Category Archives: समाज सुधार

इस्लाम में आज़ादी ? एक कड़वा सच

कोई व्यक्ति अपने मत को त्यागकर

इस्लाम मत को अपना ले तो कोई सजा का प्रावधान नहीं।

लेकिन जैसे ही

इस्लाम मत को छोड़कर अन्य मत अपना ले

तो उसकी सजा मौत है।

क्या अब भी इस्लामी तालीम में कोई स्वतंत्रता बाकी रही ???

क्या मृत्यु के डर से भयभीत रहने को आज़ादी कहते हैं ???

क्या अल्लाह वास्तव में इतना निर्दयी है की केवल मत बदलने से ही जन्नत जहन्नम तय करता है – तो कैसे अल्लाह दयावान और न्यायकारी ठहरा ?

सच्चाई तो ये ही है की जब तक इस्लाम नहीं अपनाया जाता – वह व्यक्ति स्वतंत्र होता है – पर जैसे ही इस्लाम अपनाया वह आशिक़ – ए – रसूल बन जाता है –
अर्थात हज़रत मुहम्मद का गुलाम होना स्वीकार करता है –

अल्लाह ने सबको आज़ादी के अधिकार के साथ पैदा किया – यदि क़ुरआन की ये बात सही है तो कैसे मुस्लमान अपने को मुहम्मद साहब के गुलाम (आशिक़ – ए – रसूल) कहलवाते हैं ????

क्या इसी का नाम आज़ादी है ????

तो गुलामी का नाम क्या होगा ??

ऐसी स्तिथि में मानवीय स्वतंत्रता कहाँ है ???????

वैचारिक स्वतंत्रता कहाँ हैं ??????

धार्मिक स्वतंत्रता कहाँ है ?????

शारीरिक स्वतंत्रता कहाँ हैं ????

http://navbharattimes.indiatimes.com/…/article…/45219309.cms

ए मुसलमानो जरा सोच कर बताओ ……………………….

कहाँ है आज़ादी ????????????????

क़ुरआन में परिवर्तन

आज तरह सौ वर्ष से हमारे मुस्लमान भाई कहते चले आ रहे हैं की हमारे कुरआन शरीफ में किसी प्रकार का भी कोई परिवर्तन अर्थात फेर-बदल नहीं हुआ इसलिए ये (क़ुरआन) खुदाई किताब है। परन्तु हमें अपने कई वर्षो के अति गहन निरिक्षण करने के पश्चात इस बात का पूरा पूरा पता लग गया है की कुरआन में बहुत कुछ परिवर्तन अर्थात फेरबदल हो चूका है जिसका एक अंश हम क़ुरान शरीफ की अक्षर संख्या के सम्बन्ध में इस्लामी साहित्य के बड़े बड़े विख्यात विद्वानो के लेखानुसार आप सज्जनो की भेंट करते हैं, अवलोकन कीजिये।

किसके मत में कुरआन की अक्षर संख्या कितनी थी ?

क्रमांक …………………. मत का नाम ……………… अक्षर संख्या

1………. सुयूती इब्ने अब्बास के कुरआन में ……………. 323671

2………. सुयूती उम्रिब्नेखताब के कुरआन में …………. 1027000

3………. सिराजुल्कारी अब्दुल्ला इब्ने मसऊद …………. 322671

4………. सिरजुल्कारी मुजाहिद के कुरआन में …………. 321121

5………. उम्दतुल्ब्यान अब्दुल्ला इब्ने मसऊद ………… 322670

6………. सिराजुल्कारी प्रस्तुतकर्ता ……………………. 3202670

7………. उम्दतुल्ब्यान प्रस्तुतकर्ता …………………….. 351482

8………. कसीदतुलकिरात प्रस्तुतकर्ता ……………….. 3202670

9………. दुआय मुतबर्रकः प्रस्तुतकर्ता …………………. 445483

10………. रमूजूल कुरआन मुहम्मद हसनअली ………….. 40265

जवाब दो मुस्लमान मित्रो – ये क्या स्पष्ट मिलावट नहीं दिखती ????

अगर नहीं तो कैसे ?????????

साभार : क़ुरआन में परिवर्तन
लेखक – मौलाना गुलाम हैदर अली “उर्फ़” पंडित सत्यदेव “काशी”

इस्लाम में स्त्री और पुरुष का बराबरी का हक़ महज एक “अन्धविश्वास” है

इस्लाम में स्त्री और पुरुष का बराबरी का हक़ महज एक
“अन्धविश्वास” है – और इस अन्धविश्वास का जितनी जल्दी हो सके निर्मूलन होना ही चाहिए –

अब आप पूछोगे इसमें अन्धविश्वास क्या है ? इस्लाम तो नारी को बराबरी का दर्ज़ा हज़रत मुहम्मद के समय से देता चला आ रहा है –

तो भाई मेरा जवाब वही है की आँख मूँद कर बुद्धि से बिना समझे किसी बात को मान लेना ही तो अन्धविश्वास है – और यही अन्धविश्वास के चक्कर में बहुत से नादान फंस जाते हैं – खासकर युवतियां –

उन युवतियों में भी विशेषकर जो हिन्दू – बौद्ध – सिख – जैन – ईसाई – आदि सम्प्रदायों से सम्बन्ध रखती हैं – उन्हें तो विशेष कर इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ना चाहिए –

दारुल उलूम – ये वो नाम है जो इस्लामी कायदे कानूनों के बारे में लोगों (मुसलमानो) के संदेहों का निराकरण करने वाली संस्था है। और प्रत्येक मुस्लमान (मुस्लमान मतलब जो मुसल्लम ईमान है – यानि अपने ईमान का पक्का) वो अपने ईमान से जुडी इस संस्था के फतवो को कैसे नज़र अंदाज़ कर सकता है ? यानी एक पक्के और सच्चे मुस्लमान के लिए इन फतवो को लेकर कोई गलत फहमी नहीं – जो कह दिया वो पत्थर की लकीर – यही तो ईमान है। क्योंकि इस संस्था के फतवे अपने खुद के घर की जागीर नहीं होते – बल्कि इस्लामी कायदे क़ानून – खुदा की पुस्तक क़ुरान (ऐसा मुस्लिम बोलते हैं) तथा हदीसो (इस्लामी परिभाषा में, पैग़म्बर मुहम्मद के कथनों, कर्मों और कार्यों को कहते हैं)

अब चाहे कोई मुस्लिम किसी फतवे को माने या तो ना माने मगर अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिए तो फतवा बनवा ही सकता है – ऐसी आशंका होनी लाज़मी है – आईये एक नज़र डालते हैं –

“देवबंद ने अपने एक फतवे में कहा कि इस्लाम के मुताबिक सिर्फ पति को ही तलाक देने का अधिकार है और पत्नी अगर तलाक दे भी दे तो भी वह वैध नहीं है।”

जी हाँ – पढ़ा आपने – केवल एक पुरुष ही तलाक दे सकता है – यानि की पुरुष को ही तलाक देने का “अधिकार” है – स्त्री को कोई अधिकार नहीं – और अगर स्त्री दे भी दे तो भी “वैध” नहीं –

ये है इस्लाम का सच – तो कैसे स्त्री पुरुष – इस्लाम की नज़र में एक बराबर हुए ???????

आइये कुछ और फतवो के बारे में बताते हैं –

“एक व्यक्ति ने देवबंद से पूछा था, पत्नी ने मुझे 3 बार तलाक कहा, लेकिन हम अब भी साथ रह रहे हैं, क्या हमारी शादी जायज है? इस पर देवबंद ने कहा कि सिर्फ पति की ओर से दिया तलाक ही जायज है और पत्नी को तलाक देने का अधिकार नहीं है।”

“इसके अलावा देवबंद ने अपने एक फतवे में यह भी कहा कि पति अगर फोन पर भी अपनी पत्नी को तलाक दे दे तो वह भी उसी तरह मान्य है जैसे सामने दिया गया।”
“एक फतवे में कहा गया कि इस्लाम के हिसाब से महिलाओं के टाइट कपड़े पहनने की मनाही है और लड़कियों की ड्रेस ढीली और साधारण होनी चाहिए।”

“गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल पर भी देवबंद ने एक फतवा जारी कर सनसनी फैला दी। एक व्यक्ति ने देवबंद से पूछा कि उसकी पत्नी को थायराइड की समस्या है, जिसके चलते उसके गर्भवती होने से बच्चे पर असर पड़ सकता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए उसे डॉक्टर ने गर्भनिरोधक के इस्तेमाल की सलाह दी है और क्या वह इस्लाम के मुताबिक गर्भनिरोधक का इस्तेमाल कर सकता है?” –

अब देखिये और जानिये इस बारे में फतवा क्या कहता है –

“इसके जवाब में देवबंद ने कहा कि डॉक्टर की सलाह के बाद उसे इस बारे में हकीम से परामर्श लेना चाहिए और अगर वह भी उसे गर्भनिरोधक का उपयोग करने की सलाह देता है, तो वह ऐसा कर सकता है।”

आप समझ रहे हैं ????

चाहे पत्नी मरने की कगार पर हो – मगर एक सच्चे मुसलमान के लिए अपनी पत्नी के इलाज से पहले फतवे से ये जानना की क्या जायज़ (वैध) है और क्या नाजायज़ (अवैध) है – उसकी पत्नी की जान से ज्यादा जरुरी है – अभी भी शक है की सच्चा और पक्का मुस्लमान फतवो को नहीं मानेगा ???????? जबकि वो हर एक काम को जायज़ या नाजायज़ पूछने के लिए मुल्लो मौलवी के फतवो की बांट जोहता है (इन्तेजार करता है)

ये खुद में क्या एक जायज़ बात है ????

मतलब की डॉक्टर जो मॉडर्न विज्ञानं पढ़के – डिग्री लेके बैठा है – उसकी बात पर विश्वास नहीं है – मगर एक झोलाछाप और बिना एक्सपीरियंस का हकीम सलाह दे तो वो वैध है –

वाह भाई वाह – क्या विज्ञानं है – क्या ज्ञान है –

आगे भी देखिये –

“देवबंद ने महिलाओं को काजी या जज बनाने को भी लगभग हराम करार दे दिया। देवबंद ने इस बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में फतवा देते हुए कहा महिलाओं को जज बना सकते हैं, लेकिन यह लगभग हराम ही है और ऐसा न करें, तो ज्यादा बेहतर है।”

अब भी कोई गुंजाईश बाकी है क्या की इस्लाम में स्त्री पुरुष को सामान अधिकार प्राप्त हैं की नहीं ?????

बात सिर्फ काजी या जज की नहीं है – बात असल में है की यदि कोई स्त्री काजी बन गयी – तो फिर स्त्रियों के हक़ में और फायदे के लिए फतवे आने शुरू होंगे तब दिक्कत हो जाएगी – इसलिए काजी नहीं बन सकती कोई मुस्लिम महिला – इस बात का भी गणित समझिए की कोई महिला जज भी ना बने – तो भाई इसका मतलब तो यही हुआ की महिलाओ या लड़कियों को शिक्षित करना ही इस्लाम के खिलाफ है – या फिर हायर स्टडी करना ही मुस्लिम महिलाओ के लिए हराम है –
क्योंकि इतना पढ़ना फिर किसलिए जब वो उस मुक़ाम पर ही न पहुंच पाये ????????

आगे सुनिए –

“देवबंद ने कहा कि यह हदीस में भी दिया गया है, जिसका मतलब है कि जो देश एक महिला को अपना शासक बनाएगा, वह कभी सफल नहीं होगा। इसलिए महिलाओं को जज नहीं बनाया जाना चाहिए।”

ये देखिए नारी विरोधी एक और फतवा – पता नहीं किस समाज के ऐसे लोग हैं जिनमे बुद्धि २ पैसे की भी नहीं –

क्या इस्लामी हदीस स्त्रियों के विरुद्ध है या ये मुल्ला मौलवी अपनी तरफ से ऐसी बेसिर पैर के फतवे जारी कर रहे हैं –

ये सोचना – समझना आपका काम है –

किसी भी जाती की नारी हो – उसका सम्मान – उसको बराबरी का दर्ज़ा ये उसका हक़ है बल्कि नारी जो निर्मात्री है – ऐसा वेद कहते हैं –
“नारी को ऊँचा दर्ज़ा है”

अब आप एक बार स्वयं विचार करे की जिन किताबो की बिनाह पर ये मुल्ले मौलवी इन फतवो को तैयार करते हैं – वो मुहम्मद साहब से ज़माने से चली आ रही हैं – अब या तो उन किताबो में स्त्री से वैर है तभी ऐसे फतवे आ रहे या फिर मुल्ले मौलवी अपनी तरफ से ऐसे फतवे तैयार कर रहे –

अब सच क्या है ?????

आप युवतियां, महिलाये, नारियो – स्वयं विचारो – क्योंकि आप निर्मात्री हो – समाज की – वर्तमान की और आने वाले इसी मानव समाज के उज्जवल भविष्य की

नमस्ते –

क़ुरआन सीरियाई शब्द है, तो सम्पूर्ण क़ुरआन अरबी में कैसे ?

क़ुरआन शब्द – सीरिया भाषा के “केरयाना” शब्द से लिया गया था – जिसका अर्थ होता है – “शास्त्र पढ़” – इसे बदल कर क़ुरआन कर दिया गया – जिसका मतलब होता है – “वह पढ़ा” अथवा “उसे सुनाई” –

दूसरी बात की क़ुरआन में अल्लाह ने बोला है – क़ुरआन को विशुद्ध अरबी भाषा में दिया गया –

तो संशय ये है की सीरियन भाषा – इस्लाम आने के ५०० साल लगभग पहले से विद्यमान है – फिर ऐसा क्यों की सीरिया की भाषा को प्रयोग करके “क़ुरआन” शब्द को रचा गया ???

क्या अल्लाह मियां नया शब्द देने में माहिर न थे ???

नोट : क़ुरआन में अल्लाह मियां बहुत जगह ऐसा कहे हैं की क़ुरआन को विशुद्ध अरबी में नाज़िल किया –

तब ऐसा क्यों है की क़ुरआन में अरबी के अलावा 74 अन्य भाषाओ का वजूद मिलता है ????

क्या अल्लाह ने अनेक भाषाओ के शब्द चोरी किये ???

या अन्य भाषाओ के अरबी शब्द ईजाद नहीं किये जा सके ??

या फिर अल्लाह मियां थोड़ा झूठ बोल गए की क़ुरआन विशुद्ध अरबी में है ????

क्योंकि क़ुरआन में अरबी भाषा के आलावा अन्य बहुत सी भाषाए हैं जिनसे कोई मुस्लिम भी इंकार नहीं कर सकता – इससे ये सम्भावना प्रबल होती है की क़ुरआन शब्द विशुद्ध अरबी नहीं है –

भाई सच क्या है – कोई मुस्लिम मित्र जरा सत्य से अवगत करावे –

मनुष्य का सैद्धांतिक और नीतिगत भोजन शाकाहार है, मांसाहार नहीं।

भोजन की बात होती है – तो सैद्धांतिक तौर पर – भोजन वो होना चाहिए – जिससे न तो किसी का दोष लगा हो – ना पाप करके चोरी करके लाये हो – न ही हत्या अथवा हिंसा करके –

हिंसा कहते हैं – जो वैर भाव से किया गया कृत्य हो।

लेकिन यदि हम भोजन के तौर पर देखे की क्या खाया जाये – तो एक निर्धारण होता है – एक नियम है – उसकी और ध्यान देना आवश्यक है – क्योंकि ईश्वर ने मनुष्य बनाया तो उसकी भोजन सामग्री भी अवश्य बनाई होगी और वो ऐसी होनी चाहिए जो सुगम हो सर्वत्र हो आकर्षित करने वाली हो – जो हमारे खाने योग्य हो –

तो ऐसी क्या चीज़ ईश्वर ने बनाई ?

पशु ? पक्षी ? बकरा ? मुर्गा ? बैल ? गाय ? सूअर ?

जी नहीं – क्योंकि न तो इनको देखकर खाने का आकर्षण होता – और न ही इन पशुओ को आपसे वैसा भय रहता जैसे की चीता शेर आदि हिंसक जानवरो से – यदि ये पशु मनुष्य के लिए बने गए होते तो आपके दांत – नाख़ून – पंजे – पेट की आंत – भोजन नली – आदि सब हिंसक जानवरो – पशुओ जैसी होती – जबकि ऐसा नहीं है –

पर यदि आप ध्यान से देखो – तो आपको सुन्दर प्राकृतिक वन – पेड़ पौधे – फल फूल – सुन्दर सुन्दर खुशबू – फूलो का प्राकर्तिक सौंदर्य आपके मन को भाता है – हम अपने घर आँगन को ऐसी ही सजाते हैं –

यदि हमें प्राकर्तिक तौर पर माँसाहारी बनाया होता तो हमें पेड़ पौधों फूलो की अपेक्षा हड्डी मांस खून आदि से विशेष लगाव होता – और अपने घर आदि भी ऐसे ही हड्डी मांस खून आदि से सजाते – जबकि ऐसा नहीं होता।

विशेष बात है की – जब हम पेड़ से आम तोड़ते या धान गेहू की फसल काटते तो कोई भागता नहीं है – क्योंकि वो भागने के लिए बनाये ही नहीं – और इसमें हिंसा भी नहीं हुई क्योंकि वैर भाव नहीं था वो जीवो के भोजन हेतु ही बनाये गए हैं – ये सिद्ध होता है।

दुनिया में सभी शाकाहारी है – क्योंकि बिना शाक – गेहू ज्वर बाजरा सरसो – मूली टमाटर = कुछ नहीं बना सकते – न खा ही सकते – इसलिए दुनिया का कोई मनुष्य अपने को शाकाहारी नहीं हु ऐसा सैद्धांतिक तौर पर नहीं कह सकता –

पर कुछ लोग वो खाते हैं जो सभी मनुष्य नहीं खाते –
और जो सब मनुष्य खाते हैं उसे ही शाकाहार कहा जाता है

इसलिए शाकाहारी तो सभी हैं – मांसभक्षी भी शाकाहार ही खाता है – पर क्योंकि सभी मनुष्य मांस नहीं खाते इसलिए वो अपने को मांसाहारी भी कहता है – और बिना शाकाहार उसका मांस व्यर्थ है – इसलिए क्यों नहीं शाकाहार अपनाया जाये ?

शेष फिर कभी………

ईश्वर निराकार है – एक तर्कपूर्ण समाधान

शंका निवारण :

पूर्वपक्षी : क्या ईश्वर के हाथ पाँव आदि अवयव हैं ?

उत्तरपक्षी : ये शंका आपको क्यों हुई ?

पूर्वपक्षी : क्योंकि बिना हाथ पाँव आदि अवयव ईश्वर ने ये सृष्टि कैसे रची होगी ? कैसे पालन और प्रलय करेगा ?

उत्तरपक्षी : अच्छा चलिए में आपसे एक सवाल पूछता हु – क्या आप आत्मा रूह जीव को मानते हैं ?

पूर्वपक्षी : जी हाँ – में आत्मा को मानता हु – सभी मनुष्य पशु आदि के शरीर में है – पर ये मेरे सवाल का जवाब तो नहीं – मेरे पूछे सवाल से इस जवाब का क्या ताल्लुक ? कृपया सीधा जवाब दीजिये।

उत्तरपक्षी : भाई साहब कुछ जवाब खोजने पड़ते हैं – खैर चलिए ये बताये शरीर में हाथ पाँव आदि अवयव होते हैं क्योंकि जीव को इनसे ही सभी काम करने होते हैं – पर जो आत्मा होती है उसके अपने हाथ पाँव भी होते हैं क्या ?

पूर्वपक्षी : नहीं होते।

उत्तरपक्षी : क्यों नहीं होते ?

पूर्वपक्षी : #$*&)_*&(*#$*$()
(सर खुजाते हुए – कोई जवाब नहीं – चुप)

उत्तरपक्षी : जब एक आत्मा जो सर्वशक्तिमान ईश्वर के अधीन है – बिना हाथ पाँव अवयव आदि के – मेरे इस शरीर में विद्यमान रहकर – शरीर को चला सकती है – तो ईश्वर जो सर्वशक्तिमान है – वो ये सृष्टि का निर्धारण उत्पत्ति प्रलय सञ्चालन वो भी बिना हाथ पाँव आदि अवयव क्यों नहीं कर सकता ? इसमें आपको कैसे शंका ? कमाल के ज्ञानी हो आप ?

पूर्वपक्षी : #$*&)_*&(*#$*$()
(चुपचाप गुमसुम चले गए)

वेदो की कुछ पर अतिज्ञानवर्धक मौलिक शिक्षाये :

1. जीवन भर (शत समां पयंत) निष्काम कर्म करते रहना चाहिए। इस प्रकार का निष्काम कर्म पुरुष में लिप्त नहीं होता है। (यजु० ४०।२)

2. जो ग्राम, अरण्य, रात्रि-दिन में जानकार अथवा अजानकार बुरे कर्म करने की इच्छा है अथवा भविष्य में करने वाले हैं उनसे परमेश्वर हमें सदा दूर रखे।

3. हे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर वा विद्वन आप हमें दुश्चरित से दूर हटावे और सुचरित में प्रवृत करे (यजु० ४।२८)

4. हे पुरुष ! तू लालच मत कर, धन है ही किसका। (यजु० ४०।१)

5. एक समय में एक पति की एक ही पत्नी और एक पत्नी का एक ही पति होवे। (अथर्व० ७।३७।१)

6. हमारे दायें हाथ में पुरुषार्थ हो और बायें में विजय हो। (अथर्व० ७। ५८।८)

7. पिता पुत्र, भाई-बहिन आदि परस्पर किस प्रकार व्यवहार करे – इसका वर्णन अथर्व० ३।३० सूक्त में हैं।

8. द्यूत नहीं खेलना चाहिए। इसको निंद कर्म समझे। (ऋग्वेद १०।३४ सूक्त )

9. सात मर्यादाएं हैं जिनका सेवन करने वाला पापी माना जाता है। इन सातो पापो को नहीं करना चाहिए। स्तेय, तलपारोहण, ब्रह्महत्या, भ्रूणहत्या, सुरापान, दुष्कृत कर्म पुनः पुनः करना, तथा पाप करके झूठ बोलना – ये साथ मर्यादाये हैं। (ऋग्वेद १०।५।६)

10. पशुओ के मित्र बनो और उनका पालन करो। (अथर्व० १७।४ और यजु० १।१)

11. चावल खाओ यव खावो उड़द खाओ तिल खाओ – इन अन्नो में ही तुम्हारा भाग निहित है। (अथर्व० ६।१४०।२)

12. आयु यज्ञ से पूर्ण हो, मन यज्ञ से पूर्ण हो, आत्मा यज्ञ से पूर्ण हो और यज्ञ भी यज्ञ से पूर्ण हो। (यजु० २२।३३)

13. संसार के मनुष्यो में न कोई छोटा है और न कोई बड़ा है। सब एक परमात्मा की संतान हैं और पृथ्वी उनकी माता है। सबको प्रत्येक के कल्याण में लगे रहना चाहिए (ऋग्वेद ५।६०।५)

14. जो samast प्राणियों को अपनी आत्मा में देखता है उसे किसी प्रकार का मोह और शोक नहीं होता है। (यजु ४०।६)

15. परमेश्वर यहाँ वहां सर्वत्र और सबके बाहर भीतर भी है। (यजु० ४०।५)

श्री राम द्वारा वनवास के दौरान भरत को नीतिगत उपदेश

जब भरत राम को वन से अयोध्या लौटाने के लिए वन में गए तो श्री राम ने कुशल प्रश्न के बहाने भरत को राजनीति का उपदेश दिया, वह प्रत्येक राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री के लिए सदैव स्मरणीय व अनुकरणीय है।

प्रभु राम भरत से पूछते हैं –

1. क्या तुम सहस्रों मूर्खो के बदले एक विद्वान के कथन को अधिक महत्त्व देते हो ?

2. क्या तुम जो व्यक्ति जिस कार्य के योग्य है उससे वही काम लेते हो ?

3. तुम्हारे कर्मचारी बाहर भीतर पवित्र है न ? वे किसी से घूस तो नहीं लेते ?

4. यदि धनी और निर्धन में विवाद हो, और वह विवाद न्यायालय में विचाराधीन हो, तो तुम्हारे मंत्री धन के लोभ में आकर उसमे हस्तक्षेप तो नहीं करते ?

5. तुम्हारे मंत्री और राजदूत अपने ही देश के वासी अर्थात अपने देश में उत्पन्न हुए हैं न ?

6. क्या तुम अपने कर्मचारियों को उनके लिए नियत वेतन व भत्ता समय पर देते हो ? देने में विलम्ब तो नहीं करते ?

7. क्या राज्य की प्रजा कठोर दंड से उद्विग्न होकर तुम्हारे मंत्रियो का अपमान तो नहीं करती ?

8. तुम्हारा व्यय कभी आय से अधिक तो नहीं होता ?

9. कृषि और गौपालन से आजीविका चलाने वाले लोग तुम्हारे प्रीतिपात्र है न ? क्योंकि कृषि और व्यापार में संलग्न रहने पर ही राष्ट्र सुखी रह सकता है।

10. क्या तुम वेदो की आज्ञा के अनुसार काम करने में सफल रहते हो ?

11. मिथ्या अपराध के कारण दण्डित व्यक्तियों के जो आंसू गिरते हैं, वे अपने आनंद के लिए शासन करने वाले राजा के पुत्र और पशुओ का नाश कर डालते हैं।

मर्यादा पुरोषत्तम राम दिग्विजयी थे, किन्तु सम्राज्य्वादी नहीं। कालिदास ने रघुवंश में रघुकुल की परंपरा का विवेचन करते हुए लिखा है –

“आदानं हि विसर्गाय सतां वारिमुचामिव”

अर्थात जिस प्रकार मेघ पृथ्वी से जल लेकर वर्षा द्वारा उसी को लौटा देते हैं, उसी प्रकार सत्पुरुषों का लेना भी देने = लौटाने के लिए होता है।

इसी नीति का अनुसरण करते हुए बाली से किष्किन्धा का राज्य जीत कर, अपने राज्य में न मिला कर, उसके भाई सुग्रीव को दे दिया और लंका पर विजय प्राप्त करके उसका राज्य रावण के भाई विभीषण को सौंप दिया।

मित्रो इस देश में ऐसे ही महापुरष उत्पन्न होते आये हैं, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, वीर शिवाजी आदि अनेक उदहारण अभी हाल के ही हैं,

फिर ये अकबर गौरी – जैसे चोर, डाकू, लुटेरे, कैसे इस देश में महान हो गए ?

ईसा मुक्तिदाता नहीं – बाइबिल

मुख्य रूप से मान्य ग्रन्थ तो ईसाइयो का ही है – पर कुछ भारतीय मुख्य रूप से हिन्दू भाई खासकर – आदिवासी – पिछड़ा वर्ग एवं हमारे अति प्रिय दलित भाई तथा कुछ ऐसे परिवार भी जो पढ़े लिखे समझदार हैं धनाढ्य भी पर फिर भी अपने सत्य सनातन शुद्ध वैदिक धर्म को त्याग – अन्धविश्वास पाखंड और अनाचार में न जाने क्यों प्रवत्त होते जा रहे है ?

शायद इसकी एक बड़ी वजह है – ईसाई मिशनरियों द्वारा हिन्दुओ के मानस पटल पर अंकित देवी देवताओ की भाव भंगिमाओं रूपों आकृति से मिलते जुलते रूप आकार आदि से ईसा की लुभावनी मूर्ति फोटो आदि बना कर “हिन्दुओ” के देवी देवताओ में “सबसे बड़ा देवता” अथवा “ईश्वर पुत्र” घोषित करवाना और “इकलौता मुक्तिदाता” बताकर धर्मांतरण करवाना यदि इससे काम न बने तो हिन्दुओ खासकर गरीब, निर्बल, आदिवासी तथा दलित भाइयो को धन का लालच देकर उनको ईसाई बनाना।

आखिर हिन्दुओ के देवी देवताओ की शरण में इस मुक्तिदाता को क्यों जाना पड़ा ? ऐसी क्या मजबूरी ईसाइयो के लिए हो गयी की जिस ईसा को मुक्तिदाता बताते नहीं थकते उसे हिन्दू देवी देवताओ के जैसे रूप आकर आदि से हिन्दुओ को दिखाकर मुर्ख बनाकर ठगने का गोरखधंधा आखिर एक अन्धविश्वास नहीं तो क्या है ? यदि हिन्दुओ के देवी देवता मुक्ति नहीं दे सकते तो किस प्रकार ईसा उन्ही देव देवी के रूप आकार धारण कर मुक्ति करवाएगा ?

आइये एक नजर डाले आखिर ईसा अकेला मुक्तिदाता कैसे ? ये सवाल इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ईसा से भी बड़ा मुक्तिदाता था ईसा के ही समय पर फिर ऐसा क्या हुआ जो ईसा को ही मुक्तिदाता माना गया अथवा जबरदस्ती घोषित किया कहीं ऐसा तो नहीं एक समुदाय विशेष पर थोपा गया “तथाकथित मुक्तिदाता” ????

आइये एक नजर डाले ——-

हजरत यूहन्ना ने हजरत मसीह को शुद्ध किया अर्थात – बपतिस्मा देकर निष्पाप किया, दूसरे शब्दों में प्रायश्चित कराया। यथा –

1. तब यीशु यूहन्ना से बपतिस्मा लेने के लिए उसके पास गलील से यदन को गया। (मत्ती ३-१३)

2. और यीशु बपतिस्मा लेकर तुरंत पानी से ऊपर आया। (मत्ती ३-१६ )

3. बपतिस्मा जो इसका दृष्टांत है, और शरीर का मैल दूर करना नहीं, परन्तु परमेश्वर के साथ सीधे विवेक का अंगीकार है। (पितरस ३-२१)

4. यूहन्ना…………….. पापमोचन के लिए पश्चाताप के लिए बपतिस्मा का उपदेश करने लगा। (लूका ३-३)

केवल ईसा को अकेला मुक्तिदाता बताने वाले और हिन्दू भाइयो को अन्धविश्वास में गर्त करने वाले ईसाई मिशनरी के लोग कृपया बताये ईसा अकेले कैसे मुक्तिदाता हुआ ?

यदि ईसा अकेला मुक्तिदाता है तो फिर हजरत मसीह को हजरत यूहन्ना ने बपतिस्मा किसलिए दिया ?

1. ईश्वर के साथ सीधे विवेक के लिए।

2. पापमोचन के लिए।

3. प्रायश्चित के लिए।

अब पाठकगण स्वयं विचार करे की हजरत मसीह को तो खुद पाप से मुक्ति करवाने के लिए बपतिस्मा लेना पड़ा वो भी हजरत यूहन्ना से फिर ईसा अकेले “मुक्तिदाता” कैसे ?

खैर एक विचार इस पर भी कर लेवे की बपतिस्मा करवाने वाला (ईसा को पाप मुक्त बनाने वाला) हजरत यूहन्ना – बपतिस्मा लेना वाला हजरत मसीह जिसे मनुष्यो की शुद्धि करवाने वाला बताया जाता है – उसने स्वयं हजरत यूहन्ना को पाप क्षमा करवाने वाला (बपतिस्मा) देने वालो में सबसे बड़ा कहा है –

देखिये साक्षी स्वयं इंजील ही है – यथा

“में तुमसे सच कहता हूँ जो स्त्रियों से जन्मा है, उनमे से यूहन्ना बपतिस्मा देने हारे से बड़ा कोई नहीं।” (मत्ति ११-११)

यदि ईसाई भाई कहे की हजरत मसीह खुदा या खुदा के बेटे थे – तो भाई सवाल उठेगा की खुदा के बेटे के पाप स्वयं खुदा नहीं धो सका – उसके लिए हजरत यूहन्ना ही काम आये – इस लिहाज से तो हजरत यूहन्ना खुदा से बड़े सिद्ध हुए और ईसा से भी –

दूसरी बात की ईसा खुदा के अकेले बेटे नहीं थे – जैसे की ईसाई मिशनरी झूठ फैला रही हैं की ईसा ईश्वर के पुत्र थे – देखिये

हजरत मसीह भी स्त्री से जन्मे थे, अतः वह भी यूहन्ना से बड़े नहीं हो सकते जैसा की ईसा ने स्वयं अपने मुह से कहा फिर खुदा या खुदा के बेटे कैसे हो गए ?

यूहन्ना की माता बूढ़ा होने के कारण पुत्र उत्पन्न नहीं कर सकती थी, और ईसाइयो के कथनानुसार हजरत मरियम कुंवारी होने से संतान उत्पन्न नहीं कर सकती थी।

अतः दोनों ही पवित्र आत्मा से उत्पन्न होने के कारण खुदा बेटे होने चाहिए। यदि हजरत यूहन्ना ईश्वर के बेटे नहीं तो फिर ईसा मसीह कैसे ?

तो अब ईसाई भाई जरा बतावे की ईसा अकेला मुक्तिदाता कैसे और साथ ही अकेला खुदा का बेटा भी सिद्ध नहीं होता – इसलिए प्रार्थना है ये अन्धविश्वास, पाखंड और अनाचार छोड़ – सत्य सनातन वैदिक धर्म में लौटिए – अपने शुद्ध रूप को अपनाये –

बाइबिल की परस्पर विपरीत शिक्षा – विरोधाभासी वचनो का संग्रह – बाइबिल

ईसाई भाई बाइबिल को ईश्वर का पवित्र ग्रन्थ मानते हैं और हिन्दू भाइयो का धर्मांतरण इस बाइबिल के आधार पर करवाते हैं यह कहकर कि बाइबिल ईश्वर की वाणी है – और जो ईसा पर विश्वास ले आवे वो ही मुक्ति पायेगा क्योंकि ईश्वर की “पवित्र पुस्तक” बाइबिल ऐसा निर्देश करती है –

यदि ये बात सही है – तो बाइबिल जैसी पवित्र पुस्तक में कोई भी दोष न होना चाहिए और यदि दोष नहीं होगा तो परस्पर विरुद्ध बाते भी न होनी चाहिए क्योंकि ईश्वर सर्वज्ञ है – और ईश्वर अपनी एक बात से विपरीत बात कभी भी किसी पुस्तक में नहीं देता –

क्योंकि अपनी बात जो पहले बताई उससे विपरीत बात बोलना एक सामान्य मनुष्य का कार्य तो हो सकता है क्योंकि मनुष्य स्वार्थी है – कोई एक बात बोलकर बाद में विपरीत बात बोल सकता है – यदि ईश्वर भी ऐसा विपरीत बर्ताव करने लगे तो उसे ईश्वर नहीं एक सामान्य मनुष्य ही जानना चाहिए।

आइये एक नजर बाइबिल की विपरीत शिक्षाओ पर डालते हैं जिससे सिद्ध होगा की बाइबिल ईश्वर की पुस्तक नहीं महज एक मनुष्य की बनाई है जिसमे इतना विरोधाभास है की आप गिन नहीं सकते –

देखिये –

1. ईश्वर अपने कार्य से संतुष्ट हुआ (उत्पत्ति 1.31)

ईश्वर अपने कार्य से बहुत असंतुष्ट हुआ (उत्पत्ति 6.6)

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2. ईश्वर अपने द्वारा चुने मंदिर में बसता (रहता) है। (2 इतिहास 7.12, 16)

ईश्वर किसी मंदिर में नहीं बसता (रहता) है। (प्रेरितों के काम – 7.48)

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3. ईश्वर प्रकाश में बसता है। (1 तीमुथियुस 6.16)

ईश्वर अन्धकार में बसता है। (1 राजा 8.12) (भजन संहिता 18.11) (भजन संहिता 97.2)

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4. ईश्वर को देखा और आवाज़ सुनी।
(निर्गमन 33.11, 33.23) (निर्गमन 24.9,10, 11) (उत्पत्ति 3.9-10) (उत्पत्ति 32.30) (यशायाह 6.1)

ईश्वर को देखना और ईश्वर की आवाज़ सुनना असम्भव है
(यूहन्ना 1.18) (यूहन्ना 5.37) (निर्गमन 33.20) (1 तीमुथियुस 6.16)

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5. ईश्वर थक जाता है और विश्राम करता है।
(निर्गमन 31.17) (यिर्मयाह 15.6)

ईश्वर कभी नहीं थकता और न ही कभी विश्राम करता है।
(यशायाह 40.28)

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6. ईश्वर सर्वत्र उपस्थित है – सब कुछ सुनता और जानता है
(नीतिवचन 15.3) (भजन संहिता 139.7-10) (अय्यूब 34.21-22)

ईश्वर सर्वत्र उपस्थित नहीं है – न ही सब कुछ सुनता और न ही सब कुछ जानता है –
(उत्पत्ति 11.5) (उत्पत्ति 18.20-21) (उत्पत्ति 3.8) (प्रेरितों के काम – 1.24) (भजन संहिता 139.2-3)

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7. ईश्वर सब मनुष्यो के दिलो की बात और राज़ जानता है –
(प्रेरितों के काम – 1.24) (भजन संहिता 139.2-3)

ईश्वर मनुष्यो के दिलो की बात और राज़ जानने का प्रयास करता है –
(व्यवस्थाविवरण 13.3) (व्यवस्थाविवरण 8.2) (उत्पत्ति 22.12)

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8. ईश्वर सर्वशक्तिमान है –
(यिर्मयाह 32.27) (मत्ती 19.26)

ईश्वर सर्वशक्तिमान नहीं है –
(न्यायियों 1.19)

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9. ईश्वर और उसके वचन कभी नहीं पलटते (अपरिवर्तनीय) हैं –
(यहोशू 1.17) (मलाकी 3.6) (यहेजकेल 24-14) (गिनती 23.19)

ईश्वर और उसके वचन पलटते (परिवर्तनीय) हैं –
(उत्पत्ति 6.6) (योना 3.10) (1 शमूएल 2.30-31) (2 राजा 20.1,4,5,6) (निर्गमन 33.1,3,17,14)

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10. ईश्वर निष्पक्ष और न्यायकारी है
(भजन संहिता 92.15) (उत्पत्ति 18.25) (व्यवस्थाविवरण 32.4) (रोमियो 2.11) (यहेजकेल 18.25)

ईश्वर पक्षपाती और अन्यायकारी है –
(उत्पत्ति 9.25) (निर्गमन 20.5) (रोमियो 9.11,12,13) (मत्ती 13.12)

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ये तो मात्र कुछ झलकियाँ हैं – पूरी बाइबिल एक कथन से सर्वथा विपरीत कथनो एवं शिक्षाओ से परिपूर्ण है – यदि ये ईश्वर की पुस्तक होती तो इसमें विरोधाभासी बाते लेशमात्र भी न होती –

इससे सिद्ध है बाइबिल ईश्वरीय ज्ञान नहीं –

कृपया सत्य को जानिए – वेद की और लौटिए – क्योंकि एकमात्र वेद ही – पक्षपात, वैरभाव, विरोधाभासी शिक्षाओ से रहित ईश्वरीय ज्ञान है –

नमस्ते