Category Archives: इस्लाम

Jews asked Allah’s prophet three questions!

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Jews asked Allah’s prophet three questions!

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arab jews in the time of mohamed was asked by the pagans leaders to verify whether mohamed is a prophet or not by giving them some questions to ask him about.

they gave them this three questions and told them “if he know the answer of this three questions
the man is a prophet follow him,if not he is pretending do with him whatever you like.

the questions was
1-few youth in the first age ,what was there matter? these youth had an amazing matter

2-a man covered the earth till he reached its east and west,what was his matter?

3-what is the soul? http://yasharya.wordpress.com/2013/05/12/allah-quranic-embryology-and-the-soul/

the answer to the three questions was revealed to mohamed in Quran chapter 18 (the cave)

http://www.allahsquran.com/read/verses.php?ch=18

Q1.

http://answers.yahoo.com/question/index?qid=20091204010057AAfrnTt

018.010

Sahih International: [Mention] when the youths retreated to the cave and said, “Our Lord, grant us from Yourself mercy and prepare for us from our affair right guidance.”

018.025

Sahih International: And they remained in their cave for three hundred years and exceeded by nine.
Can any man sleep without food/water and live for 309 years?   You need to lock ur brain in a safe and forget it there to believe this !! 
Q2
Now who was dhul qarnein?
Sadly, the islamic scholars are not sure. Allah did not clarify the identity of dhul qarnein.
018.086

Sahih International: Until, when he reached the setting of the sun, he found it [as if] setting in a spring of dark mud, and he found near it a people. We [Allah] said, “O Dhul-Qarnayn, either you punish [them] or else adopt among them [a way of] goodness.”
So where did he go? To the place where he found the sun setting in a pool of muddy waters. Where is that place? Allah failed to clarify again!!
for more detail visit : http://yasharya.wordpress.com

मुसलमान बड़े मूर्तिपूजक

masjid

मुसलमान बड़े मूर्तिपूजक

-निश्चय हम तेरे मुख को आसमान में फिरता देखते हैं अवश्य हम तुझे उस कि़बले को फेरेंगे कि पसन्द करे उसको, बस अपना मुख मस्जि दुल्हराम की ओर फेर, जहाँ कहीं तुम हो अपना मुख उसकी ओर फेर लो।। मं0 1। सि0 2। सू02। आ0 1443

समी0 -क्या यह छोटी बुत्परस्ती है? नहीं, बड़ी।

पूर्वपक्षी-हम मुसलमान लोग बुत्परस्त नहीं हैं।किन्तु,बुत्शिकन अर्थात् मुर्तों को तोड़नेहारे है, क्योंकि हम कि़बले को खुदा नहीं समझते।

उत्तरपक्षी-जिनको तुम बुत्परस्त समझते हो,वे भी उन उनमुर्तों को ईश्वर नहीं समझते किन्तु उनके सामने परमेश्वर की भक्ति करते हैं। यदि बुतों के तोड़ने हारे हो तो उस मस्जिद कि़बले बड़े बुत को क्यों न तोड़ा?

पूर्वपक्षी-वाह जी! हमारे तो कि़बले की ओर मुख फेरने का कुरान में हुक्म है और इनको वेद में नहीं है फिर वे बुत्परस्त क्यों नहीं ? और हम क्यों ? क्योंकि हमको खुदा का हुक्म बजाना अवश्य है।

उत्तरपक्षी- जैसे तुम्हारे लिये क़ुरान में हुक्म है, वैसे इनके लिये पुराण में आज्ञा है। जैसे तुम क़ुरान को खुदा का कलाम समझते हो, वैसे पुराणी भी पुराणों को खुदा के अवतार व्यासजी का वचन समझते हैं। तुममें और इनमें बुत्परस्ती का कुछ भिन्न भाव नहीं है | प्रत्युत,तुम बड़े बुत्परस्त और ये छोटे हैं | क्योंकि, जब तक कोई मनुष्य अपने घर में से प्रविष्ट हुई बिल्ली को निकालने लगे तब तक उसके घर में ऊंट प्रविष्ट हो जाय,वैसे ही मुहम्मद साहेब ने छोटे बुत् को मुसलमानों के मत से निकाला,परन्तु बड़ा बुत् जो कि पहाड़ के सदृश मक्के की मस्जिद है, वह सब मुसलमानों के मत में प्रविष्ट करा दी, क्या यह छोटी बुत्परस्ती है ? हाँ, जो हम लोग वैदिक हैं, वैसे ही तुम लोग भी वैदिक हो जाओ तो बुत्परस्ती आदि बुराइयोंसे बच सको, अन्यथा नहीं | तुमको, जब तक अपनी बड़ी बुत्परस्ती को न निकाल दो, तब तक दूसरे छोटे बुत्परस्तों के खण्डन से लज्जित हो के निवृत रहना चाहिये और अपने को बुत्परस्ती से पृथक् करके पवित्र करना चाहिये |

-जब हमने लोगों के लिये काबे को पवित्र स्थान सुख देने वाला बनाया तुम नमाज़ के लिये इबराहीम के स्थान को पकड़ो।। मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ0 1251

समी0 -क्या काबे के पहिले पवित्र स्थान खुदा ने कोई भी न बनाया था ? जो बनाया था तो काबे के बनाने की कुछ आवश्यकता न थी, जो नहीं बनाया था तो विचारे पूर्वोत्पन्नों को पवित्र स्थान के बिना ही रक्खा था ? पहिले ईश्वर को पवित्र स्थान बनाने का स्मरण न हुआ होगा |

-वो कौन मनुष्य है जो इबराहीम के दीन से फिर जावे परन्तु जिसने अपनी जान को मूर्ख बनाया और निश्चय हमने दुनियां में उसी को पसन्द किया और निश्चय आख़रत में वो ही नेक है।। मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ0 1302

समी0 -यह कैसे सम्भव है कि इबराहीम के दीन को नहीं मानते वे सब मूर्ख हैं ? इबराहीम को ही खुदा ने पसन्द किया, इसका क्या कारण है ? यदि धर्मात्मा होने के कारण से किया तो धर्मात्मा और भी बहुत हो सकते हैं ? यदि बिना धर्मात्मा होने के ही पसन्द किया तो अन्याय हुआ। हां, यह तो ठीक है कि जो धर्मात्मा है,वही ईश्वर को प्रिय होता है, अधर्मी नहीं |

खुदा या शैतान

khuda ya shaitan

 खुदा या शैतान 

 – और काटें जड़ काफि़रों की।। मैं तुमको सहाय दूंगा साथ सहस्र फरिश्तों के पीछे2 आने वाले।। अवश्य मैं काफि़रों के दिलों में भय डालूंगा, बस मारो ऊपर  गर्दनों के मारो उनमें से प्रत्येक पोरी (संधि) पर।। मं0 2। सि0 9। सू0 8। आ0 7। 9। 12

समी0-वाह जी वाह ! कैसा खुदा और कैसे पैग़म्बर दयाहीन। जो मुसलमानीमत से भिन्न काफि़रों की जड़ कटवा वे। और खुदा आज्ञा देवे उनको गर्दन पर मारो और हाथ पग के जोड़ों को काटने का सहाय और सम्मति देवे ऐसा खुदा शैतान से क्या कुछ कम है ? यह सब प्रपञ्च कुरान के कर्ता का है, खुदा का नहीं। यदि खुदा का हो तो ऐसा खुदा हम से दूर और हम उस से दूर रहें |

-अल्लाह मुसलमानों के साथ है। ऐ लोगो जो ईमान लाये हो पुकारना स्वीकार करो वास्ते अल्लाह के और वास्ते रसूल के।। ऐ लोगो जो ईमान लाये हो,मत चोरी करो अल्लाह की रसूल की और मत चोरी करो अमानत अपनी को।। और मकर करता था अल्लाह और अल्लाह भला मकर करने वालों का है।। मं0 2। सि0 9। सू0 8। आ0 19। 24। 27। 30

समी0-क्या अल्लाह मुसलमानों का पक्षपाती है ? जो ऐसा है तो अधर्म करता है। नहीं तो ईश्वर सब सृष्टि भर का है। क्या ख़ुदा विना पुकारे नहीं सुन सकता ? बधिर है ? और उसके साथ रसूल को शरीक करना बहुत बुरी बात नहीं है ? अल्लाह का कौन सा खज़ाना भरा है जो चोरी करेगा ? क्या रसूल और अपने अमानत की चोरी छोड़कर अन्य सब की चोरी किया करे ? ऐसा उपदेश अविद्वान् और अधर्मियों का हो सकता है | भला ! जो मकर करता और जो मकर करने वालों का संगी है वह खुदा कपटी छली और अधर्मी क्यों नहीं ? इसलिये यह कुरान खुदा का बनाया हुआ नहीं है| किसी कपटी छली का बनाया होगा, नहीं तो ऐसी अन्यथा बातें लिखित क्यों होतीं ? |

-और लड़ो उनसे यहाँ तक कि न रहे फितना अर्थात् बल काफि़रों का और होवे दीन तमाम वास्ते अल्लाह के।। और जानो तुम यह कि जो कुछ तुम लूटो किसी वस्तु से निश्चय वास्ते अल्लाह के है, पाँचवा हिस्सा उसका और वास्ते रसूल के।। मं0 2। सि0 9। सू0 8। आ0 39।41

समी0-ऐसे अन्याय से लड़ने लड़ाने वाला मुसलमानों के खुदा से भिन्न शांति भंग कर्ता दूसरा कौन होगा ? अब देखिये यह मज़हब कि अल्लाह और रसूल के वास्ते सब जगत् को लूटना लुटवाना लुटेरों का काम नहीं है ? और लूटके माल में खुदा का हिस्सेदार बनना जानो डाकू बनना है और ऐसे लुटेरों का पक्षपाती बनना खुदा अपनी खुदाई में बट्टा लगाता है| बड़े आश्चर्य की बात है कि ऐसा पुस्तक, ऐसा खुदा और ऐसा पैग़म्बर संसार में ऐसी उपाधि और शांति भंग करके मनुष्यों को दुःख देने के लिये कहा  से आया ? जो ऐसे 2 मत जगत् में प्रचलित न होते तो सब जगत् आनन्द में बना रहता |

-और कभी देखे जब काफि़रों को फ़रिश्ते कब्ज करते हैं मारते हैं मुख उनके और पीठें उनकी और कहते चखो अ़ज़ाब जलने का।। हमने उनके पाप से उनको मारा और हमने फि़राओन की क़ौम को डुबा दिया।। और तैयारी करो वास्ते उनके जो कुछ तुम कर सको।। मं0 2। सि0 9। सू0 8। आ0 50।54।601

समी0-क्यों जी! आजकल रूस ने रूम आदि और इंग्लैड ने मिश्र की दुर्दशा कर डाली, फ़रिश्ते कहाँ सो गये ? और अपने सेवकों के शत्रुओं को खुदा पूर्व मारता डुबाता था, यह बात सच्ची हो तो आजकल भी ऐसा करे| जिससे ऐसा नहीं होता, इसलिये यह बात मानने योग्य नहीं है | अब देखिये! यह कैसी बुरी आज्ञा है कि जो कुछ तुम कर सको वह भिन्न मतवालों के लिये दुःखदायक कर्मकरो, ऐसी आज्ञा विद्वान् और धार्मिक दयालु की नहीं हो सकती| फिर लिखते हैं कि खुदा दयालु और न्यायकारी है| ऐसी बातों से मुसलमानों के खुदा से न्याय और दयादि सद्गुण दूर बसते हैं |

-ऐ नबी किफ़ायत है तुझको अल्लाह और उनको जिन्होंने मुसलमानों से तेरा पक्ष किया।। ऐ नबी रग़बत अर्थात् चाह चस्का दे मुसलमानों को ऊपर लड़ाईके, जो हों तुममें से 20 आदमी सन्तोष करने वाले तो पराजय करें दो सौ का।। बस खाओ उस वस्तु से कि लूटा है तुमने हलाल पवित्र और डरो अल्लाह से वह क्षमा करने वाला दयालु है।। मं0 2। सि0 10। सू0 8। आ0 64। 65। 692

समी0-भला! यह कौनसी न्याय,विद्वता और धर्म की बात है कि जो अपना पक्ष करे और चाहे अन्याय भी करे, उसी का पक्ष और लाभ पहुंचावे? और जो प्रजा में शांतिभंग करके लड़ाई करे करावे और लूटमार के पदार्थों को हलाल बतलावे और फिर उसी का नाम क्षमावान् दयालु लिखे यह बात खुदाकी तो क्या ?किन्तु,किसी भले आदमी की भी नहीं हो सकती। ऐसी2 बातों से कुरान ईश्वर वाक्य कभी नहीं हो सकता |

विज्ञान से अनभिज्ञ खुदा

crying girl

 विज्ञान से अनभिज्ञ खुदा

-निश्चय परवरदिगार तुम्हारा अल्लाह है जिसने पैदा किया आसमानों और पृथिवी को बीच छः दिन के फिर क़रार पकड़ा ऊपर अर्श के तदबीर करताहै काम की।। मं0 3। सि0 11। सू0 10। आ0

समी0-आसमान आकाश एक और बिना बना अनादि है। उसका बनाना लिखने से निश्चय हुआ कि वह कुरान का अल्लाह पदार्थ  विद्या को नहीं जानता था ? क्या परमेश्वर के सामने छः दिन तक बनाना पड़ता है? तो जो ‘‘हो मेरे हुक्म से और हो गया’’ जब कुरान में ऐसा लिखा है फिर छः दिन कभी नहीं लग सकते, इससे छः दिन लगना झूठ है। जो वह व्यापक होता तो फिर अर्श को  क्यों ठहरता ? और जब काम की तदबीर करता है तो ठीक तुम्हारा खुदा मनुष्य के समान है क्योंकि जो सर्वज्ञ है वह बैठा2 क्या तदबीर करेगा? इससे विदित होता है कि ईश्वर को न जानने वाले जंगली लोगों ने यह पुस्तक बनाया होगा |

-शिक्षा और दया वास्ते मुसलमानों के।। मं0 3। सि0 11। सू0 11। आ0 571

समी0-क्या यह खुदा मुसलमानों ही का है ? दूसरों का नहीं ? और पक्षपातीहै ?जो मुसलमानों ही पर दया करे,अन्य मनुष्यों पर नही। यदि मुसलमान ईमानदारों को कहते हैं तो उनके लिये शिक्षा की आवश्यकता ही नहीं, और मुसलमानों से भिन्नों को उपदेश नहीं करता तो खुदा की विद्या ही व्यर्थ है |

-परीक्षा लेवे तुमको, कौन तुममें से अच्छा है कर्मों में, जो कहे तू, अवश्य उठाये जाओगे तुम पीछे मृत्यु के।। मं0 3। सि0 12। सू0 11। आ0 72

समी0-जब कर्मों की परीक्षा करता है तो सर्वज्ञ ही नहीं। और जो मृत्यु पीछे उठाता है तो दौड़ा सुपुर्द रखता है और अपने नियम जो कि मरे हुए न जीवें उसको तोड़ता है, यह खुदा को बट्टा लगना है |

-और कहा गया ऐ पृथिवी अपना पानी निगल जा और ऐ आसमान बसकर और पानी सूख गया।। और ऐ क़ौम मेरे’, यह है निशानी ऊंटनी अल्लाह की वास्ते तुम्हारे, बस छोड़ दो उसको बीच पृथिवी अल्लाह के खाती फिरे।। मं0 3।सि0 11। सू0 11। आ0 44।643

समी0-क्या लड़केपन की बात है ! पृथिवी और आकाश कभी बात सुनसकते हैं ? वाहजी वाह! खुदा के ऊंटनी भी है तो ऊंट भी होगा ? तो हाथी, घोड़े, गधे आदि भी होंगे ? और खुदा का ऊंटनी से खेत खिलाना क्या अच्छी बात है? क्या ऊंटनी पर चढ़ता भी है ? जो ऐसी बातें हैं तो नवाबी की सी घसड़-पसड़ खुदा के घर में भी हुई |

-और सदैव रहने वाले बीच उसके जब तक कि रहें आसमान और पृथिवी और जो लोग सुभागी हुए बस बहिश्त के सदा रहने वाले हैं जब तक रहें आसमान और पृथिवी।। मं0 3। सि0 12। सू0 11। आ0 108। 109

समी0-जब दोज़ख और बहिश्त में कयामत के पश्चात  सब लोग जायंगे फिर आसमान और पृथिवी किसलिये रहेगी ? और तब दोज़ख और बहिश्त के रहनेकी आसमान पृथिवी के रहने तक अवधि हुई तो सदा रहेंगे बहिश्त वा दोज़ख में, यह बात झूठी हुई। ऐसा कथन अविद्वानों का होता है, ईश्वर वा विद्वानों का नहीं |

-जब यूसुफ़ ने अपने बाप से कहा कि ऐ बाप मेरे, मैंने एक स्वप्न में देखा।। मं0 3। सि0 12। 13। सू0 12। 13। आ0 4 से 101तक2

समी0-इस प्रकरण में पिता पुत्र का संवाद रूप किस्सा कहानी भरी है इसलिये कुरान ईश्वर का बनाया नहीं। किसी मनुष्य ने मनुष्यों का इतिहास लिख दिया है |

-अल्लाह वह है कि जिसने खड़ा किया आसमानों को बिना खंभे के देखते हो तुम उसको, फिर ठहरा ऊपर अर्श के, आज्ञा वर्तने वाला किया सूरज और चांद को और वही है जिसने बिछाया पृथिवी को | उतारा आसमान से पानी बस बहे नाले साथ अन्दाज अपने के अल्लाह खोलता है भोजन को वास्ते जिसको चाहै और तंग करता है।। मं0 3। सि0 13। सू0 13। आ0 2। 3।17।26

समी0-मुसलमानों का खुदा पदार्थ विद्या कुछ भी नहीं जानता था। जो जानता तो गुरुत्व न होने से आसमान को खंभे लगाने की कथा कहानी कुछ भी न लिखता। यदि खुदाअर्शरूप एक स्थान में रहता है तो वह सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापक नहीं हो सकता | और जो खुदा मेघ विद्या जानता तो आकाश से पानी उतारा लिखा,पुनः,यह क्यों न लिखा कि पृथिवी से पानी ऊपर चढ़ाया| इससे निश्चय हुआ कि कुरान का बनाने वाला मेघ की विद्या को भी नहीं जानता था|और जो बिना अच्छे बुरे कामों के सुख दुःख देता है तो पक्षपाती, अन्यायकारी, निरक्षर भट्ट है।।94।।

क्या कुरान खुदा की बनाई हुयी है ?

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क्या कुरान खुदा की बनाई हुयी है ?

जो परमेश्वर ही मनुष्यादि प्राणियों को खिलाता-पिलाता है तो किसी को रोग होना न चाहिये और सबको तुल्य भोजन देना चाहिये। पक्षपात से एक को उत्तम और दूसरे को निकृष्ट जैसा कि राजा और कंगले को श्रेष्ठ-निकृष्ट भोजन मिलता है,न होना चाहिये। जब परमेश्वर ही खिलाने-पिलाने और पथ्य कराने वाला है तो रोग ही न होना चाहिये। परन्तु मुसलमान आदि को भी रोग होते हैं। यदि खुदा ही रोग छुड़ाकर आराम करनेवाला है तो मुसलमानों के शरीरों में रोग न रहना चाहिये। यदि रहता है तो खुदा पूरा वैद्य नहीं है। यदि पूरा वैद्य है तो मुसलमानों के शरीर में रोग क्यों रहते हैं?यदि वही मारता और जिलाता है तो उसी खुदा को पाप-पुण्य लगता होगा। यदि जन्म-जमान्तर के कर्मानुसार व्यवस्था करता है तो उसको कुछ भी अपराध नहीं।यदि वह पाप क्षमा और न्याय क़यामत की रात में करता है तो खुदा पाप बढ़ानेवाला होकर पाप युक्त होगा। यदि क्षमा नहीं करता तो यह कुरान की बात झूठी होने से बच नहीं सकती है।

-नहीं तू परन्तु आदमी मानिन्द हमारी, बस ले आ कुछ निशानी जो हैतू सच्चों से।। कहा यह ऊंटनी है वास्ते उसके पानी पाना है एक बार।। मं0 5। सि019। सू0 26। आ0 154। 155

समी0 – यह खुदा को शंका और अभिमान क्यों हुआ कि तू हमारे तुल्य नहीं है और’व् भला इस बात को कोई मान सकता है कि पत्थर से ऊंटनी निकले! वे लोग जंगली थे कि जिन्होंने इस बात को मान लिया और ऊंटनी की निशानी देनी केवल जंगली व्यवहार है, ईश्वरकृत नहीं! यदि यह किताब ईश्वरकृत होती तो ऐसी व्यर्थ बातें इसमें न होतीं।

-ऐ मूसा बात यह है कि निश्चय मैं अल्लाह हूं ग़ालिब।। और डाल देअसा अपना, बस जब कि देखा उसको हिलता था मानो कि वह सांप है,…ऐ मूसा मत डर, निश्चय नहीं डरते समीप मेरे पैग़म्बर।। अल्लाह नहीं कोई माबूद परन्तु वह मालिक अर्श बड़े का।। यह कि मत सरकशी करो ऊपर मेरे और चले आओ मेरे पास मुसलमान होकर।। मं0 5। सि0 19। सू0 27। आ0 9। 10। 26।31

समी0 -और भी देखिये अपने मुख आप अल्लाह बड़ा ज़बरदस्त बनता है।अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना श्रेष्ठ पुरुष का भी काम नहीं, खुदा का क्यों कर हो सकता है? तभी तो इन्द्रजाल का लटका दिखला जंगली मनुष्यों को वश करआप जंगलस्थ खुदा बन बैठा। ऐसी बात ईश्वर के पुस्तक में कभी नहीं हो सकती। यदि वह बड़े अर्श अर्थात् सातवें आसमान का मालिक है तो वह एकदेशी होने से ईश्वर नहीं हो सकता है। यदि सरकशी करना बुरा है तो खुदा और मुहम्मद साहेब ने अपनी स्तुति से पुस्तक क्यों भर दिये? मुहम्मद साहेब ने अनेकों को मारे इससे सरकशी हुई वा नहीं? यह कुरान पुनरुक्त और पूर्वापर विरुद्ध बातों से भराहुआ है।

-और देखेगा तू पहाड़ों को अनुमान करता है तू उनको जमे हुए औरवे चले जाते हैं मानिन्द चलने बादलों की, कारीगरी अल्लाह की जिसने दृढ़ किया हर वस्तु को, निश्चय वह खबरदार है उस वस्तु के कि करते हो।। मं05। सि0 20।मू0 27। आ0 881

समी0 –बद्दलोंके समान पहाड़ का चलना कुरान बनानेवालोंके देश में होताहोगा, अन्यत्र नहीं। और खुदा की खबरदारी, शैतान बागी को न पकड़ने और न दंड देने से ही विदित होती है कि जिसने एक बाग़ी को भी अब तक न पकड़ पाया, न दंड दिया। इससे अधिक असावधानी क्या होगी ?

-बस मुष्ट मारा उसको मूसा ने, बस पूरी की आयु उसकी।। कहा ऐ रब मेरे, निश्चय मैंने अन्याय किया जान अपनी को, बस क्षमा कर मुझको, बसक्षमा कर दिया उसको, निश्चय वह क्षमा करने वाला दयालु है।। और मालिक तेरा उत्पन्न करता है, जो कुछ चाहता है और पसन्द करता है।। मं0 5। सि0 20। सू0 28। आ0 15। 16। 682

समी0 -अब अन्य भी देखिये! मुसलमान और ईसाइयों के पैग़म्बर और खुदा कि मूसा पैग़म्बर मनुष्य की हत्या किया करे और खुदा क्षमा किया करे, ये दोनों अन्यायकारी हैं वा नहीं? क्या अपनी इच्छा ही से जैसा चाहता है वैसी उत्पत्तिकरता है ? क्या उसने अपनी इच्छा ही से एक को राजा दूसरे को कंगाल और एक को विद्वान् और दूसरे को मूर्खादि किया है ? यदि ऐसा है तो न कुरान सत्य और न अन्यायकारी होने से यह खुदा ही हो सकता है।।121।।

-और आज्ञा दी हमने मनुष्य को साथ मां-बाप के भलाई करना  जो झगड़ा करें तुझसे दोनों यह कि शरीक लावे तू साथ मेरे उस वस्तु को, कि नहीं वास्ते तेरे साथ उसके ज्ञान, बस मत कहा मान उन दोनों का, तर्फ़ मेरी है।। औरअवश्य भेजा हमने नूह को तर्फ क़ौम उसके कि बस रहा बीच उनके हजार वर्ष परन्तु पचास वर्ष कम।। मं0 5। सि0 20-21। सू0 29। आ0 7। 13

समी0 -माता-पिता की सेवा करना तो अच्छा ही है जो खुदा के साथ शरीककरने के लिये कहे तो उनका कहा न मानना तो यह भी ठीक है।परन्तु,यदि मातापिता मिथ्याभाषणादि करने की आज्ञा देवें तो क्या मान लेना चाहिये ? इसलिये यह बात आधी अच्छी और आधी बुरी है। क्या नूह आदि पैग़म्बरों ही को खुदा संसार में भेजता है तो अन्य जीवों को कौन भेजता है ? यदि सब को वही भेजताहै तो सभी पैग़म्बर क्यों नहीं ? और प्रथम मनुष्यों की हजार वर्ष की आयु होती थी तो अब क्यों नहीं होती ? इसलिये यह बात ठीक नहीं |

-अल्लाह पहिली बार करता है उत्पत्ति फिर दूसरी बार करेगा उसको,फिर उसी की ओर फेरे जाओगे।। और जिस दिन बर्पा अर्थात् खड़ी होगी क़यामत निराश होंगे पापी।। बस जो लोग कि ईमान लाये और काम किये अच्छे बस वे बीच बाग़ के सिंगार किये जावेंगे।। और जो भेज दें हम एबाब बस देखें उस खेती को पीली हुई। इसी प्रकार मोहर रखता है अल्लाह पिंर दिलों उन लोगों के कि नहीं जानते।। मं0 5। सि0 21। सू0 30। आ0 11। 12।15।51।591

समी0 -यदि अल्लाह दो बार उत्पत्ति करता है,तीसरी बार नहीं,तो उत्पत्ति की आदि और दूसरी बार के अन्त में निकम्मा बैठा रहता होगा ? और एक तथा दो बार उत्पत्ति के पश्चात् उसका सामर्थ्य निकम्मा और व्यर्थ हो जायगा। यदि न्याय करने के दिन पापी लोग निराश हों तो अच्छी बात है,परन्तु इसका प्रयोजन यह तो कहीं नहीं है कि मुसलमानों के सिवाय सब पापी समझ कर निराश किये जायें क्योंकि कुरान में कई स्थानों में पापियों से औरों का ही प्रयोजन है। यदि बगीचे में रखना और “श्रृंगारपहिराना ही मुसलमानों का स्वर्ग है तो इस संसार के तुल्य हुआ और वहाँ माली और सुनार भी होंगे अथवा खुदा ही माली और सुनार आदि का काम करता होगा। यदि किसी को कम गहना मिलता होगा तो चोरी भी होती होगी और बहिश्त से चोरी करने वालों को देाज़ख में भी डालता होगा। यदि ऐसा होता होगा तो सदा बहिश्त में रहेंगे यह बात झूठ हो जायगी। जो किसानों की खेती पर भी खुदा की दृष्टि है सो यह विद्या खेती करने के अनुभव ही से होती है और यदि माना जाय कि खुदा ने अपनी विद्या से सब बात जान ली है तो ऐसा भय देनाअपना घमण्ड प्रसिद्ध करना है। यदि अल्लाह ने जीवों के दिलों पर मोहर लगा पाप कराया तो उस पाप का भागी वही होवे, जीव नहीं हो सकते। जैसे जय पराजय सेनाधीश का होता है वैसे यह सब पाप खुदा ही को प्राप्त होवें |

-ये आयतें हैं किताब हिक्मत वाले की। उत्पन्न किया आसमानों को विना सुतून अर्थात् खम्भे के देखते हो तुम उसको और डाले बीच पृथिवी के पहाड़ ऐसा न हो कि हिल जावे।। क्या नहीं देखा तूने यह कि अल्लाह प्रवेश कराता है रात को बीच दिन के और प्रवेश कराता है दिन को बीच रात के।। क्या नहीं देखाकि किश्तियां चलती हैं बीच दर्या के साथ निआमतों अल्लाह के, तो किदिखलावे तुमको निशानियां अपनी।। मं0 5। सि0 21। सू0 31। आ0 2। 10। 29।311

समी0 -वाह जी वाह! हिक्मतवाली किताब! कि जिसमें सर्वथा विद्या से विरुद्ध आकाश की उत्पत्ति और उसमें खम्भे लगाने की शंका और पृथिवी को स्थिररखने के लिये पहाड़ रखना ! थोड़ी सी विद्या वाला भी ऐसा लेख कभी नहीं करता और न मानता और हिक्मत देखो कि जहाँ दिन है वहाँ रात नहीं और जहाँ रात हैवहाँ दिन नहीं, उसको एक दूसरे में प्रवेश कराना लिखता है। यह बड़े अविद्वानोंकी बात है, इसलिये यह कुरान विद्या की पुस्तक नहीं हो सकती। क्या यह विद्या विरुद्ध बात नहीं है कि नौका, मनुष्य और क्रिया कौशलादि से चलती हैं वा खुदा की कृपा से ? यदि लोहे वा पत्थरों की नौका बनाकर समुद्र में चलावें तो खुदा की निशानी डूब जायवा नहीं? इसलिये यह पुस्तक न विद्वान् और न ईश्वरका बनाया हुआ हो सकता है |

कुरानी जन्नत, दोजक और विज्ञान

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कुरानी जन्नत, दोजक और विज्ञान 

-जब कि हिलाई जावेगीपृथिवी हिलाये जाने कर।। और उड़ाए जावेंगेपहाड़ उड़ाये जाने कर।। बस हो जावंगेभुनुगेटकुड़े-2 ।। बस साहब दाहनी ओर वालेक्या हैं  साहब दाहनी ओर के।। और र्बाइं  ओर वाले क्या हैं र्बांइ  ओर के।। ऊपर पलंघसोने  के तारों से बुने हएु हैं तकिये किए हुए हैं ऊपर उनके आमने सामने ।और फिरेंगे ऊपर उनके लड़के सदा रहने वाले । साथ आबखारेां के और आफ़ताबोंके और प्यालां के शराब साफ़ से । नहीं माथा दुखाये जावेंगे उससे और न विरुद्ध बोलंगे। और मेवे उस कि़स्म से कि पसन्दकरें । और गोश्त जानवर पक्षियों केउस कि़स्म से कि पसन्द करें । और वास्ते उनके औरतें हैं अच्छी आँखों वाली।।मानिन्द मोतियों छिपाये हुओं की।। और बिछानै बड़े।। निश्चय हमने उत्पन्न किया है औरतों को एक प्रकार का उत्पन्न करना है।। बस किया है हमने उनको कुमारी।।सुहागवालियां बराबर अवस्था बालियां।। बस भरने वाले हो उससे पेटों को।। बसकस़म खाता हॅूं में साथ गिरने तारों के । म07। सि0 27। सू0 56। आ0 4- 6। 8। 9।15-23। 34-37। 53।751

समी0 -अब देखिये कुरान बनाने वाले की लीला को! भला पृथिवी तो हिलती ही रहती है उस समय भी हिलती रहेगी। इससे यह सिद्ध होता है कि कुरानबनाने वाला पृथिवी को स्थिर जानता था। भला पहाड़ों को क्या पक्षीवत् उड़ा देगा? यदि भुनुगे हो जावेंगे तो भी सूक्ष्म शरीरधारी रहेंगे तो फिर उनका दूसरा जन्म क्यों नहीं? वाहजी! जो खुदा शरीरधारी न होता तो उसके दाहिनी ओर और बांई ओर कैसे खड़े हो सकते? जब वहाँ पलंग सोने के तारों से बुने हुए हैं तो बढ़ई सुनार भी वहाँ रहते होंगे और खटमल काटते होंगे, जो उनको रात्रि में सोने भी नहीं देते होंगे। क्या वे तकिये लगाकर निकम्मे बहिश्त में बैठे ही रहते हैं? वा कुछ काम किया करते हैं ? यदि बैठे ही रहते होंगे तो उनको अन्न पचन न होने से वे रोगी होकर शीघ्र मर भी जाते होंगे ? और जो काम किया करते होंगे तो जैसे मेहनत मज़दूरी यहाँ करते हैं वैसे ही वहाँ परिश्रम करके निर्वाह करते होंगे फिर यहाँ से वहाँ बहिश्त में विशेष क्या है? कुछ भी नहीं। यदि वहाँ लड़के सदा रहते हैं तो उनके मां-बाप भी रहते होंगे और सासू श्वसुर भी रहते होंगे,तब तो बड़ा भारी शहर बसता होगा फिर मल-मूत्रादि के बढ़ने से रोग भी बहुत से होते होंगे। क्योंकि,जबमेवे खावेंगे गिलासों में पानी पीवेंगे और प्यालों से मद्य पीवेंगे,न उनका सिर दूखेगाऔर न कोई विरुद्ध बोलेगा,यथेष्ट मेवा खावेंगे और जानवरों तथा पक्षियों के मांस भी खावेंगे तो अनेक प्रकार के दुःख, पक्षी, जानवर वहाँ होंगे, हत्या होगी और हाड़ जहाँ तहाँबिखरे रहेंगे और कसाइयों की दुकानें भी होंगी। वाह क्या कहना इनके बहिश्त की प्रशंसा कि वह अरब देश से भी बढ़कर दीखती है!!! और जो मद्य-मांस पी-खा के उन्मत्त होते हैं,इसीलिये अच्छी2 स्त्रियां और लौंडे भी वहाँ अवश्य रहने चाहिये नहीं तो ऐसे नशेबाजों के शिर में गरमी चढ़ के प्रमादी हो जावें। अवश्य बहुत स्त्री पुरुषों के बैठने सोने के लिये बिछौने बड़े2 चाहिये। जब खुदा कुमारियों को बहिश्त में उत्पन्न करता है तभी तो कुमारे लड़कों कोभी उत्पन्न करता है। भला! कुमारियों का तो विवाह जो यहाँ से उम्मेदवार होकर गये हैं,उनके साथ खुदा ने लिखा,पर उन सदा रहने वाले लड़कों का किन्हीं कुमारियों के साथ विवाह न लिखा,तो क्या वे भी उन्हीं उम्मेदवारों के साथ कुमारीवत् दे दिये जायेंगे? इसकी व्यवस्था कुछ भी न लिखी। यह खुदा में बड़ी भूल क्यों हुई? यदि बराबर अवस्था वाली सुहागिन स्त्रियां पतियों को पा के बहिश्त में रहती हैं तो ठीक नहीं हुआ,क्योंकि स्त्रियों से पुरुष का आयु दूना,ढाई गुना चाहिये,यह तो मुसलमानों के बहिश्त की कथा है।और नरक वाले सिंहोड़ अर्थात् थोर के वृक्षों को खा के पेट भरेंगे तो कण्टक वृक्ष भी दोज़ख में होंगे तो कांटे भी लगते होंगे और गर्म पानी पियेंगे इत्यादि दुःखदोज़ख में पावेंगे। क़सम का खाना प्रायः झूठे का काम है, सच्चों का नहीं। यदिखुदा ही कसम खाता है तो वह भी झूठ से अलग नहीं हो सकता।

क्या मुहम्मद का नाम अथर्ववेद में है

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क्या मुहम्मद का नाम अथर्ववेद में है ?

बहुत से मुसलमान ऐसा कहा करते और लिखा व छपवाया करते है कि हमारे मजहब की बात अथर्ववेद में लिखी है. इस का या उत्तर है कि अथर्ववेद में इस बात का नाम निशान भी नहीं है.

प्रश्न : क्या तुम ने सब अथर्ववेद देखा है ? यदि देखा है तो अल्लोपनिषद देखो।  यह साक्षात उसमें लिखी है।  फिर क्यों कहते हो कि अथर्ववेद में मुसलमानों का नाम निशान भी नहीं है। जो इस में प्रत्यक्ष मुहम्मद  साहब रसूल लिखा है इस से सिध्द होता है कि मुसलामानों का मतवेदमूलक है।

उत्तर : यदि तुम ने अथर्ववेद न देखो तो तो हमारे पास आओ आदि से पूर्ति तक देखो अथवा जिस किसी अथर्ववेदी के पास बीस कांडयुक्त मंत्र संहिता अथर्ववेद को देख लो. कहीं तुम्हारे पैगम्बर साहब का नाम व मत का निशान न देखोगे और जो यह अल्लोपनिषद है वह न अथर्ववेद में न उसके गोपथब्राहम्मण व किसी  शाखा में है  यह तो अकबरशाह के समय में अनुमान है कि किसी ने बनाई है।  इस का बनाने वाला कुछ अरबी और कुछ संस्कृत भी पढ़ा  हुआ दीखता है क्योंकि इस में अरबी और संस्कृत के पद लिखे हुए दीखते हैं।  देखो ! (अस्माल्लामइल्लेमित्रावरुणादिव्यानिधत्ते ) इत्यादि में जो कि दश अंक में लिखा है जैसे – इस में अस्माल्लाम और इल्ले ) अरबी और ( मित्रावरुणादिव्यानिधत्ते ) यह संस्कृत पद लिखे हैं वैसे ही सर्वत्र देखने में आने से किसी संस्कृत और अरबी के पढे हुए ने बनाई है. यदि इस का अर्थ देखा जाता है तो यह कृत्रिम आयुक्त वेद और व्याकरण रीति से विरुद्ध है।  जैसी यह उपनिषद बनाई है वैसी बहुत सी उपनिषदेंमतमतान्तर वाले पक्षपातियों ने बना ली हैं।  जैसी कि स्वरोपनिषदनृसिंहतापानि  राम तापनी गोपालतापनी बहुत सी बना ली हैं

प्रश्न -आज तक किसी ने ऐसा नहीं कहा अब तुम कहते हो हैम तुम्हारी बात कैसे माने ?

उत्तर -तुम्हारे मानने व न मानने से हमारी बात झूठ नहीं हो सकती है।  जिस प्रकार से मीन इस को आयुक्त ठहरेई है उसी प्रकार से जब तुम अथर्वेदगोपथ व इस की शाखाओं से प्राचीन लिखित पुस्तकों में जैसे का तैसा लेख दिखलाओ और अर्थसंगति से भी शुद्ध करो तब तो सप्रमाण हो सकता है.

प्रश्न – देखो ! हमारा मत कैसा अच्छा है कि जिसमें  सब प्रकार का सुख और अंत में मुक्ति होती है

उत्तर – ऐसे ही अपने अपनेमत वाले सब कहते हैं कि हमारा मत अच्छा है बाकी सब बुरे।  बिना हमारे मत में मुक्ति नहीं हो सकती।  अब हम तुम्हारी बात को सच्ची माने  व उनकी ? हम तो यही मानते हैं कि सत्यभाषण, अहिंसा, दया आदि शुभ गुण सब मतों  में  वाद विवाद ईर्ष्या, द्वेष, मिथ्याभाषणादि कर्म सब मतों में बुरे हैं।  यदि तुम को सत्य मत ग्रहण की इच्छा हो तो वैदिक मत को ग्रहण करो।

अल्लाह सर्वज्ञ और सर्वव्यापक नहीं

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अल्लाह सर्वज्ञ और सर्वव्यापक  नहीं

– जब हमने फरिश्तों से कहा कि बाबा आदम को दण्डवत करो देखो सभी ने दंडवत किया परन्तु शैतान ने न माना और अभिमान किया क्योंकि वो भी एक काफिर था |म १ सी १ सु २ आ ३४

समीक्षक – इससे खुदा सर्वज्ञ नहीं अर्थात भुत भविष्यत् और वर्त्तमान की पूरी  बातें नहीं जानता जो जानता हो तो शैतान को पैदा ही क्यों  किया। ? और खुदा में कुछ तेज भी नहीं है क्योंकि शैतान ने खुदा का हुक्म ही न माना और खुदा उस का कुछ भी न कर सका और देखिये ! एक शैतान काफिर ने खुदा का भी छक्का छुड़ा दिया तो मुसलमानो के कथनानुसार भिन्न जहाँ करोड़ों काफिर हैं वहाँ मुसलमानों के खुदा और मुसलमानों की क्या चल सकती है ? कभी कभी खुदा भी किसी का रोग बड़ा देता और किसी को गुमराह कर देता है।  खुदा ने ये बातें शैतान  से सीखीं होंगी और शैतान ने खुदा  से क्योंकि वीणा खुदा के शैतान का उस्ताद और कोई नहीं हो सकता|

– हमने कहा कि ओ आदम ! तू और तेरी जोरू बहिश्त में रह कर आनंद में रहो जहाँ चाहो खाओ परन्तु मत समीप जाओ उस वृक्ष के कि पापी हो जाओगे।  शैतान ने उनको डिगाया और उन को बहिश्त के आनंद से खो दिया।  तब हम  ने कहा कि उतरो तुम्हारे में कोई परस्पर शत्रु है तुम्हारा ठिकाना पृथवी है और एक समय तक लाभ है।  आदम अपने मालिक की कुछ बातें सीखकर पृथ्वी पर आ गया।  म १ सी १ सु २ आ ३५ ३६ ३७

समीक्षक – अब देखिये खुदा की अल्पज्ञता ! अभी तो स्वर्ग में रहने का आशीर्वाद दिया और पनाह दी और थोड़ी देर में कहा कि निकलो जो भविष्यत्  को जनता होता तो वर ही क्यों देता ? और बहकाने वाले शैतान को दंड देने से असमर्थ भी दीख पड़ता है ।  और वह वृक्ष किस के लिए उत्पन्न किया था क्या अपने लिए वा दूसरे के लिए जो अपने लिए किया तो उस को क्या जरुरत थी और जो दूसरे के लिए तो क्यों रोका इसलिए ऐसी बातें न खुदा की और न उसके बनाये पुस्तक में हो सकती हें | आदम साहेब खुद से कितनी बातें सीख आये ? और जब पृथ्वी पर आदम साहेब आये तब किस प्रकार आये ? क्या वह बहिश्त पहाड़ पर है वा आकाश पर उस से कैसे उतर आये अथवा पक्षी के तुल्य आये अथवा जैसे ऊपर से पत्थर गिर पड़े ?

इसमे यह विदित होता है कि जब आदम साहेब मट्टी से बनाये गए तो इनके स्वर्ग में मिट्टी होगी और इतने वहाँ और हैं वे भी वैसे ही फ़रिश्ते आदि होंगे  क्योंकि मट्टी के शरीर वीणा इन्द्रिय भोग नहीं हो सकता जब पार्थिव शरीर है तो मृत्य भी अवश्य होना चाहिए यदि मृत्यु होता है तो वे वहाँ  से कहाँ जाते हैं ?और मृत्यु नहीं होता तो उनका जन्म भी नहीं हुआ जब जन्म है तो मृत्यु अवश्य ही है यदी ऐसा है तो कुरान  में लिखा है कि बीबियाँ सदैव बहिश्त में रहती हैं सो झूठा हो जावेगा क्योंकि उन का भी मृत्यु अवश्य होगा जब ऐसा है तो बहिश्त में जाने वालों का भी मृत्यु अवश्य होगा |

यदी अल्लाह सब जगह है तो मुसलमान केवल मक्का की तरफ मुंह क्यूँ  करते हैं ?

– तुम जिधर मुंह करो उधर ही मुंह अल्लाह का है।  म १ सी १ सु २ आ ११५

समीक्षक – जो यह बात सच्ची है तो मुसलमान ‘क़िबले ‘ की और मुंह क्यों करते हें ? जो कहें कि हम को किबले की और मुंह करने का हुक्म है तो यह भी हुक्म है कि चाहे जिधर की और मुख करो।  क्या एक बात सच्ची और दूसरी झूठी होगी ? और जो अल्लाह का मुख है तो वह सब और हो ही नहीं सकता। क्योंकि एक मुख एक और रहेगा सब और क्योंकर रह सकेगा? इसलिए यह संगत नहीं.

– जब तेरे पास से निकलते हैं तो तेरे कहने के सिवाय (विपरीत ) सोचते है ।  अल्लाह उन की सलाह को लिखता है।  अल्लाह ने उन की कमाई वस्तु के कारण से उन को उलटा किया।  क्या तुम चाहते हो कि अल्लाह के गुमराह किये हुए को मार्ग पर लाओ ? बस जिनको अल्लाह गुमराह करे उसको कदापि मार्ग न पावेगा | म १ सी ५ सु ४ आ ८१-८८

समीक्षक : – जो अल्लाह बातों को लिख बहीखाता बनाता जाता है तो सर्वज्ञ नहीं।  जो सर्वाज्ञ है तो लिखने का क्या काम ? और जो मुसलमान कहते हें कि शैतान ही सब को बहकाने से दुष्ट हुआ है तो जब खुदा ही जीवों को गुमराह करता है तो खुद और शैतान में क्या भेद रहा ? हाँ ! इतना कह सकते हैं कि खुदा बड़ा शैतान वह छोटा शैतान! क्योंकि मुसलमानो ही का काम  है कि जो बहकाता है वही शैतान हो तो इस  प्रतिज्ञा से खुद को भी शैतान बना दिया |

– निश्चय ही तुम्हारा मालिक अल्लाह है जिस ने आसमानों और पृथ्वी को ६ दिन में उत्पन्न किया। फिर करार पकड़ा अर्श पर, दीनता  से अपने मालिक को पुकारो।  म २ सि  ८ सु ७ आ ५४, ५६

समीक्षक : भला ! जो ६ दिन में जगत को बनावे , (अर्श ) अर्थात ऊपर के आकाश में सिंहासन पर आराम करे वह ईश्वर सर्वशक्तिमान और व्यापक कभी हो सकता है ? इस के न होने से वह खुद भी नहीं कहा सकता।  क्या तुम्हारा खुद बधिर है जो पुकारने से सुनता है ? ये सब बातें अनीश्वरकृत है ।  इस से क़ुरान ईश्वरकृत नहीं हो सकता। यदि ६ दिनों में जगत बनाया सातवें दिन अर्श पर आराम किया तो थक भी गया होगा और अब तक सोता है वा जागा है यदी जागता है तो अब कुछ काम करता है व निकम्मा सैर  सपट्टा और ऐश करता  फिरता है |

– मत फिरो पृथ्वी पर झगड़ा करते। म -२ सी -८ सु -७ आ ७४

समीक्षक – यह बात तो अच्छी है परन्तु इस से विपरीत दूसरे स्थानों में जिहाद करना काफिरों को मरना भी लिखा है।  अब कहो यह पूर्वा पर विरद्ध नहीं है ? इस से यह विदित होता है कि जब मुहम्म्द साहेब निर्बल हुए होंगे तब उन्होंने यह उपाय रचा होगा और जब सबल हुए होंगे तब झगड़ा मचाया होगा इसी से ये बातें परस्पर विरुद्ध होने से दोनों सत्य नहीं हैं।

– बस एक ही बार अपन असा दाल दिया और वह अजगर था प्रत्यक्ष।  म -२ सी ९ सु ७ आ १०७

समीक्षक – अब इस के लिखने से विदित होता है कि ऐसी झूठी बातों को खुद और मुहम्म्द साहेब मानते थे जो ऐसा है तो ये दोनों विद्वान नहीं थे क्योंकि जैसे आँख से देखने को और कान से सुनाने को अन्यथा कोई नहीं कर सकता इसी से ये इंद्रजाल की बातें हैं।

– बस हम ने उन पर मेह का तूफ़ान भेजा।  टीडी चिचड़ी और मेढक और लोहू।  बस उन से हमने बदला लिया औ उनको डुबो दिया दरियाव में और हम ने बनी इस्राइल को दरियाव से पार उतार दिया।  निश्चय वह दीं झूठा है कि जिस में वे हैं उन का कार्य भी झूठा है।  म -२ सी ९ सु -७ आ १३३ १३६ १३७ १३७ १३९।

समीक्षक – अब देखिये ! जैसा कोई पाखंडी किसी को डरावे कि हम  तुझ पर सर्पों को काटने के लिए भेजेंगे ऐसी ही यह भी बात है भला जो ऐसा पक्षपाती कि एक जाती को डूबा दे और दूसरी को पार उतारे वह अधर्मी खुदा क्यों नहीं जो दूसरे मतों को कि जिन में हजारों करोड़ों मनुष्य हों झूठा बतलावे और अपने को सच्चा उस से परे झूठा मन कौन हो सकता है ? क्योंकि किसी मत में सब मनुष्य बुरे और भले नहीं हो सकते।  यह एकतर्फी डिग्री करना महामूर्खों का मत है।  क्या तौरेत जबूर का दीं जो कि उन का था झूठा हो गया ? व उन का कोई अन्य मजहब था कि जिस को झूठा कहा और जो वह अन्य मजहब था तो कौन सा था कहो कि जिस का नाम क़ुरान में हो |

– सदा रहेंगे बीच उस के , अल्लाह समीप है उस के पुण्य बड़ा ऐ लोगों जो ईमान लाये हो मत पकड़ो बापों अपने को और भाइयों अपने को मित्र जो दोस्त रखें कुफ्र को ऊपर ईमान के फिर उतारी अल्लाह ने तसल्ली अपनी ऊपर रसूल अपने के और ऊपर मुसलमानों के और उतारे लश्कर नहीं देखा तुम ने उनको और अजाब किया उन लोगों को और   यही सजा है काफिरों को।  फिर फिर आवेगा अल्लाह पीछे उस  के ऊपर  और लड़ाई करो उन लोगों  ईमान नहीं लाते। म २ सि १० सु ९ आ २२ /२३/२६/२७

समीक्षक – भला जो बहिश्त वालों के समीप अल्लाह रहता है तो सर्व्यापक क्योंकर हो सकता है ? जो सर्वव्यापक नहीं तो सृष्टि कर्ता और न्यायाधीश नहीं हो सकता और अपने माँ बाप भाई और मित्र को छुड़वाना केवल अन्याय की बात है हाँ जो वे बुरा उपदेश करें न मानना परन्तु उनकी सेवा सदा करनी चाहिए जो पहिले खुदा मुसलमानों पर बड़ा संतोषी था और उनके सहाय के लिए लश्कर उतारता था सच हो तो अब ऐसा क्यों नहीं करता ? और जो प्रथम काफिरों को दण्ड देता और पुनः उसके ऊपर आता था तो अब कहाँ गया कहाँ गया ?क्या वीणा लड़ाई के ईमान खुदा नहीं बना सकता ? ऐसे खुदा को हमारी और से सदा तिलांजलि है खुदा क्या है एक खिलाड़ी है ?

-और हम बाट देखने वास्ते हैं वास्ते तुम्हारे यह कि पहुंचावें तुम को अल्लाह अजाब अपने पास से वा हमारे हाथों से.म -२ सी १० सु ९ आ ५२

समीक्षक – क्या मुसलमान ही ईश्वर की पुलिस  बन गए हैं कि अपने हाथ वा मुसलामानों के हाथ से अन्य किसी मत वालों को पकड़ा देता है ? क्या दूसरे करोड़ों मनुष्य  ईश्वर को  अप्रिय हैं ? मुसलमानों में पापी भी प्रिय हैं ? यदि ऐसा है तो अंधेर नगरी गवरगंड वे भी इस निर्मूल आयुक्त मत को मानते हैं.

– तदबीर करता है काम की आसमान से तर्फ पृथ्वी की फिर चढ़ जाता है तर्फ उस की बीच एक दिन के कि है अवधी उसकी सहस्त्र वर्ष उन वर्षों  से कि गिनते हो तुम।  यह है जानने वाल गैब का और प्रत्यक्ष का ग़ालिब दयालु।  फिर पुष्ट किया उस को और फूंका बीच रूह अपनी से कह कब्ज करेगा तुम को फरिश्ता मौत का वह जो नियत किया गया है साथ तुम्हारे और जो चाहते है  एक जीव को शिक्षा उस की परन्तु सिद्ध हुयी बात मेरी ओर  से कि अवश्य भरुंगा में दोजख को जिनों से और आदमियों से इकट्ठे।  म – ५ सी २१ सु ३२ आ ५/६/९/११/१३/

समीक्षक – अब ठीक सिद्ध हो गया कि मुसलमानों का खुद मनुष्यवत एकदेशी है।  क्योंकि जो व्यापक होता तो एकदेश से प्रबंध करना और उतरना चढ़ना नही हो सकता। यदि खुद फ़रिश्ते को भेजता है तो भी आप एकदेशी हो गया | आप आसमान पर टंगा बैठा है और फरिश्तों को दौड़ता है यदि फ़रिश्ते  मामला बिगाड़ दें व किसी मुर्दे को छोड़ जाएँ तो खुद को क्या मालूम हो सकता है? मालूम तो उस को हो कि जो सर्वज्ञ तथा सर्वव्यापक हो सो तो है ही नहीं ; होता तो फरिश्तों के भेजने तथा कई लोगों की कई प्रकार से परिक्षा लेने का क्या काम था ? और एक हजार वर्षों में तथा आने जाने प्रबंध करने से सर्वशक्तिमान भी नहीं। यदि मौत का फरिश्ता है तो उस फ़रिश्ते का मारने वाला कौन सा मृत्यु है ? यदि वह नित्य है तो अमरपन में खुद के बराबर शरीक हुआ. एक फरिश्ता एक समय में दोजख भर के उन को दुःख देकर तमाशा देखता है तो वह खुदा पापी अन्यायकारी और दयाहीन है !. ऐसी बातें जिस पुस्तक में हों न वह विद्वान और ईश्वरकृत और जो दया न्यायहीन है वह ईश्वर भी कभी नहीं हो सकता।

– कह कि कभी न लाभ देगा भागना तुम को जो भागो तुम मृत्यु व क़त्ल से. ऐ बीबियों नबी की ! जो कोई आवे तुम में से निर्लज्जता प्रत्यक्ष के दुगुणा किया जायेगा वास्त उसके अजाब और है यह ऊपर अल्लाह के सहल।  म -५ सी २१ सु ३३ आ १५ , ३०

समीक्षक – यह मुहम्मद साहेब ने इसलिए लिखा लिखवाया होगा कि लड़ाई में कोई न भागे , हमारा विजय होवे मरने से भी न डरे ऐश्वर्य बड़े मजहब बढ़ा लेवें ? और यदि बीबी निर्लज्जता से न आवे तो क्या पैगम्बर साहेब निर्लज हो कर आवें ? बीबियों पर अजाब हो और पैगम्बर साहेब पर अजाब न हॉवे यह किस घर का न्याय है ?

 

दूसरे मतों के प्रति मुसलमानों की असहनशीलता

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दूसरे मतों के प्रति मुसलमानों की असहनशीलता :

-सब स्तुति परमेश्वर के वास्ते हैं जो परवरदिगार अर्थात् पालन करनहारा है सब संसार का क्षमा करने वाला दयालु है |  मं.  1। – सि. 1। सूरतुल्फातिहा आयत 1। 2

समीक्षक –  जो कुरान का खुदा संसार का पालन करने हारा होता और सब पर क्षमा और दया करता होता तो अन्य मत वाले और पशु आदि का भी मुसलमानों के हाथ से मरवाने का हुक्म न देता । जो क्षमा करनेहारा है तो क्या पापियों पर भी क्षमा करेगा ? और जो वैसा है तो आगे लिखेंगे कि “काफिरों का कतल करो” अर्थात् जो कुरान और पैगम्बर को न माने वे काफिर हैं एसा क्यों कहता ? इसलिये कुरान ईश्वर कृत नहीं दीखता |

-जो तुम उस वस्तु से सन्देह में हो जो हमने अपने पैगम्बर के उपर उतारी तो उस क़ैसी एक सूरत ले आओ और अपन साक्षी अपने लोगों को पुकारो अल्लाह के विना जो तुम सच्चे हो | जो तुम और कभी न करागे तो उस आग से डरो कि जिस का ईंधन मनुष्य है, और काफिरों के वास्ते पत्थर तैयार किये गये हैं | – मं-1। सि-1। सू-2। आ-23। 24

समीक्षक–  भला यह कोई बात है कि उस के सदृश कोई सूरत न बने क्या अकबर बादशाह के समय में मौलवी फैजी ने बिना नुकते का वफरान नही बना लिया था.  वह कौन सी दोजख की आग है ? क्या इस आग से न डरना चाहिये ? इस का भी इन्ध्न जा कुछ पड़े सब है। जैसे कुरान में लिखा है कि काफिरों के वास्ते दोजख की आग तैयार की गई है तो वैसे पुराणों  में लिखा है कि म्लेच्छों के लिए घोर नरक बना है ! अब कहिय किस की बात सच्ची मानी जाय | अपने-अपने  वचन से दोनों स्वर्गगामी और दूसरे  के मत से दोनों नरकगामी होते हैं। इसलिए इन सब का किन्तु जो धार्मिक  हैं वे सुख और जो  पापी हैं वे सब  मतों में दुःख पावेंगे |

जो लोग अल्लाह के मार्ग में  मर जाते हैं उन के लिए यह मत कहो कि  ये मृत हैं किन्तु जीवित हैं. मं – १ सि -२ सू २ आ १४५

समीक्षक – भला ईश्वर के मरने मारने की  आवश्यकता है ? यह क्यों नहीं कहते हो कि यह बात अपने मतलब सिद्ध  करने के लिए है कि यह लोभ देंगे तो लोग खूब लड़ेंगे अपना विजय होगा , मारने से न डरेंगे, लूट मार  कराने से ऐश्वर्य प्राप्त होगा; पश्चात विषयानन्द करेंगे इत्यादि स्वप्रयोजन के लिए यह विपरीत व्यवहार  किया है

– और यह कि अल्लाह कठोर दुःख देने वाला है | शैतान के पीछे मत चलो निश्चय वो तुम्हारा प्रत्यक्ष शत्रु है. उसके बिना और कुछ नहीं कि बुराई और निर्लज्जता की आज्ञा दे. और यह कि तुम कहो अल्लाह  पर जो नहीं जानते। मं -१, सि -२,सूरा -२ आ १६८ ,१६९ ,१७०

समीक्षक – क्या कठोर दुःख देने वाला दयालु खुद पापियों पुण्यात्माओं पर है अथवा मुसलामानों पर दयालु और अन्य पर दयाहीन है. जो ऐसा है तो वह ईश्वर नहीं हो सकता। और पक्षपाती नहीं है तो जो मनुष्य कहीं धर्म करेगा उस पर ईश्वर दयालु और जो अधर्म करेगा उस पर दण्ड दाता होगा तो फिर बीच में मुहम्मंद साहेब और क़ुरान को मानना आवश्यक न रहा।  और जो सब को बुराई करने वाला मनुष्यमात्र का शत्रु शैतान है उस  को खुदा ने उत्पन्न ही क्यों किया ? क्या वह भविष्यत् की बात नहीं जानता था ? जो कहो कि जानता था परन्तु परीक्षा के लिए बनाया तो भी नहीं बन सकता क्योंकि परीक्षा करना अल्पज्ञ का काम है सर्वज्ञ तो सब जीवों के अच्छे  बुरे कर्मों को सदा से ठीक ठीक जानता है और शैतान सब को बहकाता है तो अन्य भी आप से आप बहक सकते हैं बीच में शैतान का क्या काम ? और जो खुदा ही ने शैतान को बहकाया तो खुदा शैतान का भी शैतान ठहरेगा। ऐसी बात ईश्वर की नहीं हो सकती। और जो बहकाता है वह कुसंग तथा अविद्या से भ्रांत  होता है.

-तुम पर मुर्दार, लोहू और गोश्त सूअर  का हराम हैऔर अल्लाह के विना जिस पर कुछ पुकारा जावे |     – मं- 1। सि-  2। सू- 2। आ- 173

समीक्षा – यहां विचारना चाहिये कि मुर्दा चाहे आप से आप मरे वा किसी के मारने से दोनों बराबर है। हाँ!  इनमे कुछ भेद भी है तथापि मृतकपन में कुछ भेद नही। और जब एक सूअर का निषेद  किया तो क्या मनुष्य का मांस खाना उचित है क्या यह बात अच्छी हो सकती है कि  परमेश्वर के नाम पर शत्रु आदि को अत्यन्त दुःख देकर प्राणहत्या करनी | इससे ईश्वर का नाम कलंकित हो जाता है। हां! ईश्वर ने विना पूर्वजन्म के अपराध के मुसलमानों के हाथ से दारुण दुःख क्यों दिलाया ? क्या उन पर दयालु नहीं है ? उन को पुत्रवत नहीं मानता ?

जिस वस्तु से अधिक उपकार होवे उन गाय आदि के मारने का निषेध न करना जानो हत्या कर खुदा जगत का हानिकारक है।  हिंसारूप पाप से कलंकित भी हो जाता है. ऐसी बातें खुदा और खुदा के पुस्तक की कभी नहीं हो सकतीं |

-और अपने हाथों को न रोकें तो उन को पकड़ लो और जहाँ पाओ मार डालो।  मुसलमान को मुसलमान का मारना योग्य नहीं। जो कोई अनजाने से मार डाले बस एक गर्दन मुसलमान का मारना योग्य है और खून बहा उन लोगों की और सोंपी हुयी जो उस कौन से होंवें और तुम्हारे लिए दान कर देवें जो दुश्मन की कौम से अरु जो कोई मुसलमान को जाना कर मार डाले वह सदैव काल दोजख में रहेगा उस पर अल्लाह का क्रोध और लानत है | म – १. सी -५ सु ४ आ ९१, ९२, ९३

समीक्षका – अब देखिय महा पक्षपात की बात कि जो मुसलमान न हो उस को जहाँ पाओ मार डालो और मुसलामानों को न मारना। भूल से मुसलामानों के मारने में प्रायश्चित और अन्य को मरने से बहिश्त मिलेगा ऐसे उपदेश को कुए में डालना चाहिए।  ऐसे एसी पुःतक ऐसे ऐसे पैगम्बर ऐसे एसी खुदा और ऐसे ऐसे मत से सिवाय हानि के लाभ कुछ भी नहीं।  ऐसों का न होना अच्छा और ऐसे प्रामादिक मतों से बुद्धिमानो को अलग रह कर वेदोक्त सब बातों को मानना चाहिए क्योंकि उस में असत्य किंचित मात्र भी नहीं है।  और जो मुसलमान को मारे उस को दोजख मिले और दूसरे मत वाले कहते है कि मुसलमान को मरे तो स्वर्ग मिले।  अब कहो इन दोनों मतों में से किस को माने  किस को छोड़े? किन्तु ऐसे मुड़ प्रकल्पित मतों को छोड़ कर वेदोक्त मत स्वीकार करने योग्य सब मनुष्यों के लिए है कि जिस में आर्य मार्ग अर्थात श्रेष्ठ पुरुषों के मार्ग में चलना और दस्यु अर्थात दुष्टों के मार्ग से अलग रहना लिखा है ; सर्वोत्तम है।

– और शिक्षा प्रकट होने के पीछे जिस ने रसूल से विरोध किया और मुसलमानो से विरुध्द पक्ष किया अवश्य हम उनको दोजख में भेजेंगे।  म -१ सी ५ सूरत ४ आयत ११५

समीक्षक – अब दिखिए   खुदा  और रसुल की पक्षपात की बातें ! मुहम्मद साहेब आदि समझते थे कि जो खुदा के नाम से ऐसी हम  न लिखेंगे तो अपना मजहब न बढ़ेगा और पदार्थ न मिलेंगे आनंद भोग न रहेगा इसी से विदित होता है कि वे अपने मतलब करने में पुरे थे और नय के प्रयोजन बिगाड़ने में| इस से ये अनाप्त थे इनकी बात का प्रमाण आप्त विद्वानों के सामने कभी नहीं हो सकता।

-जो अल्लाह फरिश्तों किताबों रसूलों और क़यामत के साथ कुफ्र करे निश्चय वह गुमराह है।  निश्चय जो लोग इस्मान लाये फिर काफिर  ईमान लाये पुनः फिर गए और कुफ्र में अधिक बड़े।  अल्लाह उनको कभी क्षमा न करेगा और न मार्ग दिखलावेगा।  म -१ सी ५ सु ४ आ १३६/१३७

समीक्षक – क्या अब भी खुदा लाशरीक रह सकता है ? क्या लाशरीक कहते जान और उस के साथ बहुत से शरीक भी माते जाना यह परस्पर विरुध्द बातें नहीं हैं ? क्या तीन बार क्षमा के पश्चात् खुद क्षमा नहीं करता ? और तिन  बार कुफ्र करने पर रास्ता दिखलाता है ? वे छुत ही बार से आगे नहीं दिखलाता ? यदि चार चार बार भी कुफ्र सब लोग करें तो कुफ्र बहुत ही बढ़  जाए।।

-निश्चय अल्लाह बुरे लोगों और काफिरों को जमा करेगा दोजख में।  निश्चय बुरे लोग धोका देते हैं अल्लाह को और उनको वह धोखा देता है।  ऐ ईमान वालो ! मुसलमानों को छोड़ काफिरों को मित्र न बनाओ म -१ सी – सु ४ आ १४० ,१४२,१४४

समीक्षक – मुसलमानों के बहिश्त और अन्य लोगों के दोजख में जाने का प्रमाण ? वाह  जी वाह  ! बुरे लोगों के धोखे में आता और अन्य को धोखा देता है ऐसा खुद हम से अलग  रहे किन्तु जो धोकेबाज है उन से जाकर मेल करे वो वे उस से मेल करें। क्योंकि :यादृशी शीतला देवी तादृशः खरवाहन : जैसे को तैसा मिले तभी निर्वाह होता है।  जिस का खुदा धोख़ेबाज़ है उस के उपासक लोग धोखेबाज क्यों न हों? क्या दुष्ट मुसलमान हो उस से मित्रता और अन्य श्रेष्ठ मुसलमान भिन्न से शत्रुता करना किसी को उचित हो सकती है |

मुसलमानों का ईमान एक झूठ

TAQIYYA

मुसलमानों का ईमान एक झूठ

अक्सर मुसलमान यह बात कहते हैं ,कि हम तो अपने ईमान के पक्के हैं .क्योंकि मुसलमान शब्द का मतलब ही है “मुसल्लम ईमान “यानी पूरा ईमान .लोग गलती से ईमान का तात्पर्य उनकी सत्यवादिता या उनकी आस्था समझ लेते हैं (जो है नहीं) .
लेकिन बहुत कम लोग जानते

हैं कि ,मुसलमानों के दो गुप्त ईमान policies और भी हैं ,जिनका प्रयोग मुसलमान खुद को बचाने और दूसरों को धोखा देने में करते हैं .मुसलमानों कि इन दो नीतियों Policies या ईमान का नाम है ,तकिय्या और कितमान .इनका विवरण इस प्रकार है –
1 -तकिय्या تقيه Taqiyya
इसका अर्थ है छल, ढोंग ,ढकोसला,दिखावा ,सत्य को नकारना ,बहाने बनाना आदि हैं
उदाहरण -जब किसी इस्लामी किताब में कोई खराब बात बताई जाती है ,तो मुसलमान कसते है कि ,अनुवाद गलत है ,अमुक शब्द का अर्थ कुछ और है,हम इस फतवे या हदीस को नहीं मानते ,या यह आयत मंसूख (रद्द )हो चुकी है .आदि
2 -कितमान كِتمان Kitaman
इसका अर्थ है आड़,झूठ,मिथ्या आरोप लगाना आदि
उदाहरण -जब मुसलमानों की गलतियाँ पकड़ी जाती हैं ,तो वह खुद को निर्दोष साबित करने लिए दूरारों में वही गलतियां बताने लगते है ,और लोगों को गुमराह करने के लिए गालीगालोच करने लगते हैं ,दवाब डालने के लिए हंग्गामा करते हैं ,हिंसा करते है .आदि
मुसलमानों के विशासघात के उदाहरण
1 -मुहम्मद गौरी ने 17 बार कुरआन की कसम खाई थी कि भारत पर हमला नहीं करेगा ,लेकिन हमला किया ]
2 -अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तोड़ के राणा रतन सिंह को दोस्ती के बहाने बुलाया फिर क़त्ल कर दिया
3 -औरंगजेब ने शिवाजी को दोस्ती के बहाने आगरा बुलाया फिर धोखे से कैद कर लिया .
4 -औरंगजेब ने कुरआन की कसम खाकर श्री गोविन्द सिघ को आनद पुर से सुरक्षित जाने देने का वादा किया था .फिर हमला किया था
5 -अफजल खान ने दोस्ती के बहाने शिवाजी की ह्त्या का प्रयत्न किया था .
६-मित्रता की बातें कहकर पाकिस्तान ने कारगिल पर हमला किया था .
अगर हम इतिहास से सबक नहीं लेकर मुसलमानों की शांति और दोस्ती की बातों मे आते रहे तो हमेशा नुकसान उठाते रहेंगे.