क्या यम-नियम का पालन करने वाले व धार्मिक सेवा कार्य में लगे हुए व्यक्ति को मुक्ति मिलेगी?: आचार्य सोमदेव जी

जिज्ञासा- 

क्या यम-नियम का पालन करने वाले व धार्मिक सेवा कार्य में लगे हुए व्यक्ति को मुक्ति मिलेगी?

समाधान:-

मुक्ति के लिए मनुष्य यम-नियम का पालन करते हुए धार्मिक कार्य करे, इससे उसके अच्छे संस्कार बनेंगे। मुक्ति के लिए रास्ता तो खुलेगा, किन्तु केवल इतने मात्र से मुक्ति नहीं होगी। मुक्ति के लिए महर्षि ने कहा है, ‘‘पवित्र कर्म, पवित्रोपासना और पवित्र ज्ञान ही से मुक्ति…….’’। स.प्र. 9

यहाँ प्रमाण देने का तात्पर्य यह है कि केवल यम-नियम अनुष्ठान और धार्मिक सेवाकार्य से मुक्ति नहीं होगी। इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि धार्मिक सेवा कार्य आदि मुक्ति में बाधक हैं।

यम-नियम के अनुष्ठान और धार्मिक सेवा कार्य से व्यक्ति के अन्तःकरण में श्रेष्ठ संस्कार पड़ते हैं, जिससे व्यक्ति का उपासना में मन लगता है और उससे ज्ञान ग्रहण करने की योग्यता बढ़ती है। जैसा जिसका जितना शुद्ध ज्ञान होगा, वह वैसा  उतना अपने अविद्या के संस्कारों को नष्ट करेगा। जब पूर्ण रूप से अविद्या के संस्कार नष्ट हो जाते हैं, तब मुक्ति की अवस्था आती है। मुक्ति न तो कर्म से होती और न ही उपासना से, मुक्ति तो ज्ञान से ही सभव है। महर्षि कपिल ने अपने शास्त्र में लिखा- ‘‘ज्ञानात् मुक्तिः।।’’ जीवात्मा की मुक्ति ज्ञान से होती है। ‘‘बन्धो विपर्ययात्।।’’ अज्ञान से बन्धन होता है। ‘‘नियतकारणत्वान्न समुच्चयविकल्पौ ’’ मुक्ति प्राप्ति में ज्ञान की नियतकारणता है, अनिवार्य कारणता है, अर्र्थात् मुक्ति प्राप्ति में ज्ञान ही निश्चित कारण है। इसलिए न तो ज्ञानके साथ अन्य साधन मिलकर मुक्ति देते हैं और न ही ऐसा है कि ज्ञान से भी मुक्ति हो सकती है अथवा शुद्ध कर्म व उपासना से भी। मुक्ति के लिए तो केवल ज्ञान ही साधन बनता है, अन्य नहीं।

इसका कोई यह अर्थ न निकाले कि कर्म और उपासना की कोई महत्ता ही नहीं है, क्योंकि मुक्ति के लिए तो ज्ञान की ही आवश्यकता है। कर्म और उपासना का अपना महत्त्व है। शुद्ध कर्म और शुद्ध उपासना के करने से व्यक्ति के अन्दर सात्विक भाव उत्पन्न होते हैं। इस सात्विक स्थिति में ही व्यक्ति शुद्ध ज्ञान को ग्रहण करता चला जाता है। शुद्ध ज्ञान के होने पर अविद्या के संस्कार ढीले होने लगते हैं। धीरे-धीरे शुद्ध ज्ञान से साधक अपने अविद्यादि क्लेशों को पूर्ण रूप से नष्ट कर देता है। जब अविद्यादि क्लेश पूर्ण रूप से नष्ट हो जाते हैं, तब साधककी मुक्ति सभव हो जाती है।

इसलिए केवल यम-नियम का पालन करने अथवा धार्मिक सेवा कार्य करने से मुक्ति मिल जायेगी-ऐसा नहीं है। यम-नियम का पालन और धार्मिक सेवा कार्य का अपना एक फल है और वह अच्छा ही फल होगा, किन्तु इनका फल मुक्ति नहीं है। ये सब करते हुए योगायास करें और ज्ञान प्राप्त कर मुक्त हो जायें।

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