हदीस : आस्था (ईमान)

आस्था (ईमान)

सही मुस्लिम की पहली किताब है ’अल-ईमान‘। इसमें कुल 431 हदीस हैं, जिनको 92 पर्वो में बांटा गया है। पुस्तक में ईमान के प्रसंगों पर चर्चा की गई है।

 

एक आदमी बहुत दूर से चलकर मुहम्मद के पास आता है। फिर भी थकावट का कोई आभास दिए बिना मुहम्मद से पूछता है-”मुहम्मद ! मुझे अल-इस्लाम के बारे में बतलाइए।“

 

अल्लाह के पैगम्बर फरमाते हैं-”इस्लाम की मांग है कि तुम यह गवाही दो कि अल्लाह के सिवाय कोई अन्य आराध्य नहीं है, और मुहम्मद अल्लाह का रसूल है, और तुम नमाज़ अपनाओ, जकात अदा करो, रमज़ान में रोज़ा रखो और हज़ पर जाओ।“

 

पूछताछ करने वाला जब चला जाता है तो मुहम्मद उमर से कहते हैं-”वह जिब्रैल था। तुम लोगों को मजहब की शिक्षा देने के लिए तुम लोगों के पास आया था“ (1)1।

 

यह सबसे पहली हदीस है जो उमर के द्वारा कही गई। उमर बाद में खलीफा बने। उनकी यह हदीस कथाकारों की कई श्रंखलाओं के माध्यम से मिलती है।

 

यही बात सैकड़ों हदीसों में कही गई है। अल-इस्लाम अल्लाह पर आस्था है, अल्लाह के रसूल मुहम्मद पर आस्था है, और आस्था है अल्लाह की किताब पर, अल्लाह के फरिश्तों पर, कयामत के दिन मुर्दों के उठ खड़े होने पर, महशर पर, जकात अदा करने पर, रोजा (रमजान) रखने पर और हज करने पर।

 

लेखक :  रामस्वरूप

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