Category Archives: Islam

HADEES : AL-�AZL

AL-�AZL

Coitus interruptus is permitted, but it is useless if the object is to prevent conception, for that is in the hand of Allah.  AbU Sirma reports: �We went out with Allah�s Messenger on the expedition. . . . and took some excellent Arab women; and we desired them . . . but we also desired ransom for them.  So we decided to have sexual intercourse with them but by observing �azl.� They consulted Muhammad, and he advised: �It does not matter if you do not do it, for every soul that is to be born up to the Day of Resurrection will be born� (3371).

author : ram swarup

हदीस : परिक्रमा और पत्थर चूमना

परिक्रमा और पत्थर चूमना

जब कोई शख्स तीर्थयात्री का पहनावा धारण कर चुके, जोकि सीवन-रहित दो आवरण-वस्त्र होते हैं, तब उसे न तो दाढ़ी बनानी चाहिए, न नाखून काटने चाहिएं। तब उसे तीर्थयात्री का गीत-”तलबिया, लब्वैका ! अल्लाहुम्मा ! (ऐ अल्लाह, मैं तुम्हारी सेवा में हाजिर हूँ)“-गाते हुए मक्का की तरफ बढ़ना चाहिए। मक्का पहुंचने पर वह मस्जिद-उल-हराम में वुजू करता है काले पत्थर (अल-जिर-उल-असवद) को चूमता है। तब काबा (तवाफ़) की सात बार परिक्रमा करता है। खुद मुहम्मद ने ”अपने ऊंट की पीठ पर सवार होकर …..” परिक्रमा की थी, ”ताकि लोग उन्हें देख सकें और वे विशिष्ट बने रहें“ (2919)। इसी वजह से उन्होंने कोने (काले पत्थर) को छड़ी से छुआ। अब्बू तुफैल बतलाते हैं-”मैं अल्लाह के रसूल को उस मकान की परिक्रमा करते तथा कोने को उस छड़ी से छूते देखा जो उन के पास थी और फिर उस छड़ी को चूमते देखा“ (2921)।

 

पत्थर चूमने का रिवाज बुतपरस्ती है। उमर ने कहा था-”कसम अल्लाह की, मैं जानता हूँ कि तुम पत्थर हो और अगर मैंने रसूल-अल्लाह को तुम्हें चूमते न देखा होता, तो मैं तुम्हें चूमता नहीं’ (2912)। ईसाई पंथमीमांसक ”श्रद्धा-निवेदन“ और ”आराधना“ में भेद बतलाते हैं। उनका अनुसरण करते हुए, मुस्लिम विद्वान तर्क करते हैं कि काबा और काला पत्थर श्रद्धा के स्थान हैं, आराधना के नहीं।

 

एक अन्य महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान यह है कि तीर्थयात्री अस-सफ़ा पहाड़ की चोटी से अल-मर्वाह पहाड़ की चोटी तक दौड़ते हैं, क्योंकि कुरान (2/158) के अनुसार ये दोनों पहाड़ ”अल्लाह के प्रतीक“ हैं। मुहम्मद का कहना है कि ”अल्लाह किसी व्यक्ति के हज या उमरा को तब तक पूरा नहीं करता, जब तक कि वह सई न करे (यानी अल-सफ़ा और अल-मर्वाह के बीच दौड़ न लें)“ (2923)।

 

हर बार जब तीर्थयात्री इन पहाड़ों की चोटी पर पहुंचता है तो वह जपता है-”अल्लाह के सिवाय और कोई आराध्य-देव नहीं। उसने अपना वायदा निभाया है, और अपने खिदमतगार (मुहम्मद) की इमदाद की है, और अकेले ही काफिरों के कटक को मार भगाया है।“ मुहम्मद कभी ढील नहीं देते। हर मौके पर वे काफिरों के प्रति एक अटल वैर-भाव मोमिनों के मन में भरते रहते हैं।

author : ram swarup

 

HADEES : WOMEN�S RIGHTS

WOMEN�S RIGHTS

In return, a woman has her rights.  She is entitled to a lawful maintenance (nafaqah); if the husband fails to provide it, she can seek a divorce.  She is also entitled to a dowry (mahr), or what the QurAn in some verses (4:24, 33:50) calls her �hire� (ujUrat).  She can claim it when divorced.

She is also to be consulted in the choice of her partner.  �A woman who has been previously married (Sayyib) has more right to her person than her guardian.  And a virgin should also be consulted, and her silence implies her consent� (3307).  Theoretically, a Muslim woman is entitled to make the marriage contract herself, but in practice it is her nearest kinsman, the guardian (walI), who does it.  The father and the grandfather are even called �compelling walIs.� According to some schools, a minor girl given in marriage by a guardian other than her father or grandfather can seek dissolution of the marriage when she attains her majority.

author : ram swarup

हदीस : शिकार

शिकार

एक मुहरिम (एहराम की दशा वाले व्यक्ति) के वास्ते शिकार भी वर्जित है। किसी ने मुहम्मद को जंगली गधे का गोश्त दिया। पर उन्होंने यह कहते हुए उसे मना कर दिया-”अगरहम एहराम की हालत में नहीं होते, तो इसे तुमसे कुबूल कर लेते“ (2704)। किन्तु यदि जानवर को किसी गैर-मुहरिम साथी द्वारा मारे गए जंगली गधे की टांग मुहम्मद को पेश की गई। ”रसूल-अल्लाह ने उसे कुबूल किया और खाया“ (2714)।

 

यद्यपि एक प्रकार का शिकार मुहरिम के वास्ते मना है, किन्तु इससे वह जैन या वैष्णव नहीं बन जाता। ”चार तरह के दुष्ट जानवरों“ को उसे तब भी मारना चाहिए-”चील, कौआ, चूहा और लालची कुत्ता।“ किसी ने पूछा-”मगर सांप ?“ मुहम्मद ने जवाब दिया-”उसे दुर्गत करके मारा जाय“ (2717)।

author : ram swarup

HADEES : THE HUSBAND�S RIGHTS

THE HUSBAND�S RIGHTS

A husband has complete sexual rights over his wife.  �Your wives are your tilth; go then unto your tilth as you may desire� (3363).  The same idea is also found in the QurAn (2:223).  Another hadIs in the same group tells the husband that �if he likes he may have intercourse being on the back or in front of her, but it should be through one hole� (3365), which means vagina only, as the commentators tell us.

It is the duty of a wife to be responsive to all of her husband�s overtures.  �When a woman spends the night away from the bed of her husband, the angels curse her until morning� (3366).

author : ram swarup

मुस्लिम स्कूल की लाइब्रेरी में रखी किताबों की सीख: पति चाहे तो पत्नी के साथ करे मार-पीट

मुस्लिम स्कूल की लाइब्रेरी में रखी किताबों की सीख: पति चाहे तो पत्नी के साथ करे मार-पीट

british government to take control of the muslim school where library books says husbands are allowed to beat their wives

सांकेतिक तस्वीर…
लंदन
ब्रिटेन में प्रशासन द्वारा दिए जाने वाले फंड से चल रहे एक मुस्लिम स्कूल को सरकार अपने नियंत्रण में लेने जा रही है। एक सरकारी टीम ने स्कूल के पुस्तकालय में रखी किताबों का निरीक्षण किया था। यहां कुछ ऐसी किताबें पाई गईं, जिनके मुताबिक पति चाहे तो अपनी पत्नी को पीट सकता है। किताब में बताया गया है कि पतियों को अपनी पत्नियों के साथ मार-पीट करने की इजाजत होती है। इतना ही नहीं, वह चाहे तो जबरन अपनी पत्नी के साथ सेक्स भी कर सकता है।

इस निरीक्षण के बाद जांच दल ने जून में अपनी रिपोर्ट संबंधित सरकारी विभाग को सौंप दी। रिपोर्ट में स्कूल को अयोग्य बताया गया है। इसी स्कूल में कुछ दिनों पहले एक 9 साल के छात्र की मौत हो गई थी। बच्चे को किसी किस्म का अलर्जिक रिऐक्शन हुआ और वह स्कूल में ही बेहोश हो गया। बाद में बच्चे को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टर उसे नहीं बचा पाए। जांच दल का कहना है कि यहां पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं स्कूल में पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं।

यह स्कूल फिलहाल अदालत में एक कानूनी लड़ाई भी लड़ रहा है। स्कूल अपने यहां पढ़ने वाले छात्रों और छात्राओं के पढ़ने की व्यवस्था अलग-अलद करने के पक्ष में है। उसका कहना है कि लड़के और लड़कियों को साथ नहीं पढ़ना चाहिए, बल्कि दोनों को पढ़ाने का इंतजाम अलग-अलग किए जाने की छूट मिलनी चाहिए। वहीं सरकारी शिक्षा विभाग ऐसी व्यवस्था के पक्ष में नहीं है। हालांकि इससे पहले नवंबर में हाई कोर्ट ने स्कूल के पक्ष में फैसला सुनाया था, लेकिन विभाग ने इस निर्णय के खिलाफ अपील की है।

source :  http://navbharattimes.indiatimes.com/world/britain/british-government-to-take-control-of-the-muslim-school-where-library-books-says-husbands-are-allowed-to-beat-their-wives/articleshow/59626175.cms

हदीस : एहराम की दशा

एहराम की दशा

 

”हज की किताब“ तीर्थयात्री की पोशाक और सज-धज के बारे में, और तीर्थयात्री की पोशाक पहन लेने के बाद एहराम (निषेध) की दशा में प्रवेश के बारे में है, जिसमें कि मक्का में अपनी इबादत पूरी कर लेने तक कोई अन्य काम करना मना किया गया है।

 

पोशाक के बारे में, ”कमीज या पगड़ी या पायजामा या टोपी पहनना“ मना है (2647)। एहराम की दशा में इत्र का इस्तेमाल मना है, पर उसके पहले या बाद में इस्तेमाल मना नहीं है। आयशा बतलाती हैं-”रसूल-अल्लाह जब एहराम में प्रविष्ट होते थे और जब उससे मुक्त हो जाते थे, तब मैं उन्हें इत्र लगाती थी“ (2683)। एक अन्य हदीस (2685) में वे आगे कहती हैं-”सबसे बढ़िया इत्र।“

author : ram swarup

 

HADEES : PROHIBITIONS

PROHIBITIONS

The law appears to be quite indulgent, but it is not entirely so.  There are many restrictions on grounds of number, consanguinity, affinity, religion, rank, etc.  For example, a man cannot marry more than four free women at a time (QurAn 4:3)-there is no restriction on the number of slave concubines.  Also, one cannot marry one�s wife�s father�s sister nor her mother�s sister (3268-3277).  It is also forbidden to marry the daughter of one�s foster brother, or even the sister of one�s wife if the wife is alive and not divorced (3412-3413).

It is also forbidden to marry an unbeliever (QurAn 2:220-221).  Later on, this restriction was relaxed, and a male Muslim could then marry a Jew or a Christian (QurAn 5:5).  Under no circumstances could a female Muslim marry a nonbeliever.

Marriage is also disallowed when the parties are not equal in rank or status (kafa�ah), though what is rank is differently understood by different people.  Generally speaking, an Arab is considered higher than a non-Arab, the Prophet�s relatives being the highest.  One who had committed a portion of the QurAn to memory was considered a qualified match by Muhammad himself.  A woman came to him and entrusted herself to him.  He �cast a glance at her from head to foot . . . but made no decision� about her.  Then a Companion who was there stood up and said: �Messenger of Allah, marry her to me if you have no need for her.� But the man possessed nothing, not even an iron ring for a dowry.  He was turning away in disappointment when Muhammad asked him if he knew any verses of the QurAn and could recite them.  The man said yes.  Then Muhammad decided and said: �Go, I have given her to you in marriage for the part of the QurAn which you know� (3316).

One should also not outbid one�s brother.  �A believer is the brother of a believer, so it is not lawful for a believer to outbid his brother, and he should not propose an agreement when his brother has thus proposed until he gives it up� (3294).

ShighAr marriage is also prohibited (3295-3301). This is the marriage which says: Marry me your daughter or sister, and in exchange I will give you in marriage my daughter or sister.

One should also not marry when one has put on the ritual garb of pilgrimage.  �A Muhrim should neither marry nor make the proposal of marriage,� reports UsmAn b. AffAn, quoting the Prophet (3281).  But this point is controversial, for Muhammad himself �married MaimUna while he was a Muhrim� (3284).

One cannot remarry one�s divorced wife unless she subsequently married someone else and the new husband had sexual intercourse with her and then divorced her (3354-3356).  A divorcee married but then decided to go back to her old husband.  Seeking the Prophet�s permission, she told Muhammad that all the new husband possessed was �like the fringe of a garment� (i.e., he was sexually weak).  The Prophet �laughed� but withheld the permission.  �You cannot do that until you have tasted his [the new husbands] sweetness and he has tasted your sweetness,� he told her (3354).

author : ram swarup

हदीस : एक बुतपरस्त विचार

एक बुतपरस्त विचार

मुस्लिम पंथ-मीमांसा की दृष्टि से देखने पर मक्का और काबा की तीर्थयात्रा का सम्पूर्ण विचार बुतपरस्ती के समान है। किन्तु इस्लाम के लिए उसका बहुत बड़ा सामाजिक एवं राजनैतिक महत्त्व है। मुहम्मद के नेतृत्व में सम्पन्न मक्का की पहली मुस्लिम तीर्थयात्रा भी शायद एक धार्मिक सम्मेलन की अपेक्षा राजनैतिक प्रदर्शन अधिक थी।

 

हिजरी सन् 6 में मुहम्मद उमरा अनुष्ठान (लघुतर तीर्थयात्रा) के लिए मक्का रवाना हुए। यह मदीना आने के बाद उनकी तीर्थयात्रा थी। वे पन्द्रह-सौ लोगों के तीर्थयात्रा-दल की अगुवाई कर रहे थे। दल का एक हिस्सा सशस्त्र था। संख्यावृद्धि के लिए उन्होंने रेगिस्तान के अरबों से साथ देने की अपील की थी। पर अरबों की प्रतिक्रिया मन्द रही, क्योंकि लूट के माल का कोई वायदा न था और कुरान के शब्दों में, ”वे समझ बैठे थे कि पैगम्बर और मोमिन अपने परिवारों की ओर कभी नहीं लौट पायेंगे“ (48/12)।

 

तथापि पन्द्रह-सौ एक असरदार संख्या थी और कोई भी समझ सकता था कि उन्हें तीर्थयात्री कहना कठिन है। मक्का वालों का मुहम्मद से एक सन्धि करनी पड़ी, जिसे होडैवा की सन्धि कहा जाता है। मुहम्मद ने इसे अपनी जीत माना और वह जीत ही सिद्ध भी हुई। दो बरस बाद, एक तरह की विलम्बित चढ़ाई के जरिए मक्का वाले परास्त हो गए। जीत के इस साल में तीर्थयात्रा अर्थात् हज़ को इस्लाम के पांच बुनियादी आधारों में से एक घोषित किया गया।

 

दो बरस बाद, सन् 632 ईस्वी के मार्च में, मुहम्मद ने एक और तीर्थयात्रा की। वह उनकी आखिरी तीर्थयात्रा सिद्ध हुई और मुस्लिम आख्यानों में उसे ”पैगम्बर की विदाई तीर्थयात्रा“ कहकर गरिमामंडित किया जाता है। इसके लिए बड़ी तैयारियाँ की गई थीं। इसे मोमिनों के सम्मेलन से ज्यादा महत्त्व दिया गया था। इसका उद्देश्य मुहम्मद की शक्ति का प्रदर्शन करना था। ”इस महान तीर्थयात्रा में उनका साथ देने के लिए अरब के सभी अंचलों से लोगों को आमंत्रित करने के लिए दूत भेजे गए थे।

 

मक्का की हार के बाद, मुहम्मद की ताकत का कोई प्रतिस्पर्धी नहीं रहा था और वद्दू कबीलों के लोगों ने समझ लिया था कि ये बुलावे, वैसी तीर्थयात्रा से कुछ भिन्न हैं जो वे पहले, अपनी सुविधा से, अपने देवताओं की आराधना के लिए खुद किया करते थे। वे जान गए थे कि यह अधीनता स्वीकार करने का आह्वान भी है। इसी से, पिछली बार से विपरीत, इस बार वे बड़ी तादाद में और उत्साह से आये। ”कारवां जैसे-जैसे बढ़ता गया, सहभागियों की तादाद बढ़ती गई“, जब तक कि वह, वर्णनकत्र्ताओं के अनुसार, 1 लाख 30 हजार से ज्यादा नहीं हो गई (सही मुस्लिम, पृष्ठ 612)। मंडली में शामिल होने के लिए सभी लोग उतावले हो उठे थे।

author : ram swarup

HADEES : TEMPORARY MARRIAGE (Mut�ah)

TEMPORARY MARRIAGE (Mut�ah)

Muhammad allowed temporary marriages.  �Abdullah b. Mas�ud reports: �We were on an expedition with Allah�s Messenger and we had no women with us.  We said: Should we not have ourselves castrated?  The Holy Prophet forbade us to do so.  He then granted us permission that we should contract temporary marriage for a stipulated period giving her a garment [for a dowry].� At this �Abdullah felt happy and remembered the QurAnic verse: �The believers do not make unlawful the good things which Allah has made lawful for you, and do not transgress.  Allah does not like transgressors� (3243; QurAn 5:87).

JAbir reports: �We contracted temporary marriage giving a handful of dates and flour as a dower� (3249).  He told another group: �Yes, we had been benefiting ourselves by this temporary marriage during the lifetime of the Holy Prophet, and during the time of AbU Bakr and �Umar� (3248). IYas b. Salama reports, on the authority of his father, �that Allah�s Messenger gave sanction for contracting temporary marriage for three nights in the year of AutAs [after the Battle of Hunain, A.H. 8] and then forbade it� (3251).

Sunni theologians regard this form of marriage as no longer lawful, but the Shias differ and still practice it in Persia.  The Shia theologians support this with a QurAnic verse: �Forbidden to you also are married women, except those who are your hands as slaves. . . . And it is allowed you, besides this, to seek out wives by means of your wealth, with modest conduct, and without fornication.  And give those with whom you have cohabited their dowry.  This is the law.  But it shall be no crime in you to make agreements over and above the law.  Verily, God is knowing, Wise� (QurAn 4:24).

author : ram swarup