खुदा या शैतान

khuda ya shaitan

 खुदा या शैतान 

 – और काटें जड़ काफि़रों की।। मैं तुमको सहाय दूंगा साथ सहस्र फरिश्तों के पीछे2 आने वाले।। अवश्य मैं काफि़रों के दिलों में भय डालूंगा, बस मारो ऊपर  गर्दनों के मारो उनमें से प्रत्येक पोरी (संधि) पर।। मं0 2। सि0 9। सू0 8। आ0 7। 9। 12

समी0-वाह जी वाह ! कैसा खुदा और कैसे पैग़म्बर दयाहीन। जो मुसलमानीमत से भिन्न काफि़रों की जड़ कटवा वे। और खुदा आज्ञा देवे उनको गर्दन पर मारो और हाथ पग के जोड़ों को काटने का सहाय और सम्मति देवे ऐसा खुदा शैतान से क्या कुछ कम है ? यह सब प्रपञ्च कुरान के कर्ता का है, खुदा का नहीं। यदि खुदा का हो तो ऐसा खुदा हम से दूर और हम उस से दूर रहें |

-अल्लाह मुसलमानों के साथ है। ऐ लोगो जो ईमान लाये हो पुकारना स्वीकार करो वास्ते अल्लाह के और वास्ते रसूल के।। ऐ लोगो जो ईमान लाये हो,मत चोरी करो अल्लाह की रसूल की और मत चोरी करो अमानत अपनी को।। और मकर करता था अल्लाह और अल्लाह भला मकर करने वालों का है।। मं0 2। सि0 9। सू0 8। आ0 19। 24। 27। 30

समी0-क्या अल्लाह मुसलमानों का पक्षपाती है ? जो ऐसा है तो अधर्म करता है। नहीं तो ईश्वर सब सृष्टि भर का है। क्या ख़ुदा विना पुकारे नहीं सुन सकता ? बधिर है ? और उसके साथ रसूल को शरीक करना बहुत बुरी बात नहीं है ? अल्लाह का कौन सा खज़ाना भरा है जो चोरी करेगा ? क्या रसूल और अपने अमानत की चोरी छोड़कर अन्य सब की चोरी किया करे ? ऐसा उपदेश अविद्वान् और अधर्मियों का हो सकता है | भला ! जो मकर करता और जो मकर करने वालों का संगी है वह खुदा कपटी छली और अधर्मी क्यों नहीं ? इसलिये यह कुरान खुदा का बनाया हुआ नहीं है| किसी कपटी छली का बनाया होगा, नहीं तो ऐसी अन्यथा बातें लिखित क्यों होतीं ? |

-और लड़ो उनसे यहाँ तक कि न रहे फितना अर्थात् बल काफि़रों का और होवे दीन तमाम वास्ते अल्लाह के।। और जानो तुम यह कि जो कुछ तुम लूटो किसी वस्तु से निश्चय वास्ते अल्लाह के है, पाँचवा हिस्सा उसका और वास्ते रसूल के।। मं0 2। सि0 9। सू0 8। आ0 39।41

समी0-ऐसे अन्याय से लड़ने लड़ाने वाला मुसलमानों के खुदा से भिन्न शांति भंग कर्ता दूसरा कौन होगा ? अब देखिये यह मज़हब कि अल्लाह और रसूल के वास्ते सब जगत् को लूटना लुटवाना लुटेरों का काम नहीं है ? और लूटके माल में खुदा का हिस्सेदार बनना जानो डाकू बनना है और ऐसे लुटेरों का पक्षपाती बनना खुदा अपनी खुदाई में बट्टा लगाता है| बड़े आश्चर्य की बात है कि ऐसा पुस्तक, ऐसा खुदा और ऐसा पैग़म्बर संसार में ऐसी उपाधि और शांति भंग करके मनुष्यों को दुःख देने के लिये कहा  से आया ? जो ऐसे 2 मत जगत् में प्रचलित न होते तो सब जगत् आनन्द में बना रहता |

-और कभी देखे जब काफि़रों को फ़रिश्ते कब्ज करते हैं मारते हैं मुख उनके और पीठें उनकी और कहते चखो अ़ज़ाब जलने का।। हमने उनके पाप से उनको मारा और हमने फि़राओन की क़ौम को डुबा दिया।। और तैयारी करो वास्ते उनके जो कुछ तुम कर सको।। मं0 2। सि0 9। सू0 8। आ0 50।54।601

समी0-क्यों जी! आजकल रूस ने रूम आदि और इंग्लैड ने मिश्र की दुर्दशा कर डाली, फ़रिश्ते कहाँ सो गये ? और अपने सेवकों के शत्रुओं को खुदा पूर्व मारता डुबाता था, यह बात सच्ची हो तो आजकल भी ऐसा करे| जिससे ऐसा नहीं होता, इसलिये यह बात मानने योग्य नहीं है | अब देखिये! यह कैसी बुरी आज्ञा है कि जो कुछ तुम कर सको वह भिन्न मतवालों के लिये दुःखदायक कर्मकरो, ऐसी आज्ञा विद्वान् और धार्मिक दयालु की नहीं हो सकती| फिर लिखते हैं कि खुदा दयालु और न्यायकारी है| ऐसी बातों से मुसलमानों के खुदा से न्याय और दयादि सद्गुण दूर बसते हैं |

-ऐ नबी किफ़ायत है तुझको अल्लाह और उनको जिन्होंने मुसलमानों से तेरा पक्ष किया।। ऐ नबी रग़बत अर्थात् चाह चस्का दे मुसलमानों को ऊपर लड़ाईके, जो हों तुममें से 20 आदमी सन्तोष करने वाले तो पराजय करें दो सौ का।। बस खाओ उस वस्तु से कि लूटा है तुमने हलाल पवित्र और डरो अल्लाह से वह क्षमा करने वाला दयालु है।। मं0 2। सि0 10। सू0 8। आ0 64। 65। 692

समी0-भला! यह कौनसी न्याय,विद्वता और धर्म की बात है कि जो अपना पक्ष करे और चाहे अन्याय भी करे, उसी का पक्ष और लाभ पहुंचावे? और जो प्रजा में शांतिभंग करके लड़ाई करे करावे और लूटमार के पदार्थों को हलाल बतलावे और फिर उसी का नाम क्षमावान् दयालु लिखे यह बात खुदाकी तो क्या ?किन्तु,किसी भले आदमी की भी नहीं हो सकती। ऐसी2 बातों से कुरान ईश्वर वाक्य कभी नहीं हो सकता |

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