असंतोष
वनू नजीर ने जो प्रचूर सम्पत्ति छोड़ी थी उसका बहुलांश मुहम्मद ने अपने और अपने परिवार के लिए हस्तगत कर लिया था। उनके अन्य कोष भी लगातार बढ़ रहे थे। इस नए धन को ज़कात कहना कठिन था। वह युद्ध की लूट का माल था। उसके वितरण से उनके अनुयायियों के दिलों में रंजिश पैदा होने लगी। उनमें से ज्यादातर यह चाहते थे कि उन्हें और ज्यादा मिलना चाहिए अथवा दूसरों को तो हर हालत में उनसे कम ही मिलना चाहिए था। इस स्थिति को संभालने के लिए मुहम्मद को लौकिक और पारलौकिक दोनों ही तरह की धमकियों से भरी यथयोग्य कूटनीति का उपयोग करना पड़ा।
लेखक : राम स्वरुप