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क्या हिन्दू गौ मांस खाते थे ?

हाल ही में बीबीसी वालों ने डॉ भीमराव आंबेडकर के अवैदिक लेख को प्रस्तुत कर बड़ा मूर्खतापूर्ण कार्य किया है 

भारतीय संस्कृति और वैदिक धर्म को चोट पहुंचाने में बीबीसी आजकल बड़ी भूमिका निभा रहा है,

               चाहे वह दिल्ली गेंग रेप के अपराधियों के इंटरव्यू से यहाँ के लोगों की मानसिकता को घटिया बताना हो या वेदों में गाय के मांस खाने को सही बताना हो,

इन धूर्त विदेशियों ने आज तक केवल यही काम किया है, फुट डालो और राज करो और भारतीय इतिहास को नष्ट करके देश का भविष्य बर्बाद करो ,

भारतीय संविधान के निर्माता (जो वास्तविक रूप से लगते नहीं है क्यूंकि यह संविधान “कही की इंट कही का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा” को ज्यादा चरितार्थ करता है) Dr. B.R.A. ने वैदिक ग्रन्थों का अध्ययन किराए की आँखों से किया है अर्थात उनकी बातों से उनकी पुस्तकों से और उक्त गौ मॉस वाले लेख से स्पष्ट है कि  उन्होंने स्वयं कभी वैदिक ग्रन्थों को पढ़ा नहीं है, अपितु दुसरे लेखकों की पुस्तक पढ़ कर उन पर विशवास कर अपने द्वेष भाव से पीड़ित होकर लेख लिखा है,

 

Dr. B.R.A. ने वैदिक धर्म को शायद ही कभी दुराग्रह छोड़ कर समझा होगा यदि समझते तो आज अपने अनुयायियों के साथ मिलकर वैदिक धर्म से दुश्मनी न करते, वे स्वयं तो चले गए परन्तु अपने कर्मों का फल आज सभी को भुगतता हुआ छोड़कर चले गए

खैर Dr. B.R.A. के बारे में ज्यादा लिखने की जरुरत नहीं है फिर भी हमें आज उनकी बुद्धि पर तरस आता है, की इतना पढने लिखने के बाद भी ये बुद्धि से उपयोग ना कर पाए हमेशा किताबी कीड़े ही रहे जो किसी ने लिखा उसकी प्रमाणिकता जाने बिना उस पर विशवास कर लिया, मनु के प्रति इनका द्वेष देखते ही बनता है, यही द्वेष आज सारा भारत आरक्षण के रूप में झेल रहा है, इन्होने मनु को समझने का जतन कभी नहीं किया बस जो किसी लेखक ने लिख दिया

                उसे रटकर उसकी प्रमाणिकता जाने बिना मनु को दुश्मन समझ बैठे, परन्तु उनके अनुयायियों पर तरस आता है, जो आज भी अंधभक्ति की बिमारी से ग्रस्त होकर उनका समर्थन किये जा रहे है, हमारा उन सभी अनुयायियों से निवेदन है की अपनी बुद्धि का प्रयोग करके सत्य असत्य का निर्णय करे

अब आते है Dr. B.R.A. के बुद्धिहीन लेख पर

 

 

प्राचीन काल में हिन्दू गोमांस खाते थे’

भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माताओं में से एक डॉक्टर बीआर अंबेडकर अच्छे शोधकर्ता भी थे. उन्होंने गोमांस खाने के संबंध में एक निबंध लिखा था, ‘क्या हिंदुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया?’

यह निबंध उनकी किताब, ‘अछूतः कौन थे और वे अछूत क्यों बने?’ में है.

दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर शम्सुल इस्लाम ने इस निबंध को संपादित कर इसके कुछ हिस्से बीबीसी हिंदी के पाठकों के लिए उपलब्ध करवाए हैं.

पवित्र है इसलिए खाओ

अपने इस लेख में अंबेडकर हिंदुओं के इस दावे को चुनौती देते हैं कि हिंदुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया और गाय को हमेशा पवित्र माना है और उसे अघन्य (जिसे मारा नहीं जा सकता) की श्रेणी में रखा है.

अंबेडकर ने प्राचीन काल में हिंदुओं के गोमांस खाने की बात को साबित करने के लिए हिन्दू और बौद्ध धर्मग्रंथों का सहारा लिया.

उनके मुताबिक, “गाय को पवित्र माने जाने से पहले गाय को मारा जाता था. उन्होंने हिन्दू धर्मशास्त्रों के विख्यात विद्वान पीवी काणे का हवाला दिया. काणे ने लिखा है, ऐसा नहीं है कि वैदिक काल में गाय पवित्र नहीं थी, लेकिन उसकी पवित्रता के कारण ही बाजसनेई संहिता में कहा गया कि गोमांस को खाया जाना चाहिए.” (मराठी में धर्म शास्त्र विचार, पृष्ठ-180).

डॉ. पांडुरंग वमन काणे भी एक शौधकर्ता ही है, इन्होने वही लिखा जो इन्होने पढ़ा या सुना परन्तु वेदों में ऐसी कोई बात का उल्लेख नहीं है जैसा इन्होने प्रमाण दिया है, महाभारत, रामायण में भी कही भी मांस भक्षण का विवरण नहीं है, तो गौमास खाना तो बहुदूर की बात है, और जिस वैदिक काल की ये बात कर रहे है वह शायद वामपंथियों के समय के लिए वैदिक काल शब्द उपयोग में ले रहे है, गौ मॉस का भक्षण वामपंथियों द्वारा किया जाता था, ना वैदिक धर्मियों द्वारा !!

अंबेडकर ने लिखा है, “ऋगवेद काल के आर्य खाने के लिए गाय को मारा करते थे, जो खुद ऋगवेद से ही स्पष्ट है.”

ऋगवेद में (10. 86.14) में इंद्र कहते हैं, “उन्होंने एक बार 5 से ज़्यादा बैल पकाए’. ऋगवेद (10. 91.14) कहता है कि अग्नि के लिए घोड़े, बैल, सांड, बांझ गायों और भेड़ों की बलि दी गई. ऋगवेद (10. 72.6) से ऐसा लगता है कि गाय को तलवार या कुल्हाड़ी से मारा जाता था.”

Dr. B.R.A. जी ने वेदों से गौ मांस खाने का प्रमाण दिया है इतना पढने मात्र से ही इस लेख पर संदेह उत्पन्न हो जाता है

           पता नहीं इंसान उस जगह हाथ पैर क्यों मारता है जिसका उसे रति भर ज्ञान नहीं होता है, वेदों को पढने से पहले कई ग्रन्थ व्याकरण, निरुक्त आदि पढने पड़ते है, उसके बाद ही वेदों को समझा जा सकता है अन्यथा उसे भाष्यकारों के भाष्य पर ही निर्भर रहना पड़ता है, कुछ इस निर्भरता के चलते Dr. B.R.A. जी ने यह अनर्गल आरोप वैदिक धर्म पर मंड दिया की वे गौ मांस खाते थे

इन्होने ऋग्वेद के १० मंडल से कुछ प्रमाण प्रस्तूत किये है, जिसमें इंद्र के एक बार मांस पकाने के बारे में बताया है, यदि आज Dr. B.R.A. जी जीवित होते तो शायद आज इस आर्य से लज्जित होकर जाते परन्तु ईश्वर इच्छा से वे इस पुण्य कार्य से बच गए

Dr. B.R.A. जी आपके ज्ञान का क्या कहे, क्या आपको इतना ज्ञान भी नहीं था की वेदों में कही भी इतिहास या भविष्य नहीं है ??

पता भी होता तो आप अपने द्वेष के चलते इस बात को स्वीकार नहीं करते क्यूंकि आप पर नास्तिकता हावी थी और इसी नास्तिकता के चलते आप वेदों को ईश्वरीय ज्ञान ना मान कर मनुष्यकृत मानते थे, यही आपकी सबसे बड़ी गलती थी

चलिए आपको आपके प्रमाणों का आपके मृत्यु पश्चात सही अर्थ आपके अनुयायियों को बता देते है, ताकि आपके किये गए कार्यों पर उन्हें थोड़ी बहुत तो लज्जा आये

 

ऋग्वेद १०:८६:१४ में क्या लिखा है :-
भावार्थ :- विषय व्यावृत इन्द्रियों व प्राणसाधना से वीर्य का परिपाक होकर आत्मिक शक्ति का विकास होता है, प्रसंगवश यह वीर्य का परिपाक गुर्दे आदि के कष्टों से भी हमें बचाता है

इस मन्त्र से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें वीर्य क्षति से बचना चाहिए क्यूंकि इससे शरीर में अनेक प्रकार की दुर्बलता आती है और गुर्दे आदि की बिमारी होने की संभावना बढती है, इसमें कही भी इंद्र द्वारा मांस भक्षण नहीं बताया है

दूसरा प्रमाण ऋग्वेद १०:९१:१४ :–
भावार्थ:– हम ‘अश्व, ऋषभ, उक्षा, वश व मेष’ बनकर प्रभु के प्रति चलें, उसके प्रति अपना अर्पण करें | वे प्रभु हमारी शक्ति का रक्षण करने वाले, हमें सौम्यता को प्राप्त कराने वाले व हमारी सब शक्तियों का निर्माण कराने वाले है | उस प्रभु की प्राप्ति के लिए हम श्रद्धा से ज्ञानोत्पादिनी बुद्धि को अपने में उत्पन्न करते हैं |

इस मन्त्र में भी कही भी Dr. B.R.A. के बताये अनुसार घोड़े सांड आदि के मारकर भक्षण के बारे में नहीं बताया है अपितु उनके समांनातर बनकर प्रभु क्र प्रति समर्पण के लिए कहा है, जैसे इस मन्त्र में अश्व शब्द से तात्पर्य सदा कर्म में व्याप्त रहने वाले से है, जैसे घोडा सदैव कर्म करने में व्याप्त रहता है जैसा उसका मालिक उससे कार्य करवाता है वैसे ही वह करता है ठीक उसी प्रकार मनुष्यों को प्रभु की शरण में रहकर कर्म करने की बात कही है ना की अश्व आदि के भक्षण की !!

अब तीसरा प्रमाण ऋग्वेद १०:७२:६ को देखते है
भावार्थ:– आकाश में वर्तमान ये सब पिण्ड अलग-अलग होते हुए भी परस्पर व्यवस्था में सम्बद्ध है | कभी-कभी इनका कोई शिथिल भाग तीव्र –गति होकर दुसरे पिण्ड की ओर चला जाता है

इस मन्त्र में कहीं भी तलवार कुल्हाड़ी नहीं दिखती यह मन्त्र उल्कापात की जानकारी देता है

उपरोक्त तीनों प्रमाण Dr. B.R.A. जी द्वारा उनके अनुयायियों को उन्होंने गलत बताये, तीनों प्रमाणों को पढ़कर आज एक बात तो समझ आई की यह पंक्तियाँ क्यों कही गई थी
“सावन के गधे को हर जगह हरा ही हरा दीखता है”
सुधि पाठकगण इतना कहने मात्र से मेरी भावनाए समझ जाए

उपरोक्त सभी मन्त्र के भावार्थ और मेरे द्वारा काट की गई बातों की प्रमाणिकता अर्थात इन मन्त्रों के सही अर्थ जानने के लिए आप www.aryamantavya.in पर जाए और वहां वैदिक कोष में वेद डाउनलोड करें और स्वयं जांचे मेरे द्वारा कही बात का विशवास करने से उत्तम है आँखों देखि पर विशवास किया जाए

अतिथि यानि गाय का हत्यारा

अंबेडकर ने वैदिक ऋचाओं का हवाला दिया है जिनमें बलि देने के लिए गाय और सांड में से चुनने को कहा गया है.

अंबेडकर ने लिखा “तैत्रीय ब्राह्मण में बताई गई कामयेष्टियों में न सिर्फ़ बैल और गाय की बलि का उल्लेख है बल्कि यह भी बताया गया है कि किस देवता को किस तरह के बैल या गाय की बलि दी जानी चाहिए.”

वो लिखते हैं, “विष्णु को बलि चढ़ाने के लिए बौना बैल, वृत्रासुर के संहारक के रूप में इंद्र को लटकते सींग वाले और माथे पर चमक वाले सांड, पुशन के लिए काली गाय, रुद्र के लिए लाल गाय आदि.”

“तैत्रीय ब्राह्मण में एक और बलि का उल्लेख है जिसे पंचस्रदीय-सेवा बताया गया है. इसका सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, पांच साल के बगैर कूबड़ वाले 17 बौने बैलों का बलिदान और जितनी चाहें उतनी तीन साल की बौनी बछियों का बलिदान.”

अंबेडकर ने जिन वैदिक ग्रंथों का उल्लेख किया है उनके अनुसार मधुपर्क नाम का एक व्यंजन इन लोगों को अवश्य दिया जाना चाहिए- (1) ऋत्विज या बलि देने वाले ब्राह्मण (2) आचार्य-शिक्षक (3) दूल्हे (4) राजा (5) स्नातक और (6) मेज़बान को प्रिय कोई भी व्यक्ति.

कुछ लोग इस सूची में अतिथि को भी जोड़ते हैं.

मधुपर्क में “मांस, और वह भी गाय के मांस होता था. मेहमानों के लिए गाय को मारा जाना इस हद तक बढ़ गया था कि मेहमानों को ‘गोघ्न’ कहा जाने लगा था, जिसका अर्थ है गाय का हत्यारा.”

उपरोक्त प्रमाणों को पढ़कर इतना मात्र कहना चाहूँगा की तेत्रिय ब्राह्मण आदि वेद नहीं है, कुछ लोग इसे वेद मानते है, परन्तु यह वेद ना होकर उसकी शाखा है जो ईश्वरीय ज्ञान नहीं है, यह मनुष्यकृत होने से इसमें वे वे बाते ही मान्य है जो वेदोक्त है, तेत्रिय ब्राह्मण में काफी भाग अवैदिक है जो मान्य नहीं है

सब खाते थे गोमांस

इस शोध के आधार पर अंबेडकर ने लिखा कि एक समय हिंदू गायों को मारा करते थे और गोमांस खाया करते थे जो बौद्ध सूत्रों में दिए गए यज्ञ के ब्यौरों से साफ़ है.

अंबेडकर ने लिखा है, “कुतादंत सुत्त से एक रेखाचित्र तैयार किया जा सकता है जिसमें गौतम बुद्ध एक ब्राह्मण कुतादंत से जानवरों की बलि न देने की प्रार्थना करते हैं.”

अंबेडकर ने बौद्ध ग्रंथ संयुक्त निकाय(111. .1-9) के उस अंश का हवाला भी दिया है जिसमें कौशल के राजा पसेंडी के यज्ञ का ब्यौरा मिलता है.

संयुक्त निकाय में लिखा है, “पांच सौ सांड, पांच सौ बछड़े और कई बछियों, बकरियों और भेड़ों को बलि के लिए खंभे की ओर ले जाया गया.”

अंत में अंबेडकर लिखते हैं, “इस सुबूत के साथ कोई संदेह नहीं कर सकता कि एक समय ऐसा था जब हिंदू, जिनमें ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण दोनों थे, न सिर्फ़ मांस बल्कि गोमांस भी खाते थे.”

इस प्रमाण में Dr. B.R.A. जी ने जिन ग्रन्थों का उल्लेख किया है वह वामपंथियों के लिए है ना की वैदिक धर्मियों के लिए, गौ मास का भक्षण केवल विधर्मी और मलेछ किया करते थे और करते है उन्हें कभी हिन्दू नहीं माना गया है, परन्तु Dr. B.R.A. जी ने अपनी उदारता दिखाते हुए इन्हें भी हिन्दू मानकर यह सोच बना ली की हिन्दू अर्थात सनातन वैदिक धर्मी भी गौ मास खाते थे, जबकि वेदों में इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता है, Dr. B.R.A. जी ने अपने द्वेष और वैदिक ग्रन्थों के अनर्गल अर्थ निकाल कर गलतफहमी बना ली थी, की ये ग्रन्थ ऊँच नीच जैसी बातों को जन्म देते है, और यह गलतफहमी केवल उनके गलत अर्थ निकालने के कारण बनी जिसका परिणाम यह हुआ की उन्होंने अपने अनुयायियों को वैदिक धर्म से अलग कर दिया, आरक्षण की जड़ उनकी यह गलतफहमी ही बनीं की पिछड़ी जातियों के विकास के लिए आरक्षण जरुरी है और यह आरक्षण आज एक बहुत बड़े झगड़े का मूल बन चूका है

वेदों में कही भी मांसाहार को उचित नहीं बताया है अपितु गौ हत्यारों को कई प्रकार के दंड देने का विधान है और गौमास भक्षण का विरोध भी है

ऋग्वेद 8:101:१५

ऋग्वेद 8:101:२७

अथर्ववेद १०:१:२७

अथर्ववेद 12:४:३८

ऋग्वेद ६:२८:४

अथर्ववेद 8:3:२४

यजुर्वेद १३:४३

अथर्ववेद ७:5:5

यजुर्वेद ३०:१८

 

इन प्रमाणों को जांचने के लिए आप www.onlineved.in पर जाए और स्वयं पढ़े