Category Archives: महर्षि दयानंद सरस्वती

ईश्वर निराकार है – एक तर्कपूर्ण समाधान

शंका निवारण :

पूर्वपक्षी : क्या ईश्वर के हाथ पाँव आदि अवयव हैं ?

उत्तरपक्षी : ये शंका आपको क्यों हुई ?

पूर्वपक्षी : क्योंकि बिना हाथ पाँव आदि अवयव ईश्वर ने ये सृष्टि कैसे रची होगी ? कैसे पालन और प्रलय करेगा ?

उत्तरपक्षी : अच्छा चलिए में आपसे एक सवाल पूछता हु – क्या आप आत्मा रूह जीव को मानते हैं ?

पूर्वपक्षी : जी हाँ – में आत्मा को मानता हु – सभी मनुष्य पशु आदि के शरीर में है – पर ये मेरे सवाल का जवाब तो नहीं – मेरे पूछे सवाल से इस जवाब का क्या ताल्लुक ? कृपया सीधा जवाब दीजिये।

उत्तरपक्षी : भाई साहब कुछ जवाब खोजने पड़ते हैं – खैर चलिए ये बताये शरीर में हाथ पाँव आदि अवयव होते हैं क्योंकि जीव को इनसे ही सभी काम करने होते हैं – पर जो आत्मा होती है उसके अपने हाथ पाँव भी होते हैं क्या ?

पूर्वपक्षी : नहीं होते।

उत्तरपक्षी : क्यों नहीं होते ?

पूर्वपक्षी : #$*&)_*&(*#$*$()
(सर खुजाते हुए – कोई जवाब नहीं – चुप)

उत्तरपक्षी : जब एक आत्मा जो सर्वशक्तिमान ईश्वर के अधीन है – बिना हाथ पाँव अवयव आदि के – मेरे इस शरीर में विद्यमान रहकर – शरीर को चला सकती है – तो ईश्वर जो सर्वशक्तिमान है – वो ये सृष्टि का निर्धारण उत्पत्ति प्रलय सञ्चालन वो भी बिना हाथ पाँव आदि अवयव क्यों नहीं कर सकता ? इसमें आपको कैसे शंका ? कमाल के ज्ञानी हो आप ?

पूर्वपक्षी : #$*&)_*&(*#$*$()
(चुपचाप गुमसुम चले गए)

क्या वेदो को ऋषि वेद व्यास ने लिखा था ? मिथक से सच्चाई की ओर

वे पौराणिक मित्र जो ये कहते नहीं थकते की वेदो को “वेद व्यास” जी ने लिखा – वो या तो पूर्वाग्रह के शिकार हैं या फिर अपने पुराणो के ज्ञान को जानते नहीं हैं –

गरुण पुराण के अनुसार –

वेद व्यास जी ने वेद रूपी वृक्ष को अनेक शाखाओ में विभक्त किया
गरुण पुराण अध्याय १ (पृष्ठ १८)

अब जब वेद पहले ही विद्यमान थे जैसे की इस पुराण को पढ़कर पता चलता है – तब ये पौराणिक मित्र क्यों लोगो को भरमाते रहते हैं की वेद व्यास जी ने वेदो की रचना की ????? यहाँ स्पष्ट रूप से लिखा है की वेद व्यास जी ने वेदो की रचना नहीं की – तो कृपया उल जलूल तर्क देकर समय व्यर्थ न करे – अपना भी और मेरा भी

मेरा मानना है की वेदो की शाखा भी वेद व्यास जी से पहले ही विद्यमान थी – क्योंकि वेद व्यास जी के पिता ऋषि पराशर जी पराशर संहिता में बहुत जगह वेद और वेदो की शाखाओ की बात करते हैं –

अब यहाँ विचारणीय तथ्य ये है की यदि उपरोक्त वर्णित पुराण को प्रमाण माने तो वेदो को शाखाओ में विभक्त करने वाले वेद व्यास जी थे – तब कैसे पराशर जी ने अपने पराशर संहिता में वेद की शाखाओ का भी जिक्र किया ???

अब कुछ पौराणिक ये कहेंगे की व्यास उनके बेटे थे जब उन्होंने वेदो की शाखाये बना दी तब उन्होंने अपने ग्रन्थ में लिखा –

तो मेरा सुझाव उनको ये है की जाके पहले अपना मुंह गरम पानी से धो ले और अपनी नींद को उत्तर लेवे – तब बात करे –

क्योंकि जब पराशर संहिता लिखी गयी तब वेद व्यास जी उत्पन्न नहीं हुए थे – अगर आप पौराणिक फिर भी मानते हैं तो कृपया प्रमाण ले आये –

नमस्ते –

ईसाई पैगम्बर अत्यंत चरित्र हीन थे – पार्ट 3

मित्रो जैसे की पिछली दो पोस्ट से ये कारवां चलता आ रहा है की सत्य को सामने रखा जाए – और असत्य को दूर फेक दिया जाए – उसी कड़ी में पेश है – एक और सत्य की खोज।

हजरत दाऊद का चरित्र जो बाइबिल में एक कामांध, कामपिपासु, स्त्रियों का अत्यधिक सेवक, और निर्लज्ज आदमी – जिसने अपनी कामपिपासा को शांत करने हेतु अपने खुद के एक कर्तव्यनिष्ठ, सच्चे, वीर, वफादार योद्धा को जान से मरवा दिया ताकि उसकी बीवी को हथिया सके। उसके साथ रंगरलियां मना सके।

जिसकी मानसिकता ऐसी थी उसकी संतान कैसी होगी ? क्या आपने कभी सोचने का पर्यत्न किया ?

आइये आज प्रयत्न करते हैं सत्य को खोजने का

जैसे की हम सब जानते हैं –

बाप पे पूत,
नसल पे घोडा
बहुत नहीं, तो थोड़ा थोड़ा।

ये पोस्ट इसी विषय को चरितार्थ करती है। आपको पिछली पोस्ट में हजरत दाऊद जैसे पैगम्बर के बारे में बाइबिल क्या कहती है – उससे रूबरू करवाया था।
अब थोड़ा मुखातिब हुआ जाये हजरत दाऊद के संतानो से।

हजरत दाऊद का एक बेटा था – अबशालोम

हजरत दाऊद का एक और बेटा था – अम्नोन

हजरत दाऊद की एक बेटी – तामार जो अबशालोम की बहिन थी।

यानी तीनो एक ही पिता से उत्पन्न भाई बहिन थे।

अब हुआ क्या ?

हुआ ये की भाई का दिल अपनी बहन पर आ गया

यानी दाऊद के एक बेटे अम्नोन का दिल अपनी बहन तामार पर आ गया।

1 इसके बाद तामार नाम एक सुन्दरी जो दाऊद के पुत्र अबशालोम की बहिन थी, उस पर दाऊद का पुत्र अम्नोन मोहित हुआ।
(2 शमूएल, अध्याय 13)

अब दिल आ जाये तो क्या करे ? वही होता है – जो आशिक़ों का हाल होता है – खाना पीना छूट जाना – भूख प्यास न लगना, बीमार पड़ जाना आदि आदि। वही अम्नोन के साथ हुआ।

2 और अम्नोन अपनी बहिन तामार के कारण ऐसा विकल हो गया कि बीमार पड़ गया; क्योंकि वह कुमारी थी, और उसके साथ कुछ करना अम्नोन को कठिन जान पड़ता था।
(2 शमूएल, अध्याय 13)

अब क्या करे अम्नोन ? सो अपने दोस्त की सलाह ली।

3 अम्नोन के योनादाब नाम एक मित्र था, जो दाऊद के भाई शिमा का बेटा था; और वह बड़ा चतुर था।

4 और उसने अम्नोन से कहा, हे राजकुमार, क्या कारण है कि तू प्रति दिन ऐसा दुबला होता जाता है क्या तू मुझे न बताएगा? अम्नोन ने उस से कहा, मैं तो अपने भाई अबशालोम की बहिन तामार पर मोहित हूं।

5 योनादाब ने उस से कहा, अपने पलंग पर लेटकर बीमार बन जा; और जब तेरा पिता तुझे देखने को आए, तब उस से कहना, मेरी बहिन तामार आकर मुझे रोटी खिलाए, और भोजन को मेरे साम्हने बनाए, कि मैं उसको देखकर उसके हाथ से खाऊं।
(2 शमूएल, अध्याय 13)

बस जी बन गया काम – अंधे को क्या चाहिए – दो आँखे –

हजरत दाऊद जो की पैगम्बर थे – यहोवा इनसे बात करता था – पता नहीं यहोवा कहाँ गुम हुआ जो ऐसी जरुरत की बताने वाली बात – अथवा पाप को होने से बचा भी न पाया और न हजरत दाऊद को बता पाया – शायद यहोवा भी इस काम को पसंद करता हो ?

खैर हजरत दाऊद ने खबर भिजवा दी – तामार को भेजो – अम्नोन खाना खाना चाहता है – पता नहीं पैगम्बरी ने साथ क्यों न दिया – जो भविष्य की बात ऐसे पैगम्बर चुटकी में जान लेते हैं – इस पाप से अनभिज्ञ रहे ? हो सकता है हजरत दाऊद इस काम को मन से समर्थन दे रहे हो ?

खैर जो भी हो – तामार आ गयी अपने बीमार भाई को ठीक करने के लिए। धन्य है ऐसी बहिन जो अपने भाई की बिमारी की खबर मिलते ही पधार गयी – और पूरी बना दी।

7 और दाऊद ने अपने घर तामार के पास यह कहला भेजा, कि अपने भाई अम्नोन के घर जा कर उसके लिये भोजन बना।

8 तब तामार अपने भाई अम्नोन के घर गई, और वह पड़ा हुआ था। तब उसने आटा ले कर गूंधा, और उसके देखते पूरियां। पकाईं।

मगर अम्नोन के मन में जो पाप चल रहा था – उससे वो बेचारी अबला बहिन अनजान थी – उसे तो केवल अपने भाई के ठीक होने की जल्दी थी – इसलिए भाई को अकेले – एकांत कमरे में भी भोजन करवाने को राजी हो गयी।

तब उसने थाल ले कर उन को उसके लिये परोसा, परन्तु उसने खाने से इनकार किया। तब अम्नोन ने कहा, मेरे आस पास से सब लोगों को निकाल दो, तब सब लोग उसके पास से निकल गए।

10 तब अम्नोन ने तामार से कहा, भोजन को कोठरी में ले आ, कि मैं तेरे हाथ से खाऊं। तो तामार अपनी बनाई हुई पूरियों को उठा कर अपने भाई अम्नोन के पास कोठरी में ले गई।

भाई हमने तो सुना है – स्त्रियों में एक सेंस होती है – जो पहचान जाती है की कोई उसके साथ जो कर रहा है – उसमे उसकी मानसिकता अच्छी है या बुरी है। मगर बेचारी तामार इतनी भोली थी – की अपने भाई की बुरी बात को पहिचान तक न सकी।

11 जब वह उन को उसके खाने के लिये निकट ले गई, तब उसने उसे पकड़कर कहा, हे मेरी बहिन, आ, मुझ से मिल।

12 उसने कहा, हे मेरे भाई, ऐसा नहीं, मुझे भ्रष्ट न कर; क्योंकि इस्राएल में ऐसा काम होना नहीं चाहिये; ऐसी मूढ़ता का काम न कर।

13 और फिर मैं अपनी नामधराई लिये हुए कहां जाऊंगी? और तू इस्राएलियों में एक मूढ़ गिना जाएगा। तू राजा से बातचीत कर, वह मुझ को तुझे ब्याह देने के लिये मना न करेगा।

14 परन्तु उसने उसकी न सुनी; और उस से बलवान होने के कारण उसके साथ कुकर्म करके उसे भ्रष्ट किया।

और तामार जैसी सुशीला, नेक बहिन के साथ – हजरत दाऊद के पुत्र अम्नोन ने कुकर्म कर ही दिया। उसे भ्रष्ट करके ही माना।

छी ! छी ! छी !

कितनी घिनौनी हरकत थी – अपनी ही बहिन के साथ कुकर्म करना – मगर देखने वाली बात है – हजरत दाऊद जो एक महान पैगम्बर हुए हैं – उनके घर में – उनके अपने ही खून – अपने ही बेटे ने – ऐसा जलील काम किया।

क्या ये पाप कृत्य नहीं था ?

क्या हजरत दाऊद को अपनी पैगम्बरी के लिए – ऐसे कुपुत्र को दंड नहीं देना चाहिए था ?

क्या अपनी बेटी के लिए हजरत दाऊद को कोई सहानुभूति नहीं थी ?

क्या इसे पैगम्बरी कह सकते हैं ?

जो पैगम्बर अपने घर में हो रहे पाप को नहीं रोक सका ?

जो पैगम्बर अपने पुत्र को सही शिक्षा नहीं दे सका ?

जो पैगम्बर अपनी पुत्री की रक्षा नहीं कर सका ?

जो यहोवा सब कुछ जानने वाला है – पैगम्बरों से बात करता है – भविष्य की बात
बताता है – राष्ट्र को बनवाता और बिगड़वाता है –

वो अपने पैगम्बर की पुत्री की लाज न बचा सका ?

क्या ये बाइबिल धर्म की शिक्षा देती है ?

अगर देती है –

तो ये अधर्म करने वाले पैगम्बर और उनके पुत्रो को दंड का विधान क्यों नहीं ?

सत्य को जानो ईसाई मित्रो !

मनुष्य जीवन का लाभ उठाओ।

सत्य को जानो और मानो।

आओ लौट चले सत्य की और

वेद और विज्ञानं की और

मनुष्यता की और

“कृण्वन्तो विश्वमार्यम”

नमस्ते

ईसाई पैगम्बर अत्यंत चरित्र हीन थे – पार्ट 4

मित्रो जैसे की पिछली तीन पोस्ट से ये कारवां चलता आ रहा है की सत्य को सामने रखा जाए – और असत्य को दूर फेक दिया जाए – उसी कड़ी में पेश है – एक और सत्य की खोज।

हजरत याकूब (इजराइल) के 12 पुत्र हुए :

1. रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, जबूलून –
ये छह बेटे याकूब की पहली बीवी लिआ से हुए

2. युसूफ और बिन्यामीन – दूसरी बीवी राहेल से हुए

3. दान और नप्ताली – राहेल की दासी बिल्हा से थे

4. गाद और आशेर – ये लिआ की दासी जिल्पा से हुए।
(उत्पत्ति ३५:२३-२६)

ये तो हुआ संछिप्त परिचय – अब आप सोचोगे इसमें चरित्रहीनता कहाँ है ?

भाई लोगो – पहली चरित्रहीनता तो यही देख लो – की हजरत याकूब जो एक ईसाई पैगम्बर थे – उनकी एक नहीं दो दो बीवियां थी – क्या ये कम चरित्रहीनता है ?

चलो इसे चरित्रहीनता नहीं कहते – ये शादी थी। मगर क्या अपनी पत्नी की दासियों के साथ बिना शादी किये संतान पैदा करना चरित्रहीनता नहीं है ?

चलो एक बार को माना की दासी के साथ भी विवाह किया था – अव्वल तो ये संभव ही नहीं था – फिर भी यदि मान लिया जाए तो – अपनी पत्नी को सुरक्षा की जिंदगी देना ये एक मनुष्य का कर्तव्य होता है – लेकिन हजरत याकूब जो एक महान पैगम्बर थे – अपने बेटे को अच्छी शिक्षा तक न दे सके – क्या ये महानता की बात थी ?

मैं चरित्रहीनता इसलिए कहता हु की एक पैगम्बर होने के नाते समाज को और अपने परिवार को सुशिक्षा देना ही पैगम्बर का कार्य होता है – मगर ये कैसे पैगम्बर जिनके बेटे ने अपनी ही माँ के साथ कुकर्म कर दिया ?

देखिये –

जैसे की आपने ऊपर पढ़ा – रूबेन – याकूब की पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र हुआ था – मगर उसका आचरण इतना भ्रष्ट था की उसने अपनी ही सौतेली माँ के साथ कुकर्म किया।

इजराइल (याकूब) वहां थोड़े समय ठहरा। जब वह वहां था तब रूबेन इजराइल (याकूब) की दासी बिल्हा के साथ सोया। इजराइल ने इस बारे में सुना और बहुत क्रुद्ध हुआ।

(उत्पत्ति ३५:२२)

अब इस बात का थोड़ा गणित समझिए।

इजराइल (याकूब) के बीवी राहेल पुत्र को जन्म देते समय मर गयी तो – तो याकूब उसे दफनाने में व्यस्त था – बस फिर क्या था रूबेन को मौक़ा मिल गया – और उसने अपनी ही माँ का बलात्कार किया।

अब ऐसे ऐसे पिता पुत्र जिस समाज – कुल के पैगम्बर हुए हो – उस समाज से आप किस प्रकार की शिक्षा की उम्मीद कर सकते हैं ?

रूबेन के इस पाप की सुचना जब याकूब को मिली – तो उसने उसे क्या सजा दी ? क्या कोई ईसाई मित्र बताने का कष्ट करेगा ?

मेरे ईसाई मित्रो इस पापयुक्त आचरण को छोडो = सत्य सनातन वैदिक धर्म से नाता जोड़ो =

आओ लौटो वेदो की और

नमस्ते

ईसाई पैगम्बर अत्यंत चरित्रहीन थे – पार्ट 5

सभी मित्रो – जैसे की पिछली ४ पोस्ट से ये पोल खोल चालू है – की ईसाई पैगम्बर अत्यंत ही चरित्रहीन थे – खुद बाइबिल ऐसा प्रमाणित करती है – मगर फिर भी हमारे कुछ हिन्दू भाई – इस पाखंड में फंसते जाते हैं – क्योंकि वो बाइबिल को पढ़ते नहीं – और जो कुछ पढ़ते हैं – वो सही से समझते नहीं – आइये अपने हिन्दू भाइयो को इस पाखंड रुपी चुंगल से निकालने के लिए सहयोग करे और इस पोस्ट के माध्यम से सत्य को एक बार फिर प्रसारित करे –

आज जिन महान पैगम्बर की चरित्रहीनता का जिक्र इस पोस्ट में किया जायेगा – वो इतने महान थे – की उन्होंने न केवल अपने फायदे और कामपिपासा को शांत करने के लिए अपने खुदा (यहोवा) की आज्ञा का अपमान किया – बल्कि इस बाइबिल में अपने खुदा (यहोवा) से इस कृत्य के लिए आशीर्वाद भी प्राप्त किया –

ऐसा लिखवा दिया –

आइये एक नजर डाले – आखिर माजरा क्या है –

बाइबिल में अनेक जगह पर यहोवा कहता है –

शापित हो वह जो अपनी बहिन, चाहे सगी हो चाहे सौतेली, उस से कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन॥
व्यवस्थाविवरण, अध्याय २७:२२)

और यदि कोई अपनी बहिन का, चाहे उसकी संगी बहिन हो चाहे सौतेली, उसका नग्न तन देखे, तो वह निन्दित बात है, वे दोनों अपने जाति भाइयों की आंखों के साम्हने नाश किए जाएं; क्योंकि जो अपनी बहिन का तन उघाड़ने वाला ठहरेगा उसे अपने अधर्म का भार स्वयं उठाना पड़ेगा।
लैव्यव्यवस्था, अध्याय २०:१७)

तो उपरलिखित प्रमाणों से सिद्ध है की अपनी बहिन – चाहे सगी हो अथवा सौतेली – उस से यदि कोई गलत काम करता है – तो वो व्यभिचारी है – यानी ऐसा मनुष्य चरित्रहीन है – निन्दित है – और उसका नाश किया जाए –

बात बिलकुल ठीक है – कायदे की है – ऐसा ही होना चाहिए – मगर मेरी उस वक़्त आँख फटी की फटी रह गयी जब मेने – महान ईसाई पैगम्बर “इब्राहिम” का जिक्र बाइबिल में पढ़ा –

अरे दादा इतना घोर अनर्थ – इतना व्यभिचारी पैगम्बर ? अपनी ही बहिन को अपनी हवस का शिकार बना डाला ?

छिः धिक्कार है ऐसी बाइबिल पर और ऐसे ईश्वर पर जो एक जगह कहता कुछ है – और जब पैगम्बर की बात आई तो बदल गया ? क्या ऐसा भी ईश्वर का काम हो सकता है ?

देखिये

इब्राहिम ने कहा, मैं ने यह सोचा था, कि इस स्थान में परमेश्वर का कुछ भी भय न होगा; सो ये लोग मेरी पत्नी के कारण मेरा घात करेंगे।
(उत्पत्ति, अध्याय २०:११)

और फिर भी सचमुच वह मेरी बहिन है, वह मेरे पिता की बेटी तो है पर मेरी माता की बेटी नहीं; फिर वह मेरी पत्नी हो गई।
(उत्पत्ति, अध्याय २०:११)

ईसाई मित्रो देखो आपका पैगम्बर – जिसने अपने ही खुदा की कही बात को मिटटी में मिला दिया ?

क्या ऐसे ही पैगम्बर होते हैं ?

पैगम्बर तो वो कहलाते हैं – जो खुदा की बात पर चले – मगर क्या “इब्राहिम” जो महान पैगम्बर थे – खुदा की बात पर अमल कर पाये ? नहीं – क्योंकि अपनी काम पिपासा जो शांत करनी थी ? और देखो अपनी जान बचाने को भी अपनी पत्नी को बहिन बनवा दिया – फिर सच भी बता दिया की हाँ वो बहिन तो है मगर बीवी भी है – क्योंकि इब्राहिम के पिता की बेटी थी – उसके माँ की नहीं ?

क्या ये पैगम्बर के कर्म होते हैं ?

अब देखो आपका खुदा कैसे बदला – क्योंकि पैगम्बर की बात जो है –
फिर परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, तेरी जो पत्नी सारै है, उसको तू अब सारै न कहना, उसका नाम सारा होगा।
(उत्पत्ति, अध्याय १७:१५)

और मैं उसको आशीष दूंगा, और तुझ को उसके द्वारा एक पुत्र दूंगा; और मैं उसको ऐसी आशीष दूंगा, कि वह जाति जाति की मूलमाता हो जाएगी; और उसके वंश में राज्य राज्य के राजा उत्पन्न होंगे।
(उत्पत्ति, अध्याय १७:१६)

अब बताओ – क्या भरोसा किया जाए आपके खुदा का ?

जो अपनी एक बात पर ही टिका नहीं रहता – अरे भाई न्याय तो कम से कम सही होना चाहिए – बल्कि एक पैगम्बर के लिए तो खासकर कोई रियायत नहीं होनी चाहिए – क्योंकि वो एक समाज का नेता होता है – अब यदि नेता ही ऐसे कानून तोड़ने लगे – और यहोवा आशीर्वाद देता रहे – तो आम आदमी क्यों नहीं ये सब पाप कर्म करेगा ?

मेरे ईसाई मित्रो अभी समय है – इस पापयुक्त आचरण से अपने को भ्रष्ट ना करो – ईश्वर की शरण में आओ – सच्ची मुक्ति वेद के द्वारा है – इस झूठी मिलावटी – हर पैगम्बर द्वारा रचित अपने फायदों के लिए बनाई बाइबिल से आपका घर परिवार ही दूषित होगा – और कुछ नहीं

वेद शिक्षा अपनाओ

धर्म में पुनः स्थापित हो जाओ

सत्य और न्याय की और

ईश्वर की सत्य सनातन व्यवस्था की और

चलो चले वेदो की और

नमस्ते

बाइबिल और ईसाई पैगम्बरों की चरित्रहीन, पथभ्रष्ट और असामाजिक शिक्षा

बाइबिल अनुसार – माँ बेटे से – पिता पुत्री से – भाई सगी बहन से – सेक्स सम्बन्ध बना सकता है – ये उचित कार्य हैं।

ईसाई समाज में –

आदम के काल से आज तक

पिता पुत्री

माँ बेटा

भाई बहन

आदि का शारीरिक सम्बन्ध बनाना – या भारतीय परिवेश में कहे तो ऐसे घृणित
रिश्ते – नाजायज़ ताल्लुक – बनाना –

ईसाइयो अथवा बाइबिल की शिक्षा मानने वालो के लिए –

श्रद्धा, समर्पण, विश्वास और गर्व का विषय है

रेफ. देखिये –

भाई बहन के सम्बन्ध :

1 हे मेरी बहिन, हे मेरी दुल्हिन, मैं अपनी बारी में आया हूं, मैं ने अपना गन्धरस और बलसान चुन लिया; मैं ने मधु समेत छत्ता खा लिया, मैं ने दूध और दाखमधु भी लिया॥ हे मित्रों, तुम भी खाओ, हे प्यारों, पियो, मनमाना पियो!

2 मैं सोती थी, परन्तु मेरा मन जागता था। सुन! मेरा प्रेमी खटखटाता है, और कहता है, हे मेरी बहिन, हे मेरी प्रिय, हे मेरी कबूतरी, हे मेरी निर्मल, मेरे लिये द्वार खोल; क्योंकि मेरा सिर ओस से भरा है, और मेरी लटें रात में गिरी हुई बून्दोंसे भीगी हैं।

3 मैं अपना वस्त्र उतार चुकी थी मैं उसे फिर कैसे पहिनूं? मैं तो अपने पांव धो चुकी थी अब उन को कैसे मैला करूं?
(श्रेष्ठगीत, अध्याय 5)

7 तेरा डील डौल खजूर के समान शानदार है और तेरी छातियां अंगूर के गुच्छों के समान हैं॥

8 मैं ने कहा, मैं इस खजूर पर चढ़कर उसकी डालियों को पकडूंगा। तेरी छातियां अंगूर के गुच्छे हो, और तेरी श्वास का सुगन्ध सेबों के समान हो,
(श्रेष्ठगीत, अध्याय 7)

भाई बहन का विवाह –

11 इब्राहीम ने कहा, मैं ने यह सोचा था, कि इस स्थान में परमेश्वर का कुछ भी भय न होगा; सो ये लोग मेरी पत्नी के कारण मेरा घात करेंगे।

12 और फिर भी सचमुच वह मेरी बहिन है, वह मेरे पिता की बेटी तो है पर मेरी माता की बेटी नहीं; फिर वह मेरी पत्नी हो गई।
(उत्पत्ति अध्याय २०:११-१२)

हजरत इब्राहिम ने अपनी बहिन सारा से विवाह किया –

अम्नोन ने अपनी बहिन तामार का बलात्कार किया – जबकि तामार कहती रही की – अम्नोन से ब्याह हो सकता है – (2 शमूएल, अध्याय १३:१-१४)

कैन ने अपनी बहिन से ही विवाह किया – क्योंकि और कोई उत्पत्ति स्त्री की यहोवा ने की नहीं – केवल आदम और हव्वा बनाये – तो सिद्ध है – कैन ने अपनी ही बहिन से विवाह किया।

अब देखते हैं पिता पुत्री सम्बन्ध :

30 और लूत ने सोअर को छोड़ दिया, और पहाड़ पर अपनी दोनों बेटियों समेत रहने लगा; क्योंकि वह सोअर में रहने से डरता था: इसलिये वह और उसकी दोनों बेटियां वहां एक गुफा में रहने लगे।

31 तब बड़ी बेटी ने छोटी से कहा, हमारा पिता बूढ़ा है, और पृथ्वी भर में कोई ऐसा पुरूष नहीं जो संसार की रीति के अनुसार हमारे पास आए:

32 सो आ, हम अपने पिता को दाखमधु पिला कर, उसके साथ सोएं, जिस से कि हम अपने पिता के वंश को बचाए रखें।

33 सो उन्होंने उसी दिन रात के समय अपने पिता को दाखमधु पिलाया, तब बड़ी बेटी जा कर अपने पिता के पास लेट गई; पर उसने न जाना, कि वह कब लेटी, और कब उठ गई।

34 और ऐसा हुआ कि दूसरे दिन बड़ी ने छोटी से कहा, देख, कल रात को मैं अपने पिता के साथ सोई: सो आज भी रात को हम उसको दाखमधु पिलाएं; तब तू जा कर उसके साथ सोना कि हम अपने पिता के द्वारा वंश उत्पन्न करें।

35 सो उन्होंने उस दिन भी रात के समय अपने पिता को दाखमधु पिलाया: और छोटी बेटी जा कर उसके पास लेट गई: पर उसको उसके भी सोने और उठने के समय का ज्ञान न था।

36 इस प्रकार से लूत की दोनो बेटियां अपने पिता से गर्भवती हुई।
(उत्पत्ति, अध्याय 19)

आइये अब देखे –

माँ बेटे का रिश्ता

इजराइल (याकूब) वहां थोड़े समय ठहरा। जब वह वहां था तब रूबेन इजराइल (याकूब) की दासी बिल्हा के साथ सोया। इजराइल ने इस बारे में सुना और बहुत क्रुद्ध हुआ।
(उत्पत्ति ३५:२२)

अब इस बात का थोड़ा गणित समझिए।

इजराइल (याकूब) के बीवी राहेल पुत्र को जन्म देते समय मर गयी तो – तो याकूब उसे दफनाने में व्यस्त था – बस फिर क्या था रूबेन को मौक़ा मिल गया – और उसने अपनी ही माँ के साथ रात बितायी (सम्भोग किया)

सम्बन्ध तो और भी बहुत से लोगो के इसी प्रकार से बाइबिल में लिखे हैं – मगर पोस्ट बड़ी करने का उद्देश्य नहीं – इसलिए एक बार स्वयं बाइबिल पढ़ कर विचार करे –

क्या ये ऐसे घटिया – और मानसिक स्तर से गिरे हुए लोग – जो अपने को स्वघोषित “पैगम्बर” और एक काल्पनिक गढ़ा हुआ खुदा “यहोवा” कोई सभ्य व्यक्ति हुए होंगे ?

एक तरफ यहोवा कहता है कोई व्यभिचार नहीं करो – मगर उसके पैगम्बर और उसके बेटी बेटियो के किये भ्रष्ट आचरण को अपनी दैवीय मुहर लगाकर पवित्र बना देता है ?

कुछ उदहारण –

20 अम्राम ने अपनी फूफी योकेबेद को ब्याह लिया और उससे हारून और मूसा उत्पन्न हुए, और अम्राम की पूरी अवस्था एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई।
(निर्गमन, अध्याय 6)

29 अब्राम और नाहोर ने स्त्रियां ब्याह लीं: अब्राम की पत्नी का नाम तो सारै, और नाहोर की पत्नी का नाम मिल्का था, यह उस हारान की बेटी थी, जो मिल्का और यिस्का दोनों का पिता था।
(उत्पत्ति, अध्याय ११)

यहाँ अबिराहम तो वो जिसने अपनी बहिन साराह से सम्बन्ध बनाये – मगर यहाँ एक बात ध्यान से पढ़िए – अबिराहम के भाई नाहोर ने अपनी भतीजी मिल्क से सम्बन्ध बनाये –

26 जब तक तेरह सत्तर वर्ष का हुआ, तब तक उसके द्वारा अब्राम, और नाहोर, और हारान उत्पन्न हुए॥
(उत्पत्ति, अध्याय ११)

ये बाइबिल केवल अपने सेक्स की भूख कैसे और किस प्रकार शांत की जाए – एक नारी की अस्मत कैसे बर्बाद की जाए – कैसे हवस की भूख को पूरा किया जाए – उसकी सभी युक्तियाँ बाइबिल में पायी जाती हैं =

ये थोड़ा सा बाइबिल में नारी की स्थति विषय को बताया – बाकी सभी पाठकगण स्वयं विचार करे –

मेरे ईसाई मित्रो – आप क्यों संकोच में हो अभी तक – बाहर निकलो इस मजहबी गंदगी से – प्रकाश और ज्ञान की और आओ –

धर्म और सत्य की और आओ

आओ लौटो वेदो की और

नमस्ते’

क्या अर्जुन के रथ पर हनुमान जी विद्यमान थे ?

अर्जुन के रथ में जो पताका थी, उसमे केवल हनुमान जी ही स्थापित थे – ऐसा महाभारत नहीं कहती –

जैसे आज भी हम बहुत से अत्याधुनिक मिसाइल, फाइटर प्लेन , एयरक्राफ्ट देखते हैं, उन सबमे, कुछ प्रतीक उपयोग किये जाते हैं, मिसाल के तौर पर –

राष्ट्र का ध्वज

सेना से सम्बन्ध विभाग का लोगो

कुछ न. भी लिखे होते हैं

आदि आदि अनेक एम्ब्लोम (प्रतीक चिन्ह) भी स्थापित होते हैं।

इसी प्रकार – अर्जुन के रथ (विमान) में अनेक अनेक महापुरषो, वीरो, और पितरो आदि के मूर्ति (प्रतीक चिन्ह) लगे हुए थे।

जो लोग केवल ये कहते हैं की हनुमान जी की ही मूर्ति या ध्वजा थी – वो कृपया एक बार – महाभारत में ही उद्योगपर्वान्तर्गत यानसन्धि पर्व – अध्याय ५६ श्लोक संख्या ७-८ पढ़ लेवे

संजय ने कहा – प्रजानाथ ! विश्वकर्मा त्वष्टा तथा प्रजापति ने इंद्र के साथ मिलकर अर्जुन के रथ की ध्वजा में अनेक प्रकार के रूपों के रचना की है।। ७ ।।

उन तीनो ने देवमाया के द्वारा उस ध्वज में छोटी बड़ी अनेक प्रकार की बहुमूल्य एवं दिव्य मूर्तियों का निर्माण किया है ।। ८ ।।

इन श्लोको में अर्जुन के रथ की ध्वज का वर्णन है – स्पष्ट है कहीं भी केवल हनुमान जी का वर्णन नहीं है – क्योंकि अनेक वीर, महापुरष, राजाओ आदि के चिन्ह उस ध्वज पर अंकित किये गए थे ठीक ऐसे ही हनुमान जी भी उनमे से एक थे।

मगर कुछ मूर्खो ने केवल हनुमान जी को ही ध्वज पर दिखा कर अर्जुन, कृष्ण जैसे महावीरों की विलक्षण और ज्ञानगर्भित सोच को दरकिनार करके – पक्षपाती तरीके से केवल हनुमान जी को ही ध्वज पर दिखाया –

क्या इस प्रकार के पक्षपात से अनेक वीरो और महापुरषो का अपमान नहीं होता ?

एक तरफ तो पौराणिक लोग कहते नहीं थकते की हनुमान जी प्रभु श्री राम के चरणो से हटते तक नहीं – दूसरी तरफ कृष्ण को राम का ही दूसरा रूप भी बताते हैं –

फिर मेरी शंका है – ये हनुमान जी कृष्ण यानी अपने प्रभु राम के चरणो से हटकर – उनके सर पर क्यों और कैसे सवार हो गए ?

क्या ये तर्क सही होगा ?

आशा है इस पोस्ट का सही मतलब समझा जाएगा

धन्यवाद

नोट : अर्जुन के रथ में १०० घोड़े (हार्सपावर) उपयोग था – जो एक फाइटर प्लेन था – जिसमे अनेक शस्त्र और तकनीकी थी – जिसके बारे में विस्तार से पोस्ट लिखी जायेगी।

क्या हनुमान जी उड़कर समुद्र लांघ लंका पहुंचे थे ?

सुन्दर काण्ड के पहले सर्ग में श्लोक संख्या १-९ – बाल्मीकि रामायण में हनुमान जी के उड़ने जैसा कोई वर्णन कहीं प्राप्त नहीं होता है –

आखिर सच क्या है – आइये एक नजर बाल्मीकि रामायण के सुन्दर काण्ड के पहले सर्ग में श्लोक संख्या १-९ तक देखे और विचार करते हैं :

जो हनुमान जी के उड़कर समुद्र लांघ कर लंका जाने की बात है वो भी एक मिथक ही है – यदि आप बाल्मीकि रामायण को पढ़े – तो सुन्दर काण्ड के पहले सर्ग में श्लोक संख्या १-९ – कृपया ध्यान दीजिये – इस रेफ को नोट कीजिये और जाकर चेक कीजिये – वहां वाल्मीकि जी लिखते हैं –

दुष्करं निष्प्रतिद्वद्वं चिकीर्षन्कर्म वानरः।
समुदग्रशिरोग्रीवो गवां पतिरिवाबभौ ।। १ ।।

पॢवग पॢवने कृतनिश्चयः।
ववृघे रामवृद्धयर्थे समुद्र इव पर्वसु ।। २ ।।

विकर्षन्नूर्मिजालानी बृहन्ति ळवणाम्भसि।
पुप्लुवे कपिशार्दूलो विकिरन्निव रोदसी ।। ३ ।।

मेरुमंदरसंकाशानुदगतांसुमहार्णवे।
अत्यक्राम्न्महावेगस्त रंगंगान्यन्निव ।। ४ ।।

तिमिनक्रझषाः कूर्मा दृश्यन्ते विवृतास्तदा।
वस्त्रापकर्षणेनेव शरीराणि शरीरिणाम ।। ५ ।।

येनासौ याति बलवान्वेगेन कपिकुञ्जरः।
तेन मार्गेण सहसा द्रोणिकृत इवार्णवः ।। ६ ।।

प्राप्तभूयिष्ठपारस्तु सर्वतः परिलोकयन्।
योजनानां शतस्यान्ते वनराजी ददर्श सः ।। ७ ।।

सागरं सागगनूपानसागरानूपजान्द्रुमान।
सागरस्य च पत्नीनां मुखान्यापि विलोकयत ।। ८ ।।

स चारुनानाविघरूपधारी परं समासाद्य समुद्रतीरम।
निपत्य तीरे च महोदधेस्तदा ददर्श लंकाममरावतीमिव ।। ९ ।।

(सुन्दर काण्ड सर्ग १ श्लोक संख्या १-९)

अर्थ :

बड़ा, कठिन, तुलना से रहित कर्म करना चाहता हुआ, ऊँचे सिर और ग्रीवावाला वानर सांड की तरह भासने लगा ।। १ ।।

डोंगी से तैरने में निश्चय वाला, डोंगी से तैरने वालो में श्रेष्ठो से देखा हुआ वह पर्वो में समुद्र के तरह राम के अर्थवृद्धि को प्राप्त हुआ ।। २ ।।

उस खारी जल में बड़े बड़े २ लहरो के समूहों को चीरता हुआ वह वानर श्रेष्ठ मानो द्यौ पृथ्वी पर (जल के फूल) बिखेरता हुआ खेवा करने लगा ।। ३ ।।

मेरु मंदर के बराबर महासागर में उठती हुई लहरो को बड़े वेगवाला, मानो गिनता हुआ गया ।। ४ ।।

(बल से जल उछलने पर) मछलिये, मगर, मच्छ, इस तरह नंगे हुए दीखते हैं जैसे वस्त्र के खींच लेने से शरीर धारियों के शरीर ।। ५ ।।

बलवान वानर श्रेष्ठ वेग से जिस मार्ग से जा रहा था, उस मार्ग से समुद्र सहसा द्रोण की तरह होता जाता था (पानी में उसकी डोंगी के आकार बनते जाते थे) ।। ६ ।।

बहुत बड़ा भाग पार करके सब और देखता हुआ वह सौ योजन की समाप्ति पर वन समूह को देखता भया ।। ७ ।।

सागर, सागर के किनारे के देश, और उस देश में होने वाले वृक्ष और सागर की पत्नियें (नदियों) के मुहाने देखता भया ।। ८ ।।

सुन्दर नानाविधरूप धारी वानर समुद्र के परले तीर पर पहुंचकर महासागर के किनारे पर उतरकर अमरावती के तुल्य लंका को देखता भया ।। ९ ।।

इस सारे सर्ग से अधिकतर हनुमान जी का समुद्र को फांद कर पार होना पाया जाता है , जोकि असंभव है। और ये कोई मिथक अथवा लोकोक्ति बनायीं गयी लगती है – क्योंकि यहाँ सर्ग में ही स्वयं वाल्मीकि जी ने दूसरे श्लोक में हनुमान जी को डोंगी से तैर कर समुद्र पार करने का स्पष्ट इशारा किया है –

पॢव = छोटी नौका – डोंगी अथवा आज के समय पर तेज वेग से पानी में चलने वाली “वेवरनर” जैसा कोई तीव्र वाहन –

श्लोक ३ में लिखा है – “उस खारी जल में बड़े बड़े २ लहरो के समूहों को चीरता हुआ वह वानर श्रेष्ठ” – आप विचार करे – बिना जल में कोई नौका चलाये ये काम असंभव है।

श्लोक ४ में लिखा है – “मेरु मंदर के बराबर महासागर में उठती हुई लहरो को बड़े वेगवाला, मानो गिनता हुआ गया” – स्वयं विचार करे – लहरे उठती रहती हैं समुद्र में – पर जैसे कोई “सर्फिंग” करने गया मनुष्य उन उठती लहरो के ऊपर संतुलन बनाकर वेग से चलता है – ठीक वैसे ही इस श्लोक में बताया गया – उड़ना नहीं बताया।

श्लोक ४ में लिखा है – “बलवान वानर श्रेष्ठ वेग से जिस मार्ग से जा रहा था, उस मार्ग से समुद्र सहसा द्रोण की तरह होता जाता था (पानी में उसकी डोंगी के आकार बनते जाते थे) – इस श्लोक से तो सारी शंकाओ का पूर्ण समाधान ही हो गया – जब भी पानी पर डोंगी नाव कुछ भी चलेगी वो पानी को चीरकर आगे बढ़ेगी जिससे उस मार्ग में पानी का रास्ता कटता हुआ दिखेगा जो नाव अथवा डोंगी के आकार का ही होगा – अधिक विश्लेषण हेतु एक बार इस पोस्ट के साथ संलग्न चित्र को देखे –

श्लोक 9 में लिखा है – “सुन्दर नानाविधरूप धारी वानर समुद्र के परले तीर पर पहुंचकर महासागर के किनारे पर उतरकर अमरावती के तुल्य लंका को देखता भया” – अब देखिये यहाँ स्पष्ट रूप से वर्णित है हनुमान जी समुद्र के पार लंका के किसी तीर (नदी अथवा समुद्र का किनारा) पर पहुंच कर लंका को देखने लगे।

यहाँ विचारने योग्य बात यह है की यदि हनुमान जी उड़कर लंका गए होते तो किसी समुद्र किनारे उतरने की कोई आवश्यकता नहीं थी – वो सीधे ही लंका के महल पर उतरते – या फिर जहाँ माता सीता को रखा गया था उस अशोक वाटिका में उतरते –
अधिक जानकारी के लिए सुन्दर काण्ड के दुसरे सर्ग की श्लोक संख्या १-१७ भी पढ़ लेवे –

यहाँ संक्षेप में बताता हु – वहां लिखा है –

हनुमान जी नीले हरे घास के, उत्तम गंध वाले, मधु वाले और उत्तम वृक्षों वाले वनो के मध्य में से गया। (सुन्दर काण्ड सर्ग २ श्लोक ३)

अब बताओ भाई – यहाँ स्पष्ट लिखा है वनो के मध्य में से गए – फिर उड़ कर वनो के ऊपर से क्यों नहीं गए ???????

इसके आगे के श्लोको में भी हनुमान जी के उड़ने का कोई वर्णन नहीं बल्कि स्पष्ट लिखा है – वो चतुराई से कैसे लंका में दाखिल हुए – उसके लिए उन्हें शाम तक इन्तेजार करना पड़ा – यदि उड़ सकते होते तो शाम तक इन्तेजार करते क्या ????

कृपया सत्य को जाने और माने –

नमस्ते –

क्या हनुमान जी सचमुच पर्वत उठा लाये थे ?

एक बार पत्नी ने पति से कहा शाम को आते वक़्त सब्जी लेते आना – शाम को पति को याद आया सब्जी ले जानी है – तो पति महोदय सब्जी लेने सब्जी मंडी चले गए – वहां जाकर अनेक प्रकार की सब्जी देखि – तो संदेह से भर गए – क्या क्या लेकर चलू – देर बहुत हो रही थी – तो जो जो सब्जी ठीक लगी – सब भर के घर आ गए –

घर आते ही

पत्नी ने कहा – अरे वाह स्वामी ! आप तो पूरी सब्जी मंडी ही उठा लाये –

पति ने कहा – देखो भाग्यवान ! जितना समझ आया – जो ठीक लगा वो ले आया हु – अब आपका काम देखो और मुझे तो बस चाय पिला दो – सर्दी आज ज्यादा है –

ये कोई नया किस्सा नहीं है – आमतौर पर हम सभी के साथ होता है – जब हमें कोई एक दो वास्तु लानी हो तो हम कभी कभी ज्यादा सामान ले आते हैं जिससे लगभग अपने सभी जानकार देखते ही एक संज्ञा दे देते हैं –

“आप तो आज पूरी सब्जी मंडी उठा लाये।”

“आज तो पूरी दूकान ही उठा कर ले आये”

“आज तो दूकान ही खोल लोगे क्या ?”

ये एक मानव निर्मित संज्ञा है – क्योंकि जब कोई एक वास्तु की अपेक्षा बहुत सी वस्तुए उठा लाते हैं – तो यही संज्ञा लगभग दी जाती है – आप सोचोगे इस विषय पर पोस्ट करने की क्या जरुरत थी – ये तो हम सब जानते ही हैं – इसमें कौतुहल का विषय क्या था – विषय इस पोस्ट का बड़ा ही सारगर्भित है –

देखिये – रामायण में एक प्रसंग आता है की हनुमान जी को सुषेण वैद्य ने कहा की संजीवनी बूटी ले आओ – हनुमान जी को बूटी तलाशने में संशय हुआ – तो वो जो सम्बंधित बूटी अथवा जो भी संजीवनी जैसे बूटी लगी उसे ले आये – तो ये प्रसंग को ऊपर दिए उदहारण से मिला कर देखिये – और अब बताये –

क्या अब भी आप यही कहोगे की हनुमान जी पर्वत उठा लाये ?

जी नहीं – क्योंकि जब हनुमान जी एक बूटी की जगह बहुत सी बूटियों का अम्बार ले आये – तो वहां मौजूद सभी के मुख से अनायास ही निकल पड़ा –

“हनुमान जी आप तो पूरा पर्वत ही उठा लाये”

तो ये था विषय और इसके बारे में भ्रान्ति बना दी गयी की हनुमान जी पर्वत उठा लाये –

कृपया एक बार अवश्य सोचिये –

नमस्ते –

“द्रौपदी का चीरहरण” – भारतीय संस्कृति को बदनाम करने का षड्यंत्र – पार्ट 2

जैसे की पिछली पोस्ट से स्पष्ट हुआ की “द्रौपदी का चीरहरण” मात्र कुछ धूर्तो की मिलावट का परिणाम है – क्योंकि महाभारत में द्रौपदी का चीरहरण जैसी कुत्सित घटना का होना एक असंभव कृत्य था – भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य आदि गुरुओ और विदुर जैसे महानितिनिपुण के होते – ये कार्य हो ही नहीं सकता था –
फिर भी यदि कुछ हिन्दू भाई इस पक्ष में नहीं हैं – यदि वो अभी भी कहते हैं की द्रौपदी का चीरहरण हुआ था – तो इस पोस्ट को भी ध्यानपूर्वक पढ़ – सत्य से अवगत होकर अपने दुराग्रह और पूर्वाग्रह को छोड़ – संस्कृति और सभ्यता को बदनाम करना छोड़ देवे –

आइये गतलेख से आगे थोड़ा और विस्तार से समझते हैं –

जब पांडव जुए में राज्य के साथ साथ अपने आप को और द्रोपदी को हार गए तब पांड्वो की स्थिति दासों की तरह और द्रोपदी की स्थिति दासी की तरह रह गयी थी , अतः अब उन्हें राजाओ अथवा राजकुमारों जैसे वस्त्र धारण करने का कोई अधिकार नहीं रह गया था । यही दशा द्रोपदी की भी थी , पर जब द्रोपदी सभा में लाई गयी , उस समय केवल पांडव उच्च कोटि और सज्जित वस्त्र धारण किये थे , और द्रौपदी ने केवल एक वस्त्र धारण किया हुआ था क्योंकि द्रौपदी उस समय रजस्वला थी। अतः उनसे उनके वस्त्र उतर के दासो और दासी के परिधान पहन लेने के लिए कहा गया।

द्रौपदी ने विरोध किया – क्यों की वो अपने आप को हारी हुयी नहीं मानती थी – द्रौपदी ने कहा – जब युधिष्ठर स्वयं अपने को हार गए तब किस प्रकार वे मुझे दांव पर लगाने का अधिकार रखते थे ?

द्रौपदी के प्रश्नो के उत्तर हेतु – विदुर ने सभासदो से पूछा – साथ में – धृतराष्ट्र का एक पुत्र “विकर्ण” स्वयं द्रौपदी के समर्थन में उत्तर आया – उसने भी यही कहा – जब युधिष्ठर स्वयं अपने को दांव पर लगा हार गए – तब किस प्रकार द्रौपदी को दांव लगाने का अधिकार युधिष्ठर के पास रहा ?

तब कोई जवाब ना पाकर – द्रौपदी हताश और निराश हो गयी – दुःशासन द्रौपदी को “दासी” कहकर सम्बोधित करने लगा – इतने में कर्ण ने अपने अनुचित वचनो से द्रौपदी को अनेक बुरे वचन कहकर दुःशासन को द्रौपदी और पांडवो के वस्त्र उतार लेने को कहा।

दु:शाशन ! यह विकर्ण अत्यंत मूढ़ है तथापि विद्वानों सी बाते बनाता है , तुम पांड्वो और द्रोपदी के भी वस्त्र उतर लो ”
द्यूतपर्व अध्याय ६८ श्लोक ३८

ध्यान देने की बात है की कर्ण केवल द्रोपदी के ही वस्त्र उतरने के लिए नहीं कहता वरन पांड्वो के भी वस्त्र उतरने के लिए कहता है । इस बात से स्पष्ट है की “द्रौपदी का चीरहरण” मात्र कुछ लोगो की “धूर्त मानसिकता” का परिणाम है।

असल में हुआ ये था की – पांडवो ने अपने वस्त्र उतार कर रख दिए और दासो के वस्त्र धारण किये होंगे –

वैशम्पायन जी कहते हैं – “जनमेजय ! कर्ण की बात सुन के समस्त पांड्वो ने अपने अपने राजकीय वस्त्र उतार कर सभा में बैठ गए ( सभा पर्व अध्याय 68, श्लोक 39)

क्योंकि द्रौपदी अपने को हारी नहीं मानती थी – इसलिए दुःशासन को जबरदस्ती द्रौपदी के कपडे बदलवाने हेतु विवश किया गया था – जिसे “धूर्तमंडली” व्याख्याकारों ने – चीरहरण का नाम दिया।

यदि एक बार ऐसा भी मान ले – की दुःशासन ने चीरहरण करने को द्रौपदी की साडी खींची और कृष्ण ने साडी को बढ़ा दिया – तो भाई जरा इस श्लोक पर भी एक सरसरी नजर डाल लेवे –

वैशम्पायनजी कहते हैं – जनमेजय ! उस समय द्रौपदी के केश बिखर गए थे। दुःशासन के झकझोरने से उसका आधा वस्त्र भी खिसककर गिर गया था। वह लाज से गाड़ी जाती थी और भीतर ही भीतर दग्ध हो रही थी। उसी दशा में वह धीरे से इस प्रकार बोली

द्रौपदी ने कहा – अरे दुष्ट ! ये सभा में शास्त्रो के विद्वान, कर्मठ और इंद्र के सामान तेजस्वी मेरे पिता के सामान सभी गुरुजन बैठे हुए हैं। मैं उनके सामने इस रूप में कड़ी होना नहीं चाहती।

क्रूरकर्मा दुराचारी दुःशासन ! तू इस प्रकार मुझे ना खींच, ना खींच, मुझे वस्त्रहीन मत कर। इंद्र आदि देवता भी तेरी सहायता के लिए आ जाएँ, तो भी मेरे पति राजकुमार पांडव तेरे इस अत्याचार को सहन नहीं कर सकेंगे।
द्यूतपर्व – अध्याय ६७ : ३५-३७

यदि कृष्ण ने साडी देकर नग्न होने से बचाया – तो भाई – इन श्लोक के अनुसार तो द्रौपदी अर्धनग्न हो चुकी थी – तभी क्यों नहीं बचा लिया ? या फिर जब दुःशासन बाल पकड़कर जबरदस्ती द्रौपदी को खींच रहा था – और द्रौपदी कृष्ण को आवाज़ लगा बुला रही थी – तब ही क्यों नहीं कृष्ण ने बचा लिया ?

क्या कृष्ण जी इस बात का इन्तेजार कर रहे थे की – कब दुःशासन साडी खींचे और मैं चमत्कार दिखाऊ ?

क्या कृष्ण द्रौपदी की पहली आवाज़ सुनकर ही नहीं बचा सकते थे ? यदि पहली आवाज़ पर ही बचा लिया होता – तो ये धूर्तो ने जो मिलावट करने की कोशिश की – वो होती ही नहीं –

आगे देखिये –

वनपर्व मेँ जब श्रीकृष्ण जंगल मेँ पांडवोँ से मिलने गए थे। वहाँ श्रीकृष्ण ने बताया की वेँ द्युतसभा मेँ जो कुछ भी हुआ था उससे अनभिज्ञ है। उन्होने ये भी कहा की अगर वेँ वहाँ मौजुद होते तो युधिष्ठिर को ऐसा कभी नही करने देतेँ। युधिष्ठिर ने पुछा की उस वक्त वेँ कहाँ थे तब श्रीकृष्ण ने बताया की उस वक्त शाल्व ने अपने प्रचंड ‘सौभ’ विमान से द्वारका पर उपर से बमबारी शुरु कर द्वारका जला रहा था, इसलिए श्रीकृष्ण उसे मारने के लिए गए थे, जब वो विमान का संहार करके वापिस आए तब उन्हे सात्यकी से खबर मिली की द्युतसभा मेँ युधिष्ठिर जुए मेँ सारा राज्य हार गया और इसलिए वेँ दौडते पांडवोँ से मिलने जंगल मेँ आए।

आगे किसी जगह दु:खी द्रौपदी भी युधिष्ठिर, अर्जुन और अपने भाई को कोसते हुए कहती है की उनमेँ से कोई भी उसकी विटंबना रोकने नहीँ आया इसलिए उनमेँ से कोई भी उसका अपना नहीँ है। वो उधर खडे श्रीकृष्ण को भी कहती है की तुम भी मेरी मदद के लिए नहीँ आए इसलिए कृष्ण तुम भी मेरेँ नहीँ। अगर कृष्णने सचमेँ वस्त्रावतार लिया था तब द्रौपदी क्या उन्हे ऐसे शब्द कहती?

ये सारी घटनाओ से ज्ञात होता है की द्रौपदी का चीरहरण हुआ नहीं था – मात्र कुछ धूर्तो ने कृष्ण के चमत्कार को दर्शाने के लिए ये सब मनगढ़ंत बात गढ़ी है –

एक आखरी पोस्ट और आएगी – जिसमे इस द्यूतपर्व में मिलावट की पूरी स्थति आपके सामने आ जाएगी

अपनी सभ्यता और संस्कृति पर स्वयं ही मिथ्या दोष न गढ़े।

कृपया सत्य को जानिये –

 

वेदो की और लौटिए