फिर मानव मात्र का अर्थ ही कुछ नहीं – संसार की जनसंख्या की आधी स्त्रियां हिएँ और किसी मत का यह दावा कि वह मानव मात्र के लिए कल्याण करने आया है इस कसौटी पर परखा जाना आवश्यक है कि वह मानव समाज के इस अर्थ भाग को सामजिक नैतिक और आध्यात्मिक अधिकार क्या देता है. क़ुरान में कुंवारा रहना मना है. बिना विवाह के कोई मनुष्य रह नहीं सकता। अल्प व्यस्क बच्चा तो होता ही माँ बाप के हाथ का खिलौना होता है. वयस्क होने पर मुसलमान स्त्रियों को यह आदेश है –
व करना फी बयुति कन्ना – सूरते अह्जाब आयत ३२
और ठहरी रहो अपने घरों में
यही वह आयत है जिसके आधार पर परदा प्रथा खड़ी की गयी. इससे शारीरिक मानसिक नैतिक व आध्यात्मिक सब प्रकार की हानियाँ होती हैं और हो रही हैं। स्व्यम इस्लामी देशों में इस प्रथा के विरुद्ध कड़ा आंदोलन किया जा रहा है. कानून बन रहे हैं जिससे परेड को अनावश्यक ही नहीं अनुचित घोषित किया जा रहा है. परदा इस बात का प्रमाण है कि स्त्री अपनी स्वतंत्र सत्ता नहीं रखती। वह स्वतंत्र रह नहीं सकती। विवाह से पूर्व व बाद में दोनों दशाओं में परदे का प्रतिबन्ध बना रहता है. Continue reading क़ुरान में नारी का रूप- चमूपति