‘धीरत्व’ कर्म का आभूषण जिस क्षण बनने को आतुर हो,
वह कर्म सफलता की चोटी को तत्क्षण ही पा जाता है।
‘वीरत्व’ धर्म की वेदी पर जिस क्षण बढऩे को आतुर हो,
फिर धर्म-कर्म बन जाता है और कर्म-धर्म बन जाता है।।
संसार समरभूमि है और है युद्धक्षेत्र रणवीरों का,
है कुछ रण के रणधीरों का और कुछ है धर्म के वीरों का।
यहाँ कुरुक्षेत्र है धर्मक्षेत्र और कर्मक्षेत्र भी धर्मक्षेत्र,
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है कर्मक्षेत्र यहाँ धीरों का और धर्मक्षेत्र यहाँ वीरों का।।
वो बात ही क्या जिस बात में कोई बात न हो और बात हो वो,
हर बात महज एक बात ही है गर बात में कोई बात हो तो।
इन धर्म-कर्म की बातों में एक बात छिपी है ऐसी भी,
कुछ बात हो फिर उस बात की भी
इस बात की गर कुछ बात हो तो
– सोमेश पाठक