महिलाओं का खतना बन्द हो .. सुप्रीम कोर्ट में गुहार
जो किसी ने सुना भी नहीं होगा , उसे देखना पड़ रहा है लोगों को अब उनकी आंखों के आगे . और जो देख रहे हैं वो सोचते हैं कि उन्होंने इसे झेला कैसे रहा होगा .. 3 तलाक को कुप्रथा और क्रूरता की संज्ञा देने वालों को ये नहीं पता कि वो तो एक बानगी मात्र भर है .. एक समाज औरतों का भी खतना करता है और खास कर उस समय मे जब उनका बाल्यकाल चल रहा होता है .. सुप्रीम कोर्ट में सुनीता तिवारी नाम की एक समाज सेविका ने याचिका दाखिल करते हुए मुस्लिमों की दाऊदी वोहरा समुदाय में 5 वर्ष से रजस्वला होने के मध्य की बच्चियों के साथ होने वाली इस प्रथा को बेहद अमानवीय और मानवता के विरुद्ध बताते हुए इसे कुप्रथा मान कर तत्काल बन्द करने की मांग की .. याचिका की गम्भीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल भारत सरकार , महाराष्ट्र सरकार , दिल्ली सरकार , गुजरात सरकार और राजस्थान सरकार को नोटिस जारी करते हुए इस मुद्दे पर जवाब मांगा . याचिकाकर्ती ने इस मुद्दे पर भारत संविधान की धारा 14 व धारा 21 के साथ नीति निर्देशक तत्व 39 का भी हवाला देते हुए बताया कि यह महिलाओ को समानता के अधिकार से वंचित करता है . अपने तथ्यों के समर्थन में श्रीमती सुनीता ने लिखित दिया कि संयुक्त राष्ट्र संघ में मुस्लिम औरतों के खतना को विश्व भर में बंद करने के प्रस्ताव पर खुद भारत ने भी हस्ताक्षर किए हैं , ऐसे में इस कुप्रथा का भारत मे ही चलना किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं है ..
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए तत्काल 4 राज्यों और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया .. इन सरकारों के उत्तर आने के बाद इसकी अगली सुनवाई की जाएगी .. पर ये प्रथा अधिकांश जनता के लिये बिल्कुल पहली बार सुनने जैसा है जिस के बाद काफी लोग आश्चर्यचकित हैं .
There are a dozen ahAdIs (674-685) on the subject of bathing after a seminal emission. Once Muhammad called out an ansAr who was in the midst of sexual intercourse. �He came out and water was trickling down from his head. Muhammad said: perhaps we put you to haste. The man said yes. The prophet said: When you made haste and semen is not emitted, bathing is not obligatory for you, but ablution is binding� (676). In another hadIs, Muhammad says that when a man leaves his wife in the midst of an intercourse without having experienced orgasm, �he should wash the secretion of his wife, and then perform ablution and offer prayer� (677). But when there is a seminal emission �bath becomes obligatory� (674).
Once there was a controversy on this point between some muhAjirs (�Emigrants� or �Refugees�) and some ansArs(�Helpers�). One of them came to �Aisha for clarification, asking: �What makes a bath obligatory for a person?� She answered: �You have come across one well-informed.� Then she reported what Muhammad had said on the subject: �When anyone sits amidst fore parts of the woman, and the circumcised parts touch each other a bath becomes obligatory� (684). And on yet another occasion, a man asked Muhammad whether a bath is obligatory for one who parts from intercourse with his wife without having had an orgasm. The Prophet, pointing to �Aisha, who was sitting by him, replied: �I and she do it and then take a bath� (685).
Military court sentences Moscow mosque imam charged with justifying terrorism to 3 years’ imprisonment
Moscow, April 28, Interfax – The Moscow District Military Court has found Makhmud Velitov, the imam of Moscow’s Yardyam Mosque, guilty in the case of publicly justifying terrorism and sentenced him to three years in a general regime penal colony on Friday, an Interfax correspondent reported.
“The court is coming to the conclusion that the defendant’s guilt has been proved. [The court ruled] to find the defendant guilty of justifying terrorism, to sentence Velitov to three years in a general regime penal colony,” the judge said in a ruling.
Only the introductory and the operative parts of the court’s decision were read today, the court’s reasoning behind it will be disclosed later.
Investigators believe that on September 23, 2013, during prayers at the mosque located on Khachaturyan Street, Velitov, who holds the posts of the Council’s chairman and the imam of the religious organization, delivered a speech justifying the activity of one of the members of the terrorist organization Hizb ut-Tahrir al-Islami (banned in Russia).
As reported, during arguments in the court, prosecutor Yekaterina Rozanova sought to find Velitov guilty, sentence him to three years and six months in a general regime penal colony and deprive him of the right to engage in religious activity for three years.
”किताब अल-ईमान“ में अनेक अन्य विषयों पर भी विचार किया गया है, जैसे कि मुहम्मद द्वारा रात में यरूशलम जाना और कयामत के पहले दज्जाल तथा यीशु का आना। इस्लामी मीमांसा में इनका पर्याप्त महत्व है।
एक रात, अल-बराक (एक लम्बा सफेद जानवर, जो गधे से बड़ा पर खच्चर से छोटा था) पर चढ़कर मुहम्मद यरूशलम के मंदिर में पहुंचे। और वहां से विविध लोकों में या स्वर्ग के विविध ”वृत्तों“ में (जैसा कि दांते ने उन्हें कहा है) घूमते रहे-रास्ते में विभिन्न पैगम्बरों से मिलते हुए। पहले आसमान में उन्हें आदम मिले। दूसरे में यीशु। छठे में मूसा और सातवें में इब्राहिम। फिर वे अल्लाह से मिले, जिन्होंने मुसलमानों के लिए हर रोज पचास नमाजों का आदेश दिया। पर मूसा की सलाह पर मुहम्मद ने अल्लाह से अपील की और तब नमाजों की संख्या घटाकर पांच कर दी गई। ”पांच और फिर भी पचास“-एक प्रार्थना दस के बराबर मानी जासगी, क्योंकि ”जो कहा जा चुका है, वह बदलेगा नहीं“ (313)। इसलिए असर में अन्तर नहीं आएगा और पांच ही पचास का काम करेंगी।
रहस्यवादी भावना वाले लोग इस यात्रा को आध्यात्मिक यात्रा के रूप में समझते हैं। किन्तु मुहम्मद के साथी, और बाद के अधिकांश मुस्लिम विद्वान, यही विश्वास करते हैं कि यह यात्रा या आरोहण (मिराज) दैहिक था। मुहम्मद के समकालीन अनेक लोगों ने उनकी खिल्ली उड़ाई और इस यात्रा को एक सपना बतलाया। पर हमारे अनुवादक का तर्क है कि यात्रा पर यकीन नहीं किया गया, इसीलिए वह एक सपना नहीं थी। क्योंकि ”अगर वह सपना होता, तो उस पर इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं होती। इस तरह के सपने तो किसी भी काल के किसी भी व्यक्ति की कल्पना में कौंध सकते हैं“ (टि0 325)।
�Aisha tells us that the �Messenger of Allah washed the semen, and then went out for prayer in that very garment and I saw the mark of washing on it� (570). There is another hadIs of similar import, but it also narrates some material of Freudian significance. A guest who was staying at �Aisha�s house had a nocturnal seminal emission. Next day he dipped his clothes in water for washing. A maidservant observed this and informed �Aisha. She asked the guest: �What prompted you to act like this with your clothes?� He replied, �I saw in a dream what a sleeper sees.� Then �Aisha asked him: �Did you find any mark of fluid on your clothes?� He said: �No.� She said: �Had you found anything you should have washed it. In case I found that semen on the garment of the Messenger of Allah dried up, I scratched it off with my nails� (572).
एक ऐसी जगह जहां निकाह कराया जाता है “क़ुरान” से. क्या आप जानते हैं फिर क्या होता है ?
प्रथा और कुप्रथा लगभग हर मत में पायी जाती है , कुछ इसे सही मान कर सुधार लेते हैं पर कुछ इसको किसी भी हालत में ना सुधरने की कसम खा कर बिलकुल भी ना बदलने की कसम खा कर बैठ जाते हैं . आइये जानते हैं एक ऐसी ही प्रथा के बारे में जो प्रचलित है पाकिस्तान के एक हिस्से में . पाकिस्तान में यद्द्पि इसे गैर कानूनी घोषित कर दिया गया है पर अभी भी मुस्लिमों के ग्रंथ कुरान से निकाह करवाने की प्रथा अभी भी चोरी छिपे कुछ स्थानों पर हो रही है जिसे “हक बख्शीश” कहा जाता है. इस प्रथा में नियम है की कुवारी लड़कियों का निकाह कुरान से करवा कर उन्हें उन्हें निकाह के हक से त्याग करवा दिया जाता है . एक बार जिस लड़की का “हक बख्शीश” अर्थात कुरान से निकाह हो जाता है वो बाद में किसी अन्य लड़के से निकाह नहीं कर सकती है . निकाह के बाद उस लड़की का अधिकतर समय कुरान की आयते पढ़ने में ही बीत जाता है और धीरे धीरे उस लड़की को कुरान की हर आयत कंठस्त हो जाती है जिसे समाज में हाफ़िज़ा कहा जाने लगता है . ज्ञात हो की पाकिस्तान की इस परम्पर को वहाँ गैर कानूनी माना गया है . तमाम इस्लामिक जानकार भी इस परम्परा से इत्तेफाक नहीं रखते , फिर भी कुछ लोग अपनी बेटियों को बोझ मैंने की नियत से इस रिवाज़ पर चलते हैं जिस के चलते वो लड़की दुबारा किसी से निकाह नहीं कर पाती है और वो अकेली लड़की जिंदगी भर कुरान की बीबी नाम से जानी जाती है .. या परंपरा पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में ज्यादा प्रचलित है , इस रिवाज में वो लोग भी शामिल होते हैं जिन्हे अपनी बेटियां बोझ के समाज दिखती हैं और वो उनके निकाह आदि पर पैसा आदि खर्च नहीं करना चाहते है . पाकिस्तान ने इस रिवाज को बंद करने के लिए कड़े क़ानून बनाये है . अभी भी पाकिस्तान में हक़ बख्शीश करवाने वाले को 7 साल की सज़ा का प्रावधान है . सन 2007 में पाकिस्तानी न्यूज एजेंसी पाकिस्तान प्रेस इंटरनेशनल ने 25 साल की फरीबा का विस्तृत विवरण छापा था जो इस मामले में पीड़िता बानी थी . इसी मुद्दे पर कार्य करने वाली एक अन्य संस्था यूनाइटेड नेशंस इन्फर्मेशन यूनिट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि तमाम लोग इस कुप्रथा का इस्तेमाल अपनी जिम्मेदारियों के साथ जमीन और जायदाद आदि बचाने के लिए भी बतौर हथियार प्रयोग करते हैं .. तमाम सामाजिक संगठन इस रिवाज के समूल उन्मूलन के लिए कार्य भी कर रहे हैं .
‘PIMPED OUT BY BOSS’ Married banker, 36, ‘pimped out’ to wealthy Arab client in bid to land £25m account and ‘threatened with the sack if she didn’t go for dinner date’
The woman claimed the client bombarded her with love songs and inappropriate text messages
A MARRIED senior banker was “pimped out” by her boss in a bid to get a wealthy Arab client to open an account with £25 million, a tribunal was told.
Suemaya Gerrard, 36, a relationship manager at the Abu Dhabi Islamic Bank, claimed the client bombarded her with love songs and inappropriate text messages.
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But her boss, chief administrative officer Jawdat Jawdat put pressure on her to go out to dinner with the man and she was threatened with the sack if she did not go, the hearing was told.
She confided in a colleague, who told her “he is acting like your pimp”, it is claimed.
After a failed attempt to lodge a grievance against her boss, she eventually resigned from the bank last November, and is suing them for sexual discrimination, sexual harassment and constructive dismissal.
Mrs Gerrard is seeking £80,000 from the bank, whose offices are based at the Candy brothers’ One Hyde Park in Knightsbridge, west London.
In her witness statement, she said: “This gentleman made it clear that he was attracted to me.
“‘Client A’ made use of my telephone to send me love songs and use terms of endearment that I found inappropriate.”
She said she told her line manager, Kassel Jarrah, Mr Jawdat and other senior staff about the client’s behaviour.
Mrs Gerrard continued: “Although I was not completely happy with the situation, I believed that if I maintained a professional attitude and refused to countenance any crossing of the line in respect of ‘Client A’s’ behaviour, I would be able to continue as the relationship manager.”
However she said matters came to a head on May 17 last year, when she was told by Mr Jawdat to invite the client to an England international match at Wembley Stadium.
She said: “To my mind the sub-text was quite clear. Mr Jawdat was aware of ‘Client A’s’ partiality for me and wished to use that to further the business connection.
“‘Client A’ was not immediately available, but he rang me later and said that he was not interested in football but was interested still in taking me out to dinner.
“There was no business reason for such a dinner that was to be held late in the evening.
“I declined the offer politely but ‘Client A’ kept on insisting to invite me out for dinner.”
Mrs Gerrard suggested to the client going for lunch with her and Mr Jawdat, but he did not like the idea and said “I want to drop you home and have a present I want to give you”, it is claimed.
She said: “When I reported the conversation to Mr Jawdat he seemed annoyed.
“He told me that I had to accept the dinner invitation and not lunch and he also threatened me by saying ‘if you cancel or call off sick I will sack you’.
“I replied that he knew that I was a married woman with children and that I could not do it. Mr Jawdat then stated I was in the wrong profession.
“I informed my work colleague Mrs Shukri Hassan upon leaving the meeting of what had happened and how Mr Jawdat behaved.
“Mrs Shukri Hassan stated ‘he is acting like your pimp’.”
The customer arrived at the bank later that day for a coffee, and grasped and squeezed her hand, Mrs Gerrard said.
But rather than support her, Mr Jawdat went for a cigarette with the client’s colleague, leaving her alone with him as he mentioned dinner again, it is claimed.
After telling her husband about it, she contacted her union representative, Geoff Saunders, who advised her to raise a formal grievance against Mr Jawdat.
Central London Employment Tribunal heard the client wrote “your wish is my command”, and she replied with a smiley face – but she said she was just being “polite”.
The client also texted her saying “hello my rosy flower”, it was said.
After he visited on May 17, she texted the customer saying “I was happy for your visit, you lit us up”.
But Mrs Gerrard said: “This is a very professional way of thanking somebody for coming to visit you.
“That is basic manners in Arabic.”
She added: “Some of the text messages I deleted because my husband saw them, and said ‘what is this’.
“And therefore I deleted some of the love songs. Because it was my marriage on the line.
“He was up at 3 o’clock in the morning and he saw flowers and love songs. It caused a huge row.”
The bank and Mr Jawdat deny all the allegations.
Talia Barsam, representing the bank, claimed that Mrs Gerrard had threatened to go the press if she didn’t receive a pay off.
Mr Jawdat claimed that it was normal practice to entertain clients.
He said: “Regardless of gender, regardless of customer, we always interact with customers and we always dine with customer. That it, that’s exactly what happened that day.”
यह बात हमें माननी ही होगी कि मुहम्मद अविचल थे। उन्होंने अपनी शक्ति अपनी उम्मा के बचाव के लिए सुरक्षित रखी। उम्मा यानि वे लोग जो लोग अल्लाह और उज्जा को त्याग कर अल्लाह पर और मुहम्मद की पैगम्बरी पर ईमान लाए। अपनी शक्ति का उपयोग उन्होंने अपने प्रियतम एवं निकटतम जनों, जैसे पिता एवं चाचा को बचाने में भी नहीं किया। एक प्रश्नकत्र्ता से उन्होंने उनके पिता के बारे में कहा-”दरअसल, मेरे और तुम्हारे वालिद जहन्नुम की आग में हैं“ (368)। पर अपने चाचा के वास्ते वे कुछ सहृदय थे। ये चाचा थे अबू तालिब, जिन्होंने उन्हें पाला-पोसा था, और उनकी रक्षा भी की थी पर उनका मज़हब नहीं माना था। उनके बारे में मुहम्मद बतलाते हैं-”मैने उन्हें आग की सबसे निचली सतह पर पाया और मैं उन्हें छिछली सतह पर ले आया“ (409)। पर आग की यह छिछली सतह भी चाचा जी को भून तो रही ही होगी। मुहम्मद हमें आश्वस्त करते हैं-”आग के निवासियों में से अबू तालिब को सबसे कम तकलीफ होगी और वे आग के दो जूते पहनें होंगे, जिससे उनका दिमाग खौल उठेगा“ (413)। क्या इसे हम राहत कहें ?
यद्यपि मुहम्मद रिश्ते कायम करने में गौरव का अनुभव करते थे, तथापि अपने पुरखों की पीढ़ियों और उनके उत्तरकालीन लोगों से अपने सम्बन्धों का उन्होंने पूर्णतः प्रत्याख्यान कर दिया था। मुहम्मद की घोषणा है-”ध्यान दो ! मेरे पुरखों के वारिस……. मेरे दोस्त नहीं हैं“ (417)। कयामत के दिन उनके शुभ कर्म काम नहीं आयेंगे। पैगम्बर की युवा पत्नी आयशा बतलाती हैं-”मैंने कहा, अल्लाह के रसूल ! जुदान के बेटे (आयशा का एक रिश्तेदार और कुरैश के नेताओं में से एक) ने रिश्ते कायम किये और निभाये तथा गरीबों का पोषण किया। क्या वह सब उसके कुछ काम आयेगा ? उन्होंने कहा-वह सब उसके किसी काम न आयेगा“ (416)।
बहुदेववादियों के बारे में अल्लाह ने निर्णय कर लिया है। इसलिए किसी सच्चे मोमिन को उनके वास्ते आर्शीवाद तक की याचना नहीं करनी चाहिए। कुरान का वचन है-”पैगम्बर के लिए और मोमिनों के लिए यह उचित नहीं कि वे बहुदेववादियों के लिए अल्लाह से माफी मांगे, भले ही वे सगे-सम्बन्धी ही क्यों न हों। उन्हें यह जता दिया गया है कि काफिर जहन्नुम के बाशिन्दे हैं“ (9/113)।
Muhammad says that �a man should not see the private part of another man,� nor should men lie together �under one covering� (667). In this connection, he also tells us that the Jews used to take their baths naked and looked at each other�s private parts, but Moses took his bath alone. Instead of feeling ashamed for not following their leader�s example the Jews taunted him. They said he refrained from exposing his private parts because he suffered from scrotal hernia. But God vindicated him. Once, while taking his bath, Moses put his clothes on a rock, but the rock moved away. �Moses ran after it crying: O stone, my clothes; O stone, my clothes.� The Jews then had a chance to see Moses� private parts, and said: �By Allah, Moses does not suffer from any ailment� (669).
फैसले का दिन (कयामत), अंतिम दिन (योमुल-आखिर) इस्लामी पंथमीमांसा का अपरिहार्य अंग है। जैसा कि मिर्जा हैरत ने अपनी किताब, मुकद्दमा तफसीर उलफुरकान2 में दर्ज किया है, कुरान में ’कयामत‘ शब्द सत्तर बार आया है और उसके सत्तर पर्याय हैं। अपनी अनुवर्ती अवधारणाओं, जन्नत और जहन्नुम, के साथ यह शब्द हदीस के भी लगभग हर-एक पृष्ठ में आ टपकता है। कुरान में कम आग्रहशील किन्तु उतनी ही उन्नत योग-पद्धतियों में यही विचार भिन्न रूप में और अधिक मनोवैज्ञानिक पदों में प्रकट किया जाता है-हमें अपने पतन की स्मृति से आविष्ट नहीं रहना चाहिए, वरन् अपने अन्तर में स्थित दिव्य तत्त्व की प्रीति में रमना चाहिए।
सामाजिक तथा कानूनी दृष्टि से स्त्री का स्तर नीचा रहा है। उसके शरीर की रचना अन्य प्रकार की है। उसके शरीर की क्रियाएं भी विभिन्न हैं। इन समस्त विभेदों से सिद्ध होता है कि स्त्री नैतिक दृष्टि से निकृष्ट है। अतएव अल्लाह यदि उसे दण्ड देता है तो ठीक ही करता है। अल-गजाली (ईसवी 1058-1111) अपने युग में महान माने जाने वाले अरब मनीषी थे। वे अपनी पुस्तक नसीहत अल-मुलूक में लिखते हैं-”अल्लाह प्रशंसनीय है। उसने स्त्री को अठारह प्रकार की सजा दी हैः (1) मासिक धर्म, (2) प्रजनन, (3) माता-पिता से बिछुड़ना और एक अजनबी से निकाह, (4) गर्भ-धारण,(5) अपने ऊपर अधिकार का अभव (अर्थात दूसरों की मातहत रहना), (6) दायभाग में उसका हिस्सा कम होना, (7) उसे आसानी से तलाक दिया जाना किन्तु उसके द्वारा तलाक देने में असमर्थता, (8) मर्द के लिए चार बीवियों का वैध होना किन्तु उसके लिए एक ही पति जायज होना, (9) यह बात कि उसे घर के भीतर परदे में रहना पड़ता है, (10) यह बात कि घर के भीतर भी उसे सर ढके रखना होता है, (11) यह बात कि दो स्त्रियों की गवाही एक पुरुष की गवाही के बराबर है, (12) यह बात की यदि कोई निकट का सम्बन्धी साथ न हो तो वह घर के बाहर नहीं जा सकती, (13) यह बात कि पुरुष लोग जुम्मे के दिन और त्यौहारों के मौकों पर अदा की जाने वाली नमाज में शामिल हो सकते हैं, जबकि वह नहीं हो सकती, (14) शासक तथा न्यायाधीश के पदों के लिए उसकी अपात्रता, (15) यह बात कि पुण्य के एक हजार अवयव हैं जिनमें से स्त्रियों द्वारा केवल एक ही सम्पन्न होता है जबकि नौ-सौ निन्यानवे पुरुषों द्वारा सम्पन्न माने जाते हैं, (16) यह बात कि स्त्री यदि लम्पट हो तो कयामत के दिन शेष मिल्लत को मिलने वाली सजा का आधा भाग ही उसे मिलता है, (17) यह बात कि उनके शौहर मर जाते हैं तो दोबारा शादी करने के पहले उन्हें चार महीने तथा दस दिन तक इन्तजार करना पड़ता है, और (18) यह बात कि यदि उनके शौहर उनको तलाक दे देते हैं तो उन्हें दोबार शादी करने के लिए तीन महीने अथवा तीन मासिक धर्म पूरे होने तक इन्तजार करना पड़ता है।“ (नसीहत अल मुलूक लन्दन 1971, पृ0 164-164)।
ये सभी पर्याय कुरान परिचय नाम की पुस्तक में मिलते हैं। हिन्दी की इस पुस्तक के लेखक तथा प्रकाशक हैं – देव प्रकाश, रतलाम, मध्य प्रदेश।
कयामत के दिन मुहम्मद के अनुयायी सब से अधिक
मुहम्मद हमें बतलाते हैं कि ”कयामत के रोज हमारे अनुयायी सबसे ज्यादा होंगे“ (283)। यह तर्क समझ में आता है। हम जानते हैं कि जहन्नुम की आग मुहम्मद के हक में है। यह आग मुहम्मद के विरोधियों को जलाने में व्यस्त रहेगी और जन्नत के लिए सिर्फ मुसलमान बच रहेंगे।
मुहम्मद बतलाते हैं-”यहूदियों और ईसाइयों में जो व्यक्ति मेरे बारे में जानता है, पर तब भी उस सन्देश पर ईमान नहीं लाता जिसे लेकर मैं भेजा गया हूँ, और अनास्था की दशा में ही जिन्दगी बिता देता है, वह दोजख की आग में जलने वालों में से एक होगा“ (284)। यहूदी और ईसाई न केवल अपनी अनास्था के लिए जहन्नुम की आग में जलेंगे, अपितु उन मुसलमानों के बदले में भी काम आयेंगे, जो जहन्नुम भेजे जाने योग्य होंगे। मुहम्मद बतलाते हैं-”कयामत के रोज पहाड़ जैसे पापों वाले मुसलमान आएंगे और अल्लाह उन्हें माफ कर देगा और उनके एवज में यहूदियों और ईसाईयों को जहन्नुम में भेजेगा“ (6668)। संयोगवश, इससे जन्नत में जगह का मसला भी हल हो जायेगा। अनुवादक हमें बतलाते हैं-”ईसाइयों और यहूदियों को दोजख की आग में फेंक दिये जाने पर जन्नत में जगह निकल आयेगी“ (टी0 2-67)।
जहन्नुम की आबादी का एक और अहम हिस्सा औरतों का होगा। मुहम्मद कहते हैं-”ऐ औरतों !……. मैने जहन्नुम के बाशिन्दों में तुम्हारा अम्बार देखा।“ एक औरत ने पूछा कि ऐसा क्यों होगा, तो मुहम्मद ने उसे समझाया-“तुम लोग बहुत ज्यादा दुर्वचन बोलती हो और अपने पतियों के प्रति एहसान फरामोश हो। मैने किसी और को (तुम्हारे जैसा) सामान्य बुद्धि से हीन और मज़हबी मामलों में कमजोर और फिर भी बुद्धिमानों से बुद्धिमत्ता छीन लेने वाला नहीं देखा।“ उनमें ”सामान्य बुद्धि की कमी का प्रमाण“ है खुद मुहम्मद द्वारा प्रवर्तित अल्लाह के कानून की यह धारा कि ”दो औरतों की गवाही एक मर्द की गवाही के बराबर है।“ मजहब में उनकी कमजोरी का प्रमाण भी मुहम्मद उन्हें बतलाते हैं-”तुम्हारी कुछ रातें और दिन ऐसे होते हैं जब तुम नमाज नहीं अदा कर पाती और रमजान के महीने में तुम रोजे नहीं रख पाती“ (142)। औरतें कई बार इसलिए यह घोर भयावह दिन (यौम), जिसे कहीं ”हिसाब“ का दिन, कहीं ”छटनी“ (फस्ल) का या ”पुनरुत्थान“ (कियामह) का दिन कहा गया है, तीन सौ से अधिक बार आया है।
आखिरी दिन के आ पहुंचने के कई संकेत प्रकट होंगे। ”जब तुम देखो कि एक गुलाम औरत अपने मालिक को जन्म दे रही है-यह एक संकेत है। जब तुम नंगे पांव नंगे लोगों, बहरों और गूंगों को पृथ्वी का शासक देखो-यह कयामत के संकेतों में से एक है। जब तुम काले ऊँटों के चरवाहों को इमारतों में आनन्द करते देखो-यह भी कयामत के संकेतों में से एक है“ (6)। संक्षेप में, जब गरीब और वंचित जन, धरती पर अपना अधिकार पा लें, तब मुहम्मद के अनुसार वह धरती का अंतकाल है।
”किताब अल-ईमान“ के अंतिम भाग में 82 हदीसों में कयामत के दिन का विस्तृत विवरण है। मुहम्म्द हमें बतलाते हैं कि इस दिन अल्लाह ”लोगों को इकट्ठा करेंगे“, ”जहन्नुम के ऊपर एक पुल बनाया जायेगा“ और ”मैं (मुहम्मद) तथा मेरी मिल्लत सबसे पहले उस पर से पार होंगे“ (347)। साफ है कि काफिर लोग उस दिन पूरी तरह दुर्दशा को प्राप्त होंगे। पर आसमानी किताब वाले लोग-यहूदी और ईसाई-भी कुछ बेहतर न होंगे। मसलन, ईसाई बुलाए जाएंगे और उनसे पूछा जाएगा- ”तुम किसी उपासना करते थे?“ जब वे जवाब देंगे कि ”अल्लाह के बेटे“ यीशू की, तब अल्लाह उनसे कहेंगे-”तुम झूठे हो। अल्लाह के न तो कोई बीवी है, न बेटा।“ फिर उनसे पूछा जायेगा कि वे चाहते क्या हैं। वे कहेंगे-”ऐ मालिक ! हम प्यासे हैं। हमारी प्यास बुझा।“ उन्हें एक खास तरफ निर्देशित करते हुए अल्लाह कहेंगे-”तुम वहां जाकर पानी क्यों नहीं पी लेते?“ जब वे वहां जायेंगे तो वे पायेंगे कि उन्हें गुमराह किया गया है। वहां पानी मृगमरीचिका मात्र है, वस्तुतः वह जहन्नुम है। तब वे ”आग में गिर जाएंगे“ और नष्ट हो जाएंगे (352)।
उस दिन कोई और पैगम्बर या उद्धारक काम न आयेगा, सिवाय मुहम्मद के। लोग आदम के पास जायेंगे और कहेंगे-”अपनी संतति के लिए सिफारिश करो।“ वह जवाब देगा-”मैं इसके काबिल नहीं हूँ। पर तुम इब्राहिम के पास जाओ, क्योंकि वह अल्लाह का दोस्त है।“ वे इब्राहिम के पास जाएंगे। पर वह जवाब देगा-”मैं इसके काबिल नहीं हूँ। पर तुम मूसा के पास जाओ, क्योंकि वह अल्लाह का संभाषी है।“ वे मूसा के पास जाएंगे। पर वह जवाब देगा-”मैं इसके काबिल नहीं हूँ। पर तुम यीशु के पास जाओ, क्योंकि वह अल्लाह की रूह और उनका शब्द है।“ वे यीशु के पास जाएंगे और वह उत्तर देगा-”मैं इसके काबिल नहीं हूं। बेहतर है कि तुम मोहम्मद के पास जाओ।“ तब वे मुहम्मद के पास आयेंगे और मोहम्मद कहेगा-”मैं यह कर सकने में समर्थ हूँ।“ वह अल्लाह से अपील करेगा और उसकी सिफारिश स्वीकार कर ली जाएगी (377)।
कई हदीसों (381-396) में मुहम्मद हमें बतलाते हैं कि पैगम्बरों में उन्हीं के पास सिफारिश करने का विशेष सामथ्र्य है, क्योंकि ”पैगम्बरों में से और कोई पैगम्बर इस तरह प्रमाणित नहीं हुआ, जिस तरह मैं प्रमाणित हुआ हूं“ (383)। यदि यह सत्य है तो उनके इस दावे में कुछ वनज हो जाता है कि अन्य पैगम्बरों ”की अपेक्षा कयामत के दिन उनके अनुयायी सर्वाधिक होंगे।“ उस विशेष हैसियत के कारण (मेरी) मिल्लत के सत्तर हजार लोग बिना कोई हिसाब दिए जन्नत में दाखिल होंगे (418) और ”जन्नत के बाशिन्दों में से आधे मुसलमान होंगे“ (427)। यह देखते हुए कि आस्थारहित, काफिर और बहुदेववादी लोग जन्नत से पूरी तरह बाहर रखे जाएंगे तथा यहूदियों और ईसाइयों का प्रवेश भी वहां वर्जित होगा, जन्नत की बाकी आधी आबादी के बारे में अनुमान लगाना कठिन है।
सिफारिश करने का यह विशिष्ट सामथ्र्य मुहम्मद ने कैसे पाया ? इस सवाल का जवाब खुद मुहम्मद देते हैं-”हर एक पैगम्बर की एक प्रार्थना स्वीकृत होती है। पर हर पैगम्बर ने प्रार्थना करने में उतावली बरती। बहरहाल, मैने अपनी प्रार्थना को कयामत के रोज अपना मिल्लत के वास्ते अनुनय के लिए सुरक्षित रखा“ (3689)। अनुवादक हमारे समक्ष इस वक्तव्य को अधिक स्पष्ट करते हुए कहते हैं-”पैगम्बर लोग अल्लाह को प्रिय हैं और उनकी प्रार्थना अक्सर स्वीकार की जाती है। किन्तु पैगम्बर की एक प्रार्थना ऐसी होती है, जो उसकी मिल्लत के बारे में निर्णायक कही जा सकती है। उसके द्वारा ही मिल्लत की किस्मत तय होती है। मसलन, नूह आर्त होकर कह उठे-मेरे मालिक ! जमीन पर एक भी अनास्थावान व्यक्ति मत रहने देना (अलकुरान, 71/26)। मुहम्मद ने अपनी प्रार्थना कयामत के दिन के लिए सुरक्षित रख छोड़ी और वे अपनी मिल्लत की मुक्ति के लिए उसका उपयोग करेंगे“ (टी0 412)
नूह द्वारा दिए गए शाप के बारे में जानने का कोई उपाय हमारे पास नहीं है। पर इस प्रकार का शाप मुहम्मद की विचारधारा के अनुरूप ही है। उदाहरणार्थ विभिन्न कबीलों के बारे में उन के शाप देखें-”ऐ अल्लाह ! मुजार लोगों को बुरी तरह पामाल कर और उनके लिए अकाल रच…. अल्लाह ! लिहयान, रिल जकवान, उसय्या को शाप दे, क्योंकि उन्होंने अल्लाह और रसूल की आज्ञा नहीं मानी“ (1428)।
बहरहाल जब काफिर लोग आग में झोंके जा रहे होंगे तब यह जानते हुए भी कि किसी और की सिफारिश काम न आयेगी, मुहम्मद उनकी सिफारिश नहीं करेंगे। ”तुम्हें अपने दुश्मनों को नरक में नहीं डालना चाहिए। लेकिन उन्हें बचाने के लिए कष्ट उठाने की भी जरूरत नहीं है।