Category Archives: आचार्य श्रीराम आर्य जी

कुरान समीक्षा : कयामत के दिन फैसला किताबों से होगा

कयामत के दिन फैसला किताबों से होगा

बतावें कि ये किताबें कानून की होंगी, खुदा के याद्दाश्त की डायरियां होंगी या लोगों के कर्मों के रजिस्टर होंगे? यदि ये किताबें किसी तरह गुम हो जावें या शैतान मियाँ चुरा ले जावें तो खुदा कयामत के दिन फैसला कैसे करेगा? क्या खुदा भी फैसले के लिये किताबों का मोहताज है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व अश्-र-कातिल् अरजु बिनूरि………।।

(कुरान मजीद पारा २३ सूरा जुमर ७ आयत ६९)

और जमीन अपने परवर्दिगार से चमक उठेगी और किताबें रख दी जायेंगी और उनमें पैगम्बर गवाह हाजिर किए जायेंगे और उनमें इन्साफ के साथ फैसला कर दिया जायेगा और उन पर जुल्म न होगा।

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कयामत के दिन खुदा जिन किताबों को देखकर फैसला करेगा वे दीवानी की होंगी या जाब्ता फौजदारी की होंगी? वह किताबें अगर दुनियाँ में भी आ जावें तो सभी लोग खुदा के कानूनों को पढ़कर जान लेवें कि खुदा जो दफा लगावेगा वह ठीक होगी या गलत और हमारे वकील भी तैयारी कर लेवेंगे।

कुरान समीक्षा : सूरज चाँद को नहीं पकड़ सकता है

सूरज चाँद को नहीं पकड़ सकता है

साबित करें कि सूरज चांद एक-दूसरें को पकड़ने के लिए दौड़ लगा रहे हैं?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

लश्शम्सु यम्बगी लगा अन् तुद्रिकल्………..।।

(कुरान मजीद पारा २२ सूरा यासीन रूकू ३ आयत ४०)

न तो सूरज से ही बन पड़ता है चाँद को जा पकड़े और न रात ही दिन से आगे आ सकती है और हर कोई एक-एक घेरे में फिरते हैं।

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सूरज जमीन से नौ करोड़ मील पर है है जब कि चाँद दो लाख छत्तीस हजार मील के फांसले पर है है सूरज अपनी ही कीली पर घूमता है जबकि चाँद जमीन के चारों ओर घूमता हुआ स्वंय भी घुमता है। तो सूरज चांद को नहीं पकड़ सकता यह कहना बड़ी बेतुकी सी बात है कुरान को समझदारी की बात कहनी चाहिये थी।

यदि सूरज और चाँद दोनों एक ही दूरी पर होते और दोनों घूमतें भी होते तब तो यह बात कहना बन भी सकता था। शायद अरबी खुदा को इस मामले की जानकारी नहीं थी।

कुरान समीक्षा : खुदा ने हर बात लिख रखी है।

खुदा ने हर बात लिख रखी है।

खुदा खुद लिखता है या कोई उसने कलर्क या पेशकार इस काम के लिए नियत कर रखा है, हर बात लिखते रहने का उद्देश्य क्या है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

इन्ना नह्नु नुह्यिल्-मौता व नक्तुबु………….।।

(कुरान मजीद पारा २२ सूरा यासीन रूकू १ आयत १२)

और हमने हर चीज खुली असल किताब यानी लौहे महफूज में लिख रखी है।

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डायरी में जैसे वकील व मुनीम जी हर बात को नोट करके रखते हैं, वैसे ही याद्दाश्त के लिए अरबी खुदा भी अपनी खुली किताब नाम की डायरी में लिख लेता था। वह असल किताब ही सीधी खुदा ने क्यों नहीं भेजी? यह क्या गारन्टी है कि मौजूदा कुरान ही असल किताब की वास्तविक नकल है?

कुरान समीक्षा : फरिश्तों के पंख भी हैं

फरिश्तों के पंख भी हैं

फरिश्तों की शक्ल कबूतर, ऊंट या कुत्ते जैसी है या आदमी जैसी है? स्पष्ट करें कि ये विलक्षण जीव कहां रहते है। तथा उनके होने में सबूत क्या है। उन्हें काल्पनिक क्यों न माना जावे?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

अल-हम्दु लिल्लाहि फाति…………।।

(कुरान मजीद पारा २२ सूरा फातिर रूकू १ आयत १)

उसी ने फरिश्तों को दूत बनाया जिनके दो-दो, तीन-तीन और चार-चार पर अर्थात् पंख हैं।

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पर यह नहीं बताया गया कि उनकी शक्ल गधे-सुअर बकरी या कौए की जैसी है या सर्प जैसी है?

अगर एक फरिश्ता कभी पकड़ में आ जावे तो किसी अजायब घर में देखने को दुनियाँ को मिल सकेगा। कुरान की फरिश्तों वाली कल्पना भी बड़ी ही मनोरंजक है।

कुरान समीक्षा : चिड़ियों ने फौज को मार डाला

चिड़ियों ने फौज को मार डाला

यह आयतें हास्यास्पद क्यों न मानी जावें? क्या उस वक्त के आदमी चीटी, मच्छर और मक्खी जैसे होते थे जो ४-६ रत्ती की कंकड़ियों से ही मर जाते थे?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

अ-लम् त-र कै-फ फ-अ-ल रब्बु……….।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा फील रूकू १ आयत १)

(ऐ पैगम्बर) क्या तूने नहीं देखा कि तेरे परवर्दिगार ने हाथी वालों के साथ कैसा बर्ताव किया?

अ-लम् यज्-अल् कैदहुम् फी तज्ली………।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा फील रूकू १ आयत २)

क्या उनका दाव गलत नहीं किया?

व अ्रस-ल अलैहिम् तैरन् अबाबील………।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा फील रूकू १ आयत ३)

और उन पर झुण्ड के झुण्ड पक्षी भेजे।

तर्मीहिम् बिहिजा-रतिम्-मिन् सिज्जी…………।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा फील रूकू १ आयत ४)

जो उन पर कंकड़ की पथरियां फेंकते थे।

फ-ज-अ-क-अस्फिम-मअ्……….।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा फील रूकू १ आयत ५)

यहां तक कि उनको खाये हुए भूसे की तरह कर दिया।

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क्या यह सम्भव है कि चिड़ियों (अवावीलों) द्वारा चार-चार रत्ती की कंकड़ियाँ फेंकने से फौज और हाथी पिट-पिट कर मर कर भूसा बन गये हों?

एक चादर सर पर डाल लेने से भी तो किसी का कुछ न बिगड़ सकता था। क्या उस वक्त के आदमी मक्खी या चींटी जैसे होते थे?

कुरान समीक्षा : ‘‘खुदा की कसम’’- कुरान में खाने वाला कौन था?

‘‘खुदा की कसम’’- कुरान में खाने वाला कौन था?

क्या इससे यह साबित नहीं है कि कुरान या यह आयत खुदा के अतिरिक्त मुहम्मद या किसी दूसरे खुदा ने लिखी थी?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व काललल्जी-न क-फरू ला तअ्……….।।

(कुरान मजीद पारा २२ सूरा सबा रूकू १ आयत ३)

और इन्कारी कहने लगे कि हमको वह घड़ी न आवेगी। पोशीदा बातों के जानने वाले अपनें ‘‘परवर्दिगार की कसम’’ जरूर आवेगी।

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यह आयत साबित करती है कि कसम खाने वाला कोई आदमी दूसरा था जिसने कुरान लिखा था।

कुरान समीक्षा : खुदा ने व्यभिचार के लिए औरतें भेंट की

खुदा ने व्यभिचार के लिए औरतें भेंट की

क्या खुदा का पेशा जिनाखोरी अर्थात् व्यभिचार के लिये ओरतें पहुंचाना भी है? खुदा ने चचाजात व बुआजात बहिनों से शादी करना सभी मुसलमानों के लिए जायज क्यों नहीं किया? केवल मुहम्मद के साथ पक्षपात क्यों किया। क्या अय्याशी के लिये लोंडियां अब भी मुसलमानों को खुदा (supply) अर्थात् पेश करता है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

या अय्युहन्नबिय्यु इन्ना अह्लल्ना………….।।

(कुरान मजीद पारा २१ सूरा अहजाब रूकू ६ आयत ५०)

ऐ पैगम्बर! हमने वह बीबियाँ तुझ पर हलाल की जिनको मेहर तू दे चुका है और लोंडियाँ जिन्हें अल्लाह तेरी तरफ लाया और तेरे चचा की बेटियाँ और तेरी बूआ की बेटियाँ जो तेरे साथ देश त्याग कर आई हैं और वह मुसलमान औरतें जिन्होंने अपने को पैगम्बर के लिए दे दिया ।

बशर्ते कि पैगम्बर भी उनके निकाह करना चाहे। यह हुक्म खास तेरे लिए है सब मुसलमानों के लिये नहीं।

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इसमें खुदा औरतों और लोंडियों को मुहम्मद के पास लाया ताकि वह उनको भोग सके खुदा ने खास रियायत मुहम्मद पर की थी। अच्छा होता यदि यही रियायत सभी मुसलमानों को भी दे दी जाती। खुदा जिना अर्थात् दुराचार के लिए औंरते भी supply करता है यह कुरान की बढ़िया बात है।

मुहम्मद साहब को जिन्दगी में औंरतों का पूरा-पूरा आनन्द खुदा देता रहा था। औरतें यदि उनसे सन्तुष्ट ने होकर बदकारी औरों के साथ करती थीं तो खुदा घरेलू मैनेजर की तरह उनको डाँटता भी रहता था जैसा कि पीछे दिखाया भी जा चुका है। देखो पूर्व दिया गया प्रश्न नं० १२२ जिसमें इस विषय पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।

कुरान समीक्षा : मुहम्मद की बीबियों को खुदा की धमकी

मुहम्मद की बीबियों को खुदा की धमकी

क्या इससे यह प्रगट नहीं होता कि बुढ़ापे में ज्यादा शादियां करने से मुहम्मद की बीबियाँ बदकार हो गई थीं और खुदा को मजबूर होकर उनको बदकारी से बाज आने की धमकी देनी पड़ी थी? बतावें कि खुदा ने ऐसी कमजोर चरित्र वाली औरतें पैगम्बर को क्यों ब्याहने को दे थी? क्यों खुदा पहले से ही नहीं जान पाया था कि ये ओरतें आगे चलकर बदकार बन जावेंगी?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

या निसा अन्नबिय्यि मंय्यअ्ति मिन्कुन्………..।।

(कुरान मजीद पारा २१ सूरा अहजाब रूकू ३ आयत ३०)

ऐ पैगम्बर की बीबियों! तुममें से जो कोई जाहिर बदकारी करेंगी, उसके लिए दोहरी सजा दी जायेगी और अल्लाह के नजदीक यह मामूली बात है।

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इससे स्पष्ट है कि मुहम्मद की बीबियाँ बदकार थीं और खुदा को उन्हें बदकारी से रोकने को धमकी भी देनी पड़ी। ज्यादा शादियाँ करने वालों की बीबियाँ यदि बदकार हो जावें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। मुहम्मद साहब की निकाही बीबियाँ बारह थीं और वे निकाही बीबियाँ व लोंडियाँ भी बदलती रहती थी।

कुरान समीक्षा : खुदा ने सबको ठीक सूझ क्यों नहीं दी?

खुदा ने सबको ठीक सूझ क्यों नहीं दी?

कुरान में लिखा है कि उस समय के लोग भी मुहम्मद साहब को शायर मानते थे (देखो पारा २३ सूरे साफ्फात आयत ३६) शायर बे पढ़ा लिखा नहीं हो सकता है यदि हो सकता है तो साबित करें?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व लौ शिअ्ना लआतैना कुल्-ल न…………..।।

(कुरान मजीद पारा २१ सूरा सज्जा रूकू १ आयत १३)

हम चाहते तो हर आदमी को उसकी राह की सूझ देते, मगर हमारी बात पूरी होती है कि जिन्न और आदमी सबसे हम नरक को भर देंगे।

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खुदा ने कभी कसम खा रखी होगी कि दोजख को आदमियों से भरेंगे और अपनी कसम को पूरा करने की जिद की वजह से उस भले आदमी ने सारे इन्सानों को नेक रास्ते पर नहीं डाला बल्कि लोगों को गुमराह भी किया। क्या ऐसा खुदा भी नेक माना जा सकता है जो प्रजा को गुमराह करता रहता हो?

कुरान समीक्षा : कयामत का फैसला हजार साल में होगा

कयामत का फैसला हजार साल में होगा

फैसले के लिये हजार साल क्यों लगेंगे? खुदा के द्वारा ‘कुन’ कहकर फैसला पलभर में क्यों नहीं कर दिया जावेगा ताकि खुदा का वक्त बरबाद न हो? देखिये कुरान में कहा गया है कि-

युदब्बिरूल्-अम्-र मिलस्समाइ………..।।

(कुरान मजीद पारा २१ सूरा सज्दा रूकू १ आयत ५)

फिर तुम लोगों की गिनती के अनुसार हजार वर्ष की मुद्दत का एक दिन होगा। उस दिन तमाम इन्जाम उसके सामने गुजरेगा।

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खुदा की कचहरी एक साल तक लगी रहेगी और लोगों के वकील खुदा के मुबाहिसा अर्थात् वाद-विवाद करते रहा करेंगी। खुदा यदि सर्वशक्तिमान (कादिरे मुतलक) होता तो फैसला जल्दी भी कर सकता था

उसे हर आदमी का अलग-अलग कर्मों का हिसाब किताब देखना पड़ेगा, किताबें देखनी पड़ेगी, वकीलों की बहस सुननी पड़ेंगी तब कहीं जन्नत व दोजख में उन्हे भेज कर छुट्टी मिलेगी। हमारे यहां के मजिस्ट्रेट और अरबी खुदा में कोई ज्यादा अन्तर नहीं है।