(क) आधुनिक भारतीय लेखकों और कानूनविदों ने भी मनु के प्राचीनतम होने और मनुस्मृति के कानून का अदिस्रोत होने का समर्थन किया है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं0 जवाहरलाल नेहरू अपनी पुस्तक ‘डिस्कवरी आफ इंडिया’ में मनु को प्राचीनतम कानूनदाता स्वीकार करते हैं-
“MANU, the earliest exponent of the Law” (P.118)
= ‘प्राचीनतम और कानून के आदिदाता मनु।’
“The old law giver Manu, himself says” (P.118)= ‘प्राचीन विधिदाता मनु कहते हैं।’
(ख) ‘मुल्लाज हिन्दू लॉ’ में टी. देसाई कानून के प्रसंग में मनु को मूल विधिदाता और आदिपुरुष के रूप में प्रस्तुत करते हैं-
“the original lawgiver” (P.19)= ‘आदि विधिदाता मनु’
“Manu, the first patriarch” (P.19)=‘मनु, प्रथम आदिपुरुष’
(ग) श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर अपनी पुस्तक ‘ञ्जशख्ड्डह्म्स्रह्य ह्वठ्ठद्बक्द्गह्म्ह्यड्डद्यद्वड्डठ्ठ’ में मनु को भारत का ‘ला गिवर’ घोषित करते हैं-
“Our law giver Manu talls us” (P.95)
-हमारे लॉ गिवर (विधिप्रदाता) मनुनेहमेंबतायाहै।
(घ) एन. आर. राघवचारी अपनी पुस्तक ‘हिन्दू लॉ’ में मनु को कानून में सर्वोच्च प्रमाण मानते हैं –
““Manu is paramount authority on secular law””(P.3)
-मनु धार्मिक कानूनदाता के रूप में सर्वोच्च प्रमाण हैं।
(ङ) प्रसिद्ध आध्यात्मिक चिन्तक श्री अरविंद ‘इंडियन लिटरेचर’ में लिखते हैं –
““The greatest and the most authoritative is the
famous Laws of Manu.” (P.282-283)
अर्थात्-मनु का संविधान सबसे महान्, सबसे प्रामाणिक और सबसे प्रसिद्ध है।
(च) भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ0 राधाकृष्णन् ‘इंडियन फिलासफी’ में लिखते हैं-
““the code of Manu, to which a high position is
assigned among the smritis.”” (P.515)
अर्थात्- स्मृतियों में मनु के संविधान की सर्वोच्च स्थिति है और सर्वोच्च प्रामाणिकता है।