श्री ब्रजराज जी आर्य का जन्म बीसवीं शताब्दी के द्वितीय दशक के मध्य में तह. ब्यावर, जिला, अजमेर राज. में हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री गोपीलाल जी व माता जी का नाम दाखा बाई था। आपके पिताजी का खेती व चूने भट्टे का व्यवसाय था। उनका जन्म एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। श्री ब्रजराज जी १० वर्ष की आयु में ही आर्य समाज के सम्पर्क में आ गए थे। अल्प आयु में ही वे समाज के प्रति समर्पित हुए। उनके मन में समाज सेवा व देशप्रेम के प्रति लगन थी। उन्होंने आर्य वीर दल के शिविरों में बौद्धिक व शारीरिक प्रशिक्षण प्राप्त किया। श्री रामदेव जी साम्भर वालों से लाठी व तलवार का ज्ञान प्राप्त किया, जिससे श्री ब्रजराज जी को लाठी व तलवार संचालन का अच्छा ज्ञान प्राप्त हुआ। वे एक अच्छे आर्यवीर होने के साथ अच्छे पहलवान भी थे। होली के अवसर पर श्री बजरंग महाराज अनेक स्वांग रचते हुए मुसलमानों के मौहल्ले से गुजरते थे। इस पर मुसलमानों ने बजरंग महाराज को पीटा, जिससे उनके अनेक चोटें आईं। इस पर ब्रजराज जी ने मुसलमानों के मौहल्ले में जाकर उनको ललकारा और मुसलमानों को खदेड़कर आर्य शक्ति का परिचय दिया। ब्रजराज जी पहलवानों के साथ रहने से मजबूत व निर्भीक हो गए। उनका विवाह श्रीमती भँवरी देवी के साथ सम्पन्न हुआ। श्री प्रभु आश्रित जी के द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया, उससे इनके सन्तानें हुईं। युवा अवस्था में ही इनके दो पुत्रों की मृत्यु हो गई। ‘जन्म व मृत्यु एक अटल सत्य है’ इससे परिचित अपने पुत्रों की मृत्यु को भी सहजता से स्वीकार कर लिया। सन् १९५० में वे व्यायामशाला के माध्यम से आर्य समाज के सेवाभावी कार्यकर्त्ता बन गए। अस्पताल में गरीबों व रोगियों को औषधि, फल वितरण, प्रसव हेतु सामग्री प्रदान करने, गरीबों की बच्चियों का विवाह करवाने हेतु आर्थिक सहयोग प्रदान करते थे। वे एक ईमानदार एवं सत्यवादी व्यक्ति थे। धीरे-धीरे उनकी सत्यवादिता व ईमानदारी समाज में प्रचारित होने लगी।
ब्यावर की जनता ने ऐसे कर्मठ समाजसेवी को नगर पालिका, ब्यावर के चुनाव में खड़े होने के लिये कहा, तो उन्होंने मना कर दिया। इस पर वहाँ के लोगों ने स्वयं ही चुनाव का फार्म भरकर, उनके हस्ताक्षर करवाकर, उनको विजेता बनवाया। चुनाव के प्रचार के लिये ब्रजराज जी ने एक रुपया भी खर्च नहीं किया। लगभग ३५ वर्ष तक उन्होंने समाज सेवा की। प्रत्येक तीन माह में जनता की मीटिंग बुलवाते तथा सभी विकास के कार्यों को बतलाते। उनकी समस्या व समाधान पर चर्चा करते। उक्त मीटिंग का प्रचार मैं स्वयं तांगे में बैठकर किया करता था।
सन् १९५६ में सम्पूर्ण भारत की प्रथम वातानुकूलित बस सेवा का परमिट माँगा। उस बस में ए.सी., पंखें, रेडियो, अखबार, बच्चों के लिये खिलौने, पानी और आरामदायक सीटों की व्यवस्था का दावा किया। उच्च न्यायालय में वकालात कर रहे एवं नगर परिषद् ब्यावर के चेयरमैन रह चुके श्री महेशदत्त भार्गव ने यहाँ तक कहा कि आर्यसमाजी श्री ब्रजराज आर्य कभी झूठ नहीं बोलते। ये जो कहते हैं वह करके दिखाते हैं और यदि ये अपने दावे में कहीं पर भी कमजोर साबित हुए तो स्वयं ही हमें परमिट लौटा देंगे। जब इस तरह की अत्याधुनिक सुविधा सम्पन्न बस के संचालन हेतु परमिट माँगी तो अनुमति प्रदान करने वालों को यह पूर्णतया मिथ्या लगा। और तब ब्रजराज जी आर्य की सत्यनिष्ठा एवं ईमानदारीपूर्ण व्यक्तित्व के साक्षी एक सदस्य श्री महेशदत्त भार्गव के कहने पर परमिट मिली। और तब उस बस का निर्माण किया गया। यह बस ब्यावर से अजमेर के लिए संचालित की गई। उस जमाने में इस प्रकार की सर्वसुविधायुक्त बस का निर्माण एवं संचालन ने जनता व अधिकारियों को अचम्भित कर दिया। उस बस में बैठने वालों में मैं भी सम्मिलित था।
इसी प्रकार एक बार नगर परिषद् ब्यावर ने पानी के मीटर लगाने की तैयारी की, तो श्री ब्रजराज जी ने इसे जनता के विरुद्ध मानते हुए, उन मीटरों को नहीं लगाने के लिए आन्दोलन छेड़ दिया तथा पक्ष व विपक्ष के पार्षदों को आमन्त्रित किया। श्री ब्रजराज जी के पक्ष में पानी के मीटर नहीं लगाने हेतु अधिकांश पार्षदों एवं सम्पूर्ण जनता ने अपना समर्थन दिया।
अगस्त १९७५ में अजमेर में बाढ़ के समय काफी तबाही हुई, जिसमें ब्रजराज जी के नेतृत्व में आर्य समाज ब्यावर ने सेवा की। लगभग तीन-चार दिनों तक पाँच-पाँच हजार लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था करवाई। लगभग ५० कार्यकर्त्ता प्रतिदिन सेवा में आते थे। गायत्री मन्त्र के उपरान्त सबको भोजन करवाया जाता था। वर्तमान कलेक्टर श्री कुमठ जी भी उनकी प्रशंसा करते थे। अजमेर के अतिरिक्त डेगाना, नागौर में भी उन्होंने सेवा प्रदान की।
२६ जनवरी २००१ में आये भूकम्प से तबाह हुए गुजरात राज्य में भी श्री ब्रजराज जी के नेतृत्व में आर्यसमाज ब्यावर ने सेवा प्रदान की।
श्री ब्रजराज जी काफी समय तक आर्य समाज ब्यावर के प्रधान व मन्त्री पद पर रह कर सेवा प्रदान की।
वर्तमान में श्री ब्रजराज जी की आयु १०० वर्ष से ऊपर हो गई है किन्तु वे प्रतिदिन दैनिक यज्ञ करना नहीं भूलते। यज्ञ की प्रेरणा उनको श्री प्रभु आश्रित जी ने प्रदान की थी।