दुष्ट विचार एवं दुष्कर्म
मुसलमान अपने अल्लाह का लाडला बेटा है, साथ ही बिगड़ैल बच्चा भी। उसका अतीत यदि अच्छा नहीं है तो भुला दिया जाता है और भविष्य के बारे में उसे निश्चित आश्वासन दिया जाता है। उसके लिए ऐसी अनेक बातों की इजाजत होती है, जिनकी इजाजत किसी बहुदेववादी को नहीं होती-यहां तक कि आसमानी किताब वाले यहूदी या ईसाई को भी नहीं होती। यीशु ने ”आंखों द्वारा व्यभिचार“ के बारे में कहा और उसे कामुकता के अधिक दृष्टिगोचर रूपों की ही भांति बुरा माना। लेकिन मुहम्मद ने अपने अनुयायियों के लिए बहुत ज्यादा गुंजाइश रखी है-”वास्तव में अल्लाह मेरे अनुयायियों के हृदय में उठने वाले बुरे भावों को तब तक माफ करता रहता है, जब तक कि वे वाणी या आचरण में प्रकट न हो“ (230)। भारत की आध्यात्मिक परम्परा में यही विचार अधिक सार्वभौम तथा कम पक्षपात वाली भाषा में अभिव्यक्त हुआ है। मानवीय दुर्बलताएं जानने के कारण ईश्वर मनुष्यों की चूकें तथा विफलताएं क्षमा कर देता है और उनकी शक्ति तथा सत्प्रवृत्तियों को बढ़ाता है। ईश्वरवाद के प्रति रोजे ज्यादा नहीं रख पाती कि पैगम्बर के हुक्म के अनुसार उनके लिए रोजे से ज्यादा सवाब का काम है अपने पतियों के प्रति अपना फर्ज अदा करना पैगम्बर की बीवी आयशा ने ”अल्लाह के रसूल का लिहाज रखते हुए“ कई बार रोजे नहीं रखे (2550)। पर ऐसा लगता है कि औरतों की खूबी ही उनकी खामी बन जाती है, उनके लिए लानत पूर्वनियत है।1