युद्ध में लूटा गया माल
थोड़े ही समय में मुस्लिम खजाने के लिए जकात गौण हो गई और युद्ध में लूटा गया माल राजस्व का मुख्य स्रोत बन गया। वस्तुतः दोनों के बीच का फर्क जल्दी ही मिट गया। इसी से ”जकात की किताब“ अनायास ही युद्ध में लूटे जाने वाले माल की किताब बन जाती है।
युद्ध में लूटे गए धन का पंचमांश इस्लामी राज्य के लिए ”खम्स“ है। यह खजाने में जाता है। इसके दो पहलू हैं। एक ओर यह अभी भी युद्ध में लूटा गया माल है। पर दूसरी ओर यह जकात है। जिस समय यह प्राप्त किया जाता है, उस समय यह युद्ध में लूटा गया माल होता है। जब मिल्लत के बीच बांटा जाता है, तब यह जकात बन जाता है।
युद्ध में लूटे गए माल के प्रति मुहम्मद का विशेष महत्व है। ”युद्ध में लूटा गया माल अल्लाह और उनके रसूल के लिए है“ (कुरान 8/1)। वह धन अल्लाह द्वारा पैगम्बर के हाथ में सौंप दिया जाता है, जिससे वे उसे उस रूप में खर्च कर सकें, जिसे वे सर्वोत्तम समझें। यह खर्च चाहे गरीबों के लिए जकात के रूप में हो, अथवा उनके अपने साथियों को भेंट-उपहार हो, अथवा बहुदेववादियों को इस्लाम में प्रवृत्त करने के लिए रिश्वत हो, या फिर ”अल्लाह के रास्ते“ में खर्च हो अर्थात् बहुदेववादियों के खिलाफ सशस्त्र आक्रमणों और युद्धों की तैयारियों के लिए हो।
मुहम्मद के परिवार के दो नौजवान, अब्द अल-मुतालिब और फजल बिन अब्बास, अपनी शादी के लिए साधन जुटाने की नीयत से जकात वसूल करने वाले अधिकारी बनना चाहते थे। उन्होंने जाकर मुहम्मद से याचना की पर मुहम्मद ने जवाब दिया-”मुहम्मद के परिवार को सदका लेना शोभा नहीं देता, क्योंकि वह लोगों के दूषणों का द्योतक है।“ तदपि मुहम्मद ने दोनों नौजवानों की शादी का इन्तजाम कर दिया और अपने खजांची से कहा-”खम्स में से इन दोनों के नाम इतना महर (दहेज) दे दो“ (2347)।
author : ram swarup