भेंट-उपहार देकर ”दिल जीतना“
वितरण के सिद्धान्त का आधार जरूरत अथवा न्याय अथवा पात्रता ही नहीं था। मुहम्मद अन्य बातों का भी ध्यान रखते थे। वे कहते हैं-”मैं उन को (बहुत सी बार पार्थिव उपहार) प्रदान करता हूं जो अभी कुछ दिन पहले तक कुफ्र की हालत में थे, ताकि मैं उन को सच्चाई की ओर झुका सकूं“ (2303)।
उपहार की मदद से लोगों के दिल इस्लाम के वास्ते जीतना (मुअल्लफा कुलुबहुम) सर्वथा निर्दोष व्यवहार समझा जाता है, जो कुरान के उपदेशों के पूर्णतः अनुरूप है (9/60)। लोगों को इस्लाम की तरफ लाने के लिए मुहम्मद ने उपहारों का असरदार इस्तेमाल किया। नए-नए मतान्तरित लोगों को वे उदारतापूर्वक इनाम देते थे जबकि पुराने मुसलमानों को अनदेखा कर देते थे। साद बतलाते हैं कि ”अल्लाह के रसूल ने लोगों के एक गिरोह को उपहार दिए, किन्तु एक शख्स को उन्होंने छोड़ दिया और उसे कुछ नहीं दिया, और मुझे वह शख्स उन सब में सर्वोत्तम दिख रहा था।“ साद ने उस मोमिन की तरफ पैगम्बर का ध्यान खींचा। पर मुहम्मद ने उत्तर दिया-”वह मुसलमान भले ही हो। मैं अक्सर किसी आदमी को इस डर से कुछ प्रदान कर देता हूं कि वह कहीं तेजी से (नरक की) आग में न गिर जाए। भले ही उससे अधिक प्रिय कोई अन्य व्यक्ति बिना कुछ पाए रह जाए“ (2300)। यहां आग में गिरने से आशय है कि व्यक्ति इस्लाम को छोड़कर फिर अपने पुराने धर्म-पथ को अपना सकता है। अनुवादक और टीकाकार यह कह कर इस मुद्दे को बिल्कुल स्पष्ट कर देते हैं कि ”किसी व्यक्ति को ज्यादा करीब लाने के लिए और मुस्लिम समाज में उसके हिल-मिल जाने के लिए पाक पैगम्बर उसे पार्थिव उपहार-स्वरूप देते थे“ (टि0 1421)।
इसी प्रकार के अन्य उदाहरण भी हैं। अब्दुल्ला बिन जैद बतलाते हैं ”जब अल्लाह के रसूल ने हुनैन को फ़तह किया, तो उन्होंने युद्ध की लूट का माल बांटा, और जिनके दिल वे जीतना चाहते थे उनको उपहार दिए“ (2313)। उन्होंने उन कुरैश और बद्दू मुखियाओं को कीमती उपहार दिए जो कुछ ही हफ्तों पहले उनके शत्रु थे। अहादीस ने उपहार पाने वाले इन अभिजात लोगों में से कुछ के नाम संजो रखे हैं, जैसे अबू सुफिया बिन हर्व, सफवान बिन उमय्या, उयैना बिन हिस्न, अक़रा बिन हाबिस और अलक़मा बिन उलस (2303-1314)। इनमें से हरेक को लड़ाई की लूट में मिले माल में से सौ-सौ ऊंट मिले।
यमन से अली बिन अबू तालिब द्वारा भेजे गए, लड़ाई की लूट में मिले सोने के साथ भी मुहम्मद ने यही किया। उन्होंने उसे चार लोगों में बांट दिया-उयैना, अकरा, जैद अल-खैल, ”और चौथा या तो अलकमा बिन उलस था या आमीर बिन तुफैल“ (2319)।
author : ram swarup