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जो डर गया वह मक्का गया

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PK  का जवाब बिना पिए क्यूंकि पीने का शौक वैसे भी जन्नत जाने के शौकीनों को ज्यादा है हम तो सनातनी है भाई, जहाँ जन्नत या दोजख जैसे प्रदेशों की कोई जगह नहीं, 

आमिर खान एक जाना माना नाम एक अभिनेता और टी.वी. कार्यक्रम का होस्ट, आमतौर पर देखने में आता है की अभिनेता जनता को भावनात्मक रूप से काफी आकर्षित करते है, कोई human being जैसे नारे बना कर, कोई पाकिस्तानी बच्चों की मौत पर करोड़ों दान देकर और आमिर जैसे “सत्यमेव जयते” नाम के कार्यक्रम द्वारा जनता की परेशानियों और समाज में फैली बुराइयों का पर्दाफास कर ख़ासा आकर्षण पैदा कर लेते है, (वैसे भी इस्लाम को पैदा करने में माहिरता है, कभी इंजील कभी तौरात और अब कुरान पैदा हो गई, यहाँ पैदा शब्द को अवतरण से जोड़े)

मिर खान को एक वर्ग विशेष से बड़ा लगाव दीखता है, इतना लगाव की उसकी एक एक छोटी से छोटी बुराई को लोगों के सामने ऐसे लाता है जैसे कोई छुआ छुत का रोग है, जिससे १० कोस दूर रहा जाए! माना हिन्दुओं में जात पात, उंच नीच है, पर आज समय काफी बदल चुका है जात पात का जो स्तर ९० के दशक में था वो अब खत्म हो चूका है इसलिए मुझे नहीं लगता की इसे हिन्दुइज्म की बुराई के रूप में देखा जाए

अभी थोड़े दिन पहले ही इस सामजिक उधारक आमिर खान की एक फिल्म आई है “pk” !! इसे फिल्म ना कह कर हिन्दू विरोधी अभिनय कहा जाए तो इसके साथ सही न्याय होगा, बड़ी साफगोई से हमारे इस सामजिक उद्धारक ने हिन्दुओं की बड़े पैमाने पर बेइज्जती की है इस फिल्म में, और देखों हमारे सेकुलरों को जो ३०० रूपये किसी भले काम में खर्च ना करके इस बेहूदा फिल्म को देखने में खर्च कर देंगे, और फिल्म को देखने के बाद प्रशंसा के फूलों की बरसात करते है, इनके सेकुलरिज्म को देखने के बाद इनके पूर्वजों की पीड़ा याद आ जाती है जिन्होंने इस इस्लाम की वजह से कितनी यातनाये सही और यह उन्हीं की संताने आज उस इस्लाम की चाटुकारिता से आगे नहीं बढ़ पा रही है, चलिए इनका सेकुलरिज्म तो तब ही समाप्त होगा तब इस्लामी तलवार इनके गले पर पड़ी होगी |
आमिर खान की सामाजिकता को देखकर ये समझ नहीं आता की ये अपने अतीत को भूल चुके है या भूलने का नाटक कर रहे है, क्यूँ भूल जाते है ये अपने मजहब के उस घटिया कानून “तलाक” को जिसने कई परिवारों को उजाड़ दिया है, क्यों आमिर भूल गए “रीना दत्त” और उन दो बच्चों को जिनके वो पिता है, क्यूँ उन्हें मझधार में अकेला छोड़ अपनी सामजिक नांव को आगे ले गए? शायद इनके १२ वी पास दिमाग के लिए ये सामजिक कुरीति नहीं होगी | अब हमारे लिए ये तो तब तक सामजिक कुरीति ही है जब तक की आमिर इस इस्लामी कानून पर मुहं नहीं खोलते |

“pk” फिल्म में आमिर ने हिन्दुओं पर अभिनय करते हुए जमकर हमला बोला है, पर आमिर शायद ये कहावत भूल गए है की जिनके घर शीशे के बने होते है वो लोहे के महलों पर पत्थर नहीं मारा करते (कहावत को थोडा नया रूप दिया है जो की इस लेख की जरुरत है) क्यूँ आमिर अपने सामजिक ताने बाने की बुनाई में इस्लाम के पाखंडी किले को दरकिनार कर देते है, भाई दोगले मत बनों सत्यमेव जयते में तो बड़ा पक्ष लेते हो सच्चाई का फिर आपकी इस्लामी सचाई पर मुहं क्यों बंद हो जाता है, कहीं शाही इमामों के फतवों का भय तो नहीं है ?? या ये भय तो नहीं की अगर इस्लाम पर बोला जैसा औवेशियों ने सलमान की फिल्म “जय हो” की बर्बादी का मंजर बनाया था कही उनकी फिल्म का ना बन जाए ??

जो भी हो आपका भय साफ़ दिखता है, कोई बात नहीं हम समझ सकते है आप अपने अभिनय के इस मुकाम को मिटटी में नहीं मिलाना चाहते, पर हम बैठे है ना इस्लामी सत्य का ज्ञान लोगो तक लाने के लिए, हां ये बात अलग है की आपके प्रशंसक हमारी नहीं सुनेंगे क्यूंकि फ़िल्मी चकाचौंध चीज ही ऐसी है की जो फिल्मों में बताया जाए वो इन “kiss of love” को अंजाम देने वाले युवाओं के लिए राजा हरिश्चंद्र से भी बड़ा सत्य दीखता है

“pk” फिल्म में आपने एक जगह कहा है, जब आपसे आपके मुहं पर भगवान् का स्टीकर लगाने के कारण पूछा गया तो आपने कहाँ की “जैसे लोग जहाँ भगवान् की फोटो लगी हो वहां मूतते नहीं है वैसे ही मेरे मुहं पर स्टीकर देख कर कोई मुझे थप्पड़ नहीं मारेगा“ भाई कुछ तो इस्लाम की बाते भी इसी तरह कर लेते जैसे गाल पर “कुरान” लिख लेते, पर अच्छा किया नहीं लिखा अन्यथा लोगों को उसे पढ़ कर “कुरान सुरा बकर आयत नंबर २२३” याद आ जाती जिसमें लिखा है “आपकी बीवियां आपकी खेती है उन्हें चाहो जिधर से जिबह करो” उस आयत को याद कर लोग आपको थप्पड़ ना मार कर आपसे चाहते जिधर से जिबह कर लेते,

आपने कुरान नहीं लिखा इससे ही पता चल जाता है की १२वि पास आमिर को जनता ऐसे ही परफेक्टनिस्ट नहीं कहती
आपने इस फिल्म में एक जगह कहा है की “जो डर गया वो मंदिर गया” इससे भी आपकी परफेक्टनिस्ट झलक मिल जाती है देखिये कैसे

क्यूंकि सही मायनों में ये डायलोग कुछ ऐसा होना चाहिए था “जो डर गया वो मक्का गया” और इसे हम सही भी सिद्ध कर देंगे; हाँ ये बात अलग है की आप अपने डायलोग को सही सिद्ध नहीं कर पायेंगे क्यूंकि ईश्वर केवल मंदिरों में ही नहीं रहता है जैसे अल्लाह केवल मक्का में रहता है, ईश्वर सर्वव्यापी है, कण कण में विद्यमान है इसलिए हम उस परमपिता से गलत होने पर हमेशा घबराते है, क्यूंकि वो न्यायकारी है, ना की अल्लाह की भांति चापलूसी की रिश्वत लेकर क्षमा करने वाला

हिन्दुओं की मूर्ति पूजा की हंसी उड़ाने से पहले आमिर इस्लामी डर मक्का और उसके पास की दो पहाड़ियों पर नजर डालते तो कुछ जान पाते, ये दो पहाडिया है “सफा” और “मरवा” जहाँ किसी समय में मूर्ति पूजा हुआ करती थी. इन मूर्तियों को मुहम्मद साहब ने हटा दी थी इसे पाखण्ड बता कर पर मुहम्मद साहब इसके डर से बच ना पाए और इन्हें अल्लाह का निवास मान कर उन दो पहाड़ियों की परिक्रमा को उचित बताते हुए आयत भी उतार दी पढ़िए कुरान सुरा बकर आयत नम्बर १५८

और देखो

कुरान सुरा अन निसा आयत ७५-७७
बस उनको चाहिए ख़ुदा के मार्ग में लड़ें || जो लोग ईमान लाये ख़ुदा के मार्ग में लड़ते है, जो काफिर है वे बुतों के मार्ग में लड़ते है | बस शैतान के मित्रों से लड़ों, निश्चय उसका धोखा निर्बल है, जो उनको भलाई पहुँचती है, तो कहते है की यह अल्लाह की और से है और बुराई को तेरी और से बतलाते हा, कह सब अल्लाह की और से है ||७५-७७||

भला ! ईश्वर के मार्ग में लड़ाई का क्या काम ? और जो बुतपरस्त काफिर है, तो मुसलमान बड़े बुतपरस्त होने से बड़े काफिर होते है | क्योंकि ये हिन्दू छोटी मूर्तियों के सम्मुख नमते है और भक्ति करते है, वैसे ही मुसलमान लोग मक्का की जो एक बड़ी मस्जिद है उससके सामने नमते है, और यदि आप कहो की मक्का को खुदा नहीं समझते ये तो कुरान की आज्ञा है हम उसके सामने मुख रख कर नमते है, तो इसका मतलब मक्का में खुदा के होने की भावना मन में रख कर नमते हो, कान चाहे जिधर से भी पकड़ो बात तो एक ही है

ये तो केवल नजराना है अरबी पुस्तक का जिन्हें आमिर जी मानते है और नजराना है उस मक्का का जहाँ जाने के बाद आमिर जी को बड़ी शान्ति महसूस होती है, इन्हें इस्लामी पाखण्ड नहीं दिखा, दिखता भी केसे ? मारवाड़ी में एक कहावत है “आपरी माँ ने डाकण कोई कोणी केवे” अर्थात खुद की माँ चाहे कैसी भी हो कितनी ही कुलटा, कुलक्षिणी, कुपात्र हो पर स्वयं के लिए वो श्रेष्ठ ही रहती है, कुछ ऐसा ही हमारे महान सामाजिक उद्दारक आमिर खान के साथ है

हिन्दुओं की कुरीतियों से (जो की लगभग समाप्त हो चुकी है) लोगों को अवगत कराने से पहले इस्लामी कुरीतियों के दर्शन कर लेंगे तो आपका १२वि वाला दिमाग खुल जाए, इस्लाम जहां भाई भाई का नहीं है, बेटा पिता का नहीं है, भाई मेरे कुरान पढो माना आपको पढाई से नफरत सी है परन्तु जिस मजहब पर यकीं करते हो उसे तो पूरा जान लो

कुरान में पग पग पर लिखा है खुदा से डरों, खुदा बड़ा न्यायकारी है वो सब देखता है उससे डरों, तो आमिर भाई सबसे बड़ा डर तो इस्लाम में है जहाँ बिना गलती के भी डरना पड़ता है, जहाँ पग पग पर डरना पड़ता है, ये मजहब ही डरा डरा कर इतना बढ़ा है, इसलिए आपसे आशा है की आगे से किसी वर्ग विशेष की भावनाओं से खेलने से पहले अपने नंगेपन पर नजर डाल लें

हिन्दुओं से निवेदन है की अपने मेहनत के पैसों को अपने विरुद्ध होने वाली गतिविधियों पर बरबाद ना करें इससे अच्छा है एक किलो बादाम लाये सब खाए और स्वाध्याय करें इससे ज्यादा आनंद प्राप्त होगा

Jo Dar Gaya Wo Mecca Gaya : Review of PK – A reality

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Jo Dar Gaya Wo Mecca Gaya : Review of PK – A reality

Jo Dar Gaya Wo Mecca Gaya : Review of PK – A reality

Amir Khan, well known actor and program host, now a days has deepened his interest in  social matters. Whether it is his famous show “Satyamev Jayte “ or his movie “PK”, his keen interest in  social reform is clearly visible. Being a civilized person its duty of us to be accountable to the society. People of such fame normally do not take part in such activities due to their busy schedule or lack of interest. For this matter Mr. Amir Khan should be praised for his interest to clean evils and bad customs form the society. His efforts ,  we think will bring the change to the current environment of the society (Although we are not concerned with the past of the host who is taking up the task for making the society better place to live in. )

Amir Khan in the new movie has targeted few customs of Hindus. In  P.K(movie) PK(acted by Amir Khan) says . “Jo dar gaya woh mandir gaya,” and in one more situation he says that if a person on earth says  ‘I love chicken’ or ‘I love fish’,  they mean the exact opposite. He says it means they love killing and eating chicken and fish. He has defamed many of Hindu religious practices especially more related to Idol worship. We do agree that all these evil customs should be eroded from the society. One thing missing here is that he has targeted only one society of the people called “Hindus”. What about others? Is it lack of Amir Khan about such customs in other societies or his love for the society he belongs?

Suppose We do agree with “”Jo dar gaya woh mandir gaya,” but what about actor’s Mecca travel. Few years back he has gone there and said he felt very close to God. He also said : ”  The character and beauty of the place(Mecca) has a surreal feeling. Especially when you go to the maidaan of Arafat — that’s the most important moment of the trip. Because it’s here that you spend the whole day recalling your mistakes, your offenses and the people affected by them, and then ask God for forgiveness. A sense of catharsis overtook me.”

Oh here again the saying differs from the action of the actor!

Founder of Islam  Prophet Mohammad  also adopted and performed rituals  that were nothing more than idolatry. For instance, a hadith of al-Bukhari records that, prior to his calling, Muhammad made sacrifices to the idols:

Narrated ‘Abdullah: Allah’s Apostle said that he met Zaid bin ‘Amr Nufail at a place near Baldah and this had happened before Allah’s Apostle received the Divine Inspiration. Allah’s Apostle presented a dish of meat (that had been offered to him by the pagans) to Zaid bin ‘Amr, but Zaid refused to eat of it and then said (to the pagans), “I do not eat of what you slaughter on your stone altars (Ansabs) nor do I eat except that on which Allah’s Name has been mentioned on slaughtering.” (Sahih al-Bukhari 7:408)

 

The Qur’an itself commanded Muslims to continue practicing the idol worshio as part of the religion:

“As a matter of fact Safa and Marwa are among the sign of Allah. So whosoever performs the Hajj of the House or Umrah, there is no sin on him that he may do the Tawaf in them and whoso does good of his own free will – so God is all Grateful, all knowing. AL – Baqarah 2-158

Alma Shabbir Ahamad Usmani elaborates it in Tafseer E Usmani that Safa and Marwa are two hills of Makkah. The Arabs performed Hajj from the time of Hazrat Ibraheem and during the Hajj also went round them in the time of Ignorance. The unbelievers had placed two idols on these mounts. They thought that this going round was a mark of reverence of tawaf of Safa and Marwa was meant to pay homage to those idols. As the reverence of idols was forbidden, the tawaf of Safa and Marwa should be forbidden too. They did not know that originally the tawaf of Safa and Marwa was a part of Hajj and the unbelievers had placed the idols on them due to their ignorance. They had since been destroyed.

The Ansars of Mdinah were perturbed about the tawaf of Safa and Marw because they disliked it in the Time of ignorance too. When they embraced Islam they said to the Holy Prophet that they already thought it bad. God revealed this verse and both the groups were told that there was no sin or harm in the tawaf of Safa and Marwa. They were originally the signs of Allah so there tawaf should be performed.

In the above verse of Quran it is clearly mentioned that worship of non living article is not prohibited. Mountains of Safa and Marwa are non living thing and worship of those is allowed by GOD of Islam. If we look further in Tafsir IBN Kathir mother of Muslims Aishah said :

Imam Ahmad reported that ` Urwah said that he asked ` A’ishah about what Allah stated:

Verily, As-Safa and Al-Marwah (two mountains in Makkah) are of the symbols of Allah. So it is not a sin on him who performs Hajj or ` Umrah (pilgrimage) of the House (the Ka` bah at Makkah) to perform the going (Tawaf ) between them (As-Safa and Al-Marwah). ) “By Allah! It is not a sin if someone did not perform Tawaf around them. ” ` A’ishah said, “Worst is that which you said, O my nephew! If this is the meaning of it , it should have read, ` It is not a sin if one did not perform Tawaf around them. ‘ Rather, the Ayah was revealed regarding the Ansar, who before Islam, used to assume Ihlal (or Ihram for Haj j ) in the area of Mushallal for their idol Manat that they used to worship. Those who assumed Ihlal for Manat , used to hesitate to perform Tawaf (going) between Mounts As-Safa and Al-Marwah. So they (during the Islamic era) asked Allah’s Messenger about it , saying, `O Messenger of Allah! During the t ime of Jahiliyyah, we used to hesitate to perform Tawaf between As-Safa and Al-Marwah. ‘ Allah then revealed:

(Verily, As-Safa and Al-Marwah are of the symbols of Allah. So it is not a sin on him who performs Haj j or ` Umrah of the House to perform the going (Tawaf ) between them. )” ` A’ishah then said, ” Allah’s Messenger has made it the Sunnah to perform Tawaf between them (As-Safa and Al-Marwah), and thus, no one should abandon performing Tawaf between them. ” This Hadith is reported in the Sahihayn.

In another narrat ion, Imam Az-Zuhri reported that ` Urwah said: Later on I (` Urwah) told Abu Bakr bin ` Abdur-Rahman bin Al-Harith bin Hisham (of ` A’ishah’s statement ) and he said, “I have not heard of such informat ion. However, I heard learned men saying that all the people, except those whom ` A’ishah ment ioned, said, `Our Tawaf between these two hills is a pract ice of Jahiliyyah. ‘ Some others among the Ansar said, `We were commanded to perform Tawaf of the Ka` bah, but not between As-Safa and Al-Marwah. ‘ So Allah revealed:

(Verily, As-Safa and Al-Marwah are of the symbols of Allah. )” Abu Bakr bin ` Abdur-Rahman then said, “It seems that this verse was revealed concerning the two groups. ” Al-Bukhari collected a similar narrat ion by Anas. Ash-Sha` bi said, “Isaf (an idol) was on As-Safa while Na’ilah (an idol) was on Al-Marwah, and they used to touch (or kiss) them. Af ter Islam came, they were hesitant about performing Tawaf between them. Thereaf ter, the Ayah (2:158 above) was revealed. ”

Not only tawaf is performed but there is one ritual of kiss to idol. This is preached by the Muslim customs and widely followed by Muslims of all over the world. Even Muhammad sahib also followed the same.

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Muslim recorded a long Hadith in his Sahih f rom Jabir, in which Allah’s Messenger f inished the Tawaf around the House, and then went back to the Rukn (pillar, i.e. , the Black Stone) and kissed it . He then went out f rom the door near As-Safa while reciting:

(Verily, As-Safa and Al-Marwah are of the symbols of Allah. ) The Prophet then said, (I start with what Allah has commanded me to start with _ meaning start the Sa` i (i.e. , fast walking) f rom the As-Safa_ ). In another narrat ion of An-Nasa’i, the Prophet said, (Start with what Allah has started with (i.e. , As-Safa). )

Imam Ahmad reported that Habibah bint Abu Taj rah said, “I saw Allah’s Messenger performing Tawaf between As-Safa and Al-Marwah, while the people were in f ront of him and he was behind them walking in Sa` i. I saw his garment twisted around his knees because of the fast walking in Sa` i (he was performing) and he was reciting:

(Perform Sa` i, for Allah has prescribed Sa` i on you. )”’ This Hadith was used as a proof for the fact that Sa` i is a Rukn of Hajj . It was also said that Sa` i is Waj ib, and not a Rukn of Haj j and that if one does not perform it by mistake or by intent ion, he could expiate the shortcoming with Damm. Allah has stated that Tawaf between As-Safa and Al-Marwah is among the symbols of Allah, meaning, among the acts that Allah legislated during the Haj j for Prophet Ibrahim.

Being a Muslim devotee Amir Khan should refrain from doing such acts. As speaking against idolatry means speaking against the Islam and if he does so it will be a Kufra and according to the concerned believes he will be in fire of Jahannum.

Amir khan should take pay attention on the below word in favor of idolatry supported by the Islam. Tafsir IBN Kathir says “These Ayat sternly warn against those who hide the clear signs that the Messengers were sent with which guide to the correct path and beneficial guidance for the hearts, after Allah has made such aspects clear for His servants through the Books that He revealed to His Messengers. Abu Al-` Aliyah said that these Ayat , “were revealed about the People of the Scripture who hid the description of Muhammad . ” Allah then states that everything curses such people for this evil act . Certainly, just as everything asks for forgiveness for the scholar, even the fish in the sea and the bird in the air, then those who hide knowledge are cursed by Allah and by the cursers.”

If Amir really want to leave the idolatry, there is only one place called Vedic Dharma i.e humanity. We welcome him with the open heart to join the Vedic Dharm and remove Idolatry from all over the world. If he really want to do social service he should start with his own society and need to work hard on the idolatry. We wish him good luck and expect that he will not speak against Hindus but will begin with his own.