मित्रो कई नास्तिक वादी और अम्बेडकर वादी वेदों पर चार्वाक दर्शन के आधार पर आरोप लगाते है कि वेदों में जर्भरी तुर्फरी का कोई अर्थ नही है ये युही लिखे गये है | कुछ दलित साहित्य कार जो आर्यों को विदेशी साबित करने पर तुले है वो कहते है कि ये ईराक आदि देशो के नदियों या किसी शहर के नाम थे जहा से आर्य भारत आये |
इस तरह की काल्पनिक बातें या कहानिया ये लोग गढ़ लेते है |
चार्वाक कहते है :-
” त्रयो वेदस्य कर्तारो भंडधूर्तनिशाचरा:|
जर्फरीतुर्फरीत्यादी पंडितानां वच: स्मृतम्||चार्वाक||”
भंड ,धूर्त ,निशाचर ये लोग वेदों के कर्ता है |इनके नाना प्रकार के बेमतलब शब्दों जर्भरी तुर्फरी से वेद भरा पड़ा है |
यहा चार्वाक और अनेक अम्बेडकर वादी ये भ्रम पैदा कर दिया कि वेदों में कई अनर्थक बिना मतलब वाले शब्द है |जिनका कोई अर्थ नही है | तो कुछ इन शब्दों को संस्कृत का न बता कर अन्य भाषा का बताते है |क्यूंकि ये लोग लोकिक संस्कृत और वैदिक संस्कृत के भेद से परिचित नही है या थे इसलिए इस तरह की कल्पनाये या बातें मन में धारण कर लेते है |
वेदों में वर्णित सभी शब्द या धातु अपना अर्थ रखती है ..
इस संधर्भ में निरुक्त में कौत्स के नाम से ऐसा पूर्वपक्ष उठाकर यही बात कहलाई गयी है | और यास्क उत्तर देते हुए कहते है कि वेदों में वर्णित सभी शब्दों के अर्थ है और स्पष्ट अर्थ है |
जैमिनी मुनि ने मीमासा में पूर्वपक्ष में इस तरह के प्रश्नों का समाधान करते हुए कहा है कि वेदों में सब शब्द अर्थ पूर्ण है |
ये जर्भरि और तुर्फरी शब्द ऋग्वेद के १०/१०६/६ में आये है :-
” सृण्येव जर्भरी तुर्फरीतु नैतोशेव तुर्फरी पर्फरीका |
उदन्यजेव जेमना म्देरु ता में जराय्वजरं मरायु ||६||”
ये दोनों शब्द दिवचन है और अश्विनो के विशेषण है यास्क मुनि निरुक्त परिशिष्ट अध्याय १३ के ६ खंड में इन शब्दों का अर्थ स्पष्ट करते हुए ऋग्वेद के १०/१०६/६ की व्याख्या करते हुए कहते है – ” सृण्येवेति द्विविधा सृणिर्भवति भर्ता च हन्ता च तथाश्विनौ चापि भर्तारो जर्भरी भर्तारावित्यर्थस्तूर्फरीतू हन्तारो| निरुक्त १३/६/४ |
यहा इसे अश्विनो का विशेषण बताते हुए यास्कचार्य जर्भरी को भर्ता से व्यक्त करते है अर्थात पोषण करने वाला अत: जर्भरी का अर्थ हुआ पोषण करने वाला |
तुर्फरी को हन्ता से व्यक्त करते है अर्थात ताड़ने वाला या मारने वाला होता है | अत: तुर्फरी का अर्थ हुआ मारने वाला या सताने वाला |
यहा दोनों शब्दों का अर्थ स्पष्ट कर दिया है |
अश्विनी का अर्थ विद्युत भी होता है और इस मन्त्र में इसे यास्क ने इसी का विशेषण बताया है | इस मन्त्र में जर्भरी ओर तुर्फरी को पालन करने वाला बताया है जेसा की हम देखते है कि विद्युत का कई तरह से उपयोग कर हम अपने जीवन को सरल और आरामदायक बना रहे है ,जैसे मिक्सी ,चक्की ,फ्रिज,वाशिंगमशीन ,हीटर आदि में विद्युत के उपयोग द्वारा …
तो दूसरी तरफ यही विद्युत दुर्घटना वश लोगो को करंट दे कर ताड़ती है ,कई बार आकाशी विद्युत गिर जाती है तो बहुत हानि करती है ,अत्यधिक वोल्टेज के या ३ फेस तारो को कोई छू लेता है तो वो मर जाता है या विधुयुत उसे मारती है ..इस तरह इस मन्त्र में यही रहस्य प्रकट करते हुए विद्युत को जर्भरी पालने वाली और तुर्फरी नाशक बताया गया है |
इन सब प्रमाणों से इस बात का खंडन हो जाता है कि वेदों में बिना अर्थ वाले शब्द है या विदेशी शब्द है |
ओम ……………