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स्वतन्त्रता दिवस का महत्त्व – वेदप्रकाश आर्य

मनुष्य के लिए स्वतन्त्रता का बड़ा महत्त्व है। मनुष्य को मन, वचन, कर्म की स्वतन्त्रता स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। मनुष्य को मनन-चिन्तन-सोच-विचार, बोलने-कहने-अभिव्यक्ति तथा कर्म करने की स्वतन्त्रता प्राप्त है। यह मनुष्य की उन्नति के लिए आवश्यक है। ईश्वर भी मनुष्य की इस स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप नहीं करता।

संसार में कुछ मनुष्य, समूह, राष्ट्र अपने स्वार्थवश अपने छल व बल के द्वारा अन्य मनुष्यों, समूहों व राष्ट्रों की स्वतन्त्रता का अधिग्रहण करते हैं। यह कार्य प्रतिदिन किसी-न-किसी रूप में चलता रहता है। परन्तु जहाँ कहीं पर स्वतन्त्रता का हनन होता है तो उस स्वतन्त्रता की पुनः प्राप्ति के लिए प्रयास, संघर्ष भी शुरू हो जाता है, जो स्वतन्त्रता की पुनः प्राप्ति तक निरन्तर चलता रहता है। स्वतन्त्रता की पुनः प्राप्ति कितने समय में होगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि स्वतन्त्रता का हरण करने वालों और स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए प्रयास-संघर्ष करने वालों का साहस, सामर्थ्य कितना है।

हमारे देश में विदेशी लोगों द्वारा हमारी स्वतन्त्रता के हनन का कार्य ग्यारहवीं सदी में ही शुरू हो गया था, जो बीसवीं सदी के सन् 1947 तक चला। पहले यह कार्य मुगलों द्वारा और बाद में अंग्रेजों द्वारा किया गया। भारतीय अपनी स्वतन्त्रता की पुनः प्राप्ति के लिए इस लबे काल में निरन्तर संघर्ष करते रहे। ऐसे लोगों में महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविन्दसिंह आदि मुगलकाल में प्रमुख थे। बाद में अंग्रेजों के काल में सन् 1857 से 1947 तक महारानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहब, मंगल पाण्डे, महात्मा गांधी, सुभाषचन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, भगतसिंह आदि अनेक लोगों ने स्वतन्त्रता की पुनः प्राप्ति के लिए संघर्ष किया व बलिदान दिया। इस कार्य में महर्षि दयानन्द द्वारा मार्गदर्शन का भी विशेष महत्त्व है। नौ सदियों के लबे संघर्ष व बलिदानों के बाद अन्त में 15 अगस्त सन् 1947 को इस देश के लोगों ने अपनी अपहृत स्वतन्त्रता को पुनः प्राप्त किया। इसीलिए 15 अगस्त को स्वतन्त्रता दिवस बड़े उत्साह से समारोहपूर्वक पूरे राष्ट्र द्वारा मनाया जाता है। इस प्रकार स्वतन्त्रता दिवस का बहुत ज्यादा महत्त्व है। स्वतन्त्रता छिन जाने के बाद ही स्वतन्त्रता के महत्त्व का अहसास होता है। इसलिए यह अति आवश्यक है कि हम स्वतन्त्रता के महत्त्व को समझें और स्वतन्त्रता दिवस पर सभी लोग मिलकर विशेष आयोजन करें। फिर से हमारी स्वतन्त्रता का कोई अपहरण न कर सके, इसके लिए निरन्तर उपाय व प्रयास करते रहें, यह अतिआवश्यक है।

एम.एल.-35, एलडिको मैनसन, सैक्टर-48, गुड़गाँव-122018 (हरियाणा)

कैसा स्वतंत्रता दिवस? – धर्मवीर आर्य,

पराधीनता एक ऐसा अभिशाप है, जिसमें मनुष्य अपनी उन्नति बिल्कुल भी नहीं कर सकता क्योंकि पराधीनता में मनुष्य के कार्य भी पराधीन होते हैं। मनुष्य के स्वतन्त्र होने पर वह अपनी उन्नति के तरीके स्वयं चुनता है, और शीघ्रातिशीघ्र अपनी यथेच्छ उन्नति कर लेता है। उसी प्रकार स्वतन्त्र राष्ट्र भी अपनी उन्नति हेतु अपनी कार्यप्रणाली का चयन स्वयं करता है, तथा शीघ्रता से उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है। भारत देश को स्वतन्त्र हुए 68 वाँ वर्ष चल रहा है। फिर भी यह देश अन्यान्यदेशों से उन्नति के पथ पर इतना पीछे क्यों है? यह जानने के लिए हमें यह जानना आवश्यक होगा कि स्वतन्त्र राष्ट्र किसे कहते हैं?

जिस देश की अपनी संस्कृति, अपनी सयता, अपनी परपराएँ, अपनी भाषा तथा अपना इतिहास, और अपना एक संविधान हो उस राष्ट्र को स्वतन्त्र राष्ट्र कहते हैं।

क्या भारत ने 15 अगस्त 1947 के बाद अपनी संस्कृति तथा सभ्यता  का पालन किया है?

क्या भारत ने 15 अगस्त 1947 के बाद अपनी भाषा हिन्दी को सर्वाधिकार प्रदान किये?

क्या भारत ने 15 अगस्त 1947 के बाद अपना स्वतन्त्र पूर्ण संविधान बनाया?

आप स्वयं विचार कर सकते हैं कि 1857 की क्रान्ति के बाद अंग्रजों के पैर भारत में डगमगा रहे थे। क्योंकि उस समय सारा भारतीय जन-समूह अंग्रेजी सत्ता को मूल से उखाड़ फेंकना चाहता था। अतः भारतीय जनता के विद्रोह की ज्वाला को शान्त करने केलिए 28 दिसबर 1885 में ए.ओ.ह्यूम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। वस्तुतः ए.ओ.ह्यूम का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के पीछे वास्तविक उद्देश्य क्या थे? यह उनके द्वारा अपने मित्र को लिखे पत्र से स्पष्ट हो जाता है। उन्होंने लिखा, ‘यह योजना (कांग्रेस की स्थापना) मैंने ही अपने कर्मों के फलस्वरूप उत्पन्न की है, जो एक और प्रयत्न बढ़ती हुई शक्ति के निष्कासन के लिए एक रक्षानली के रूप में बनाई गई है, जो राजनीतिक भय को निकालने के लिए सेफ्टी  वाल्व अभयदीप का कार्य करे।’ अर्थात् कांग्रेस की स्थापना के पीछे ह्यूम का वास्तविक उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा करना था। ह्यूम के जीवनी लेखक वैडरबर्न ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि, ‘‘भारत में असन्तोष की बढ़ती हुई शक्तियों से बचने के लिए एक ‘अभय दीप’ की आवश्यकता है और कांग्रेस से बढ़कर अभयदीप दूसरी कोई चीज नहीं हो सकती।’’

लाला लाजपत राय ने ‘यंग इण्डिया’ में लिखा है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का मुय उद्देश्य यह था कि हम ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा करें और उसको छिन्न-भिन्न होने से बचायें।

मूलतः सोचा जाये तो निष्कर्ष यह निकलता है कि कांग्रेस की स्थापना भारतीयों के लिए नहीं, अपितु ब्रिटिश सरकार के लिए ही की गई थी। और उसी कांग्रेस ने तथाकथित आजादी के बाद भी लगभग 60 साल तक भारत पर शासन किया है। मेरे कहने का सीधा-सा अभिप्राय यह है कि ‘भारत 15 अगस्त 1947 तक प्रत्यक्ष रूप से गुलाम था, और 15 अगस्त 1947 के बाद अप्रत्यक्ष रूप से गुलाम ही था।’

एक अमरीकी पत्रकार श्री हैनरी सेंडर भारत में भ्रमण के लिए आये। भारत में भ्रमण करते हुए भारतीयों की स्थिति को देाकर जो प्रतिक्रिया उन पर हुई, वह अमरीका में जाकर वहाँ के प्रसिद्ध पत्र ‘प्रौग्रैसिव’ में उन्होंने लिखी। उनके लेख का अपेक्षित भाग इस प्रकार है- ‘‘अंग्रेजों के चले जाने के बाद भारत में 30 वर्षों में झण्डे के सिवाय और कोई परिवर्तन नहीं आया है’’। आप स्वयं भी इस बात को निम्न बिन्दुओं से जान सकते हैं-

  1. 1. आजादी के बाद भी, यदि महान् क्रान्तिकारी देशभक्त सुभाष जी मिलते तो उन्हें ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया जाता।
  2. आजादी के बाद बिना निर्वाचित हुए ही नेहरु जी को प्रधानमंत्री क्यों बनाया गया? यह उन कुटिल अंग्रेजों की एक चाल थी।
  3. 1947 के बाद लगभग 60 साल तक भारत पर कांग्रेस की सत्ता रही है। जिसका स्थापन-कर्त्ता एक इंग्लैण्ड निवासी ही था, सोचिए क्या कोई शत्रु भी, हमारे हित के लिए पार्टी की स्थापना करेगा? बिल्कुल नहीं।
  4. 4. 1947 के बाद भारत में अंग्रेजी भाषा को जितना बढ़ावा मिला है तथा अंग्रेजी भाषा का प्रचार हुआ, उतना तो अंग्रेज भारत में 200 साल रहकर भी नहीं कर पाये।
  5. 5. 1947 के बाद आजादी की ज्वाला में बलिदान कर देने वाले पवित्र देशाक्तों को समान देने के बजाय उपेक्षित और अपमानित ही किया जाता रहा है। क्या उनके माता-पिता को कोई पूछता भी है?
  6. 6. भारत का संविधान मूल रूप से आज भी अंग्रेजी भाषा में ही है।
  7. 7. भारत के सर्वोच्च न्यायालय में हिन्दी भाषा में कोई भी अपनी राय नहीं दे सकता है।
  8. 8. यदि कोई पाकिस्तान का व्यक्ति कश्मीर की युवती से शादी कर लेता है तो उसे भारत की नागरिकता स्वयं प्राप्त हो जाती है।
  9. 9. कोई अन्य राज्य का प्रवासी कश्मीर में जाकर नहीं बस सकता है। क्या इसी तरह हम स्वतन्त्र हैं?
  10. 10. जितनी गोहत्या के कत्लखाने आजादी से पहले थे, उनसे चौगुने गो-हत्या के कत्लखाने आज हैं।
  11. 11. आज आपको अपनी मां, बेटी, बहन को घर पर अकेला छोड़ने में भी दस बार सोचना पड़ता है, और अन्त में कहना पड़ता है कि दरवाजे बन्द रखना।
  12. 12. कश्मीर भारत का होता हुआ भी वहाँ पर हम भारत का झंडा तिरंगा नहीं फहरा सकते हैं।

आखिर क्यों है ऐसा? क्या हम 1947 के दिन पूर्ण स्वतन्त्र नहीं हुए थे। आप स्वयं सोचिए कि आजादी के बाद 1947 में बिना निर्वाचित हुए ही नेहरु को प्रधानमन्त्री पद सौंपा गया था। क्योंकि नेहरु और अंग्रेजों की मिली-भगत अवश्य रही होगी, इसीलिए तो नेहरु ने स्वयं उस महान् देशभक्त क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चन्द्रबोस को प्रधानमन्त्री पद के बदले में ब्रिटिश सरकार को सौंपने की शर्त मानी थी। परन्तु यह बात जन-समूह में थोड़े परिवर्तन के साथ आयी कि अंग्रेजों ने आजादी देने के बदले में नेताजी को मिलने के बाद इंग्लैण्ड को सौंपने का आदेश दिया है।

कोई कहे या न कहे मैं तो यही कहूँगा कि भारत का वास्तविक स्वतन्त्रता दिवस 15 अगस्त 1947 होने के बजाय 18 मई 2014 के दिन होना चाहिए। इसी बात को लंदन के एक प्रसिद्ध समाचार पत्र में इन शदों में लिखा गया है-

Today, 18 May, will go down in history as the day when Britain finally left India. Narendra Modi’s victory in the elections marks the end of a long era in which the structures of power did not differ greatly from those through which Britain ruled the sub continent. India under the congress party was in many ways a continuation of the British Raj by other means.

-The Gaurdian, Editorial, Sunday 18 May 2014 London

पाठकों की सुविधा हेतु, उपरोक्त अंग्रेजी गद्यांश का हिन्दी अनुवाद नीचे दिया गया है-

आज 18 मई 2014 को इतिहास में वो दिन समझा जा सकता है, जब अंग्रेजों ने अन्ततः भारत छोड़ दिया। निर्वाचनों में नरेन्द्र मोदी की विजय एक लबे युग के अन्त का लक्षण है, एक ऐसा युग, जिसमें सत्ता का ढाँचा ब्रिटिश लोगों के सत्ता के उस ढांचे से बहुत अलग नहीं था, जिससे वे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन करते थे। कांग्रेस दल द्वारा प्रशासित भारत अनेक अर्थों में प्रकार-भेद से ब्रिटिश राज से पृथक् नहीं था।

-The Gaurdian, Editorial, Sunday 18 May 2014 London

– अकलौनी, भिण्ड, मध्यप्रदेश