कोई भी समाज अपने आस-पास घट रही घटनाओं से उदासीन नहीं रह सकता/विशेषकर यदि वे घटनाएँ राजनीति या सरकार से सम्बन्ध रखती हैं। यद्यपि आर्यसमाज एक धार्मिक-सामाजिक संगठन है, परन्तु इसकी ‘धर्म’ की परिभाषा विशद है, जिसमें मानव जीवन से सम्बन्धित सभी पक्षों का सम्यक् समावेश रहता है। इसी दृष्टि से हमें पिछले दिनों भारत के पाँच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव और उनके परिणामों पर विचार करना उचित होगा।
उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, मणिपुर और गोवा में चुनाव सम्पन्न हुए और दो प्रदेशों में (उत्तरप्रदेश और उत्तराखण्ड) भाजपा ने प्रधानमन्त्री श्रीमान् नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में प्रचण्ड विजय प्राप्त की। पंजाब में जो सरकार कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व में बनी उसका श्रेय बादल सरकार के भ्रष्टाचार एवं व्यक्तिगत रूप से कैप्टन अमरिन्दर सिंह को ही जाता है। कांग्रेस पार्टी के रूप में वहाँ कोई विशेष प्रभाव नहीं था। शेष दो राज्यों में स्पष्ट बहुमत न होने पर भी भाजपा की सरकार बनी है, क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व सक्रिय रहकर निर्णय लेने में अक्षम है। श्री नरेन्द्र मोदी जी के सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबन्दी जैसे सफल अभियानों को जनता ने हृदय से स्वीकार किया है।
यह उल्लेखनीय है कि भाजपा ने उत्तर-पूर्व में अपना परचम मणिपुर में फहराकर अपनी जन स्वीकार्यता को स्पष्ट किया है। इस प्रकार कुल मिलाकर भाजपा इन चुनावों में विशेष लाभ की स्थिति में रही। इस समय सिद्ध हुआ कि भाजपा के प्रधानमन्त्री श्री मोदी जी ही विजयी हुए हैं, इसमें दो राय नहीं। हालाँकि भाजपा कार्यकत्र्ताओं और अपने अन्य संगठनों (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) की बदौलत एक सुगठित पार्टी है। भाजपा को समान विचारधारा के सभी संगठनों का सहयोग भी मिला है।
हमें यह देखना चाहिए कि आखिर क्या बात है कि मोदी जी की स्वीकार्यता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इस विजय में जहाँ अन्य राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की नेतृत्व-अक्षमता मुख्य कारण बनी, वही राष्ट्रीय समस्याओं को सही परिपे्रक्ष्य में न देख पाना भी कारण रहा। यद्यपि सभी पार्टियाँ विकास का नारा देती दीख रहीं थीं, परन्तु वे यह बताने में असमर्थ थीं कि मोदी जी स्वयं ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे के साथ इस चुनाव में उतरे थे। जहाँ क्षेत्रीय पार्टियों ने जातिवाद तथा साम्प्रदायिकता का सहारा लिया, वहीं मोदी जी ने सर्वसमावेशी दृष्टिकोण अपनाए रखा तथा कोई भी विभेदकारी वक्तव्य नहीं दिया है।
प्रधानमन्त्री जी के इस दृष्टिकोण की प्रशंसा की जानी चाहिए कि वे एक सच्चे शासक की भाँति सभी वर्गों, धर्मों, समाजों को समान दृष्टि से देखते हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि देश के कुछ (धार्मिक, सामाजिक एवं क्षेत्रीय) वर्गों के शासकों की विभेदकारी एवं तुष्टिकरण की नीति का शिकार समाज स्वतन्त्रता के बाद से ही बनता आया है, जिससे उन्हें विशेष पहचान के कारण कुछ अतिरिक्त सुविधाएँ आजादी के बाद से ही प्राप्त होती आई हैं। अत: वे मोदी जी की समानता की विचारधारा को भी अपने लिए हानिकारक समझते हैं। लेकिन उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि उनके शेष देशवासी, जो उन सुविधाओं से वंचित रहते हैं, वे उन्हें अपना विरोधी और शत्रु मानने लगते हैं।
अस्तु, प्रधानमन्त्री जी ने विशेषत: उत्तर प्रदेश की बड़ी विजय के पश्चात् अपने सम्बोधन में कहा कि सभी के साथ समानता का बर्ताव करते हुए सभी को साथ लेकर देश का विकास किया जाएगा। इससे हम आशान्वित हैं कि सभी वर्गों, मतों, सम्प्रदायों एवं क्षेत्रों-प्रदेशों को विकास के समान अवसर दिए जाएँगे एवं हार-जीत की निराशा एवं गर्वोन्मत्तता से दूर रहकर राजधर्म का निर्वाह किया जाएगा।
सौभाग्य से प्रधानमन्त्री में हम उन गुणों का समावेश पाते हैं, जो ऋषियों की दृष्टि से एक शासक में अनिवार्यत: होने चाहिएं- सदाचार, ईमानदारी, कर्मठता, निरालस्य, राष्ट्रप्रेम, अर्थ-शुचिता, सतत अथक परिश्रमशीलता, प्रजा (जनता) के प्रति समदृष्टि इत्यादि। हमें ज्ञात नहीं कि उन्होंने किसी गुरु से आर्ष ग्रन्थों का अध्ययन किया अथवा नहीं, परन्तु यदि किया होता तो वे ‘राजर्षि’ की उपाधि अवश्य प्राप्त करते।
मुखिया मुख सो चाहिए, खान-पान सो एक।
पालइ पोसइ सकल अंग तुलसी सहित विवेक।।
– दिनेश
mar jamin par gnesha thharpavar ne kabja kiaya hai mai garib anr dukhi hoo ye jamin mere bap dada ki hai usa vakt ham nasamaj thai