*अथ पेरियार दर्प भंजनम्* सच्ची रामायण का जवाब -१ –

*अथ पेरियार दर्प भंजनम्*

सच्ची रामायण का जवाब -१
– कार्तिक अय्यर
नमस्ते मित्रों! पिछली पोस्ट में हमने प्रस्तावना तथा पेरियार रचित पुस्तक “सच्ची रामायण” का खंडन करने का उद्देश्य लिखा था। अब इस लेख में पेरियार जी के आक्षेपों का क्रमवार खंडन किया जाता है। परंतु इसके पहले *ग्रंथ प्रमाणाप्रमाण्य* विषय पर लिखते हैं।
 १: *वाल्मीकीय रामायण* – वाल्मीकि मुनिकृत रामायण श्रीरामचंद्र जी के जीवन इतिहास पर सबसे प्रामाणिक पुस्तक है। महर्षि वाल्मीकि राम जी के समकालीन थे अतः उनके द्वारा रचित रामायण ग्रंथ ही सबसे प्रामाणिक तथा आदिकाव्य कहलाने का अधिकारी है। अन्य रामायणें जैसे रामचरितमानस, चंपूरामायण, भुषुंडि रामायण, आध्यात्म रामायण,उत्तररामचरित ,खोतानी रामायण, मसीही रामायण, जैनों और बौद्धों के रामायण ग्रंथ जैसे पउमचरिउ आदि बहुत बाद में बने हैं । इनमें वाल्मीकि की मूल कथा के साथ कई नई कल्पनायें, असंभव बातें, इतिहास ,बुद्धि ,तथा वेदविरोधी  बातें समावेश की गई हैं। रामायण की मूल कथा में भी काफी हेर-फेर है। साथ ही स्वयं वाल्मीकि रामायण में भी काफी प्रक्षेप हुये हैं। अतः वाल्मीकि रामायण श्रीरामचंद्रादि के इतिहास के लिये परम प्रमाण है तथा इसमें मिलाये गये प्रक्षेप इतिहास,विज्ञान,बुद्धि तथा वेदविरुद्ध होने से अप्रमाण हैं ।अन्य रामायणें तब तक मानने योग्य हैं जब तक वाल्मीकि की मूल कथा से मेल खाये। अन्यथा उनका प्रमाण भी मानने योग्य नहीं।
२:- *महाभारत में वर्णित रामोपाख्यानपर्व* तथा *जैमिनीय अश्वमेध* :- महाभारत में रामोपाख्यान का वर्णन है तथा जैमिनीय अश्वमेध में भी ।  चूंकि महाभारत महर्षि वेदव्यास रचित है परंतु राम जी के काल का बना हुआ नहीं है और महाभारत में प्रक्षेप होने से पूर्णतः शुद्ध नहीं है, तथापि आर्षग्रंथ होने से इसका *अंशप्रमाण* मान्य होगा। यही बात जैमिनीय अश्वमेध पर भी लागू होती है।
३:- *उत्तरकांड* पूर्ण रूप से प्रक्षिप्त तथा नवीन रचना है। यह वाल्मीकि मुनि ने नहीं रचा है। क्योंकि युद्धकांड के अंत में ग्रंथ की फल-श्रुति होने से ग्रंथ का समापन घोषित करता है। यदि उत्तरकांड लिखी होता तो वाल्मीकि जी उत्तरकांड के अंत में फल श्रुति देते। इस कांड में वेद,बुद्धि,विज्ञान तथा राम जी के मूल चरित्र के विरुद्ध बातें जोड़ी गई हैं। साथ ही राम जी पर शंबूक वध,सीता त्याग,लक्ष्मण त्याग के झूठे आरोप,रावणादि की विचित्र उत्पत्ति,रामजी का मद्यपान आदि मिथ्या बातें रामजी तथा आर्य संस्कृति को बदनाम करने के लिये किसी दुष्ट ने बनाकर मिला दी हैं। अतः उत्तरकांड पूरा का पूरा प्रक्षिप्त होने से खारिज करने योग्य तथा अप्रामाणिक है। उत्तरकांड की
प्रक्षिप्त होने के विषय में विस्तृत लेख में आंतरिक तथा बाह्य साक्ष्यों सहित लेख दिया जायेगा। फिलहाल उत्तरकांड अप्रामाणिक है, ऐसा जान लेना चाहिये ।
४:- *वेद* – वेद परमेश्वर का निर्भ्रांत ज्ञान है। ऋक्,यजु,साम तथा अथर्ववेद धर्माधर्म निर्णय की कसौटी हैं। वेद तथा अन्य ग्रंथों में विरोध होने पर वेद का प्रमाण अंतिम कसौटी है। अतः रामायण की कोई बात यदि वेद सम्मत हो तो मान्य हैं, वेदविरुद्ध होने पर मान्य नहीं। यदि रामायण के किसी भी चरित्र के आचरण वेदसम्मत हों,तभी माननीय हैं अन्यथा नहीं।
५:- कोई भी पुस्तक चाहे मैथिलीशरण गुप्त रचित *साकेत* हो अथवा कामिल बुल्के रचित *रामकथा* , वे हमारे लिये अप्रमाण हैं। क्योंकि मैथिलीशरण जी, फादर कामिल बुल्के आदि सज्जन ऋषि-मुनि नहीं थे/हैं और न ही श्रीराम के समकालीन ही हैं जो उनका सच्चा खरा इतिहास लिख सके। अत: *आर्यसमाज के लिये यह सभी ग्रंथ अनार्ष होने से अप्रमाण हैं।इन ग्रंथों के प्रमाणों का उत्तरदायी आर्यसमाज या लेखक  नहीं है* ।
*निष्कर्ष*- *अतः यह परिणाम आता है कि ऐतिहासिक रूप में वाल्मीकि रामायण परमप्रमाण तथा धर्माधर्म के निर्णय में चारों वेद( ऋक्, यजु,साम तथा अथर्ववेद)परमप्रमाण हैं। अन्य आर्ष ग्रंथ जैसे महाभारतोक्त रामोपाख्यान आदि आर्ष व परतः प्रमाण हैं। मानवरचित ग्रंथ जैसे साकेत,कैकेयी,रामकथा,पउमचरिउ,उत्तरपुराण आदि ग्रंथ अप्रमाण हैं क्योंकि ये अनार्ष , नवीन तथा कल्पित हैं।*
जारी……….
अब पेरियार साहब के आक्षेपों का क्रमवार उत्तर लिखते हैं। *भूमिका* शीर्षक से लिखे लेख का उत्तर:-
*प्रश्र-1* – *रामायण किसी ऐतिहासिक कथा पर आधारित नहीं है। यह एक कल्पना तथा कथा है।……रावण लंका का राजा था।।  १।।* ( मूल लेख चित्र में देखा जा सकता है।हम केवल कुछ अंश उद्धृत करके खंडन लिख रहे हैं)
*समीक्षक:-* धन्य हो पेरियार साहब! यदि रामायण नामकी कोई घटना घटी ही नहीं थी तो आपने इस पुस्तक को लिखने का कष्ट क्यों किया?जब आपके पास निशाना ही नहीं है तो तीर किस पर चला रहे हैं।
उस घटना पर,जिसे आप सत्य नहीं मानते पर अनर्गल आक्षेप लगाकर जनसामान्य को दिग्भ्रमित करना किसी सत्यान्वेशी अथवा विद्वान का काम नहीं हो सकता। आपके अनुसार यदि श्रीराम, लक्ष्मण, सीता,हनुमान आदि महामानव यदि काल्पनिक थे तो परस्त्रीगामी,कामी,दुराचारी रावण महात्मा,सच्चा भक्त, सच्चा संत व आदर्श कैसे हो गया? जब पूरी रामायण ही काल्पनिक है तो फिर विवाद कैसा? या तो पूरी रामायण को सच्ची घटना मानिये अन्यथा रावण को पूर्वज मसीहा आदि लिखकर राजनीतिक रोटियां सेंकने का प्रयास न करें। यहां हम अंबेडकर साहब के अनुयायी मित्रों से यह पूछना चाहते हैं कि एक ओर वे रावण को अपना वीर पूर्वज मानकर उसको आदर्श मानते हैं, वहीं उनके दूसरे नेता पेरियार साहब पूरी रामायण को काल्पनिक कहकर रावण को भी काल्पनिक सिद्ध कर रहे हैं। अहो मूलनिवासी मित्रों! आपके दोनों नेताओं में से आप किसकी बात मानेंगे? यह फैसला हम आप पर छोड़ते हैं।
  आगे रामायण के ऐतिहासिक होने के प्रबल साक्ष्य दिये जायेंगे। किसी पेरियार भक्त में सामर्थ्य हो तो उचित तर्क-प्रमाण से रामायण को काल्पनिक सिद्ध करे।
   *प्रश्न*:- पेरियार जी ने रामायण को उपन्यास मानकर लेखनी चलाई। इसमें क्या आपत्ति है?
*उत्तर*:- यदि उपन्यास माना है तो रावण भी स्पाइडर मैन ,बैटमैन,सुपरमैन जैसे काल्पनिक पात्रों से बढ़कर कोई हैसियत नहीं रखता। तो आप लोग उसे अपना  आदर्श पूर्वज क्यों कहते हो? और एक उपन्यास के पात्रों पर लेखनी चलाकर लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना तथा आर्य-द्रविड़ राजनीति का मंतव्य साधना क्या धूर्तता की श्रेणी में नहीं आता? यदि उपन्यास मानते हो तो धर्म को घसीटकर दलित-आर्य का कार्ड खेलकर समाज में वैमनस्य क्यों फैलाया? अतः इस पुस्तक को लिखना न केवल अनुचित है, अपितु धूर्तता भी है।

 

नोट : यह लेखक का अपना विचार  है |  लेख में कुछ गलत होने पर इसका जिम्मेदार  पंडित लेखराम वैदिक  मिशन  या आर्य मंतव्य टीम  नहीं  होगा |

6 thoughts on “*अथ पेरियार दर्प भंजनम्* सच्ची रामायण का जवाब -१ –”

  1. Do hi tathy spasht h..
    1)ydi raja ram aitihasik patra h to fir ek sadharan yoddha tatha raja k atirikt kuchh bhi nhi jo kewal brahmno ke ishare pr chalne wale ghor jatiwadi the.
    2)ydi kalpnik patra h to fir jis aadhar par inka mahima mandan kiya gya h thik usi aadhar pr uska khandan bhi awashyak h.Periyar ji ne vahi kiya aur court me case bhi jita…
    Isiliye pahle aap log spasht praman dutayen ki ramayan kalpnik hai athwa aitihasik.

    1. KD
      JULY 25, 2017 AT 7:35 AM
      Do hi tathy spasht h..
      1)ydi raja ram aitihasik patra h to fir ek sadharan yoddha tatha raja k atirikt kuchh bhi nhi jo kewal brahmno ke ishare pr chalne wale ghor jatiwadi the.
      उत्तर:- इसमें भला क्या संदेह है कि राम जी एतिहासिक पुरुष थे? कुछ भी नहीं थे यह आप जैसे बोलोगी कह सकते हैं ब्राह्मणों के इशारों पर नहीं नाचते थे अभी तो उनका सम्मान करते। घोर जातिवादी आपने कैसे कह दिया? निषादराज गुह श्रीराम का परम मित्र था। वन में जाकर भगवान राम ने शबरी के बेर खाएं। आपका इशारा शंबूक वध से है तो वह उत्तरकांड में होने से प्रक्षिप्त है यह हम आगे की पोस्ट में सिद्ध करेंगे।
      2)ydi kalpnik patra h to fir jis aadhar par inka mahima mandan kiya gya h thik usi aadhar pr uska khandan bhi awashyak h.Periyar ji ne vahi kiya aur court me case bhi jita…
      उत्तर:- काल्पनिक पात्र थे यह तो आप को सिद्ध करना होगा हमारे पास तो कोई प्रमाण है जिससे वह ऐतिहासिक सिद्ध होते हैं। जिस आधार पर महिमामंडन किया उस आधार पर आपने जो खंडन किया उसी का तो जवाब दे रहा हूं। कोर्ट में केस जीतने से भला क्या होता है झूठे गवाहों और प्रमाणों से तो बड़े बड़े अपराधी भी केस जीत जाते हैं। कोई माइका लाल मूलनिवासी मेरी पुस्तक का जवाब लिखने मैदान में आए तब आप लोगों की वीरता समझ में आयेगी!
      Isiliye pahle aap log spasht praman dutayen ki ramayan kalpnik hai athwa aitihasik.
      उत्तर:- यदि रामायण काल्पनिक होती तो क्या हम पुस्तक छापते? हम तो स्पष्ट रुप से रामायण को ऐतिहासिक मानते हैं परंतु आप लोगों के पास वामपंथी घासलेटी पुस्तकों के अलावा और कोई प्रमाण नहीं है जिसके आधार पर रामायण को अनैतिहासिक सिद्ध किया जा सके।

      1. आपको क्या लगता है, कि यह पुष्पक विमान सच में थे ?
        हनुमान जी सच में उड़ सकते थे ?
        क्या तीरों से आग निकलती थी ?
        अगर रामायण काल्पनिक नहीं थी, तो राम भी किसी साधारण पुरुष की तरह होंगे …..तो फिर इतने चमत्कार और इतनी काल्पनिक बातों का प्रचार क्यों किया जा रहा है….. इसका जवाब दें

        1. राम मर्यादापुरुषोत्तम थे कोई चमत्कारी नहीं
          लोग उन्हें यदि ईश्वर मानते हैं वह गलत है

        2. m.k.chaudhary
          आज से 500 साल पहले इस बात की कल्पना करना कि कभी व्यक्ति घर में बैठ कर दुनिया के किसी कोने में बैठे व्यक्ति से बात कर सकता है,देख सकता है बिल्कुल अतिश्योक्ति और हास्योपास्यद थी। उसी प्रकार उस समय की तकनीकि को काल्पनिक कहना केवल मूढता की निशानी होगी। धन्यवाद

  2. जिस कोर्ट केस के जीतने का हवाला आपने दिया है वो केस इस मुद्दे पर था ही नहीं कि रामायण वास्तविक या काल्पनिक है,केस तो अभिब्यक्ति की आजादी बनाम स्टेट था।

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