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ईसाई पैगम्बर अत्यंत चरित्र हीन थे – पार्ट 4

मित्रो जैसे की पिछली तीन पोस्ट से ये कारवां चलता आ रहा है की सत्य को सामने रखा जाए – और असत्य को दूर फेक दिया जाए – उसी कड़ी में पेश है – एक और सत्य की खोज।

हजरत याकूब (इजराइल) के 12 पुत्र हुए :

1. रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, जबूलून –
ये छह बेटे याकूब की पहली बीवी लिआ से हुए

2. युसूफ और बिन्यामीन – दूसरी बीवी राहेल से हुए

3. दान और नप्ताली – राहेल की दासी बिल्हा से थे

4. गाद और आशेर – ये लिआ की दासी जिल्पा से हुए।
(उत्पत्ति ३५:२३-२६)

ये तो हुआ संछिप्त परिचय – अब आप सोचोगे इसमें चरित्रहीनता कहाँ है ?

भाई लोगो – पहली चरित्रहीनता तो यही देख लो – की हजरत याकूब जो एक ईसाई पैगम्बर थे – उनकी एक नहीं दो दो बीवियां थी – क्या ये कम चरित्रहीनता है ?

चलो इसे चरित्रहीनता नहीं कहते – ये शादी थी। मगर क्या अपनी पत्नी की दासियों के साथ बिना शादी किये संतान पैदा करना चरित्रहीनता नहीं है ?

चलो एक बार को माना की दासी के साथ भी विवाह किया था – अव्वल तो ये संभव ही नहीं था – फिर भी यदि मान लिया जाए तो – अपनी पत्नी को सुरक्षा की जिंदगी देना ये एक मनुष्य का कर्तव्य होता है – लेकिन हजरत याकूब जो एक महान पैगम्बर थे – अपने बेटे को अच्छी शिक्षा तक न दे सके – क्या ये महानता की बात थी ?

मैं चरित्रहीनता इसलिए कहता हु की एक पैगम्बर होने के नाते समाज को और अपने परिवार को सुशिक्षा देना ही पैगम्बर का कार्य होता है – मगर ये कैसे पैगम्बर जिनके बेटे ने अपनी ही माँ के साथ कुकर्म कर दिया ?

देखिये –

जैसे की आपने ऊपर पढ़ा – रूबेन – याकूब की पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र हुआ था – मगर उसका आचरण इतना भ्रष्ट था की उसने अपनी ही सौतेली माँ के साथ कुकर्म किया।

इजराइल (याकूब) वहां थोड़े समय ठहरा। जब वह वहां था तब रूबेन इजराइल (याकूब) की दासी बिल्हा के साथ सोया। इजराइल ने इस बारे में सुना और बहुत क्रुद्ध हुआ।

(उत्पत्ति ३५:२२)

अब इस बात का थोड़ा गणित समझिए।

इजराइल (याकूब) के बीवी राहेल पुत्र को जन्म देते समय मर गयी तो – तो याकूब उसे दफनाने में व्यस्त था – बस फिर क्या था रूबेन को मौक़ा मिल गया – और उसने अपनी ही माँ का बलात्कार किया।

अब ऐसे ऐसे पिता पुत्र जिस समाज – कुल के पैगम्बर हुए हो – उस समाज से आप किस प्रकार की शिक्षा की उम्मीद कर सकते हैं ?

रूबेन के इस पाप की सुचना जब याकूब को मिली – तो उसने उसे क्या सजा दी ? क्या कोई ईसाई मित्र बताने का कष्ट करेगा ?

मेरे ईसाई मित्रो इस पापयुक्त आचरण को छोडो = सत्य सनातन वैदिक धर्म से नाता जोड़ो =

आओ लौटो वेदो की और

नमस्ते

ईसाई पैगम्बर अत्यंत चरित्रहीन थे – पार्ट 5

सभी मित्रो – जैसे की पिछली ४ पोस्ट से ये पोल खोल चालू है – की ईसाई पैगम्बर अत्यंत ही चरित्रहीन थे – खुद बाइबिल ऐसा प्रमाणित करती है – मगर फिर भी हमारे कुछ हिन्दू भाई – इस पाखंड में फंसते जाते हैं – क्योंकि वो बाइबिल को पढ़ते नहीं – और जो कुछ पढ़ते हैं – वो सही से समझते नहीं – आइये अपने हिन्दू भाइयो को इस पाखंड रुपी चुंगल से निकालने के लिए सहयोग करे और इस पोस्ट के माध्यम से सत्य को एक बार फिर प्रसारित करे –

आज जिन महान पैगम्बर की चरित्रहीनता का जिक्र इस पोस्ट में किया जायेगा – वो इतने महान थे – की उन्होंने न केवल अपने फायदे और कामपिपासा को शांत करने के लिए अपने खुदा (यहोवा) की आज्ञा का अपमान किया – बल्कि इस बाइबिल में अपने खुदा (यहोवा) से इस कृत्य के लिए आशीर्वाद भी प्राप्त किया –

ऐसा लिखवा दिया –

आइये एक नजर डाले – आखिर माजरा क्या है –

बाइबिल में अनेक जगह पर यहोवा कहता है –

शापित हो वह जो अपनी बहिन, चाहे सगी हो चाहे सौतेली, उस से कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन॥
व्यवस्थाविवरण, अध्याय २७:२२)

और यदि कोई अपनी बहिन का, चाहे उसकी संगी बहिन हो चाहे सौतेली, उसका नग्न तन देखे, तो वह निन्दित बात है, वे दोनों अपने जाति भाइयों की आंखों के साम्हने नाश किए जाएं; क्योंकि जो अपनी बहिन का तन उघाड़ने वाला ठहरेगा उसे अपने अधर्म का भार स्वयं उठाना पड़ेगा।
लैव्यव्यवस्था, अध्याय २०:१७)

तो उपरलिखित प्रमाणों से सिद्ध है की अपनी बहिन – चाहे सगी हो अथवा सौतेली – उस से यदि कोई गलत काम करता है – तो वो व्यभिचारी है – यानी ऐसा मनुष्य चरित्रहीन है – निन्दित है – और उसका नाश किया जाए –

बात बिलकुल ठीक है – कायदे की है – ऐसा ही होना चाहिए – मगर मेरी उस वक़्त आँख फटी की फटी रह गयी जब मेने – महान ईसाई पैगम्बर “इब्राहिम” का जिक्र बाइबिल में पढ़ा –

अरे दादा इतना घोर अनर्थ – इतना व्यभिचारी पैगम्बर ? अपनी ही बहिन को अपनी हवस का शिकार बना डाला ?

छिः धिक्कार है ऐसी बाइबिल पर और ऐसे ईश्वर पर जो एक जगह कहता कुछ है – और जब पैगम्बर की बात आई तो बदल गया ? क्या ऐसा भी ईश्वर का काम हो सकता है ?

देखिये

इब्राहिम ने कहा, मैं ने यह सोचा था, कि इस स्थान में परमेश्वर का कुछ भी भय न होगा; सो ये लोग मेरी पत्नी के कारण मेरा घात करेंगे।
(उत्पत्ति, अध्याय २०:११)

और फिर भी सचमुच वह मेरी बहिन है, वह मेरे पिता की बेटी तो है पर मेरी माता की बेटी नहीं; फिर वह मेरी पत्नी हो गई।
(उत्पत्ति, अध्याय २०:११)

ईसाई मित्रो देखो आपका पैगम्बर – जिसने अपने ही खुदा की कही बात को मिटटी में मिला दिया ?

क्या ऐसे ही पैगम्बर होते हैं ?

पैगम्बर तो वो कहलाते हैं – जो खुदा की बात पर चले – मगर क्या “इब्राहिम” जो महान पैगम्बर थे – खुदा की बात पर अमल कर पाये ? नहीं – क्योंकि अपनी काम पिपासा जो शांत करनी थी ? और देखो अपनी जान बचाने को भी अपनी पत्नी को बहिन बनवा दिया – फिर सच भी बता दिया की हाँ वो बहिन तो है मगर बीवी भी है – क्योंकि इब्राहिम के पिता की बेटी थी – उसके माँ की नहीं ?

क्या ये पैगम्बर के कर्म होते हैं ?

अब देखो आपका खुदा कैसे बदला – क्योंकि पैगम्बर की बात जो है –
फिर परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, तेरी जो पत्नी सारै है, उसको तू अब सारै न कहना, उसका नाम सारा होगा।
(उत्पत्ति, अध्याय १७:१५)

और मैं उसको आशीष दूंगा, और तुझ को उसके द्वारा एक पुत्र दूंगा; और मैं उसको ऐसी आशीष दूंगा, कि वह जाति जाति की मूलमाता हो जाएगी; और उसके वंश में राज्य राज्य के राजा उत्पन्न होंगे।
(उत्पत्ति, अध्याय १७:१६)

अब बताओ – क्या भरोसा किया जाए आपके खुदा का ?

जो अपनी एक बात पर ही टिका नहीं रहता – अरे भाई न्याय तो कम से कम सही होना चाहिए – बल्कि एक पैगम्बर के लिए तो खासकर कोई रियायत नहीं होनी चाहिए – क्योंकि वो एक समाज का नेता होता है – अब यदि नेता ही ऐसे कानून तोड़ने लगे – और यहोवा आशीर्वाद देता रहे – तो आम आदमी क्यों नहीं ये सब पाप कर्म करेगा ?

मेरे ईसाई मित्रो अभी समय है – इस पापयुक्त आचरण से अपने को भ्रष्ट ना करो – ईश्वर की शरण में आओ – सच्ची मुक्ति वेद के द्वारा है – इस झूठी मिलावटी – हर पैगम्बर द्वारा रचित अपने फायदों के लिए बनाई बाइबिल से आपका घर परिवार ही दूषित होगा – और कुछ नहीं

वेद शिक्षा अपनाओ

धर्म में पुनः स्थापित हो जाओ

सत्य और न्याय की और

ईश्वर की सत्य सनातन व्यवस्था की और

चलो चले वेदो की और

नमस्ते

बाइबिल और ईसाई पैगम्बरों की चरित्रहीन, पथभ्रष्ट और असामाजिक शिक्षा

बाइबिल अनुसार – माँ बेटे से – पिता पुत्री से – भाई सगी बहन से – सेक्स सम्बन्ध बना सकता है – ये उचित कार्य हैं।

ईसाई समाज में –

आदम के काल से आज तक

पिता पुत्री

माँ बेटा

भाई बहन

आदि का शारीरिक सम्बन्ध बनाना – या भारतीय परिवेश में कहे तो ऐसे घृणित
रिश्ते – नाजायज़ ताल्लुक – बनाना –

ईसाइयो अथवा बाइबिल की शिक्षा मानने वालो के लिए –

श्रद्धा, समर्पण, विश्वास और गर्व का विषय है

रेफ. देखिये –

भाई बहन के सम्बन्ध :

1 हे मेरी बहिन, हे मेरी दुल्हिन, मैं अपनी बारी में आया हूं, मैं ने अपना गन्धरस और बलसान चुन लिया; मैं ने मधु समेत छत्ता खा लिया, मैं ने दूध और दाखमधु भी लिया॥ हे मित्रों, तुम भी खाओ, हे प्यारों, पियो, मनमाना पियो!

2 मैं सोती थी, परन्तु मेरा मन जागता था। सुन! मेरा प्रेमी खटखटाता है, और कहता है, हे मेरी बहिन, हे मेरी प्रिय, हे मेरी कबूतरी, हे मेरी निर्मल, मेरे लिये द्वार खोल; क्योंकि मेरा सिर ओस से भरा है, और मेरी लटें रात में गिरी हुई बून्दोंसे भीगी हैं।

3 मैं अपना वस्त्र उतार चुकी थी मैं उसे फिर कैसे पहिनूं? मैं तो अपने पांव धो चुकी थी अब उन को कैसे मैला करूं?
(श्रेष्ठगीत, अध्याय 5)

7 तेरा डील डौल खजूर के समान शानदार है और तेरी छातियां अंगूर के गुच्छों के समान हैं॥

8 मैं ने कहा, मैं इस खजूर पर चढ़कर उसकी डालियों को पकडूंगा। तेरी छातियां अंगूर के गुच्छे हो, और तेरी श्वास का सुगन्ध सेबों के समान हो,
(श्रेष्ठगीत, अध्याय 7)

भाई बहन का विवाह –

11 इब्राहीम ने कहा, मैं ने यह सोचा था, कि इस स्थान में परमेश्वर का कुछ भी भय न होगा; सो ये लोग मेरी पत्नी के कारण मेरा घात करेंगे।

12 और फिर भी सचमुच वह मेरी बहिन है, वह मेरे पिता की बेटी तो है पर मेरी माता की बेटी नहीं; फिर वह मेरी पत्नी हो गई।
(उत्पत्ति अध्याय २०:११-१२)

हजरत इब्राहिम ने अपनी बहिन सारा से विवाह किया –

अम्नोन ने अपनी बहिन तामार का बलात्कार किया – जबकि तामार कहती रही की – अम्नोन से ब्याह हो सकता है – (2 शमूएल, अध्याय १३:१-१४)

कैन ने अपनी बहिन से ही विवाह किया – क्योंकि और कोई उत्पत्ति स्त्री की यहोवा ने की नहीं – केवल आदम और हव्वा बनाये – तो सिद्ध है – कैन ने अपनी ही बहिन से विवाह किया।

अब देखते हैं पिता पुत्री सम्बन्ध :

30 और लूत ने सोअर को छोड़ दिया, और पहाड़ पर अपनी दोनों बेटियों समेत रहने लगा; क्योंकि वह सोअर में रहने से डरता था: इसलिये वह और उसकी दोनों बेटियां वहां एक गुफा में रहने लगे।

31 तब बड़ी बेटी ने छोटी से कहा, हमारा पिता बूढ़ा है, और पृथ्वी भर में कोई ऐसा पुरूष नहीं जो संसार की रीति के अनुसार हमारे पास आए:

32 सो आ, हम अपने पिता को दाखमधु पिला कर, उसके साथ सोएं, जिस से कि हम अपने पिता के वंश को बचाए रखें।

33 सो उन्होंने उसी दिन रात के समय अपने पिता को दाखमधु पिलाया, तब बड़ी बेटी जा कर अपने पिता के पास लेट गई; पर उसने न जाना, कि वह कब लेटी, और कब उठ गई।

34 और ऐसा हुआ कि दूसरे दिन बड़ी ने छोटी से कहा, देख, कल रात को मैं अपने पिता के साथ सोई: सो आज भी रात को हम उसको दाखमधु पिलाएं; तब तू जा कर उसके साथ सोना कि हम अपने पिता के द्वारा वंश उत्पन्न करें।

35 सो उन्होंने उस दिन भी रात के समय अपने पिता को दाखमधु पिलाया: और छोटी बेटी जा कर उसके पास लेट गई: पर उसको उसके भी सोने और उठने के समय का ज्ञान न था।

36 इस प्रकार से लूत की दोनो बेटियां अपने पिता से गर्भवती हुई।
(उत्पत्ति, अध्याय 19)

आइये अब देखे –

माँ बेटे का रिश्ता

इजराइल (याकूब) वहां थोड़े समय ठहरा। जब वह वहां था तब रूबेन इजराइल (याकूब) की दासी बिल्हा के साथ सोया। इजराइल ने इस बारे में सुना और बहुत क्रुद्ध हुआ।
(उत्पत्ति ३५:२२)

अब इस बात का थोड़ा गणित समझिए।

इजराइल (याकूब) के बीवी राहेल पुत्र को जन्म देते समय मर गयी तो – तो याकूब उसे दफनाने में व्यस्त था – बस फिर क्या था रूबेन को मौक़ा मिल गया – और उसने अपनी ही माँ के साथ रात बितायी (सम्भोग किया)

सम्बन्ध तो और भी बहुत से लोगो के इसी प्रकार से बाइबिल में लिखे हैं – मगर पोस्ट बड़ी करने का उद्देश्य नहीं – इसलिए एक बार स्वयं बाइबिल पढ़ कर विचार करे –

क्या ये ऐसे घटिया – और मानसिक स्तर से गिरे हुए लोग – जो अपने को स्वघोषित “पैगम्बर” और एक काल्पनिक गढ़ा हुआ खुदा “यहोवा” कोई सभ्य व्यक्ति हुए होंगे ?

एक तरफ यहोवा कहता है कोई व्यभिचार नहीं करो – मगर उसके पैगम्बर और उसके बेटी बेटियो के किये भ्रष्ट आचरण को अपनी दैवीय मुहर लगाकर पवित्र बना देता है ?

कुछ उदहारण –

20 अम्राम ने अपनी फूफी योकेबेद को ब्याह लिया और उससे हारून और मूसा उत्पन्न हुए, और अम्राम की पूरी अवस्था एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई।
(निर्गमन, अध्याय 6)

29 अब्राम और नाहोर ने स्त्रियां ब्याह लीं: अब्राम की पत्नी का नाम तो सारै, और नाहोर की पत्नी का नाम मिल्का था, यह उस हारान की बेटी थी, जो मिल्का और यिस्का दोनों का पिता था।
(उत्पत्ति, अध्याय ११)

यहाँ अबिराहम तो वो जिसने अपनी बहिन साराह से सम्बन्ध बनाये – मगर यहाँ एक बात ध्यान से पढ़िए – अबिराहम के भाई नाहोर ने अपनी भतीजी मिल्क से सम्बन्ध बनाये –

26 जब तक तेरह सत्तर वर्ष का हुआ, तब तक उसके द्वारा अब्राम, और नाहोर, और हारान उत्पन्न हुए॥
(उत्पत्ति, अध्याय ११)

ये बाइबिल केवल अपने सेक्स की भूख कैसे और किस प्रकार शांत की जाए – एक नारी की अस्मत कैसे बर्बाद की जाए – कैसे हवस की भूख को पूरा किया जाए – उसकी सभी युक्तियाँ बाइबिल में पायी जाती हैं =

ये थोड़ा सा बाइबिल में नारी की स्थति विषय को बताया – बाकी सभी पाठकगण स्वयं विचार करे –

मेरे ईसाई मित्रो – आप क्यों संकोच में हो अभी तक – बाहर निकलो इस मजहबी गंदगी से – प्रकाश और ज्ञान की और आओ –

धर्म और सत्य की और आओ

आओ लौटो वेदो की और

नमस्ते’

“ईसा के शांतिवादी सिद्धांत का मिथक”

ईसा की “अशांति अवधारणा” (आतंकी शिक्षा) का सच और

“शांतिवादी सिद्धांत” अहिंसा सिद्धांत

या बिलकुल सरल भाषा में कहे तो –

“ईसा के शांतिवादी सिद्धांत का मिथक”

मेरे मित्रो,

जैसे की हम सब जानते हैं – ईसाई मत के अनेक पैगम्बर – चरित्रहीन गुणों से लबरेज थे – पूरा ईसाई मत और बाइबिल – इन पैगम्बरों के चरित्रहीन होने का पुख्ता सबूत तो है – उसके साथ साथ चरित्रहीनता को यहोवा का समर्थन और पैगम्बरों को ऐसे दीन-हीन कर्म करने को “कर्तव्य” समझ कर धारण करने का खुला आवाहन खुद ईसाइयो का “परमेश्वर यहोवा” करता है – पिछली अनेक पोस्ट से ज्ञात हुआ –

आज हम जिस बात पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करेंगे – वो है – “ईसा का झूठा शांति सिद्धांत” या फिर कहे की ईसा के शांतिपाठ का पोल खोल –

हमारे अनेक ईसाई मित्र – ऐसी तर्कहीन या यु कहे – अफवाह उड़ाते हैं – की ईसा एक शांति दूत था – जिसने बाइबिल में अनेक बार शांति की बात की – खुद शांति के लिए मर गए – यहाँ शांति से तात्पर्य अहिंसा से भी है – आइये देखे –
ईसा का तथाकथित शांति अहिंसा का पाठ :

एक “अहिंसावादी” “शांतिदूत” खासतौर पर या आमतौर पर एक ऐसे व्यक्ति को कहा जाता है जो किसी भी प्रकार की हिंसा का किसी भी कारण से समर्थन नहीं करता। यही “अहिंसावादी” या “शांतिदूत” का पारिभाषिक अर्थ होगा – और होना भी यही चाहिए – यदि बाइबिल में ईसा की केवल दो चार बातो से ही ईसा का ऐसा सिद्धांत ईसाई मित्र मानते हैं – तो उन्हें में केवल “मुर्ख” का ही दर्ज़ा दे सकता हु – क्योंकि दो चार बातो से तो पूरी बाइबिल की शिक्षा ही बेकार साबित होती है – फिर दो चार बातो के जरिये ही ईसा को “अहिंसावादी” और “शांतिदूत” जैसे शब्दों से नवाजना – ये गलत होगा –

आइये ईसा की कुछ शांतिप्रिय एक दो बातो को देखे –

38 तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था, कि आंख के बदले आंख, और दांत के बदले दांत।

39 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि बुरे का सामना न करना; परन्तु जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उस की ओर दूसरा भी फेर दे।

40 और यदि कोई तुझ पर नालिश करके तेरा कुरता लेना चाहे, तो उसे दोहर भी ले लेने दे।

41 और जो कोई तुझे कोस भर बेगार में ले जाए तो उसके साथ दो कोस चला जा।

42 जो कोई तुझ से मांगे, उसे दे; और जो तुझ से उधार लेना चाहे, उस से मुंह न मोड़॥

43 तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर।

44 .परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करो।
(मत्ती – Mt – अध्याय ५ : ३८-४४)

तो ये है वो आयते जिनको लेके – ईसाई मित्र – अनेक हिन्दू भाइयो को भरमजाल में फंसाते हैं – और ईसा को अहिंसावादी घोषित कर देते हैं – ऐसी ही तथाकथित “शांतिप्रिय” कुछ आयते – क़ुरआन में भी पायी जाती हैं – तो क्या क़ुरआन को भी “शांतिवादी” “अहिंसावादी” घोषित कर दोगे ?

ऊपर जो अर्थ दिया था – उस हिसाब से तो ईसाई सही कहते हैं ऐसा प्रतीत होता है – क्योंकि ईसा ने वाकई शांति की बात की – मगर ये जो प्रतीत होता है, क्या वाकई सत्य है ?

आइये एक नजर ईसा की वास्तविक शिक्षा पर नजर डालते हैं – जिससे ईसा के शांतिप्रिय होने की खोखली दलील बेनकाब हो जाएगी।

मत्ती अनुसार ईसा की क्रूरतापूर्ण शिक्षाये :

34 यह न समझो, कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने को आया हूं; मैं मिलाप कराने को नहीं, पर तलवार चलवाने आया हूं।

35 मैं तो आया हूं, कि मनुष्य को उसके पिता से, और बेटी को उस की मां से, और बहू को उस की सास से अलग कर दूं।

36 मनुष्य के बैरी उसके घर ही के लोग होंगे।
(मत्ती अध्याय 10)

6 तुम लड़ाइयों और लड़ाइयों की चर्चा सुनोगे; देखो घबरा न जाना क्योंकि इन का होना अवश्य है, परन्तु उस समय अन्त न होगा।
(मत्ती अध्याय 24)

36 यीशु ने उत्तर दिया, कि मेरा राज्य इस जगत का नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते, कि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाता: परन्तु अब मेरा राज्य यहां का नहीं।
(यूहन्ना अध्याय 18)

13 और वह लोहू से छिड़का हुआ वस्त्र पहिने है: और उसका नाम परमेश्वर का वचन है।

14 और स्वर्ग की सेना श्वेत घोड़ों पर सवार और श्वेत और शुद्ध मलमल पहिने
हुए उसके पीछे पीछे है।

15 और जाति जाति को मारने के लिये उसके मुंह से एक चोखी तलवार निकलती है, और वह लोहे का राजदण्ड लिए हुए उन पर राज्य करेगा, और वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के भयानक प्रकोप की जलजलाहट की मदिरा के कुंड में दाख रौंदेगा।
(प्रकाशित वाक्य, अध्याय 19)

12 और उन्होंने उस से बिनती करके कहा, कि हमें उन सूअरों में भेज दे, कि हम उन के भीतर जाएं।

13 सो उस ने उन्हें आज्ञा दी और अशुद्ध आत्मा निकलकर सूअरों के भीतर पैठ गई और झुण्ड, जो कोई दो हजार का था, कड़ाडे पर से झपटकर झील में जा पड़ा, और डूब मरा।
(मरकुस अध्याय 5)

ईसा की ईर्ष्यालु शिक्षा :

20 तब वह उन नगरों को उलाहना देने लगा, जिन में उस ने बहुतेरे सामर्थ के काम किए थे; क्योंकि उन्होंने अपना मन नहीं फिराया था।
(मत्ती अध्याय 11)

29 और जिस किसी ने घरों या भाइयों या बहिनों या पिता या माता या लड़केबालों या खेतों को मेरे नाम के लिये छोड़ दिया है, उस को सौ गुना मिलेगा: और वह अनन्त जीवन का अधिकारी होगा।
(मत्ती, अध्याय 19)

21 एक और चेले ने उस से कहा, हे प्रभु, मुझे पहिले जाने दे, कि अपने पिता को गाड़ दूं।

22 यीशु ने उस से कहा, तू मेरे पीछे हो ले; और मुरदों को अपने मुरदे गाड़ने दे॥
(मत्ती, अध्याय 8)

1 तब यरूशलेम से कितने फरीसी और शास्त्री यीशु के पास आकर कहने लगे।

2 तेरे चेले पुरनियों की रीतों को क्यों टालते हैं, कि बिना हाथ धोए रोटी खाते हैं?

3 उस ने उन को उत्तर दिया, कि तुम भी अपनी रीतों के कारण क्यों परमेश्वर की आज्ञा टालते हो?

4 क्योंकि परमेश्वर ने कहा था, कि अपने पिता और अपनी माता का आदर करना: और जो कोई पिता या माता को बुरा कहे, वह मार डाला जाए।

5 पर तुम कहते हो, कि यदि कोई अपने पिता या माता से कहे, कि जो कुछ तुझे मुझ से लाभ पहुंच सकता था, वह परमेश्वर को भेंट चढ़ाई जा चुकी।

6 तो वह अपने पिता का आदर न करे, सो तुम ने अपनी रीतों के कारण परमेश्वर का वचन टाल दिया।

7 हे कपटियों, यशायाह ने तुम्हारे विषय में यह भविष्यद्वाणी ठीक की।
(मत्ती, अध्याय 15)

लिखता जाऊँगा तो अंत नहीं – बाइबिल के पुरे नियम में – ईसा ने केवल – लड़ाई झगडे – परिवार को बांटने – लड़ने – तलवार खरीदने – मंदिर और मुर्तिया तोड़ने – यहाँ तक की यदि कोई ईसा को भोजन करने से पहले हाथ धोने की नसीहत दे दे तो उसे भी जान से मारने को तईयार रहने वाली शिक्षा का बोल वचन सुना दिया – भाई क्या ये ही “शांतिवाद” और अहिंसा का सबक है ईसा का ?

इससे भी बढ़कर – पुराने नियमानुसार – जो जो क्रुरताये और पैगम्बरों – भविष्वक्ताओ की बाते और क्रूर नियम – जाहिल रिवाज – और जंगली सभ्यता थी – उसकी भी वकालत – ईसा ने की है – साथ ही ये भी कह दिया की – उसमे कोई बदलाव नहीं हो सकता – वो पूर्ण है – और इसी जंगली, वहशी, क्रूर नियमो को पूर्ण करने ईसा आया है – देखिये

17 यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों को लोप करने आया हूं।

18 लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूं, क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएं, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा।
(मत्ती, अध्याय 5)

मेरे ईसाई मित्रो – बाइबिल के पुराने नियम में कितना व्यभिचार, जंगली रिवाज और असभ्यता मौजूद है – वो आपको पता है – अब यदि ईसा खुद उसे नकार नहीं रहा – बल्कि उसे पूर्ण करने आया है – तब आप क्यों नकार रहे हो ?

नोट : पुराने नियम का जंगली रिवाज एक ये भी था की पिता अपनी पुत्री की योनि में अपनी ऊँगली कपडे से ढक कर डालता और पुष्टि करता था की पुत्री कुंवारी है – अथवा सुहागरात मनाने वाले वर वधु की चादर को पुरे समाज में दिखाता था की उसकी पुत्री कुंवारी है।

लेख को बहुत बड़ा करने का उद्देश्य नहीं है – इसलिए पाठकगण संक्षेप में ही समझ जायेंगे – उद्देश्य केवल इतना है की ईसा जैसा था वैसा ही मानने में समझदारी है – कहने को तो गांधी जी भी अहिंसाप्रिय थे – मगर वो हिन्दू समाज को केवल “पंगु अवस्था” में छोड़ गए – इसलिए अभी भी समय है – चेत जाओ –

धर्म की और आओ –

वेद की और आओ

सत्य की और आओ

लौटो वेदो की और

नमस्ते

वेद का सार्वभौमिक सिद्धांत बाइबिल में – आदम हव्वा का सिद्धांत झूठा है

बाइबिल में भी – अनेक मनुष्यो की उत्पत्ति है
आदम हव्वा का सिद्धांत झूठा है

अब जहाँ तक हम देखते हैं – वेद का विज्ञानं ही पूरी दुनिया में था –
और जितने भी मत निकले हैं – वो सभी वेद से ही कुछ सत्य बात निकालकर –

बाकी अपने मतलब की बाते ठूस कर दुनिया को मुर्ख बनाने हेतु – प्रपंच रचने को बनाये हैं – उसके लिए सबूत देखिये –

1.  ईसाई कहते है –

आदम और हव्वा दो ही मनुष्य उत्पन्न हुए – बाकी सब उनके बाद पैदा हुए – यानी आदम और हव्वा से ही सभी मनुष्य प्रजाति निकली।

लेकिन क्या ये सच है ?

देखिये वैज्ञानिक आधार पर – सभी मनुष्य के जेनेटिक सिस्टम अलग अलग हैं –

डीएनए अलग अलग पाये गए हैं – ऐसा कभी नहीं होता की एक ही माता पिता की संतान अलग अलग डीएनए की हो – ये तो हुआ वैज्ञानिक आधार –

अब थोड़ा – बाइबिल को जांच ले –

बाइबिल में भी – अनेक मनुष्यो की उत्पत्ति है – न की केवल एक आदम और हव्वा की – ये तो मुर्ख बनाने को शिगूफा छोड़ रखा है ईसाइयो ने – ताकि अपनी हवस पूर्ति करते रहे – अपने ही बहनो और बेटियो के साथ व्यभिचार करते रहे –

ये बहुत ही गलत बात है की ईसाई सुनी सुनाई मनगढ़ंत बात को सच मान लेते हैं – देखिये – आदम और हव्वा से अलग – अनेक मनुष्य – ईश्वर ने रचे थे – ये बात बाइबिल खुद स्वीकार करती है – देखिये –

आदम और हव्वा केवल एक स्त्री और एक पुरुष ईश्वर ने रचा –

इनके दो पुत्र हुए – कैन और हाबिल

अब हाबिल को कैन ने मार दिया – और जमीन में गाढ़ दिया – तब यहोवा ने कैन को बड़ा फटकारा – और कैन ने क्षमा याचना करते हुए कहा –

“यदि कोई मनुष्य मुझे पायेगा तो मार डालेगा”
(उत्पत्ति ४:१४)

– तब यहोवा ने कैन को आशीर्वाद दिया – जाओ अगर कोई तुमको मारेगा तो मैं उसे कठोर दंड दूंगा – और कैन के ऊपर यहोवा ने एक चिन्ह बना दिया – ताकि सभी मनुष्य जान ले की कैन को कोई ना मारे –

उपरोक्त बातो से साफ़ है – जब यहोवा ने केवल आदम और हव्वा बनाई और उनके दो ही बच्चे हुए – एक को दूसरे ने मार दिया – तब उसे (कैन) को अनेक मनुष्यो का डर क्यों सताया ?

जाहिर है – आदम और हव्वा अकेले नहीं थे – और भी मनुष्य थे – आइये एक और प्रमाण देखते हैं।

“कैन का परिवार” (उत्पत्ति ४:१६)

देखिये आपको पहले ही बताया की – यहोवा ने केवल आदम और हव्वा बनाई – आदम और हव्वा से – कैन – हाबिल हुए – कैन ने हाबिल को मार दिया – अब केवल कैन बचा – तो फिर कैन का परिवार कहाँ से आया ?

कैन यहोवा को छोड़ नोद देश चला गया। कैन ने अपनी पत्नी के साथ शारीरिक सम्बन्ध किया – और फिर कैन ने एक शहर बसाया –

तो मित्रो – एक बात समझ आई ? कैन यहोवा के पास से जब गया तब उसकी पत्नी नहीं थी – यानी कैन जब नोद देश गया – तो वहां की लड़की से शादी की – यानी की आदम और हव्वा से अलग भी मनुष्य उत्पन्न हुए थे – ये सिद्ध हुआ।

अब फिर भी कुछ अतिज्ञानी मानेंगे नहीं – उनको एक बार फिर प्रमाण दे दू
आदम और हव्वा को एक और पुत्र हुआ (उत्पत्ति ४:२५)

और ये पुत्र अब – कैन के विवाह के बाद हुआ है – ध्यान रहे – इस दौरान आदम और हव्वा को कोई पुत्री नहीं हुई –

तो कैन ने जिस लड़की से विवाह किया वो क्या हवा से टपक गयी ?

मेरे ईसाई मित्रो – इस पाखंड से बाहर आओ –

सत्य को जानो

ईश्वर को जानो – पाखंड को त्यागो

लौटो वेदो की और

बाइबल में परिवर्तन – राजेन्द्र जिज्ञासु

सत्यार्थप्रकाश की वैचारिक क्रान्तिःभले ही ईसाई मत, इस्लाम व अन्य-अन्य वेद विरोधी मतों की सर्विस के लिए कुछ व्यक्ति आर्यसमाज का विध्वंस करने के लिए सब पापड़ बेल रहे हैं, परन्तु महर्षि दयानन्द का अमर ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश निरन्तर अन्धकार का निवारण करके ज्ञान उजाला देकर वैचारिक क्रान्ति कर रहा है। पुराने आर्य विद्वान् अपने अनुकूल व प्रतिकूल प्रत्येक लेख व कथन पर ध्यान देते थे। अब वर्ष में एक बार जलसा करवाकर संस्थाओं की तृप्ति हो जाती है। ऋषि जीवन व ऋषि मिशन विषयक खोज में उनकी रुचि ही नहीं।

लीजिये संक्षेप में वैचारिक क्रान्ति के कुछ उदाहरण यहाँ देते हैंः-

पहले बाइबिल का आरम्भ इन शब्दों से होता थाः-

१. “In the beginning God created the heaven and the earth. And the earth was waste and void, and the darkness was upon the face of the deep and the spirit of god moved upon the face of the waters.”

अब ऋषि की समीक्षा का चमत्कार देखिये। अब ये दो आयतें इस प्रकार से छपने लगी हैंः-

“In the beginning God created the heavens and the earth. Now the earth was formless and empty, darkness was over the surface of the deep, and the spirit of god was hovering over the waters.”

प्रबुद्ध विद्वान् इस परिवर्तन पर गम्भीरता से विचार करें। हम आज इस परिवर्तन की समीक्षा नहीं स्वागत ही करते हैं। इस अदल-बदल से ऋषि की समीक्षा सार्थक ही हो रही है, क्या हुआ जो (पोल) से आपका पिण्ड ऋषि ने छुड़ा दिया। ऋषि का प्रश्न तो ज्यों का त्यों बना हुआ है।

“And God said, Behold, I have given you every herb yelding seed, which is upon the face of all the earth, and every tree, in which is the fruit of a tree yielding seed; to you it shall be for meat: and to every beast of the earth, and to every fowl of the air and to every thing that creepth upon the earth, wherein there is life, I have given every herb for meat: and it was so.”

पाठकवृन्द! यह बाइबिल की उत्पत्ति की पुस्तक के प्रथम अध्याय की आयत संख्या २९, ३० हैं। सत्यार्थप्रकाश के प्रकाश में हमारे विद्वान् मास्टर आत्माराम आदि इनकी चर्चा शास्त्रार्थों में करते आये हैं। अब ये आयतें अपने नये स्वरूप में ऐसे हैं। इन पर विचार कीजियेः-

Then God said, “I give you every seed-bearing plant on the face of the whole earth and every tree that has fruit with seed in it. They will be yours for food. And to all the beasts of the earth and all the birds in the sky and all the creatures that move on the ground-everything that has the breath of life in it- I give every green plant for food.”

ये दोनों अवतरण बाइबिल के हैं। दोनों का मिलान करके देखिये कि सत्यार्थप्रकाश की वैचारिक क्रान्ति के कितने दूरगामी परिणाम निकले हैं। हम इस नये परिवर्तन, संशोधन की क्या समीक्षा करें? हम हृदय से इस वैचारिक क्रान्ति का स्वागत करते हैं। ऋषि की कृपा से ईसाइयत के माथे से मांस का कलंक धुल गया। मांसाहार का स्थान शाकाहार को दे दिया गया है। मनुष्य का भोजन अन्न, फल और दूध को स्वीकार किया गया है। यह मनुजता की विजय है। यह सत्य की विजय है। यह ईश्वर के नित्य अनादि सिद्धान्तों की विजय है। यह क्रूरता, हिंसा की पराजय है। यह विश्व शान्ति का ईश्वरीय मार्ग है। बाइबिल के इस वैदिक रंग पर सब ईसाई बन्धुओं को हमारी बधाई स्वीकार हो।

ईसा मसीह मुक्तिदाता नहीं था

issa masih

ईसा मसीह मुक्तिदाता नहीं था …….

लेखक :- अनुज आर्य 

इसाई लोग बड़े जोर सोर के साथ यह प्रचार किया करते है की इसा मसीह पर विश्वास ले आने से से ही मुक्ति मिल सकती है | अन्य कोई तरीका नहीं मुक्ति व् उद्धार का | स्वतः बाइबल में भी इसी प्रकार की बाते लिखी मिलती है जिनमे इसा मसीह को मुक्ति दाता बताया गया है | इस विषय में निम्न प्रमाण प्रायः उपस्थित किये जाते है | बाइबल में लिखा है कि –

” क्योंकि परमेशवर ने जगत से ऐसा प्रेम रक्खा कि उसे अपना इकलोता पुत्र दे दिया , ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नाश न हो परन्तु अनंत जीवन पाए (१३) जो उस पर विश्वास करता है उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती , परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं रखता वह दोषी ठहराया जा चूका है , इसलिए की उसने परमेश्वर के इकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया (१८ ) जो पुत्र पर विश्वास करता है अनंत जीवन उसका है परन्तु जो पुत्र को नहीं मानता , वह जीवन को देखेगा परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है ( ३६ ) ( युहन्ना ३  )

यह बात तो युहन्ना ने कही है की इसा पर ही विश्वास लाने से से उद्धार सम्भव है और जो उस पर विश्वास नहीं लाता उस पर परमेश्वर का कोप होगा | अब इसा मसीह का भी दावा देखिये वह क्या कहता है ? बाइबल में लिखा है –

” तब यीशु ने उनसे फिर कहा मै तुम से सच कहता हूँ की भेड़ो का द्वार मै हूँ ( ७) जितने मुझ से पहले आये वो सब डाकू और चोर है (८)द्वार मै हूँ यदि कोई मेरे भीतर प्रवेश करे तो उद्धार पायेगा (९)मेरी भेड़े मेरा शब्द सुनती है और मै उन्हें जानता हूँ और वे मेरे पीछे पीछे चलती है ( २७ ) और मै उन्हें अनंत जीवन देता हु और वे कभी नाश न होगी और कोई मेरे हाथ से छीन न लेगा (२८ )( युहन्ना १० )

इस उद्धरण में ईसा ने स्वंय को मनुष्य का उद्धारक बताया है और अपने भक्तो को भेड़े बताया है | भेड़ का यही गुण होता है की वह अन्धानुगमन करती है | यदि आगे की भेड़े कुए में गिर पड़े तो पीछे वाली भी उसी में गिरती चली जावेंगी उसमे सोचने की अकल नहीं होती | मसीह ने भी अपने चेलो को बुद्धिहीन व् मुर्ख भेड़े बताकर यह प्रकट कर दिया है की इसाई लोग बुद्धि से काम नहीं लेना चाहते है , वे सवतंत्र बुद्धि से कुछ नहीं सोच सकते है | यदि वे सोचने लगे तो न तो वे भेड़े रहे और न वे इसाई ही बने रह सकेंगे , क्योंकि फिर वे ईसा का अन्धानुगमन नहीं करेंगे |

साथ ही मसीह ने अपने से पहले पैदा हुए जननेताओ पैगमबरो को चोर डाकू बता कर गालिया दी है और उनकी निंदा की है ताकि लोगो का उन पर से विश्वास हट जावे और वे मसीह के अंधभक्त बन जावे |

अपने स्वार्थ के लिए दुसरो को गालिया देना बहुत ही निम्न स्तर की भद्दी बात है | यह बात प्रकट करती है की ईसा की विचारधारा कितनी गलत थी | ईसा मसीह अपने विरोधियो की हत्या भी कराया करता था | वह उनके विरोध को अपने सम्प्रदाय के फैलाने में घातक वा बाधक समझता था उसने स्वंय आदेश दिया था की –

” परन्तु मेरे उन बैरियो को जो नहीं चाहते की मै उन पर राज करू , उनको यहाँ लाकर मेरे सामने कत्ल करो ( लुका १९/२७ )

इस प्रकट है की मसीह प्रेम का प्रचारक नहीं था वह लोगो को धर्म और ईश्वर के नाम पर गुमराह करके अपनी हुकूमत इस्राइल में कायम करना चाहता था और एक नवीन सम्प्रदाय का प्रवर्तक बनने का प्रयत्न कर रहा था | साम दाम दंड भेद सभी हथकंडे वह काम में लाया करता था | उसने अपने विचारो को कभी छिपाकर भी नहीं रक्खा था | उसने स्पष्ट अपना उद्देश्य लोगो को बता दिया था | उसने घोषणा की थी कि –

” जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा इंकार करेगा , उससे मै भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने इंकार करूँगा ( ३३) यह न समझो की मै पृथ्वी पर मिलाप करने आया हूँ , मै मिलाप करने को नहीं पर तलवार चलाने को आया हूँ (३४)मै तो आया हूँ की मनुष्य को उसके पिता से , और बेटी को उसकी माँ से बहु को उसकी सास से अलग कर दूँ (३५)जो माता या पिता को मुझसे अधिक प्रिय जानता है वह मेरे योग्य नहीं है और जो बेटा या बेटी को मुझसे अधिक प्रिय जानता है वह मेरे योग्य नहीं ( ३७ )( मती -१० )

इन वाक्यों से मसीह ने अपना असली स्वरूप खोल कर सामने रख दिया है की उसका उद्देश्य इस्राइल समाज में आपस में युद्ध करवाना , समाजिक व्यवस्था का विध्वंश कराना , ईश्वर की आड़ में लोगो को धर्म का डर दिखा कर अपना चेला बनाकर सेना तैयार करना , पारिवारिक व्यवस्था को भंग करना , बाप बेटे , माँ बेटी के भाई बहन के पवित्र ओरेम को मिटवाना और घर घर में कलह पैदा कराकर लोगो को मोक्ष देने की आड़ में अपने साथ लेकर राज्य शासन को बागडोर हथियाना था | ईसा को उसके चेले यहूदियों का राजा बताते थे जैसा की उसकी सूली के समय लोगो ने उसे बताया था समाज में अव्यवस्था फैलाना व् धर्म तथा मोक्ष के नाम पर पुरानी व्यवस्थाओ को भंग करना सामाजिक व् राजनैतिक अपराध था और इसलिए ईसा को सूली दी गयी | अपना चेला बनने पर खुदा से सिफारिश करके मुक्ति दिलाने और जो चेला न बने उसकी सिफारिश न करके उसे दोजख में डलवाने आदि का प्रलोभन व् धमकी देना सरासर मसीह के गलत हथकंडे थे जिससे वह लोगो को फाँसकर अपनी भेड़ो की संख्या बढ़ाता करता था |

क्योंकि ईसा मसीह का जन्म माँ के क्वारेपन के गर्भ से हुआ था अतः उसके वास्तविक पिता को कोई नहीं जानता था और मरियम ने भी मसीह के वास्तविक मानवी पिता का नाम कभी किसी को नहीं बताया था अतः मसीह ने अपने को खुदा का ख़ास बेटा बताकर लोगो को धोखा दिया था |

मसीह का उद्देश्य उपर के प्रमाणों से अपवित्र साबित होता है | केवल वे ही लोग उसके चक्कर में फंस गये थे जिनकी बुद्धि सत्यासत्य के निर्णय में समर्थ नहीं थी इसलिए मसीह ने भी उनको भेड़े बताया था | तो जो मसीह क्रोधी हो अपने विरोधियो का कत्ल कराता हो समाज में तलवारे चलवाकर विद्रोह पैदा करता रहा हो जिसका उद्देश्य व् लक्ष्य श्रेष्ठ न रहा हो और जो स्वंय अपना उद्धार न कर सका हो जिसे उसके विरोधियो ने बदले में पकड़कर सूली पर चड़ा दिया हो और जो मौत से अपनी रक्षा न कर सका हो उसे संसार का उद्धारकर्ता खुदा का इकलौता बेटा तथा मोक्ष दाता नहीं माना जा सकता है | केवल इसाई भेड़े ही आँख बंद करके उस पर ईमान ला सकती है जैसा की बाइबल में लिखा है |

समझदार व्यक्ति यह नहीं देखते है की कोई क्या दावा करता है वरन वे यह देखते है की क्या दावा करने वाले में दावे को सत्य सिद्ध करने की क्षमता भी है या उसका दावा केवल आत्मप्रशंसा या स्वार्थपूर्ति के लिए कोरा धोखा है | मसीह का दावा सर्वथा गलत उस समय हो गया जब उसे सूली पर चड़ा दिया गया | उस समय न तो खुदा या उसकी फौजे ईसा की मदद को आई और न ही वह स्वंय मौत से बचने का कोई चमत्कार दिखा सका |मुक्ति ईसा या किसी व्यक्ति पर विश्वास लाने से नहीं मिल सकती है हर व्यक्ति के कल्याण के लिए उसके भले व् बुरे कर्म ही जिम्मेवार होते है प्रत्येक प्राणी अपने ही कर्मो का फल भोगता है | स्वंय बाईबल में भी इस विषय के कई प्रमाण मिलते है जिनसे ईसा मसीह का यह दावा झूठा हो जाता है की वह लोगो के पाप नाश करके उनका उद्धार केवल उस पर विश्वास लाने से कर देगा | बाइबल के चंद प्रमाण इस विषय में द्रष्टव्य है —

” जो प्राणी पाप करेगा वही मरेगा | न तो पुत्र पिता के अधर्म का भार उठाएगा और न पिता पुत्र के धर्मो का |अपने ही धर्म का फल और दुष्ट को अपनी दुष्टता का फल मिलेगा ( यहेजकेल १८/२० )

धोखा न खाओ , परमेश्वर टटटो में नहीं उड़ाया जाता , क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है वही काटेगा ( गलतियों ६/७)

” परमेश्वर हर एक को उसके कर्मो का प्रतिफल देगा “( मत्ती १६/१७)

बाईबल के उपर प्रमाण यह घोषणा करते है की सभी मनुष्यों को उनके कर्मानुकुल ही फल मिलेगा | इससे किसी भी एक आदमी पर ईमान लाने की आवश्यकता नहीं है और न कोई आदमी किसी के पाप पुण्य को क्षमा कर सकता है |कर्म करना हर मनुष्य के अधिकार की बात है और फल देना परमात्मा का काम है | मनुष्य और परमात्मा के बिच किसी भीं दलाल या वकील की कोई आवश्यकता नहीं है | ईसा मसीह या मुहम्मद साहब या अन्य किसी भी एजेंट या वकील की आवश्यकता नहीं है | शुभ अशुभ कर्मो की ही प्रधानता फल भोग में रहती है | बाइबल में भोले लोगो को लिखा है की मसीह लोगो के पाप अपने साथ ले गया था यह बात भी गलत है पाप क्या कोई धातु या कपडा के थोड़े होते है जो कोई लाद  के ले जावेगा ? जो मसीह स्वंय अपने गलत कर्मो और पापो की वजह से सूली पर चडाया गया , अपने को ही अपने पापो से न बचा सका वह बेचारा दुसरो के पाप क्या दूर करेगा ? यदि ईसा मसीह की सिफारिश मान कर लोगो के पाप दूर करा देगा तो कुरआन में मुहम्मद साहब का और गीता में श्री कृष्ण जी का दावा भी क्यों न माना जाए ?सभी ने ईसा की तरह पाप दूर करने का ठेका लिया था | गंगा गंगा जपने से , शिवलिंग के दर्शन करने से , राम राम कृष्ण कृष्ण करने से भी पापो का दूर होना क्यों न माना जावे ? हिन्दुओ के पाप नाश के तरीके इसाई मुसलमानों के नुस्खो से सस्ते और श्रेष्ठ है तो इसाई स्वंय भी हिन्दुओ के तरीको से लाभ क्यों नहीं हिन्दू बनकर लाभ उठाते है ?

ईसाई जीवात्मा को अनादी अनंत सत्ता तो मानते नहीं है और न पुनर्जन्म को ही मानते है तो यदि हम उनकी मान्यता पर यह कहें की जन्म के समय उनकी आत्मा खुदा पैदा कर देता है और उसके मरने के बाद वह नष्ट हो जाती है , मरने के बाद जीवात्मा या रूह नाम की कोई वस्तु कायम नहीं रह जाती है जिसे स्वर्ग या दोजख में उनका खुदा भेजता है न कोई मुक्ति है न कोई स्वर्ग नरक है न कोई वकील या दलाल मसीह या मुहम्मद साहब की हस्ती खुदा से सिफारिश कराने वाली है तो इसमें क्या गलती होगी ? इसाई मुसलमानों के पास ऐसी कोई दलील मरने के बाद जीवात्मा अस्तित्व साबित करने की नहीं हो सकती है |जब पुनर्जन्म नहीं होना है और जीवो को पुनः भले बुरे कर्म करने का आगे कभी अवसर नहीं मिलना है तो फिर मरने के बाद उसे कायम रखने की जरूरत साबित नहीं की जा सकती है ? तब ईसा मसीह का लोगो को अपने चेले बनाकर मुक्ति खुदा से बाईबल में सिफारिश करने की सारी बात स्वंय गप्पाषटके साबित हो जाती है |

इसके अतिरिक्त इसाई खुदा से न्याय की आशा भी नहीं की जा सकती है | क्योंकि वह गुस्सेबाज है ( याशायाह ५४/७-८ ) | वह गलती करके पछताता रहता है ( शैमुअल १५/३५ तथा उत्पत्ति ६/६ ) |खुदा मुकदमे लड़ता था ( यहेजकेल १७/२० ) आदि में खुदा को कम समझने वाला भी साबित किया गया है | तो ऐसा खुदा दुसरो से क्या न्याय करेगा | सम्भव है वह न्याय में भी गलती करके फिर पछताने लगे और जीवो का सर्वनाश गुस्से में कर डाले | ऐसे कम समझ इसाई खुदा पर ईमान लाना भी इसाइयों की भूल है |

ईसा मसीह को खुदा का इकलौता बेटा बताकर भी बाइबल ने सत्य नहीं बोला है | बाइबल में अय्यूब १/६ में लिखा है की इसाई ईश्वर के बहुत से बेटे है केवल एक बेटा नहीं था तथा भजन संहिता ८२ में लिखा है की ईश्वर भी बहुत से है तो इसाई बतावे की उनका ख़ास खुदा बहुत से खुदाओ में से कोण था जिसे वे मानते है और जब सैकड़ो बेटे अय्यूब १ में लिखे है तो वे मसीह को इकलौता बेटा बता कर वे लोगो को धोखा देकर जुर्म क्यों करते है | समझदार व्यक्ति जानता है की वैदिक धर्म के सत्य तर्क युक्त सिद्धांतो के सामने इसाई मत के सिद्धांत ठहर नहीं सकते है | इसाई लोग अपनी कल्पित बात लोगो को सुना सुनाकर लोभलालच देकर फांसने व् गरीब हिन्दुओ का ईमान भ्रष्ट करते रहते है | अतः सभी को इस मजहब के प्रचारको से सावधान रहना चाहिए जहाँ भी इसाई प्रचारक जावे उन्हें शास्त्रार्थ के लिए ललकारना चाहिए और उनकी कलई खोलनी चाहिए ताकि कोई हिन्दू इनके चक्कर में न फंस सके |

सभी भारतीय इसाई नस्ल से हिन्दू ही है | कभी लोग लालच या दबाव के कारण वे या उनके पूर्वज इसाई बने होंगे | उनको पुनः शुद्ध करके हिन्दू धर्म में शामिल कर लेना चाहिए और उनके साथ समानता का व्यव्हार करना चाहिए |

ईसा के सम्बन्ध में अनेक विचार –

jesus u really know him

ईसा के सम्बन्ध में अनेक विचार –

लेखक – महात्मा नारयण प्रसाद

पहला विचार जो ईसा की सत्ता के सम्बन्ध में है वह यह है की ईसा वास्तव में कोई हुआ ही नहीं, इस सम्बन्ध में जो बातें कही और प्रमाण रूप में उपस्तिथ की जाती है, ये है :-

१.       समकालीन लेखकों के लिखे लेखो अथवा इतिहासों में ईसा के जीवन का संकेत भी नहीं पाया जाता –“ हिस्टोरियन हिस्ट्री ऑफ दी वल्ड “ vol 2, col 3 में लिखा है “यह निश्चित नियम है की महान पुरषों की महता उनके जीवन काल ही में उनके नामो से प्रगट होने लगती है- परन्तु ईसा के नाम अथवा जीवन  घटनाओ का उस समय के इतिहासों में सर्वथा अभाव है | न केवल इतना ही है की तत्कालीन लेखो में ईसा का नाम का और जीवन घटनाओ का अभाव है किन्तु पीछे हुई कतिपय नसलो तह के लेखो में उस की सत्ता का कोई चिन्ह नहीं पाया जाता |

२.       दूसरा विचार यह है- कुछ बातें कृष्ण और बुद्ध से लेकर इंजील के लेखकों ने ईसा की कल्पना कर ली है वास्तव में ईसा कोई नहीं था | इस बात की स्थापना के लिये “ कृष्ण के क्राइस्ट “ नामक पुस्तक देखने के योग्य है | पुस्तक के रचियता ने, बड़े परिश्रम के साथ, पुराण और इंजील की तुलना करते हुए इंजील का उनके आधार पर रचा जाना प्रमाणित करने का उद्योग किया है |

ईसा की जन्मतिथि भी निश्चित नहीं है | ईसवी सन जो प्रचलित है | ईसा के जन्म काल से बताया जाता है—परन्तु बात यह है की ईसा का जन्म काल अनिश्चित और विरोध पूर्ण है | इसलिए नहीं कहा जासकता कि यह सन ईसा के जन्म काल से है |

(क)  चेंबर का encyclopedia ( chamber’s Encyclopedia ) में सन ईसवी से कुछेक वर्ष और कम से कम चार वर्ष पहले ईसा का जन्म काल बतलाया गया है |

(ख)  Appleton’s New Cyclopedia ) में ६ वर्ष पहिले का जन्म बतलाया गया है |

(ग)   (The Treasury of Bible Knowledge new Edition page 191 ) “ परट महोदय ने “ जन्म तिथि ७ वर्ष पाहिले अक्टुम्बर मांस में निश्चित की है |

(घ)   इसी प्रकार जन्म वर्ष की तरह जन्मतिथि और मास भी विवाद पूर्ण और अनिश्चित है |

दूसरा विचार ईसा के सम्बन्ध में यह है की ईसा हुआ तो परन्तु वह १२ वर्ष की आयु तक जेरोसलिम आदि में रहा उस के बाद शिक्षा पाने के लिए भारत वर्ष चला आया और ३० वर्ष की आयुतक यहाँ शिक्षा पाता रहा | उस के बाद लोटकर जेरोसलिम गया | और वहाँ जाकर उसने ईसाई धर्म की स्थापना की | इस विचार के समर्थक रूस के यात्री “ निकोलस नोटोविच “ है |

नोटोविच महोदय ने एक पुस्तक प्रकाशित की थी जिसका नाम है | ( ईसा का अज्ञात जीवन चरित्र ) ( Unknown Life of Christ by Nicolas Notovitch ) पुस्तक में उन्होंने “ हिमिज “ ( Himij ) के पुस्तकालय से ईसा का एक जीवन चरित्र प्राप्त कर के छापा था |

यह जीवन चरित्र, नोटोविच का कथन है कि पाली भाषा में था और हिन्दुस्थान में लिखा गया था | उस की पाली भाषा की लिपि ( तिबत ) के पुस्तकालय में है | उसी कॉपी से यह अनुवाद तिब्बती भाषा में किया गया था | जो उन्हें हिमिज के पुस्तकालय में मिला | जीवन चरित्र पद्यमय है | जो नोटोविच ने पुस्तक का प्रथम संस्करण प्रकाशित किया था | तो उस पर स्वाभाविक रीती से पादरियों और कुछेक अन्य पुरषों में जिन में मोक्षमुलर साहिब भी सम्मिलित थे, आक्षेप किये और पुस्तक का प्रभाव दूर करने का यत्न किया गया | यह भी कहा गया की नोटोविच न तिब्बत गये, न वहा कोई पुस्तकालय “ हिमिज ” नाम का स्थान है इत्यादि ……….परन्तु पुस्तक के अंग्रेजी भाषा के संस्करण में (जो फ्रेंच भाषा में था ) नोटोविच ने समस्त आक्षेपो का सफलता के साथ परिहार किया है | उन्होंने अंग्रेज कर्मचारियों के नाम भी दिये है जिनसे वे इस यात्रा में मिले थे उन में अंग्रेजी सेना के एक मुख्य कर्मचारी “ यंगहस्वेंड “ भी सम्मिलित है जिन के नेतृत्व में अंग्रेजो की और से तिब्बत पर चढाई हुई थी – “ हिमिज “ स्थान का भी उन्होंने सविवरण पता दिया है और उस का मार्ग भी बतलाया है |

जीवन चरित्र, जो उपयुक्त भांति नोटोविच महोदय को प्राप्त हुआ है | उस की मुख्य मुख्य बातें यह है | जीवन चरित्र में प्रथम बतलाया गया है | कि ये चरित्र विवरण लेखक को इसराइली व्यापारियों के द्वारा प्राप्त हुये थे :-

तत्पश्चायत चरित्र विवरण इस प्रकार वर्णित है :-

१.       “ ईसा जब १३ वर्ष का हुआ तो उस के विवाह कि छेड़ छाद शरू हुई, इस से अप्रसन्न होकर व्यापारियों के साथ वह सिंध चला आया- कि यहाँ आकर बुद्धमत की शिक्षा प्राप्त करे-

सिंध से काशी आया और यहाँ ६ वर्ष तक रहकर उसने धार्मिक शिक्षा पाई – उसे वैश्यों और शुद्र से अनुराग था उन्ही में वह प्राय: रहा करता था | यंहा से शाक्य मुनि बुद्ध की जन्म भूमि में गया, पाली भाषा सीखी और ६ वर्ष में बौद्ध मत की शिक्षाओ से पूर्णतया अभिज्ञ हुआ |

तत्पश्च्यात पश्चिम की और पारसियो के देश में पंहुचा और धर्मं प्रचार करता हुआ जेरुसलिम, ३० वर्ष की आयु में पहुँच गया “ |

उस का जन्म किस प्रकार हुआ, और मृत्यु किस प्रकार उसने मार्ग में क्या क्या उपदेश किये थे, इयादी बातें भी प्राप्त जीवन चरित्र में अंकित है | परन्तु विस्तार भय से यंहा छोड़ दी गई |

ईसा का १३-३० वर्ष तक का जीवन किस प्रकार व्यतीत हुआ, उसने इस आयु में क्या क्या सिखा अथवा क्या क्या काम किये ? इन प्रश्नों का उत्तर देने में समस्त इंजील असमर्थ है | ईसा के तो जीवन चरित्र, इस नवीन “ प्राप्त जीवन चरित्र को छोड़कर, अब तक प्रकाशित हुये है, उनमे भी उपयुक्त आयु की मध्य की किसी एक घटना का भी उल्लेख नहीं किया गया है |

 

तीसरा विचार वह है कि ईसा जेरोसलिम की फीमैनरी सोसाइटी का सदस्य था | वही उसने शिक्षा प्राप्त की और जान द्वारा ( John, the Baptist ) जो उसके साथ ही उपयुक्त सोसाइटी का सदस्य बना था, सोसाइटी के नियमानुसार, बिपतस्मा लिया | और सोसाइटी की अनूमति ही से उसने प्रचार कार्य आरम्भ किया- उसके प्रचार से यहूदी पुजारी अप्रसन्न हुए फल स्वरुप उसे सूली मिली परन्तु सुलि से वह मरा नहीं था | राज कर्मचारियों ने उसे भ्रम से मरा समझ लिया था | क्यों की क्लेश यातना से यशु मूर्छित हो गया था |

सोसाइटी के सदस्य जोसेफ से उसका शव जो वास्तव मे जीवित शरीर था प्राप्त किया तिकोडेमस एक चिकत्सक ने उसकी चिकित्सा की वह अच्छा हो गया और कुछ दिनों तक वह फिर सोसाइटी की देख भाल में कार्य करता रहा अंत में उसकी मृत्यु हुई और समुद्र के एक स्थान में दफ़न किया गया-इस विचार का सम्रथन उस पत्र से होता है जो इंजिलो के लिखेजाने से वर्षों पहले का है और इस पुस्तक में प्रकाशित किया गया है | इस विचार का परिणाम यह है की ईसा के समस्त चमत्कार, और विशेष कर मृत्यु सम्बन्धी सब से बड़ा चमत्कार जिन के कथनों अकथानो से इंजील भरी पड़ी है, निर्मूल और बनावटी, केवल उस समय के अंध विश्वासी लोगो के फुसलाने के लिए उसके शिष्यों द्वारा गढे सिद्ध होते है | और इस परिणाम का फल यह होता है कि इंजीलओ का इंजीलत्व रुखसत हो जाता है | इन इंजीलओ का मुख्य और बड़ा भाग ईसा के उपयुक्त भांति कल्पित चमत्कार ही है |