तीन घोषणाएं
तलाक लागू हो, उसके पहले ”तलाक“ शब्द को तीन बार कहना होता है (3491-3493)। लेकिन इसके बारे में अलग-अलग मत है कि घोषणा तीन माहवारियों के बाद लगातार तीन अलग-अलग अवसरों पर होनी चाहिए या एक ही वक्त तीन बार कर देना पर्याप्त है। अनुवादक के मत में ऐसी अहादीस की कमी नहीं है, जिनके अनुसार पैगम्बर के जीवनकाल में भी एक वक्त में तीन घोषणाएं कर देने पर तलाक को अटल माना गया“ (टि0 1933)।
तलाक की ऐसी आसान शर्तों के रहते एक वक्त में चार बीवियां रखने की मर्यादा में ज्यादा स्वार्थ-त्याग की जरूरत नहीं थी। बीवियां लगातार बदली जा सकती थी। मुहम्मद के एक वरिष्ठ साथी, सलाहकार और मित्र, अब्दर्रहमान और अबू बकर और उमर के बच्चे सोलह-सोलह बीवियों से पैदा किए गए थे। रखैलों से पैदा बच्चे इसके अलावा थे। कुछ समय बाद, मुहम्मद के नाती और अली के बेटे हसन ने सत्तर, और कुछ ब्यौरों के अनुसार, नब्बे शादियां की उसके समकालीन लोग उसे तलाक़बाज कह कर पुकारते थे।
यह आश्चर्य का विषय नहीं कि (इस्लाम में) औरतों की अपनी कोई प्रतिष्ठा नहीं है। उपहार में देकर या तलाक के द्वारा औरतों से आसानी के साथ छुट्टी पायी जा सकती है। उदाहरण के लिए, मदीना-प्रवास के समय अब्दर्रहमान को रबी के बेटे साद ने मजहबी भाई बनाया। यह मुहम्मद की उस व्यवस्था के अनुरूप था कि हर प्रवासी (मुजाहिद) एक मदीना-निवासी (अंसार) से भाईचारा बनाये। वे दोनों जब ब्यालू के लिए बैठे, तो मेजबान ने कहा-”मेरी दोनों बीवियों को देख लो, और जिसे ज्यादा पसंद करो उसे ले लो।“ उसी वक्त एक बीवी को तलाक दे कर उपहार में दे दिया गया।1
author : ram swarup