देश में असहिष्णुता बढ़ रही है, क्योंकि हमें मोदी सहन नहीं है।
बिहार चुनाव के समय असहिष्णुता पर बड़ी बहस चल रही थी जिसको देखो, वह इस देश की बढ़ती हुई असहिष्णुता से चिन्तित दिखाई दे रहा था। देश के राष्ट्रपति से लेकर गली के नेता तक प्रतिदिन वक्तव्य दे रहे थे। असहिष्णुता कोई नई घटना है या किसी परिवर्तन का परिणाम ! गत दिनों असहिष्णुता पर लेख लिखते हुए एक लेखक ने ऑक्सफोर्ड शब्दकोष के आधार पर असहिष्णुता की परिभाषा को दो भागों में बाँटा था-
(क) किसी ऐसी बात की उपस्थितिया अभिव्यक्ति को ( जो कि उसे पसन्द नहीं है या जिससे उसकी सहमति नहीं है ) बिना विरोध सहन करने की सामर्थ्य या सहनशीलता।
(ख) किसी अप्रसन्नता वाली वस्तु ( दवाई आदि भी ) को बिना विपरीत प्रतिक्रिया के सहन करना।
यह परिभाषा एक प्रामाणिक कोष की परिभाषा है, ठीक ही होगी। भारत में सहिष्णुता-असहिष्णुता का मूल्यांकन इस परिभाषा पर नहीं किया जा सकता। भारत में स्वतन्त्रता के बाद से जो हो रहा था, उसकी परिभाषा गाँधी जी की दी हुई थी। उनके विचार से इस देश में दो ही विचारधाराएँ हैं- एक हिन्दू समर्थक, एक हिन्दू विरोधी । भारत की सहिष्णुता केवल हिन्दू-विरोध का दूसरा नाम है। यह हिन्दू विरोध मुस्लिम, ईसाई विरोधी हो जाये तो असहिष्णुता है और हिन्दू अपने ऊपर हो रहे अत्याचार का विरोध करे तो वह भी घोर असहिष्णुता है।
यदि ईसाई चर्च प्रलोभन अथवा भय से हिन्दुओं का धर्मान्तरण कराये तो यह उदारता सहिष्णुता है, यदि हिन्दू इसका विरोध करने लगे तो यह असहिष्णुता है। कहीं किसी ईसाई को हिन्दू बनाने की बात की तो यह असहिष्णुता बढ़ाना है। कश्मीर में कई हजार हिन्दूस्थानों का नाम एक आदेश से बदल देना और किसी के द्वारा विरोध में स्वर न उठाना, यह सहनशीलता है और दिल्ली के औरंगजेब मार्ग का नाम कलाम के नाम पर करना, यह असहिष्णुता है।
कोलकाता में दुर्गा-पूजा पर पण्डाल तोड़ना सहिष्णुता है और मुसलमानों को सड़क पर यातायात अवरुद्ध करने से रोकना असहिष्णुता है। मन्दिर तोड़ना, हिन्दू महिलाओं को निर्वस्त्र कर दौड़ाना सहिष्णुता है, मस्जिद में इकट्ठे होकर देशद्रोह के व्यायानों की निन्दा करना असहिष्णुता है। साध्वी प्रज्ञा को आतंकी मान, बिना अपराध जेल में रखना सहिष्णुता है। आतंकी को न्यायालय द्वारा फाँसी दिया जाना असहिष्णुता है। गोधरा में गाड़ी के डिब्बे बन्द करके पैट्रोल डालकर जला डालना सहिष्णुता है। प्रतिक्रिया में हिन्दुओं का आक्रामक होना असहिष्णुता है। संसद के अन्दर वन्दे मातरम का गान होते समय गान का अपमान करनेवाले की प्रशंसा करना सहिष्णुता है और वन्देमातरम गानेवाले की प्रशंसा करना असहिष्णुता है। आजम खाँ का संघ को आतंकी कहना सहिष्णुता है और तिवारी द्वारा बदले में इस्लाम पर टिप्पणी करना असहिष्णुता है। हिन्दुओं द्वारा आत्मरक्षा में उठाया गया काम असहिष्णुता और अपराध है, मुसलमानों द्वारा नवादा में गाड़ियों को जला देना, थाने पर आक्रमण करके आग लगा देना सहिष्णुता की परिभाषा में आता है। ओड़िशा में एक सन्त को कुल्हाड़ी से काट देना सहिष्णुता है और पादरी को जला देना असहिष्णुता है। मुसलमानों द्वारा गाय-ऊँट को मारने पर रोक लगाना असहिष्णुता है, चौराहे पर गोवध करना सहिष्णुता है।
इतिहास में इससे पहले भी बड़ी-बड़ी घटनायें घटीं, तब भी किसी को असहिष्णुता का बोध नहीं हुआ। इन्दिरा गाँधी ने 1975 में आपात्काल की घोषणा की, तब साहित्यकारों ने पुरस्कार स्वीकारना भी बन्द नहीं किया, लौटाना तो दूर की बात है। 1984 में इन्दिरा गाँधी की हत्या की प्रतिक्रिया में तीन हजार से अधिक सिक्खों की हत्या कर दी गई और बदले में सहिष्णु लोगों की प्रतिक्रिया थी। जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है। इससे पता लगता है कि सहिष्णुता की दिशा क्या है ? भागलपुर के दंगे प्रसिद्ध हैं, तब भी असहिष्णुता का कोई अवसर नहीं था। विचारों की स्वतन्त्रता का ढोंग करनेवाले वामपन्थी, कांग्रेसी और तथाकथित प्रगतिशील लोग हिन्दूदेवी-देवताओं को गाली देना, विचार-स्वतन्त्रता और अभिव्यक्ति का अधिकार मानते हैं। तसलीमा नसरीन के देश निकाले और जान से मार देने के फतवे को सुनकर कबूतर की तरह बिल्ली के आने पर आँखें बन्द कर लेते हैं। विचार-स्वतन्त्रता और अभिव्यक्ति की बात करनेवाले ये ही लोग भारत में रुशदी की पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगाने की बात करते हैं। रुशदी के भारत में आने पर उसका विरोध करते हैं। जयपुर कार्यक्रम से बाहर जाने के लिये बाध्य करते हैं। केरल में एक ईसाई प्रोफेसर का हाथ इसलिये काट दिया जाता है कि उसने इस्लाम के विरोध में लिखा था, यह भी इस देश की सहिष्णुता का उदाहरण है। इन प्रगतिशील विचारकों की सहिष्णुता प्रशंसनीय है।
एक बार मुझे रेल में जाते हुए सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी ने अपने अनुभव बताते हुए कहा था- कश्मीर चुनाव में एक मतदान केन्द्र पर उसकी नियुक्ति थी। वहाँ केवल दो मतदाता थे, वह गाँव कश्मीरी पण्डितों का था। उस अधिकारी ने बताया- गाँव के वृद्ध ने कश्मीरी पण्डितों को भगाने की घटना सुनाते हुये कहा था कि इसी वृक्ष के नीचे छबीस कश्मीरी पण्डितों की हत्या की गई थी।जहाँ सैंकड़ों लोगों की हत्या हुई हो और जिस देश में अपने ही घर से बेघर कर बीस वर्षों से भी अधिक समय से शेष लोगों को शरणार्थी बना दिया गया हो- क्या यह हमारी सहिष्णुता का प्रमाण नहीं है? कश्मीर में पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाना सहिष्णुता नहीं है? जब कश्मीर में भारतीय सेना के जवान आतंकियों की छानबीन करते हैं, उन्हें मार गिराते है, तब निःसन्देह भारत की सहिष्णुता खतरे में होती है। हिन्दू लड़कियों को भगाना, बलात्कार करना, हत्या कर देना, आदि को एक सामान्य बात मानना, इस देश में सहिष्णुता का ही प्रमाण है। कौन इसके विरोध में आवाज उठाता है? कौन अपने पुरस्कार लौटाता है? एक दादरी काण्ड पर सारा देश पुरस्कार लौटाने के लिये पंक्ति में खड़ा हो जाता है। यहाँ आतंकियों का सम्मान करने में होड़ लगती है। चाहे दिल्ली का बटाला हाउस काण्ड हो या गुजरात में इशरतजहाँ का मारा जाना। आतंकियों के घर पुरस्कार के रूप में लाखों रुपये के चेक लेकर सहिष्णु लोग ही तो पहुँचते हैं।ये थोड़े से उदाहरण धार्मिक सहिष्णुता के हैं।
इस देश में दो वर्ग विशेष रूप से असहिष्णुता से पीड़ित हैं- राजनीतिक दृष्टि से कांग्रेस और उसके पिछलग्गू लोग। इनका असहिष्णु होना बनता भी है। कांग्रेस की सत्ता छिन गई और ये लोग सोचते हैं कि देश में सहिष्णुता रहनी चाहिये। जो लोग साठ साल से इस देश पर राज्य कर रहे थे और उन्होंने इसे अपना पैतृक अधिकार समझ रखा था, उनको इस देश की जनता ने पराजित कर सत्ता से बाहर कर दिया तो जनता का इससे बड़ा उनके साथ अन्याय क्या हो सकता है? ऐसे लोगों में आक्रोश होना स्वाभाविक है, वे असहिष्णुता की बात करें तो ठीक ही है, इस देश की जनता ने उनको सहने से इन्कार कर दिया, क्या इस देश की जनता असहिष्णु नहीं हो गई है? केवल सत्ता ही गई हो, ऐसा तो नहीं है। सत्ता के जाने से सम्पत्ति और समान भी तो जाता है। सत्ता से एक महिला इंग्लैण्ड की महारानी से भी अधिक सम्पत्ति उपार्जित कर लेती है, क्या बिना सत्ता के ऐसा सभव है? बिना सरकार में हुए सरकार से बड़ा पद मिल जाना, क्या सत्ता के बिना संभव है? राजा के घर पैदा होकर राज्य का अधिकार मिलने की सहज परम्परा का टूट जाना, क्या सहन करने योग्य बात है ? इसके कारण देश के लोगों में असहिष्णुता बढ़ना सहज बात है। उनकी सरकार के रहते मन्त्री और अधिकारियों और नेताओं ने जो लूट मचा रखी थी, क्या उसके रुक जाने पर कोई शान्तिपाठ कर सकता है? मुझे गत दिनों आर्यसमाज शामली के कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला। वहाँ के आर्य सज्जन रघुवीर सिंह आर्यजी के साथ छः दिन रहने का अवसर मिला। उनका लोहे का कारखाना है, गाड़ी के धुरे आदि बनाते हैं। उनके पुत्र ने एक बात बताई कि मोदीजी के आने से उनको व्यापार में घाटा हुआ, परन्तु देश को लाभ। पूछने पर उन्होंने बताया कि मोदी सरकार के आने से भारत का कच्चा लोहा बाहर जाना बन्द हो गया। लोहे का निर्यात बन्द हुआ तो लोहा भारत के बाजार में सस्ता हो गया। इससे देश के व्यापारी को तो तत्काल हानि हो गई, पर कच्चे लोहे का निर्यात बन्द होने से उपभोक्ता को लोहा सस्ता मिल रहा है और देश में ही लोहे का निर्माण हो रहा है। कांग्रेसराज में खनिज निर्यात करके दलाल लोग अपनी जेबें भर रहे थे और देश को हानि हो रही थी। इसी प्रकार खाद्यान्न आदि में भी हो रहा है। इससे जिनलोगों की बेनामी बेहिसाब सम्पत्ति मिल रही थी, क्या उनमें असहिष्णुता नहीं बढ़ेगी । जिस-जिस के भी स्वार्थ पर चोट पड़ेगी, वह असहिष्णु तो होगा ही। इस देश में कांग्रेस ने कुछ सहिष्णुता के केन्द्र बनाये थे, जिनमें देश के अन्दर सहिष्णुता उत्पन्न की जाती है।उनमें से एक है- जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय। यह विश्वविद्यालय प्रगति और आधुनिकता का जनक है।जब यह विश्वविद्यालय बना तो इसमें सब भाषाओं के विभाग खोले गये, परन्तु संस्कृत भाषा का विभाग नहीं खोला गया, क्योंकि इस देश के लोगों में संस्कृत पढ़ने से असहिष्णुता बढ़ती है। जब मुरली मनोहर जोशी ने इस विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग खोलने की अनुमति दी तो यहाँ पर विरोध, हड़ताल और आन्दोलन किये गये, परन्तु संस्कृत विभाग तो खुल गया, फिर असहिष्णुता तो इस देश में बढ़नी ही है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की सहिष्णुता का एक उदाहरण देना असंगत नहीं होगा। इस विश्वविद्यालय में एक छात्र जितेन्द्र धाकड़ संस्कृत विषय में एम.फिल. का छात्र है।यह परिवार से आर्यसमाजी है। यह प्रतिवर्ष अपना जन्मदिन हवन, यज्ञ करके ही मनाता है। इसने इस वर्ष 21 नवम्बर को विश्वविद्यालय में छात्रावास के अपने कक्ष में मित्रों के साथ यज्ञ का आयोजन किया।फिर क्या था, छात्रावास के कामरेडों ने इसकी शिकायत छात्रावास अधीक्षक से कर दी। छात्रावासअधीक्षक (वार्डन) भी एक ईसाई बर्टेनक्लेट्स है, वह तुरन्त कक्ष संख्या 130 में पहुँचा । उसके साथ कामरेड शिकायत करनेवाले भी थे। इन्होंने जबरदस्ती उस छात्र का हवन बन्द करा दिया।छात्रावास मुस्लिम छात्रों को जब नमाज पढ़ने से नहीं रोकता, ईद मनाने से नहीं रोकता, क्रिसमस धूमधाम से मनाया जाता है, बीफपार्टी का आयोजन करने की अनुमति मिल सकती है। फिर हवन को जबरदस्ती बन्द कराना कौन-सी सहिष्णुता का उदाहरण है- ये असहिष्णुता से पीड़ित लोग बता सकेंगे। देश के प्रधानमन्त्री को अलीगढ़ में न बुलाने देना, यह भी सहिष्णुता का ही उदाहरण है। जिन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष हिन्दुओं से इतनी पीड़ा है कि उन्हें अपने देश में अपनी परम्परा का निर्वाह करने में विरोध सहना पड़ रहा है, वे मुस्लिम देशों की सहिष्णुता से कुछ क्यों नहीं सीखते? पिछले दिनों 22 दिसम्बर को ब्रुनेई के सुल्तान ने क्रिसमस का पर्व मनाने पर बड़ी सजा देने की घोषणा की तथा ऐसा करने वालों को पाँच साल की जेल या बीस हजार डॉलर का दण्ड देना होगा। यदि कोई घर में अकेले मनाना चाहता है तो उसे प्रशासन से अनुमति लेनी होगी । 24 दिसम्बर को अफ्रीकी देश सोमालिया के मन्त्री शेखमोहमद खेचरो ने अपने देश के लोगों को आदेश दिया कि क्रिसमस और नव वर्ष न मनाया जाय, यह ईसाइयों का पर्व है, इससे मुसलमानों का कोई सम्बन्ध नहीं। गुप्तचर विभाग को निगरानी करने के लिये कहा है।
इन घटनाओं के चलते भारत में असहिष्णुता दीखती है तो वह चाहे धार्मिक हो, जातीय हो या राजनैतिक, मूल कारण है मोदी का प्रधानमन्त्री बनना और हिन्दुओं का अन्याय के विरुद्ध मुखर होना। जो लोग कहते हैं कि मोदी से पहले देश में शान्ति और भाईचारा था, यहाँ गंगाजमुनी संस्कृति है- यह झूठ और आत्मप्रवञ्चना है। इस देश में अल्पसंखयकों और सरकार द्वारा हिन्दुओं पर जितने अत्याचार हुए हैं, उनकी कोई गिनती नहीं, फिर भी यह देश सहिष्णु था तो इसका असहिष्णु होना ही ठीक है। अच्छा होता, यह देश एक हजार वर्ष पूर्व असहिष्णु हो जाता तो दास न बना होता। नीतिकार ने कहा है- जन्मान्ध नहीं देखता, कामान्ध नहीं देखता, उन्मत्त-पागल नहीं देखता और स्वार्थी भी नहीं देखता। इन अन्धों की सहिष्णुता पर क्या कहा जा सकता है-
नैव पश्यति जन्मान्धो कामान्धो नैव पश्यति।
मदोन्मत्ता न पश्यन्ति हयर्थो दोषं न पश्यति।।
– धर्मवीर