तयम्मुम
पानी मयस्सर न हो तो आप तयम्मुम कर सकते हैं, अर्थात् अपने हाथ पांव और माथे की मिट्टी से मल लें। ऐसा करना जल से प्रक्षालन की ही तरह उत्तम है। अनुवादक इसे स्पष्ट करते हैं-”प्रक्षालन एवं स्नान का प्रमुख प्रयोजन धार्मिक है। स्वास्थय-सम्बन्धी प्रयोजन गौण है।……अल्लाह ने पानी उपलब्ध न होने पर हमें तयम्मुम करने का आदेश दिया है……ताकि प्रक्षालन का आध्यात्मिक मूल्य सुरक्षित रहे और वह जीवन की ऐहिक गतिविधियों से हटाकर हमें अल्लाह की उपस्थिति के प्रति अभिमुख करें“ (टि0 579)। इस विषय पर कुरान में एक आयत है और आठ हदीस है (714-721)। ”यदि तुम बीमार हो या सफर पर हो या शौच-गृह से आए हो या तुमने औरत को छू लिया हो, और पानी न मिल रहा हो, तो स्वच्छ मिट्टी का आश्रय लो और अपने चेहरे तथा हाथों पर उसे मलो“ (कुरान 4/43)।
एक हदीस हमें उमर से कहे गये आम्मार के इन लफ्जों की बाबत बतलाती हैं-”ऐ अमीर अल-मोमिनीन ! क्या तुम्हें याद है कि जब हम दोनों एक फौजी टुकड़ी में थे और हमें वीर्यपात हो गया था और नहाने के लिए पानी नहीं मिला था और आपने नमाज नहीं पढ़ी थी, और मैं धूल में लोट गया था और मैंने नमाज़ पढ़ी थी, और जब पैगम्बर तक बात गई थी तो वे बोले थे-हाथों को जमीन पर रगड़ कर, फिर धूल झाड़कर हथेलियों और मुंह को पोंछ लेना पर्याप्त होता“ (718)।
author : ram swarup