अस्थायी शादी (मुताह)
मुहम्मद ने अस्थायी शादियों की इज़ाज़त दी है। अब्दुल्ला बिन मसूद कहते हैं-”हम सब अल्लाह के पैगम्बर के साथ एक चढ़ाई पर गए थे और हमारे साथ औरतें नहीं थीं। हम बोले-क्या हमें अपने आपको बधिया नहीं करा लेना चाहिए ? पाक पैगम्बर ने ऐसा करने से मना किया। फिर उन्होंने हमें इज़ाज़त दे दी कि हमें एक विशेष अवधि के लिए अस्थायी शादी कर लेनी चाहिए और इसके लिए (दहेज़ के रूप में) उसे एक पहनने का वस्त्र दे देना चाहिए।“ इस पर अब्दुल्ला खुश हो गये और उन्हें कुरान की यह आयत याद आ गयी-”मोमिनो ! जो पाकीजा चीजें तुम्हारे लिए अल्लाह ने हलाल की हैं, उनको हराम न करो और हद से न बढ़ो। अल्लाह हद से बढ़ने वाले को पसंद नहीं करता“ (3247; कुरान 5/87)।
जाबिर कहते हैं-”हमने दहेज़ के रूप में कुछ खजूर और आटा देकर अस्थायी शादियां की (3249)। उन्होंने कुछ अन्य लोगों से कहा-”हां हम सब पाक पैगम्बर के जीवनकाल में इस अस्थायी शादी से फायदा उठाते रहे हैं और अबू बकर तथा उमर के वक्त में भी“ (3248)। इयास बिन सलमा अपने पिता के प्रमाण से बतलाते हैं कि ”अल्लाह के रसूल ने औतास के साल (हुनैन की लड़ाई के बाद हिजरी सन् 8) में तीन रातों के लिए अस्थायी शादी करने की मंजूरी दी और बाद में उसके लिए मना कर दिया“ (3251)।
सुन्नी पंथमीमांसक इस तरह की शादी को अब वैध नहीं मानते। पर शिया लोग उनसे मतभेद रखते हैं और ईरान में अभी भी इसका रिवाज है। शिया पंथमीमांसक इसके पक्ष में कुरान की एक आयत का हवाला देते हैं-”शादीशुदा औरतें भी तुम्हारे लिए (हराम) हैं, सिवाय उनके जो बांदियों के तौर पर तुम्हारे कब्जे में आ जायें …. और उसके अलावा तुम्हें इज़ाज़त है कि तुम अपना धन खर्च करके बीवियां ढूंढ लो, विनम्र व्यवहार के साथ और व्यभिचार के बिना। और जिनके साथ तुमने मैथुन किया है उन्हें उनका दहेज़ दो, यह कानून है। लेकिन अगर कानून से बाहर तुम आपस में रजामंदी कर लो तो कोई गुनाह नहीं होगा। बेशक अल्लाह सब कुछ जानने वाला (और) बुद्धिमान है“ (कुरान 4/24)।
author : ram swarup