आदिसृष्टि कहते ही बहुत-से लोग चौंकते हैं, किन्तु चौंकने की कोई बात नहीं है। इसका अभिप्राय यह नहीं है कि सृष्टि उत्पन्न होते ही मनु उत्पन्न हो गये। इसका अभिप्राय यह है कि सृष्टि के या मानव सयता के ज्ञात इतिहास में जो आरभिक काल है, वह मनु का स्थिति काल है। मनु स्वायंभुव या मनुवंश से पूर्व का कोई इतिहास उपलध नहीं है। जो भी इतिहास मिलता है वह मनु या मनुवंश से प्रारभ होता है, अतः मनु ऐतिहासिक दृष्टि से आरभिक ऐतिहासिक महापुरुष हैं। वैदिक परपरा में यह सारा इतिहास क्रमबद्ध रूप से उपलध होता है। कुछ बिन्दुओं पर संक्षिप्त चर्चा की जाती है-
(क) उपलध वैदिक साहित्य में वेद सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं। विश्व के सभी लेखक इस शोध पर एक मत हैं कि ‘‘ऋग्वेद विश्व का प्राचीनतम ग्रन्थ है।’’ वेदों के पश्चात् क्रमशः संहिता ग्रन्थों, ब्राह्मण ग्रन्थों, उपनिषदों, सूत्रग्रन्थों का रचनाकाल माना जाता है। लौकिक संस्कृत में मनुस्मृति, रामायण, महाभारत, पुराण आदि उपलध हैं। इन सब ग्रन्थों में मनु का इतिवृत्त, वंशविवरण, उद्धरण, उल्लेख, श्लोक आदि मिलते हैं। यह इस तथ्य को पुष्ट करता है कि वेदों के बाद के इस समस्त साहित्य से पूर्व मनु स्वायभुव हुए हैं, अतः वे उपलध साहित्य और इतिहास से पूर्व के महापुरुष हैं। इस साहित्यिक विवरण को कोई नहीं झुठला सकता। कालनिर्धारण के आंकड़ों में भले मतान्तर हो किन्तु इस मन्तव्य में कोई मतान्तर नहीं है कि मनु उक्त साहित्य-रचना काल से पूर्व हो चुके हैं। भारतीय मतानुसार उपलध संहिता ग्रन्थों का संकलन-काल कम से कम 10-12 हजार वर्ष पूर्व का है। उससे पूर्व भी वैदिक साहित्य बनता-बिगड़ता रहा है। वैदिक साहित्य के प्रमाण इसी अध्याय में विषयानुसार प्रदर्शित हैं।
(ख) वैदिक साहित्य में, और चमत्कारिक रूप से विश्व के साी धार्मिक ग्रन्थों में, सृष्टि का आदितम पुरुष ब्रह्मा अथवा आदम को माना गया है। ब्रह्मा का वंश मनु का पूर्वजवंश है। संस्कृत भाषा में ब्रह्मा को ‘आदिम’ ‘आत्मभूः’ ‘स्वयभूः’ कहा है। बाइबल और कुरान में वर्णित ‘आदम’ संस्कृत के ‘आदिम’ का अपभ्रंश है और नूह, मनु (मनुस् के स को ह होकर और फिर म का लोप होकर) का अपभ्रंश है। इस प्रकार विश्व का सारा साहित्य ब्रह्मा को आदितम पुरुष मानता है।
वैदिक इतिहास के गवेषक पं0 भगवद्दत्त जी के अनुसार मानव सृष्टि के आदि में ब्रह्मा का वंश चला अर्थात् इस वंश में अनेक प्रसिद्ध ब्रह्मा हुए। वैदिक साहित्य में इनको ‘प्रजापति’ कहा गया है अर्थात् ये ‘प्रजाओं के संरक्षक’ या ‘प्रजाप्रमुख’ मानने जाते थे जिनके निर्देश पर प्रजाएं व्यवहार-निर्वाह करती थीं। ब्रह्मा (अन्तिम) का पुत्र (कहीं-कहीं पौत्र) मनु हुआ। क्योंकि ब्रह्मा का एक नाम ‘स्वयभू’ भी प्रचलित था, अतः वंश के आधार पर पहले मनु का ‘मनु स्वायंभुव’ नाम प्रसिद्ध हुआ। मनु के साथ ही ब्रह्मा नामक वंश का लोप हो गया और अतिप्रसिद्धि तथा प्रमुखता के कारण मनु का वंश प्रचलित हुआ। इस प्रकार आदितम पुरुष का वंशज-पुत्र होने के कारण मनु आदिपुरुष सिद्ध होता है (वंशावली अग्रिम पृष्ठों में प्रदर्शित है)। आगे चलकर मनु स्वायभुव के वंश में अनेक वंशधर हुए जिनमें मनु उपाधिधारी अन्य तेरह व्यक्ति प्रजापति महापुरुष के रूप में मान्य हुए। प्रजाप्रमुख राजर्षि होने के कारण उन्हें मनु की उपाधि प्राप्त हुई। इस प्रकार चौदह मनु इतिहास-प्रसिद्ध हैं।
स्वायंभुव मनु ‘प्रजापति’ अर्थात् ‘प्रजाप्रमुख’ भी थे और आदिराजा भी थे। पिता ब्रह्मा के कहने पर वे विधिवत् प्रथम राजा बने। इस प्रकार वे ब्राह्मण से क्षत्रिय बन गये। प्राचीन इतिहास के अनुसार वे सप्तद्वीपा पृथ्वी के चक्रवर्ती शासक थे तथा ब्रह्मावर्त प्रदेश (वर्तमान हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, उत्तरप्रदेश, राजस्थान का जुड़ा भाग) में ‘बर्हिष्मती’ नामक राजधानी से राज्य संचालन करते थे।
(ग) जैसा कि कहा गया है कि स्वायभुव मनु के वंश में इस मनु सहित चौदह मनु राजर्षि हुए जिनका वंशक्रम आगे दिया गया है। इनमें सातवां वैवस्वत मनु अतिवियात और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था। मनु वैवस्वत के पुत्र और एक पुत्री थी। इनके बड़े पुत्र इक्ष्वाकु से क्षत्रियों का सूर्यवंश चला और पुत्री इला से चन्द्रवंश चला। इनकी प्रसिद्धि के कारण बाद में सभी क्षत्रिय वंश इन दो वंशों में समाहित हो गये। आज तक भारत और निकटवर्ती देशों के क्षत्रियों में यही दो वंश मिलते हैं। बाइबल और कुरान में वर्णित नूह (मनु) के दो वंश भी यही हैं-1. हेम (=सूर्य) वंश, 2. सेम (=सोम अर्थात् चन्द्र) वंश। इस प्रकार क्षत्रियों का पूर्वज वैवस्वत मनु था और उसका भी पूर्वज मनु स्वायंभुव था।
(घ) स्वायंभुव मनु राजा के साथ वेदशास्त्रों के ज्ञाता और धर्म (वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक) के विशेषज्ञ तथा राजनीतिवेत्ता थे। उनसे अनेक ऋषियों ने धर्मों की शिक्षा ग्रहण की, ऐसे उल्लेख महाभारत, पुराण आदि में आते हैं। आरभिक गोत्रप्रवर्तक ब्राह्मण ऋषि उनके शिष्य रूप पुत्र थे, अतः मनुस्मृति में उन ऋषियों को मनु के पुत्र कहा है। प्राचीन काल में वंश दो प्रकार से चलते थे-एक, जन्म से; दूसरा, विद्या से। प्रतीत होता है कि मनुस्मृति के श्लोकों में वर्णित ऋषिगण मनु के विद्यावंशीय पुत्र थे। वे हैं-
मरीचिमत्र्यङ्गिरसौ पुलस्त्यं पुलहं क्रतुम्।
प्रचेतसं वसिष्ठं च भृगुं नारदमेव च॥ (1.35)
मनु ने इन प्रजापतियों का निर्माण किया-मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, प्रचेता, वसिष्ठ, भृगु और नारद।
आरभ में मनु के इन्हीं विद्यापुत्रों से ब्राह्मण वंश चले। कालान्तर में इन्हीं ब्राह्मण और क्षत्रिय वंशों में वर्णपरिवर्तन, वर्णविकास अथवा वर्ण-विकार होने से अन्य वर्ण बने। प्राचीन काल में समय-समय पर वर्णों में परस्पर परिवर्तन होता रहता था। (द्रष्टव्य अ0 3 में वर्णपरिवर्तन के उदाहरण)। इस ऐतिहासिक वंशक्रम के आधार पर मनु मानवों के या चारों वर्णों के आदिपुरुष सिद्ध होते हैं।
(ङ) मनु स्वायाुव के वंश का संक्षिप्त विवरण-
अन्य सात मनु सूर्यसावर्णि, दक्षसावर्णि, धर्मसावर्णि, रुद्रसावर्णि, रौच्य और भौत्य भी इसी वंश-परपरा में हो चुके हैं। ये चौदह मनु इतने वियात हुए हैं कि सृष्टि-स्थिति की सपूर्ण काल-अवधि
(4,32,00,00,000) को भारतीय ज्योतिष में चौदह मन्वन्तरों में विभाजित किया है और प्रत्येक मन्वन्तर की कालावधि का नाम क्रमशः इन्हीं मनुओं के नाम पर रखा गया है। इस समय सप्तम ‘वैवस्वत मन्वन्तर’ चल रहा है। पहला स्वायंभुव मन्वन्तर था। इस वंशक्रम के आधार पर भी स्वायंभुव मनु मानवसृष्टि के आदि पुरुष सिद्ध होते हैं।
सृष्टि-उत्पत्ति के इस समय को सुनकर पाश्चात्य और आधुनिक लोग अत्यधिक आश्चर्य करते हैं और विश्वास भी नहीं करते। उन्हें यह जिज्ञासा होती है कि कालगणना का इतना हिसाब कैसे रखा गया? इसके उत्तर में उन्हें एक व्यवहार में प्रचलित प्रमाण सपूर्ण देश में उपलध हो जायेगा। भारतीयों ने वर्षों की बात तो छोड़िये पल और प्रहर तक का हिसाब रखा है। ज्योतिषीय पंचांगों में यह आज भी उपलध है। विवाह आदि धार्मिक कृत्यों में संस्कार के समय एक संकल्प की परपरा है। उसमें ‘आर्यावर्ते वैवस्वतमन्वन्तरे कलियुगे अमुक प्रहरे’ आदि बोलकर विवाह का संकल्प किया जाता है। इस प्रकार परपराबद्ध रूप से समय का हिसाब सुरक्षित है।1
उपलध भारतीय वंशावलियों में ब्रहमा को आदि वंशप्रवर्तक माना जाता है और मनु उससे दूसरी पीढ़ी में परिगणित है। इस प्रकार इस सृष्टि में जब से मानवसृष्टि का प्रारभ हुआ है; स्वायंभुव मनु उस आदिसृष्टि या आदिसमाज के व्यक्ति सिद्ध होते हैं।2