मेरी कलम से..
“जितनी ज़मीन बख़्शी है तुम्हें,
उतनी तो संभलती नहीं..
डंसते हो भारत को रोज़,
बलूच को तुम प्यार देते नहीं..
सर्जिकल अटैक के बाद,
31,000 पाक सैनिकों ने छुट्टी माँग ली,
तुममें तो सामना भी करने का हौसला नहीं..!
टुक-टुक करके ऊरी और पठानकोट खेलते हो,
किस हैसियत से कश्मीर-कश्मीर भौंकते हो जनाब…
क्या 1965 और 1971 से पेट भरा नहीं…!
तुम हो वो साँप के पिल्ले जिसे,
“फुफकारना है किसे और,
डंसना किसे” ये पता नहीं..!
फैला लो आतंक खूब जहाँ में सारे,
शामत आएगी तुम पर भी किसी रोज़,
इसका तुम्हें अंदाज़ा नहीं..!
छोड़ भागेंगे तुम्हारे ही डरपोक सैनिक तुम्हें,
अपनों से ही हारोगे तुम, गैरों से नहीं..!
कि है वक़्त अब भी
मना लो खैरियत, मांग लो दुआ तुम्हारे खुदा से
नहीं, जिस क़दर उड़ाते हो मासूम बकरों को चुन-चुनकर ईद पर
हश्र होगा तुम्हारा भी फिर वही..!
सदा बख्शता आया है भारत तुम्हें बड़े भाई की तरह,
इसका मतलब हम कोई कायर नहीं..!
ढूँढ लो अब सारे जहाँ में कितने ही हमराज़-ओ-हमदर्द,
पर अब कोई तुम्हारे काम आनेवाला नहीं..!
क्योंकि है घर तुम्हारा शीशे का,
किलों पर पत्थर फेंकना ठीक नहीं..!
पड़ोसी हो करीबी हो फिर भी,
जाना नहीं भारत को तुमने अब तक,
उसे समझ पाने की तुम्हारी औकात भी नहीं…!”