ईसा की “अशांति अवधारणा” (आतंकी शिक्षा) का सच और
“शांतिवादी सिद्धांत” अहिंसा सिद्धांत
या बिलकुल सरल भाषा में कहे तो –
“ईसा के शांतिवादी सिद्धांत का मिथक”
मेरे मित्रो,
जैसे की हम सब जानते हैं – ईसाई मत के अनेक पैगम्बर – चरित्रहीन गुणों से लबरेज थे – पूरा ईसाई मत और बाइबिल – इन पैगम्बरों के चरित्रहीन होने का पुख्ता सबूत तो है – उसके साथ साथ चरित्रहीनता को यहोवा का समर्थन और पैगम्बरों को ऐसे दीन-हीन कर्म करने को “कर्तव्य” समझ कर धारण करने का खुला आवाहन खुद ईसाइयो का “परमेश्वर यहोवा” करता है – पिछली अनेक पोस्ट से ज्ञात हुआ –
आज हम जिस बात पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करेंगे – वो है – “ईसा का झूठा शांति सिद्धांत” या फिर कहे की ईसा के शांतिपाठ का पोल खोल –
हमारे अनेक ईसाई मित्र – ऐसी तर्कहीन या यु कहे – अफवाह उड़ाते हैं – की ईसा एक शांति दूत था – जिसने बाइबिल में अनेक बार शांति की बात की – खुद शांति के लिए मर गए – यहाँ शांति से तात्पर्य अहिंसा से भी है – आइये देखे –
ईसा का तथाकथित शांति अहिंसा का पाठ :
एक “अहिंसावादी” “शांतिदूत” खासतौर पर या आमतौर पर एक ऐसे व्यक्ति को कहा जाता है जो किसी भी प्रकार की हिंसा का किसी भी कारण से समर्थन नहीं करता। यही “अहिंसावादी” या “शांतिदूत” का पारिभाषिक अर्थ होगा – और होना भी यही चाहिए – यदि बाइबिल में ईसा की केवल दो चार बातो से ही ईसा का ऐसा सिद्धांत ईसाई मित्र मानते हैं – तो उन्हें में केवल “मुर्ख” का ही दर्ज़ा दे सकता हु – क्योंकि दो चार बातो से तो पूरी बाइबिल की शिक्षा ही बेकार साबित होती है – फिर दो चार बातो के जरिये ही ईसा को “अहिंसावादी” और “शांतिदूत” जैसे शब्दों से नवाजना – ये गलत होगा –
आइये ईसा की कुछ शांतिप्रिय एक दो बातो को देखे –
38 तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था, कि आंख के बदले आंख, और दांत के बदले दांत।
39 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि बुरे का सामना न करना; परन्तु जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उस की ओर दूसरा भी फेर दे।
40 और यदि कोई तुझ पर नालिश करके तेरा कुरता लेना चाहे, तो उसे दोहर भी ले लेने दे।
41 और जो कोई तुझे कोस भर बेगार में ले जाए तो उसके साथ दो कोस चला जा।
42 जो कोई तुझ से मांगे, उसे दे; और जो तुझ से उधार लेना चाहे, उस से मुंह न मोड़॥
43 तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर।
44 .परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करो।
(मत्ती – Mt – अध्याय ५ : ३८-४४)
तो ये है वो आयते जिनको लेके – ईसाई मित्र – अनेक हिन्दू भाइयो को भरमजाल में फंसाते हैं – और ईसा को अहिंसावादी घोषित कर देते हैं – ऐसी ही तथाकथित “शांतिप्रिय” कुछ आयते – क़ुरआन में भी पायी जाती हैं – तो क्या क़ुरआन को भी “शांतिवादी” “अहिंसावादी” घोषित कर दोगे ?
ऊपर जो अर्थ दिया था – उस हिसाब से तो ईसाई सही कहते हैं ऐसा प्रतीत होता है – क्योंकि ईसा ने वाकई शांति की बात की – मगर ये जो प्रतीत होता है, क्या वाकई सत्य है ?
आइये एक नजर ईसा की वास्तविक शिक्षा पर नजर डालते हैं – जिससे ईसा के शांतिप्रिय होने की खोखली दलील बेनकाब हो जाएगी।
मत्ती अनुसार ईसा की क्रूरतापूर्ण शिक्षाये :
34 यह न समझो, कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने को आया हूं; मैं मिलाप कराने को नहीं, पर तलवार चलवाने आया हूं।
35 मैं तो आया हूं, कि मनुष्य को उसके पिता से, और बेटी को उस की मां से, और बहू को उस की सास से अलग कर दूं।
36 मनुष्य के बैरी उसके घर ही के लोग होंगे।
(मत्ती अध्याय 10)
6 तुम लड़ाइयों और लड़ाइयों की चर्चा सुनोगे; देखो घबरा न जाना क्योंकि इन का होना अवश्य है, परन्तु उस समय अन्त न होगा।
(मत्ती अध्याय 24)
36 यीशु ने उत्तर दिया, कि मेरा राज्य इस जगत का नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते, कि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाता: परन्तु अब मेरा राज्य यहां का नहीं।
(यूहन्ना अध्याय 18)
13 और वह लोहू से छिड़का हुआ वस्त्र पहिने है: और उसका नाम परमेश्वर का वचन है।
14 और स्वर्ग की सेना श्वेत घोड़ों पर सवार और श्वेत और शुद्ध मलमल पहिने
हुए उसके पीछे पीछे है।
15 और जाति जाति को मारने के लिये उसके मुंह से एक चोखी तलवार निकलती है, और वह लोहे का राजदण्ड लिए हुए उन पर राज्य करेगा, और वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के भयानक प्रकोप की जलजलाहट की मदिरा के कुंड में दाख रौंदेगा।
(प्रकाशित वाक्य, अध्याय 19)
12 और उन्होंने उस से बिनती करके कहा, कि हमें उन सूअरों में भेज दे, कि हम उन के भीतर जाएं।
13 सो उस ने उन्हें आज्ञा दी और अशुद्ध आत्मा निकलकर सूअरों के भीतर पैठ गई और झुण्ड, जो कोई दो हजार का था, कड़ाडे पर से झपटकर झील में जा पड़ा, और डूब मरा।
(मरकुस अध्याय 5)
ईसा की ईर्ष्यालु शिक्षा :
20 तब वह उन नगरों को उलाहना देने लगा, जिन में उस ने बहुतेरे सामर्थ के काम किए थे; क्योंकि उन्होंने अपना मन नहीं फिराया था।
(मत्ती अध्याय 11)
29 और जिस किसी ने घरों या भाइयों या बहिनों या पिता या माता या लड़केबालों या खेतों को मेरे नाम के लिये छोड़ दिया है, उस को सौ गुना मिलेगा: और वह अनन्त जीवन का अधिकारी होगा।
(मत्ती, अध्याय 19)
21 एक और चेले ने उस से कहा, हे प्रभु, मुझे पहिले जाने दे, कि अपने पिता को गाड़ दूं।
22 यीशु ने उस से कहा, तू मेरे पीछे हो ले; और मुरदों को अपने मुरदे गाड़ने दे॥
(मत्ती, अध्याय 8)
1 तब यरूशलेम से कितने फरीसी और शास्त्री यीशु के पास आकर कहने लगे।
2 तेरे चेले पुरनियों की रीतों को क्यों टालते हैं, कि बिना हाथ धोए रोटी खाते हैं?
3 उस ने उन को उत्तर दिया, कि तुम भी अपनी रीतों के कारण क्यों परमेश्वर की आज्ञा टालते हो?
4 क्योंकि परमेश्वर ने कहा था, कि अपने पिता और अपनी माता का आदर करना: और जो कोई पिता या माता को बुरा कहे, वह मार डाला जाए।
5 पर तुम कहते हो, कि यदि कोई अपने पिता या माता से कहे, कि जो कुछ तुझे मुझ से लाभ पहुंच सकता था, वह परमेश्वर को भेंट चढ़ाई जा चुकी।
6 तो वह अपने पिता का आदर न करे, सो तुम ने अपनी रीतों के कारण परमेश्वर का वचन टाल दिया।
7 हे कपटियों, यशायाह ने तुम्हारे विषय में यह भविष्यद्वाणी ठीक की।
(मत्ती, अध्याय 15)
लिखता जाऊँगा तो अंत नहीं – बाइबिल के पुरे नियम में – ईसा ने केवल – लड़ाई झगडे – परिवार को बांटने – लड़ने – तलवार खरीदने – मंदिर और मुर्तिया तोड़ने – यहाँ तक की यदि कोई ईसा को भोजन करने से पहले हाथ धोने की नसीहत दे दे तो उसे भी जान से मारने को तईयार रहने वाली शिक्षा का बोल वचन सुना दिया – भाई क्या ये ही “शांतिवाद” और अहिंसा का सबक है ईसा का ?
इससे भी बढ़कर – पुराने नियमानुसार – जो जो क्रुरताये और पैगम्बरों – भविष्वक्ताओ की बाते और क्रूर नियम – जाहिल रिवाज – और जंगली सभ्यता थी – उसकी भी वकालत – ईसा ने की है – साथ ही ये भी कह दिया की – उसमे कोई बदलाव नहीं हो सकता – वो पूर्ण है – और इसी जंगली, वहशी, क्रूर नियमो को पूर्ण करने ईसा आया है – देखिये
17 यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों को लोप करने आया हूं।
18 लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूं, क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएं, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा।
(मत्ती, अध्याय 5)
मेरे ईसाई मित्रो – बाइबिल के पुराने नियम में कितना व्यभिचार, जंगली रिवाज और असभ्यता मौजूद है – वो आपको पता है – अब यदि ईसा खुद उसे नकार नहीं रहा – बल्कि उसे पूर्ण करने आया है – तब आप क्यों नकार रहे हो ?
नोट : पुराने नियम का जंगली रिवाज एक ये भी था की पिता अपनी पुत्री की योनि में अपनी ऊँगली कपडे से ढक कर डालता और पुष्टि करता था की पुत्री कुंवारी है – अथवा सुहागरात मनाने वाले वर वधु की चादर को पुरे समाज में दिखाता था की उसकी पुत्री कुंवारी है।
लेख को बहुत बड़ा करने का उद्देश्य नहीं है – इसलिए पाठकगण संक्षेप में ही समझ जायेंगे – उद्देश्य केवल इतना है की ईसा जैसा था वैसा ही मानने में समझदारी है – कहने को तो गांधी जी भी अहिंसाप्रिय थे – मगर वो हिन्दू समाज को केवल “पंगु अवस्था” में छोड़ गए – इसलिए अभी भी समय है – चेत जाओ –
धर्म की और आओ –
वेद की और आओ
सत्य की और आओ
लौटो वेदो की और
नमस्ते