ओउम
आध्यात्म संग्राम में विजयी हो धनवान बनें
. डा. अशोक आर्य
हम परमपिता परमात्मा के आराधक है । इस कारण ही वह प्रभु हमें हमारे आध्यात्मिक संग्रामों में विजयी बनाते हैं तथा सब प्रकार के धन प्राप्त कराते हैं । इस बात का वर्णन करते हुये यह मन्त्र इस प्रकार उपदेश कर रहा है : –
तं त्वा वाजेषु वाजिन वाजयाम: शतक्रतो ।
धनानामिन्द्र सातये ॥ ऋग्वेद १.४.९ ॥
इस मन्त्र में दो बातों की ओर संकेत किया गया है :-
१. हम अपने आतंरिक शत्रु को पराजित करें : यह मन्त्र प्रथमतया उपदेश करते हुए कहता है कि हे शतक्रतो अर्थात अनन्त प्रज्ञान वाले प्रभो ! ( हे कभी न समाप्त होने वाले उत्तम ज्ञानों से युक्त परमात्मन !) इस का भाव है कि हमारा वह प्रभु सब प्रकार के ज्ञानों , ज्ञान भी वह जिनके अन्त की कोई सीमा ही नहीं है , एसे कभी न समाप्त होने वाले उत्तम ज्ञानों के स्वामी पिता ! आप ही वाजेषु अर्थात हमारे काम , क्रोध , मद, लोभ , अहंकार आदि जो हमारे शत्रु , हमारे अन्दर ही विद्य्मान हैं ,हमारे अन्दर ही निवास कर रहे हैं , उन सब शत्रुओं के साथ युद्ध करने की , संग्राम करने की , उन्हें समाप्त करने के लिए , पराजित करने के लिए आप ही हमें वाजिनम अर्थात प्रशस्त शक्ति , भरपूर ताकत देने वाले हैं । हम एसे प्रभु को अर्चित करते हैं , हम एसे प्रभु की , जो हमे काम , क्रोध आदि हमारे अन्दर के शत्रुओं से लडने की शक्ति देता है , हम उस प्रभु का स्मरण करते हैं , जो प्रभु हमें हमारे आन्तरिक दोष रुपि शत्रुओं को मारने की शक्ति देता है , हम एसे प्रभु की प्रार्थना करते हैं , सदा उसके समीप रहने का यत्न करते हैं ।
मन्त्र का यह प्रथम खण्ड स्पष्ट कर रहा है कि हम एसे आध्यात्मिक यु्द्धों में , जिन में लडने वाले हमारे प्रतिद्वन्द्वी , हमारे शत्रु , हमारे विरोधी कोई बाहरी लोग न होकर हमारे अन्दर के ही दुर्गुण होते हैं , हमारे अन्दर की ही बुराईयां होती हैं । इन बुराईयों को दूर करने के लिए मार्ग – दर्शन , निर्देश , ढंग बताने वाला कोई है तो वह परमात्मा ही है , इन युद्धों में हमें रास्ता देने वाला , ज्ञान देने वाला यदि कोई है तो वह सब ज्ञानों का स्वामी , सब ज्ञानों का मालिक हमारा वह प्रभु ही है । इस लिए हम सदा उस प्रभु का स्मरण करते हुए उस पिता के , उस स्वामी के निकट रहने का यत्न करते हैं ।
वास्तव में मानव अपने इस अध्यात्मिक संग्राम में विजयी होने के लिए जो शक्ति प्राप्त करता है, वह शक्ति उसे उस पिता की उपासना करने से , उस पिता के समीप जाने से ही मिलती है क्योंकि वह पिता हमारा गुरु है । गुरु से यदि हमने कुछ प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करना है तो निश्चित रुप से उसके पास जाकर ही मांगना पडेगा । हम जब अपने आध्यात्मिक युद्ध में रत हैं तथा इसमें निरन्तर सफ़लता पाना चाहते हैं तो हमें उस पिता से मार्ग दर्शन लेना होता है , शक्ति प्राप्त करना होता है , जिसे लेने के लिए हम
उसका उपासन करते हैं , उसके समीप आसन लगाते हैं । एसा हम क्यों करते हैं क्योंकि हमारे पास इतनी शक्ति नहीं है कि हम स्वयं अपनी शक्ति के बल परहमारे इन शत्रुओं पर विजय पा सकें । अत: इस विजय को पाने के लिए हमें उस पिता से शक्ति प्राप्त करना होता है तथा उस शक्ति को पाने के लिए निश्चित रुप से हमें अपना निवास , अपना आसन , उस परमपिता परमात्मा के पास लगाना होता है , उसकी उपासना करना होता है ।
२. हम धन एश्वर्य के स्वामी हों :
इस मन्त्र में जो दूसरा तथ्य स्पष्ट करने का यत्न किया गया है ,वह है कि हे इन्द्र: अर्थात हे परम एश्वर्य शाली प्रभो ! हे सब प्रकार के एश्वर्यों के स्वामी प्रभो ! आप के सहयोग से , आपके मार्ग दर्शन से , आप के निर्देशन से , हम काम, क्रोध आदि , हमारे अन्दर के शत्रुओं पर विजयी होने के पश्चात हमारी अनेक प्रकार के धनों को प्राप्त करने की कामना होती है , इच्छा होती है , इसे पूरा करने के लिए हम आप की निकटता पाने की हमें आवश्यकता होती है क्योंकि सब प्रकार के धनों के स्वामी तो आप ही है , सब प्रकार के धनों से आप के कोष सदा ही भरे रहते हैं । इसलिए आप सब से बडे दाता हैं ,सब से बडे दानी है ,सब से बडे देने वाले है । याचक उसके पास जा कर ही कोई याचना करता है , जो दाता हो , भिखारी सदा उसके आगे ही अपने हाथ फ़ैलाता है , जिसके पास कुछ हो क्योंकि आप सब प्रकार के धनों के स्वामी तथा सब से बडे दानी हो , इसलिए हमें आपकी निकटता की आवशयकता होती है , ताकि हम कु्छ पा सकें । हम अपनी इस अभिलाषा को , इस इच्छा को तब ही पूर्ण कर सकते हैं , जब हम इस याचना को लेकर आप के निकट जावें । इस लिए हम आपकी अर्चना करते हैं , आप की प्रार्थना करते हैं , आपकी साधना करते है तथा यह सब करने के लिए आपके निकट आकर अपना आसन लगाते
हैं ।
हे प्रभु ! याचक , मांगने वाला उसके द्वार पर ही जाकर कुछ मांगता है ,जिसके पास वह वस्तु हो तथा वह कुछ देने वाला हो । हमारे सब प्रकार के धनों को देने की शक्ति आप ही के पास है । आप ही हमारी सब प्रकार की आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकते हो । इन सब आश्यकताओं की पूर्ति के लिए हम आपके पास आ कर याचना करते हैं | हम पर दया करते हुए हमें धन ऐश्वर्यों की प्राप्ति कराइये |
डा. अशोक आर्य
ARYAVAR,
OUM…NAMASTE..
MUJHE AISI LEKH PADHKAR BAHOOT SHANTI MILTI HE.
NIYAMIT DIYAA KAREN…
MUJHE AUR EK KRIPA KAREN KI MAI KRIT-KRITYA HO JAAOON MAI HAAL DOHA-QATAR ME HOON..YAHAAN KOI ARYA SAMAJ KI SHAKHA YA SADASYA AAP KI JAANKARI ME HE TO MUJHE BATAANE KI KRIPAA KAREN TAA KI MAI UNKI SAMPARK ME AA SAKUN
DHANYAVAAD….