आधुनिक इतिहासकारों ने प्राचीन मतों को अमान्य करके नये सिरे से समग्र इतिहास पर विवेचन प्रारभ किया हुआ है। ये इतिहासकार अधिकतर पाश्चात्य विद्वानों की कल्पनाओं एवं कार्यपद्धति से प्रभावित हैं। यद्यपि इनके मतों में अनुसन्धान के आधार पर परिवर्तन आता रहता है, तथापि अब तक स्थिर हुए कुछ आधुनिक मतों का यहाँ उल्लेख किया जाता है।
श्री के. एल. दतरी स्वायंभुव मनु का काल 2670 ई. पू. मानते हैं।1 श्री त्र्यं. गु. काले ने पुराणों के आधार पर मनु का काल 3102 ई. पूर्व निर्धारित किया है।2 लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने ज्योतिर्विज्ञानीय तत्त्वों के आधार पर प्राचीन वैदिक साहित्य का कालनिर्णय करने का प्रयास किया है। उनके अनुसार कृत्तिका नक्षत्र में वसन्तारभ के समय ब्राहमण ग्रन्थों की रचना हुई और मृगशिरा नक्षत्र के काल में वैदिक मन्त्रसंहिताओं की रचना हुई। खगोल और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कृत्तिका और मृगशिरा नक्षत्रों में वसन्तारभ क्रमशः आज से 4500 ई.एवं 6500 वर्षों पूर्व हुआ था। इस प्रकार इन ग्रन्थों का काल क्रमशः 2500 ई. पू. तथा 4500 ई0पू0 के लगभग निर्धारित होता है।3 इस आधार पर मनु का काल भी ब्राहमणग्रन्थों से पूर्व इसी कालावधि के निकट निर्धारित होगा।
स्वरचित ‘धर्मशास्त्र का इतिहास’ में धर्मशास्त्र और स्मृतिग्रन्थों के प्रसिद्ध विवेचक डा.पी. वी. काणे ने शतपथ ब्राहमण और तैत्तिरीय संहिता आदि का काल ई. पू. 4000-1000 वर्ष माना है। मनु की जीवनस्थिति इनसे पूर्व की होने के कारण मनु का कालाी इनसे प्राचीन सिद्ध होगा।