(क) ‘‘पतित जातियों में मनु ने उन्हें समिलित किया है जिन क्षत्रियों ने आर्य अनुष्ठान त्याग दिए थे, जो शूद्र बन गए थे और ब्राह्मण पुरोहित जिनके यहां नहीं आते थे। मनु ने इनका उल्लेख इस प्रकार किया है-पौड्रक, चोल, द्रविड़, काबोज, यवन, शक, पारद, पल्हव, चीन, किरात, दरद।’’ (अंबेडकरवाङ्मय, खंड 8, पृ0 218)
(ख) ‘‘दस्यु आर्य सप्रदाय के सदस्य थे किन्तु उन्हें कुछ ऐसी धारणाओं और आस्थाओं का विरोध करने के कारण ‘आर्य’ संज्ञा से रहित कर दिया गया, जो आर्यसंस्कृति का आवश्यक अंग थी।’’ (वही, खंड 7, पृ0 321)
(ग) ‘‘सेन राजाओं के सबन्ध में इतिहासकारों में मतभेद है। डॉ0 भंडारकर का कहना है कि ये सब ब्राह्मण थे, जिन्होंने क्षत्रियों के सैनिक व्यवसाय को अपना लिया था।’’ (डॉ0 अम्बेडकर वाङ्मय खंड 7, पृ0 106)
डॉ0 अम्बेडकर मनु के उदाहरणों तथा ऐतिहासिक उदाहरणों द्वारा समुदाय या जाति के वर्णपरिवर्तन को ऐतिहासिक सत्य स्वीकार करते हैं। ये उदाहरण जन्मना जातिवादी व्यवस्था के विरुद्ध हैं। स्पष्ट है कि मनु की व्यवस्था जातिवादी नहीं थी। फिर मनु पर जातिवादी होने का निराधार आक्षेप लगाकर उनका विरोध क्यों?