इस्लाम में स्त्री और पुरुष का बराबरी का हक़ महज एक
“अन्धविश्वास” है – और इस अन्धविश्वास का जितनी जल्दी हो सके निर्मूलन होना ही चाहिए –
अब आप पूछोगे इसमें अन्धविश्वास क्या है ? इस्लाम तो नारी को बराबरी का दर्ज़ा हज़रत मुहम्मद के समय से देता चला आ रहा है –
तो भाई मेरा जवाब वही है की आँख मूँद कर बुद्धि से बिना समझे किसी बात को मान लेना ही तो अन्धविश्वास है – और यही अन्धविश्वास के चक्कर में बहुत से नादान फंस जाते हैं – खासकर युवतियां –
उन युवतियों में भी विशेषकर जो हिन्दू – बौद्ध – सिख – जैन – ईसाई – आदि सम्प्रदायों से सम्बन्ध रखती हैं – उन्हें तो विशेष कर इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ना चाहिए –
दारुल उलूम – ये वो नाम है जो इस्लामी कायदे कानूनों के बारे में लोगों (मुसलमानो) के संदेहों का निराकरण करने वाली संस्था है। और प्रत्येक मुस्लमान (मुस्लमान मतलब जो मुसल्लम ईमान है – यानि अपने ईमान का पक्का) वो अपने ईमान से जुडी इस संस्था के फतवो को कैसे नज़र अंदाज़ कर सकता है ? यानी एक पक्के और सच्चे मुस्लमान के लिए इन फतवो को लेकर कोई गलत फहमी नहीं – जो कह दिया वो पत्थर की लकीर – यही तो ईमान है। क्योंकि इस संस्था के फतवे अपने खुद के घर की जागीर नहीं होते – बल्कि इस्लामी कायदे क़ानून – खुदा की पुस्तक क़ुरान (ऐसा मुस्लिम बोलते हैं) तथा हदीसो (इस्लामी परिभाषा में, पैग़म्बर मुहम्मद के कथनों, कर्मों और कार्यों को कहते हैं)
अब चाहे कोई मुस्लिम किसी फतवे को माने या तो ना माने मगर अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिए तो फतवा बनवा ही सकता है – ऐसी आशंका होनी लाज़मी है – आईये एक नज़र डालते हैं –
“देवबंद ने अपने एक फतवे में कहा कि इस्लाम के मुताबिक सिर्फ पति को ही तलाक देने का अधिकार है और पत्नी अगर तलाक दे भी दे तो भी वह वैध नहीं है।”
जी हाँ – पढ़ा आपने – केवल एक पुरुष ही तलाक दे सकता है – यानि की पुरुष को ही तलाक देने का “अधिकार” है – स्त्री को कोई अधिकार नहीं – और अगर स्त्री दे भी दे तो भी “वैध” नहीं –
ये है इस्लाम का सच – तो कैसे स्त्री पुरुष – इस्लाम की नज़र में एक बराबर हुए ???????
आइये कुछ और फतवो के बारे में बताते हैं –
“एक व्यक्ति ने देवबंद से पूछा था, पत्नी ने मुझे 3 बार तलाक कहा, लेकिन हम अब भी साथ रह रहे हैं, क्या हमारी शादी जायज है? इस पर देवबंद ने कहा कि सिर्फ पति की ओर से दिया तलाक ही जायज है और पत्नी को तलाक देने का अधिकार नहीं है।”
“इसके अलावा देवबंद ने अपने एक फतवे में यह भी कहा कि पति अगर फोन पर भी अपनी पत्नी को तलाक दे दे तो वह भी उसी तरह मान्य है जैसे सामने दिया गया।”
“एक फतवे में कहा गया कि इस्लाम के हिसाब से महिलाओं के टाइट कपड़े पहनने की मनाही है और लड़कियों की ड्रेस ढीली और साधारण होनी चाहिए।”
“गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल पर भी देवबंद ने एक फतवा जारी कर सनसनी फैला दी। एक व्यक्ति ने देवबंद से पूछा कि उसकी पत्नी को थायराइड की समस्या है, जिसके चलते उसके गर्भवती होने से बच्चे पर असर पड़ सकता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए उसे डॉक्टर ने गर्भनिरोधक के इस्तेमाल की सलाह दी है और क्या वह इस्लाम के मुताबिक गर्भनिरोधक का इस्तेमाल कर सकता है?” –
अब देखिये और जानिये इस बारे में फतवा क्या कहता है –
“इसके जवाब में देवबंद ने कहा कि डॉक्टर की सलाह के बाद उसे इस बारे में हकीम से परामर्श लेना चाहिए और अगर वह भी उसे गर्भनिरोधक का उपयोग करने की सलाह देता है, तो वह ऐसा कर सकता है।”
आप समझ रहे हैं ????
चाहे पत्नी मरने की कगार पर हो – मगर एक सच्चे मुसलमान के लिए अपनी पत्नी के इलाज से पहले फतवे से ये जानना की क्या जायज़ (वैध) है और क्या नाजायज़ (अवैध) है – उसकी पत्नी की जान से ज्यादा जरुरी है – अभी भी शक है की सच्चा और पक्का मुस्लमान फतवो को नहीं मानेगा ???????? जबकि वो हर एक काम को जायज़ या नाजायज़ पूछने के लिए मुल्लो मौलवी के फतवो की बांट जोहता है (इन्तेजार करता है)
ये खुद में क्या एक जायज़ बात है ????
मतलब की डॉक्टर जो मॉडर्न विज्ञानं पढ़के – डिग्री लेके बैठा है – उसकी बात पर विश्वास नहीं है – मगर एक झोलाछाप और बिना एक्सपीरियंस का हकीम सलाह दे तो वो वैध है –
वाह भाई वाह – क्या विज्ञानं है – क्या ज्ञान है –
आगे भी देखिये –
“देवबंद ने महिलाओं को काजी या जज बनाने को भी लगभग हराम करार दे दिया। देवबंद ने इस बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में फतवा देते हुए कहा महिलाओं को जज बना सकते हैं, लेकिन यह लगभग हराम ही है और ऐसा न करें, तो ज्यादा बेहतर है।”
अब भी कोई गुंजाईश बाकी है क्या की इस्लाम में स्त्री पुरुष को सामान अधिकार प्राप्त हैं की नहीं ?????
बात सिर्फ काजी या जज की नहीं है – बात असल में है की यदि कोई स्त्री काजी बन गयी – तो फिर स्त्रियों के हक़ में और फायदे के लिए फतवे आने शुरू होंगे तब दिक्कत हो जाएगी – इसलिए काजी नहीं बन सकती कोई मुस्लिम महिला – इस बात का भी गणित समझिए की कोई महिला जज भी ना बने – तो भाई इसका मतलब तो यही हुआ की महिलाओ या लड़कियों को शिक्षित करना ही इस्लाम के खिलाफ है – या फिर हायर स्टडी करना ही मुस्लिम महिलाओ के लिए हराम है –
क्योंकि इतना पढ़ना फिर किसलिए जब वो उस मुक़ाम पर ही न पहुंच पाये ????????
आगे सुनिए –
“देवबंद ने कहा कि यह हदीस में भी दिया गया है, जिसका मतलब है कि जो देश एक महिला को अपना शासक बनाएगा, वह कभी सफल नहीं होगा। इसलिए महिलाओं को जज नहीं बनाया जाना चाहिए।”
ये देखिए नारी विरोधी एक और फतवा – पता नहीं किस समाज के ऐसे लोग हैं जिनमे बुद्धि २ पैसे की भी नहीं –
क्या इस्लामी हदीस स्त्रियों के विरुद्ध है या ये मुल्ला मौलवी अपनी तरफ से ऐसी बेसिर पैर के फतवे जारी कर रहे हैं –
ये सोचना – समझना आपका काम है –
किसी भी जाती की नारी हो – उसका सम्मान – उसको बराबरी का दर्ज़ा ये उसका हक़ है बल्कि नारी जो निर्मात्री है – ऐसा वेद कहते हैं –
“नारी को ऊँचा दर्ज़ा है”
अब आप एक बार स्वयं विचार करे की जिन किताबो की बिनाह पर ये मुल्ले मौलवी इन फतवो को तैयार करते हैं – वो मुहम्मद साहब से ज़माने से चली आ रही हैं – अब या तो उन किताबो में स्त्री से वैर है तभी ऐसे फतवे आ रहे या फिर मुल्ले मौलवी अपनी तरफ से ऐसे फतवे तैयार कर रहे –
अब सच क्या है ?????
आप युवतियां, महिलाये, नारियो – स्वयं विचारो – क्योंकि आप निर्मात्री हो – समाज की – वर्तमान की और आने वाले इसी मानव समाज के उज्जवल भविष्य की
नमस्ते –