्र के माध्यम से यह भी प्रार्थना की गयी है कि हमें जो घर प्राप्त हो , वह घर अपने से उत्पन्न सन्तानों से उन्नति पावे तथा ऒरस सन्तानों से भी व्रिद्धि को , उन्नति को, सफ़लताओं को प्राप्त करे ।