वीर्यपात के बाद स्नान
वीर्यपात के उपरान्त स्नान से सम्बन्धित एक दर्जन हदीस हैं (674-685)। एक बार मुहम्मद ने एक अंसार को बुलवाया, जोकि सम्भोगरत था। ”वह आया। उसके सिर से पानी चू रहा था। मुहम्मद ने कहा-शायद हमने तुम्हें हड़बड़ा दिया। उसने कहा-जी हां ! पैगम्बर बोले-जब तुम जल्दी में हो और वीर्य उत्सर्जित न हुआ हो तो नहाना जरूरी नहीं है। किन्तु वुजू करना जरूरी है“ (676)। एक अन्य हदीस में मुहम्मद कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति मदनलहरी के चरमोत्कर्ष के बिना, समागम के मध्य में ही अपनी पत्नी को छोड़ कर, इबादत के लिए उठता है, तो उसे ”अपनी पत्नी के स्राव को धोना चाहिए, फिर वुजू करनी चाहिए और तब नमाज अदा करनी चाहिए“ (677)। किन्तु यदि वीर्योत्सर्जन हो गया हो, तो ”नहाना अनिवार्य हो जाता है“ (674)।
एक बार इस मुद्दे पर कुछ मुजाहिरों और अंसारों में विवाद हुआ। उनमें से एक जन स्पष्टीकरण के लिए आयशा के पास पहुंचा, और पूछा-”किसी व्यक्ति के लिए नहाना जरूरी कब हो जाता है ?“ उन्होंने जवाब दिया-”तुम अच्छी जानकार के पास आये हो।“ फिर उन्होंने बतलाया कि मुहम्मद ने इस प्रसंग में क्या कहा था-”जब कोई पुरुष स्त्री की जांघों के मध्य में बैठा हो, और दोनों के खतने किए हुए हिस्से एक दूसरे से छू रहे हों, तब स्नान जरूरी हो जाता है“ (684)। और एक दूसरे मौके पर एक पुरुष ने मुहम्मद से पूछा कि यदि कोई अपनी बीवी से समागम करते हुए कामोत्ताप के शिखर पर पहुंचे बिना अलग हो जाता है, तो क्या स्नान जरूरी है। पैगम्बर ने, पास में बैठी आयशा की ओर इशारा करते हुए उत्तर दिया-”मैं और ये ऐसा करते हैं और तब नहाते हैं“ (685)।
author : ram swarup