There are many dos and don�ts. For example, to wear shoes while praying is permissible (1129-1130), but clothes having designs and markings on them are distracting and should be avoided (1131-1133). The Prophet commanded the believer that while praying �he should not spit in front of him, for Allah is in front of him when he is engaged in prayer� (1116). According to another tradition, he �forbade spitting on the right side or in front, but it is permissible to spit on the left side or under the left foot� (1118).
To eat onion or garlic is not harAm (forbidden), but Muhammad found their odors �repugnant� (1149) and therefore forbade coming to the mosque after eating them, �for the angels are harmed by the same things as men� (1145).
मुहम्मद का निर्देश था-”आग से छू गई किसी भी चीज़ को खाने वाले के लिए प्रक्षालन जरूरी है“ (686)। किन्तु बाद में यह आदेश रद्द कर दिया गया। ”अल्लाह के रसूल ने बकरे के कंधे का गोश्त खाया और इबादत की तथा वुजू नहीं किया“ (689)।
शौचालय से निकलकर आप यदि इबादत करने जा रहे हों, तो वुजू जरूरी है। पर यदि खाना खाने जा रहे हों, तो जरूरी नहीं है। ”अल्लाह के पैगम्बर शौचालय से बाहर आए। उन्हें कुछ खाने को दिया गया और लोगों ने उन्हें वुजू की याद दिलाई, पर पैगम्बर ने कहा-क्या मुझे नमाज पढ़नी है, जो वुजू करूं ?“ (725)
Women can go to the mosque but they �should not apply perfume� (893), a privilege not denied to men who can afford it. They were also told not to precede men in lifting their heads from prostration. The translator explains that this hadIsrelates to a period when the Companions were very poor and could not afford proper clothing. The instruction was meant to give them time to adjust their clothing before the women lifted their heads (hadIs 883 and note 665).
Muhammad commanded the believers to �take out unmarried women and purdah-observing ladies for �Id prayers, and he commanded the menstruating women to remain away from the place of worship of the Muslims� (1932). But in a footnote explaining the standpoint of the Islamic sharI�ah with regard to women joining men in prayer, the translator says: �The fact is that the Holy Prophet deemed it preferable for women to say their prayers within the four walls of their houses or in the nearest mosque� (note 668).
पानी मयस्सर न हो तो आप तयम्मुम कर सकते हैं, अर्थात् अपने हाथ पांव और माथे की मिट्टी से मल लें। ऐसा करना जल से प्रक्षालन की ही तरह उत्तम है। अनुवादक इसे स्पष्ट करते हैं-”प्रक्षालन एवं स्नान का प्रमुख प्रयोजन धार्मिक है। स्वास्थय-सम्बन्धी प्रयोजन गौण है।……अल्लाह ने पानी उपलब्ध न होने पर हमें तयम्मुम करने का आदेश दिया है……ताकि प्रक्षालन का आध्यात्मिक मूल्य सुरक्षित रहे और वह जीवन की ऐहिक गतिविधियों से हटाकर हमें अल्लाह की उपस्थिति के प्रति अभिमुख करें“ (टि0 579)। इस विषय पर कुरान में एक आयत है और आठ हदीस है (714-721)। ”यदि तुम बीमार हो या सफर पर हो या शौच-गृह से आए हो या तुमने औरत को छू लिया हो, और पानी न मिल रहा हो, तो स्वच्छ मिट्टी का आश्रय लो और अपने चेहरे तथा हाथों पर उसे मलो“ (कुरान 4/43)।
एक हदीस हमें उमर से कहे गये आम्मार के इन लफ्जों की बाबत बतलाती हैं-”ऐ अमीर अल-मोमिनीन ! क्या तुम्हें याद है कि जब हम दोनों एक फौजी टुकड़ी में थे और हमें वीर्यपात हो गया था और नहाने के लिए पानी नहीं मिला था और आपने नमाज नहीं पढ़ी थी, और मैं धूल में लोट गया था और मैंने नमाज़ पढ़ी थी, और जब पैगम्बर तक बात गई थी तो वे बोले थे-हाथों को जमीन पर रगड़ कर, फिर धूल झाड़कर हथेलियों और मुंह को पोंछ लेना पर्याप्त होता“ (718)।
While giving his opinion of the first mosques, Muhammad makes some interesting disclosures. He does not deny that the Jews and the Christians also had their prophets but adds: �I have been given superiority over the other prophets in six respects: I have been given words which are concise but comprehensive in meaning; I have been helped by terror (in the hearts of the enemies); spoils have been made lawful to me . . . ; I have been sent to all mankind; and the line of prophets is closed with me� (1062). The whole earth is also made a �mosque� for him and given to him as a legitimate place of prayer for him and his (1058). This is the idea of the world as a �mandated territory� bestowed on the believers by Allah.
We see here that European imperialism with all its rationalizations and pretensions was anticipated by Islamic imperialism by a thousand years. In Islam we find all the ideological ingredients of imperialism in any age: a divine or moral sanction for the exploitation of the barbarians or heathens or polytheists; their land considered as a lebensraum or held as a mandate; they themselves regarded as the wards and special responsibility (zimma) of the civilizing masters.
Another hadIs mentions Muhammad�s power of �intercession� on the Day of Judgment, which other prophets lack (1058). Other ahAdIs mention other points. �I have been helped by terror. . . . . and while I was asleep I was brought the keys of the treasures of the earth,� says Muhammad. This wealth the followers of the Apostle �are now busy in getting them,� adds AbU Huraira, the narrator of this hadIs (1063).
वीर्यपात के उपरान्त स्नान से सम्बन्धित एक दर्जन हदीस हैं (674-685)। एक बार मुहम्मद ने एक अंसार को बुलवाया, जोकि सम्भोगरत था। ”वह आया। उसके सिर से पानी चू रहा था। मुहम्मद ने कहा-शायद हमने तुम्हें हड़बड़ा दिया। उसने कहा-जी हां ! पैगम्बर बोले-जब तुम जल्दी में हो और वीर्य उत्सर्जित न हुआ हो तो नहाना जरूरी नहीं है। किन्तु वुजू करना जरूरी है“ (676)। एक अन्य हदीस में मुहम्मद कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति मदनलहरी के चरमोत्कर्ष के बिना, समागम के मध्य में ही अपनी पत्नी को छोड़ कर, इबादत के लिए उठता है, तो उसे ”अपनी पत्नी के स्राव को धोना चाहिए, फिर वुजू करनी चाहिए और तब नमाज अदा करनी चाहिए“ (677)। किन्तु यदि वीर्योत्सर्जन हो गया हो, तो ”नहाना अनिवार्य हो जाता है“ (674)।
एक बार इस मुद्दे पर कुछ मुजाहिरों और अंसारों में विवाद हुआ। उनमें से एक जन स्पष्टीकरण के लिए आयशा के पास पहुंचा, और पूछा-”किसी व्यक्ति के लिए नहाना जरूरी कब हो जाता है ?“ उन्होंने जवाब दिया-”तुम अच्छी जानकार के पास आये हो।“ फिर उन्होंने बतलाया कि मुहम्मद ने इस प्रसंग में क्या कहा था-”जब कोई पुरुष स्त्री की जांघों के मध्य में बैठा हो, और दोनों के खतने किए हुए हिस्से एक दूसरे से छू रहे हों, तब स्नान जरूरी हो जाता है“ (684)। और एक दूसरे मौके पर एक पुरुष ने मुहम्मद से पूछा कि यदि कोई अपनी बीवी से समागम करते हुए कामोत्ताप के शिखर पर पहुंचे बिना अलग हो जाता है, तो क्या स्नान जरूरी है। पैगम्बर ने, पास में बैठी आयशा की ओर इशारा करते हुए उत्तर दिया-”मैं और ये ऐसा करते हैं और तब नहाते हैं“ (685)।
Somebody asked Muhammad which was the mosque �first set up on the earth.� He answered that it was the Ka�ba. The second one was the great mosque in Jerusalem (1056, 1057).
In the beginning, when Muhammad was trying to cultivate the Jews, he prayed facing their temple in Jerusalem. But later on, the direction (qibla) was changed to Mecca. One tradition says: �We prayed with the Messenger of Allah towards Bait-ul-Maqdis for sixteen months or seventeen months. Then we were made to change our direction towards the Ka�ba� (1072). The followers had no difficulty and adjusted to the new change with alacrity. Some people were praying their dawn prayer and had recited one rak�ah. Someone told them that the qibla had been changed. �They turned towards the new qibla in that very state� (1075).
The translator assures us that �this was a change of far-reaching importance. . . . It strengthened the loyalty of the Muslims to Islam and the Prophet� (note 732). It must have made a strong appeal to Arab nationalism.
आयशा हमें बतलाती हैं-”अल्लाह के रसूल ने वीर्य धोया और फिर उन्हीं कपड़ों में इबादत के लिए चल दिए और मैंने उनके कपड़ों पर धुलाई का धब्बा देखा“ (500)। इसी आशय की एक और हदीस है, परंतु उसमें फ्रायडीय अभिप्राय वाला कुछ मसाला भी है। आयशा के घर पर ठहरे एक मेहमान को रात्रि में, स्वप्नदोष हो गया। उसने अगले दिन अपने कपड़ों को धोने के लिए पानी में डुबोया। एक सेविका ने यह सब देख लिया और आयशा को खबर दी। आयशा ने मेहमान से पूछा-”तुमने कपड़ों को दी तरह क्यों डुबोया ?“ उसने जवाब दिया-”मैंने स्वप्न में वह देखा, जो लोग सोते समय देखते हैं।“ तब आयशा ने पूछा-”क्या तुमने अपने कपड़ों पर वीर्य के धब्बे देखे ?“ उसने कहा-”नहीं।“ वे बोलीं-”तुमने कुछ देखा होता, तब तो धोना चाहिए था। मैं जब देखती हूँ कि अल्लाह के रसूल के कपड़े पर लगा वीर्य सूख गया है, तब मैं उसे अपने नाखूनों से खुरच देती हूं“ (572)।
Muslim prayer is mostly group prayer. It should be led by an imAm. Muhammad enjoins that �when there are three persons, one of them should lead them� (1417).
Muhammad exhorts his followers to follow their imAm. �When he prostrates, you should also prostrate; when-he rises up, you should also rise up,� he tells them (817). He also forbids them to bow and prostrate themselves ahead of the imAm: �Does the man who lifts his head before the imAm not fear that Allah may change his face into that of an ass?� (860). Also, those who are being led in prayer are required to keep pace with the imAm and are forbidden to recite so loudly as to compete with him. When someone once did this, Muhammad told him: �I felt as if [you were] disputing with me . . . and taking out from my tongue what I was reciting� (783). The imAm is authorized to appoint anyone as his deputy, when there is a valid reason for doing so, just as Muhammad appointed AbU Bakr during his last illness (832-844).
मुहम्मद कहते हैं-”एक पुरुष को दूसरे पुरुष के गुप्त अंग नहीं देखने चाहिए“ न ही ”एक चादर के अंदर“ एक से अधिक लोगों को एक साथ सोना चाहिए (660)। इस सिलसिले में वे यह भी बतलाते हैं कि यहूदी लोग नंगे नहाते थे और एक दूसरे के गुप्त अंग देखते रहते थे। लेकिन मूसा अकेले ही नहाते थे। अपने नेता का अनुगमन न करने के लिए शर्मिन्दा होने की बजाय यहूदी लोग मूसा पर व्यंग कसने लगे। उन्होंने कहा कि अंडकोष वृद्धि के कारण मूसा अपने गुप्त अंगों को दिखाने से कतराते हैं। किन्तु अल्लाह ने मूसा की निर्दोषिता प्रमाणित की। एक बार, नहाते समय मूसा ने अपने कपड़े चट्टान पर रख दिए। पर चट्टान चल पड़ी। ”मूसा उसके पीछे पुकारते हुए दौड़ पड़े-ऐ पत्थर ! मेरे कपड़े ऐ पत्थर ! मेरे कपड़े !“ तब यहूदियों को उनके गुप्तांग देखने का अवसर मिला और वे बोले-”अल्लाह कसम ! मूसा को तो कोई रोग नहीं है“ (669)।