जैसा कि प्राचीन भारतीय परपरा को उद्धृत कर यह सप्रमाण दिखाया गया है कि प्राचीन वैदिक इतिहास के अनुसार मनु स्वायभुव आदितम ऐतिहासिक राजर्षि हैं और वे सबके श्रद्धेय है। डॉ0 अबेडकर ने प्राचीन मनुओं के विषय में इन्हीं ऐतिहासिक तथ्यों को स्वीकार करते हुए उन्हें आदरणीय पुरुष माना है। वे लिखते हैं –
(क) ‘‘स्वयंभू के पुत्र मनु (स्वायंभुव) के एक पुत्र प्रियंवद थे। उनके पुत्र अग्नीध्र हुए। अग्नीध्र के पुत्र नाभि और नाभि के पुत्र ऋषभ हुए। ऋषभ के एक और वेदविद् पुत्र हुए जिनमें नारायण के परमभक्त भरत ज्येष्ठ थे। उन्हीं के नाम पर इस देश का नाम ‘भारत’ पड़ा।…..उपरोक्त से पता चलता है कि सुदास किन प्रतापी राजाओं का वंशज था।’’ (अंबेडकर वाङ्मय, खंड 13, पृ0 104)
(ख) आगे वे इस वंश का कुछ और विवरण प्रस्तुत करते हैं। स्वायभुव मनु की सुदीर्घ वंश परपरा में आगे चलकर सातवां मनु वैवस्वत हुआ। उसके पुत्र इक्ष्वाकु से क्षत्रियों का सूर्यवंश चला और पुत्री इला से चंद्रवंश चला। उसकी वंश परपरा को दर्शाते हुए वे लिखते हैं-
‘‘पुरूरवा वैवस्वत मनु का पौत्र और इला का पुत्र था। नहुष पुरूरवा का पौत्र था। निमि इक्ष्वाकु का पुत्र था जो स्वयं मनु वैवस्वत का पुत्र था। इक्ष्वाकु की ख्त्त्वीं पीढ़ी में त्रिशंकु हुआ। इक्ष्वाकु की भ्वीं पीढ़ी में सुदास था। वेन, मनु वैवस्वत का पुत्र था। ये सभी मनु के वंशज होने के कारण सभी सुदास से सबन्धित होने चाहिएं। ये सुदास के शूद्र होने के प्रमाण हैं।’’ (वही, खंड 13, पृ0 152)
यहां डॉ0 अबेडकर के निष्कर्षों में कुछ संशोधन की आवश्यकता है। एक तो यह कि सुदास के शूद्र घोषित किये जाने का यह मतलब नहीं है कि उसका पूर्वापर सारा वंश शूद्र था। इस तरह तो मनु स्वायंभुव भी शूद्र कहा जायेगा। दूसरा, यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशक्रम नहीं है, केवल प्रसिद्ध पुरुषों की तालिका है। अन्य नवीन इतिहासकारों के अनुसार सुदास वैवस्वत मनु की 63 वीं प्रमुख पीढ़ी में थे। इसी वंश में राम 76 वीं प्रमुख पीढ़ी में हुए।
ब्राह्मण राजा पुष्यमित्र शुङ्ग, वैवस्वत मनु के वंश के प्रमुख पुरुषों की 170 पीढ़ी पश्चात् हुआ है जिसकी चर्चा डॉ0 अबेडकर बार-बार ब्राह्मणवाद के संस्थापक राजा के रूप में करते हैं। स्वायभुव मनु से तो यह बहुत-बहुत दूर की पीढ़ी में आता है। यह ‘शुङ्ग’ वंश में उत्पन्न सामवेदी ब्राह्मण था और मौर्य सम्राट् बृहद्रथ का मुय सेनापति था। इसने उसका वध करके राज्य पर बलात् कजा किया था।
(ग) डॉ0 अबेडकर के मतानुसार वर्तमान शूद्र मूलतः क्षत्रिय जातियों से सबन्धित थे और वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के सूर्यवंश से थे। इस प्रकार वैवस्वत मनु शूद्रों के आदिपुरुष सिद्ध होते हैं और स्वायंभुव मनु, जो मूल मनुस्मृति के रचयिता हैं, वे उनके भी आदितम पुरुष सिद्ध होते हैं। डा. अबेडकर लिखते हैं-
‘‘शूद्र सूर्यवंशी आर्यजातियों के एक कुल या वंश थे। भारतीय आर्य समुदाय में शूद्र का स्तर क्षत्रिय वर्ण का था।’’ (वही, खंड 13, पृ0 165)
(घ) ‘‘प्राचीन भारतीय इतिहास में मनु आदरसूचक संज्ञा थी।’’ (वही, खंड 7, पृ0 151)
(ङ) ‘‘याज्ञवल्क्य नामक विद्वान् जो मनु जितना ही महान् है, कहता है।’’ (वही, खंड 7, पृ0 179)
प्रश्न उपस्थित होता है कि जब प्राचीन राजर्षि स्वायभुव मनु शूद्रों के भी आदरणीय आदिपुरुष थे तो उनके द्वारा अपने आदिपुरुष का विरोध करना क्या कृतघ्नतापूर्ण असयाचरण नहीं है? नवीन लोगों द्वारा विहित व्यवस्थाओं को प्राचीन मनुओं पर थोपकर उनकी निन्दा और अपमान करना, क्या ऐतिहासिक अज्ञानता नहीं है? कितने दुःख का विषय है कि जिस अतीत पर हम भारतीयों को गर्व करना चाहिए, अपनी अज्ञानता और भ्रान्ति के कारण हम उसकी निन्दा कर रहे हैं! यह बौद्धिक पतन की चरम स्थिति है।
अब तो हद हो गई दोगले पण की ..एक तरफ बाबासाहब को मनु द्वेषी समझना दूसरी तरफ आशय छोड़ सन्दर्भ का उपयोग कर के मनु समर्थक बताना .यह मानसिकता न तो मनु प्रामाणिक है न ही आंबेडकर समिक्षा वादी है.
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