अध्यात्मवाद
– कृष्णचन्द्र गर्ग
आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, इन दोनों का आपस में सबन्ध क्या है- इस विषय का नाम अध्यात्मवाद है । आत्मा और परमात्मा दोनों ही भौतिक पदार्थ नहीं हैं। इन्हें आँख से देखा नहीं जा सकता, कान से सुना नहीं जा सकता, नाक से सूँघा नहीं जा सकता, जिह्वा से चखा नहीं जा सकता, त्वचा से छुआ नहीं जा सकता।
परमात्मा एक है, अनेक नहीं । ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि उसी एक ईश्वर के नाम हैं। (एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति। ऋग्वेद – 1-164-46 ) अर्थात् एक ही परमात्मा शक्ति को विद्वान लोग अनेक नामों से पुकारते हैं। संसार में जीवधारी प्राणी अनन्त हैं, इसलिए आत्माएँ भी अनन्त हैं। न्यायदर्शन के अनुसार ज्ञान, प्रयत्न, इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख- ये छः गुण जिसमें हैं, उसमें आत्मा है। ज्ञान और प्रयत्न आत्मा के स्वाभाविक गुण हैं, बाकी चार गुण इसमें शरीर के मेल से आते हैं। आत्मा की उपस्थिति के कारण ही यह शरीर प्रकाशित है, नहीं तो मुर्दा अप्रकाशित और अपवित्र है। यह संसार भी परमात्मा की विद्यमानता के कारण ही प्रकाशित है।
आत्मा और परमात्मा- दोनों ही अजन्मा व अनन्त हैं। ये न कभी पैदा होते हैं और नही कभी मरते हैं, ये सदा रहते हैं। इनका बनाने वाला कोई नहीं है। आत्मा परमात्मा का अंश नहीं है। हर आत्मा एक अलग और स्वतन्त्र सत्ता है।
आत्मा अणु है, बेहद छोटी है। परमात्मा आकाश की तरह सर्व व्यापक है। आत्मा का ज्ञान सीमित है, थोड़ा है। परमात्मा सर्वज्ञ है, वह सब कुछ जानता है। जो कुछ हो चुका है और हो रहा है, सब कुछ उसके संज्ञान में है। अन्तर्यामी होने से वह सभी के मनों में क्या है- यह भी जानता है। आत्मा की शक्ति सीमित है, थोड़ी है, परन्तु परमात्मा सर्वशक्तिमान है। सृष्टि को बनाना, चलाना, प्रलय करना- आदि अपने सभी काम करने में वह समर्थ है। पीर, पैगबर, अवतार आदि नाम से कोई एजैंट या बिचौलिए उसने नहीं रखे हैं। ईश्वर सभी काम अपने अन्दर से करता है, क्योंकि उसके बाहर कुछ भी नहीं है। ईश्वर जो भी करता है, वह हाथ-पैर आदि से नहीं करता, क्योंकि उसके ये अंग है ही नहीं। वह सब कुछ इच्छा मात्र से करता है।
ईश्वर आनन्द स्वरूप है। वह सदा एकरस आनन्द में रहता है। वह किसी से राग-द्वेष नहीं करता। वह काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से परे है। ईश्वर की उपासना करने से अर्थात् उसके समीप जाने से आनन्द प्राप्त होता है, जैसे सर्दी में आग के पास जाने से सुख मिलता है। ईश्वर निराकार है। उसे शुद्ध मन से जाना जा सकता है, जैसे हम सुख-दुःख मन में अनुभव करते हैं।
यह आत्मा जब मनुष्य शरीर में होती है, तब वह कार्य करने में स्वतन्त्र रहती है। उस समय किए कार्यों के अनुसार ही उसे परमात्मा सुख, दुःख तथा अगला जन्म देता है। दूसरी योनियाँ या तो किसी दूसरे के आदेश पर चलती हैं या स्वभाव से काम करती हैं। उनमें विचार शक्ति नहीं होती, इसलिए उन योनियों में की गई क्रियाओं का उन्हें अच्छा या बुरा फल नहीं मिलता। वे केवल भोग योनियाँ हैं जो पहले किए कर्मों का फल भोग रही हैं। मनुष्य योनि में कर्म और भोग दोनों का मिश्रण है। मनुष्य स्वतन्त्र रूप से कर्म भी करता है और कर्मफल भी भोगता है।
मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं हूँ। शरीर मेरा संसार में व्यवहार करने का साधन है। कर्ता और भोक्ता आत्मा है। सुख-दुःख आत्मा को होता है।
जीवात्मा न स्त्रीलिंग है, न पुलिंग है और न ही नपुंसक है। यह जैसा शरीर पाता है, वैसा कहा जाता है। (श्वेताश्वतर उपनिषद्)
ईश्वर की पूजा ऐसे नहीं की जाती, जैसे मनुष्यों की पूजा अर्थात सेवा सत्कार किया जाता है। ईश्वर की आज्ञा का पालन अर्थात सत्य और न्याय का आचरण- यही ईश्वर की पूजा है।
कठोपनिषद में मनुष्य-शरीर की तुलना घोड़ागाड़ी से की गई है। इसमें आत्मा गाड़ी का मालिक अर्थात सवार है। बुद्धि सारथी अर्थात् कोचवान है, मन लगाम है, इन्द्रियाँ घोड़े हैं। इन्द्रियों के विषय वे मार्ग हैं, जिन पर इन्द्रियाँरूपी घोड़े दौड़ते हैं। आत्मारूपी सवार अपने लक्ष्य तक तभी पहुँचेगा, जब बुद्धिरूपी सारथी मनरूपी लगाम को अपने वश में रखकर इन्द्रियाँरूपी घोड़ों को सन्मार्ग पर चलाएगा।
उपनिषद में घोड़ागाड़ी को रथ कहा जाता है और रथ पर सवार को रथी। मनुष्य शरीर में आत्मा रथी है। जब आत्मा निकल जाती है, तब शरीर अरथी रह जाता है।
परमात्मा हम सबका माता, पिता और मित्र है। हम सब प्राणियों का भला चाहता है। जब मनुष्य कोई अच्छा काम करने लगता है तो उसे आनन्द, उत्साह, निर्भयता महसूस होती है । वह परमात्मा की तरफ से होता है, और जब वह कोई बुरा काम करने लगता है, तब उसे भय, शंका, लज्जा महसूस होती है। वह भी परमात्मा की तरफ से ही होता है ।
– 831 सैक्टर 10, पंचकूला, हरियाणा।
दूरभाषः 095014-67456
Very nice abstractial description. Only comment I would like to add is that like soul is supreme soul with only difference that it does not incarnate. Analogy that in cold we feel very good near fire is very good. Similarly when we think of our ow true nature and God as our Father we feel good.
Parmatma is the ultimate Goal of human life.
Amit jee,
Aap ka lekh bahot hi sundar hai. Jaise aapne kaha aatma koi parmatma ka ansh nahi hai. To aatma parmatma mein kaise leen hota hai? Moksh athva nirvan kon see sthiti hai?
-Dhanyawad
bravo ji
aatma parmatama prakriti anadi ajanama aur anant hain.. aatma parmatama me leen nahi hota… aap hamare article parhe .. in sabhi ke baare me kai aarticle hai…
Amit jee,
Kon sa article hai vo? Aap bata sakte hai?
Kyonki aatma agar paramatma mein leen nahi hota to iska arth hai ki moksha kabhi prapta nahi hota.
– Dhanyawaad
bhai bahut se aarticle hain. 2000 se jyada aarticle hai.. aap hamare aarticle ko parhe… dhanywaad.. aapko article mil jaayegi… hamaare paas comment kaa jawab bhi dene kaa samay nahi hota.. aapke kuch comment kaa jawab ab tak nahi diya hai jaise rastrapita ke sambandh me.. samay milane par jawab denge…dhanywaad.. 2000 article me un article ko khojane ke liye samay chahiye kyunki main thoda bhulakar hu….
Amit jee,
Koi baat nahi. Mera aatma-parmatma ke vishay mein bada ras hai. Mein aur ek baat batana chahta huin, mein ek prakar se nastik huin. Kyonki har dharam ke vastivak tatvo ko bhrashta kiya gaya hai. Jab mujhe koi aastha vastavik mul sahit dikhegi mein uska varan karunga.
– Dhanyawad
aatma ki sthaan is tarah ki article hai use parhe … shayad 4 part hamne post ki hai aur ek part aur post karni hai…. aur dusari baat aatma parmatama ke baare me janana hai to hamare fb page par jude aapko jaankaari dene ki koshish ki jaayegi upnishad ke aadhaar par….
hamara fb page hai : https://www.facebook.com/Aryamantavya/
dhanywaad… aapko rahul jha ji screenshot se jawab denge upnishad se….
Atma paramatma ka ansh hai. jaise suraj se kiran .kiran alag rehatanahi magar roshini alag dikta hai .usi tarah atma paramatmase alag nahi magar hame isa diktahai aatma ko jannese paramatma swayam dikta hai .vah aatma nahi rehta hai . swayam paramatma rehta hai . ome
आत्मा परमात्मा का अंश कैसे हो सकता है ? चलो एक उद्धरण देता हु | एक कागज़ लो | उसे आप परमात्मा समझो | फिर उस कागज़ को छोटे छोटे भाग में वितरण तोड़ते जाओ एक समय ऐसा आएगा जब कागज़ का कोई अस्तित्व नहीं रह पायेगा | ठीक उसी प्रकार परमात्मा का कोई अस्तित्व नहीं रह पायेगा वह विनाश हो जाएगा जैसे कागज़ का हो जाता है | वेद उपनिषद इत्यादि में आत्मा और परमात्मा दोनों अलग अलग हैं |
अंश उत्पन्न होते है। किसी वस्तु से अलग नही होते है।
आपका जन्म हुआ है जो आपके माता पिता ने दिया है । कही ऐसा तो नही है कि आपके मां ने आंख ,नाक, दी हो आपके पिता ने हाथ, पाव दिया हो।
अंश उत्पन्न नहीं होते तो ये बताओ डॉ क्यों किसी को अपना आंख और बहुत सारी अंग को दूसरो में लगा देते हैं ? अरे भाई जान बात को समझने की कोशिश करें जनाब
Bilkul sahi Vedanta to yagi kahta hai ki atma aur parmatma do no slag slag tatva hai.
आपने बहुत ही सरल ढंग से आत्मा और परमात्मा का सबन्ध समुझाया है. धन्यवाद
आपने ऊपर कहा है
“दूसरी योनियाँ या तो किसी दूसरे के आदेश पर चलती हैं या स्वभाव से काम करती हैं। उनमें विचार शक्ति नहीं होती, इसलिए उन योनियों में की गई क्रियाओं का उन्हें अच्छा या बुरा फल नहीं मिलता। वे केवल भोग योनियाँ हैं जो पहले किए कर्मों का फल भोग रही हैं”।
मैंने गौर से देखा है कि जानवरों का स्वभाव अलग अलग होता है और अपने स्वभाव अनुसार वे कार्य करते हैं और उन्हें अपने करम अनुसार ही आसपास के जीवों से उन्हें स्नेह या कुछ और मिलता है। ऐसा देख कर मुझे लगता है कि उन योनियों में भी मनुष्य योनी कि तरह कर्म फल मिलता है।
मैं ज्ञानी नहीं हूँ जो मुझे समझ आया है मैंने कहा है।
बंसी धमेजा
Radhe radhe
Nice
आपने आत्मा ,परमात्मा के गुण बताऐ।
धन्यबाद जी
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पुराण जिसमें अधिकांशतः अश्लीलता और झूठ परोसा गया है आप उस मुर्खता के सार उपलब्ध करवाते है फिर आपसे सत्यता कैसे कोई ग्रहण करेगा असत्य और पाखण्ड को छोड़कर सत्यता को यानी केवल वेद को माने
धन्यवाद
Jay radhe shyam bahut badiya jankari