महान् आचार्य बलदेव जी महाराज
-पं. नन्दलाल निर्भय सिद्धान्ताचार्य
आचार्य बलदेवजी, सार्वदेशिक प्रधान।
ईश भक्त धर्मात्मा, थे सच्चे इंसान।।
थे सच्चे इंसान, वेद मर्यादा पालक।
स्वामी ओमानन्द रहे, गुरु उनके लायक।।
देशभक्त, गुणवान, धर्म के थे अनुरागी।
पर उपकारी सन्त, सत्यवादी थे त्यागी।।1।।
खोला गुरुकुल कालवा, किया धर्म का काम।
देव पुरुष ने कर दिया, सकल विश्व में नाम।।
सकल विश्व में नाम, हजारों बाल पढ़ाए।
देशभक्त विद्वान्, सैकड़ों शिष्य बनाए।।
राजसिंह अरु धर्मवीर को, ज्ञान सिखाया।
रामदेव को सकल विश्व में है चमकाया।।2।।
दर्शनाचार्य थे बड़े, थे गोभक्त महान्।
आर्य जगत में सब जगह, उनका था सममान।।
उनका था सममान, कर्म अच्छे करते थे।
मानवता के पुंज, पराया दुःख हरते थे।।
हिन्दी रक्षा सत्याग्रह में, काम किया था।
तारा सिंह, प्रताप सिंह को, हरा दिया था।।3।।
हाँ, आचार्य प्रवर गए, छोड़ सकल संसार।
मौत अचमभा है बड़ा, मित्रो! करो विचार।।
मित्रो! करो विचार, जगत में जो जन आता।
राजा हो या रंक, काल सबको खा जाता।।
राम, कृष्ण, चाणक्य, न यम से बचने पाए।
अर्जुन, पृथ्वीराज, काल ने ग्रास बनाए।।4।।
सुनो आर्यो! ध्यान से, एक काम की बात।
आपस में तुम मत करो, अब विवाद की बात।।
अब विवाद की बात करोगे, पछताओगे।
कहता हूँ मैं साफ, एक दिन मिट जाओगे।।
जगत्गुरु ऋषि दयानन्द की शिक्षा मानो।
अहंकार दो त्याग, धर्म अपना अब जानो।।5।।
आर्य सदन बहीन जनपद पलवल (हरियाणा)