जिज्ञासा: –
पौराणिक कहे जाने वाले भाइयों में मृतक-भोज 10वाँ या तेरहवीं का रिवाज है, जिसमें लोगों को आमन्त्रित कर भोजन खिलाया जाता है तथा ब्राह्मण को दान देकर पूजा-पाठ आदि भी कराया जाता है।
उक्त हवन के लिये आर्य समाज के पुरोहित या अन्य लोगों को भी बुलाया जाता है।
तो क्या हवन आदि कराने हेतु जाना चाहिये अथवा नहीं।
समाधान-
समस्त मत-सप्रदायों में कहीं-न-कहीं पाखण्ड अंधविश्वास मिल ही जाता है अथवा उनमें पाखण्ड अंधविश्वास है। हमें हिन्दुओं में कुछ अधिक दिखता है। ये लोग बिना विचारे-समझे ही किसी भी पाखण्ड की ओर अग्रसर हो जाते हैं। यहाँ पत्थर, पहाड़, पेड़, नदी, नाले, समुद्र, पोखर, यहाँ तक की मल को भी पूजने वाले लोग मिलते हैं। अपराधी गुरु बनकर पूजा जा रहा है। गुरु के रूप में आकर जनता को ठगना और अपने गुरु रूपी आडबर की आड़ में अधिक-से-अधिक अपराध करना, ऐसा होते हुए भी देश की जनता का उनको पूजना-कितनी विडबना की बात है।
परमेश्वर को छोड़ गुरु की पूजा-अराधना करना, माता-पिता, आचार्य का उपदेश न मान, ढोंगी गुरु की बातें अपनाना, अनर्थ ही तो है।
इसी प्रकार मृतक श्राद्ध आदि की कथा है। जीवित मनुष्यों की सेवाह-सुश्रुषा न कर करने के बाद उनको तृप्त करने का पाखण्ड करना, मरने के बाद दस दिन वा तेरह दिन तक व्यर्थ के कार्य करना, जब कि वेद व ऋषियों का मन्तव्य है कि मरने के बाद उसको दाह-संस्कार कर, तीसरे दिन अस्थि चयन कर उन अस्थियों को कहीं दबा कर शुद्ध हो जाना, इसके उस मृत व्यक्ति के लिए कोई भी कार्य शेष नहीं रह जाता, फिर भी ये तेहरवीं वाली परपरा तो चला ही रखी है। इस दिन प्रायः पूजा-पाठ, हवन आदि करवाये जाते हैं। आपका कथन है कि इनके यहाँ आर्य समाज का पुरोहित व अन्य जनों को जाना चाहिए वा नहीं। इस पर हमारा कथन है कि जाने में तो कोई दोष नहीं है। यदि आर्य पुरोहित जायेगा तो वैदिक रीति से कर्मकाण्ड करेगा, कुछ अच्छा उपदेश करेगा, जिससे कुछ लोगों पर इसका प्रभाव भी पड़ेगा। हाँ, वहाँ जाकर यदि उनकी पाखण्ड की बातों का समर्थन करता है या उनके अनुसार कर्मकाण्ड करता है, तो अनुचित है। यदि हमें ज्ञात हो कि वहाँ जाने पर हमारे ऊपर इस पाखण्ड को करने का दबाव डाला जायेगा और हम उस दबाव का विरोध नहीं कर सकते, तो वहाँ नहीं जाना चाहिए। सामान्य रूप में जाने से कोई हानि नहीं है, जाया जा सकता है।