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hadees: DON�T EXPOSE YOUR PRIVATE PARTS

DON�T EXPOSE YOUR PRIVATE PARTS

Muhammad says that �a man should not see the private part of another man,� nor should men lie together �under one covering� (667).  In this connection, he also tells us that the Jews used to take their baths naked and looked at each other�s private parts, but Moses took his bath alone.  Instead of feeling ashamed for not following their leader�s example the Jews taunted him.  They said he refrained from exposing his private parts because he suffered from scrotal hernia.  But God vindicated him.  Once, while taking his bath, Moses put his clothes on a rock, but the rock moved away.  �Moses ran after it crying: O stone, my clothes; O stone, my clothes.� The Jews then had a chance to see Moses� private parts, and said: �By Allah, Moses does not suffer from any ailment� (669).

author : ram swarup

हदीस : फैसले का दिन

फैसले का दिन

फैसले का दिन (कयामत), अंतिम दिन (योमुल-आखिर) इस्लामी पंथमीमांसा का अपरिहार्य अंग है। जैसा कि मिर्जा हैरत ने अपनी किताब, मुकद्दमा तफसीर उलफुरकान2 में दर्ज किया है, कुरान में ’कयामत‘ शब्द सत्तर बार आया है और उसके सत्तर पर्याय हैं। अपनी अनुवर्ती अवधारणाओं, जन्नत और जहन्नुम, के साथ यह शब्द हदीस के भी लगभग हर-एक पृष्ठ में आ टपकता है। कुरान में कम आग्रहशील किन्तु उतनी ही उन्नत योग-पद्धतियों में यही विचार भिन्न रूप में और अधिक मनोवैज्ञानिक पदों में प्रकट किया जाता है-हमें अपने पतन की स्मृति से आविष्ट नहीं रहना चाहिए, वरन् अपने अन्तर में स्थित दिव्य तत्त्व की प्रीति में रमना चाहिए।

 

  1. सामाजिक तथा कानूनी दृष्टि से स्त्री का स्तर नीचा रहा है। उसके शरीर की रचना अन्य प्रकार की है। उसके शरीर की क्रियाएं भी विभिन्न हैं। इन समस्त विभेदों से सिद्ध होता है कि स्त्री नैतिक दृष्टि से निकृष्ट है। अतएव अल्लाह यदि उसे दण्ड देता है तो ठीक ही करता है। अल-गजाली (ईसवी 1058-1111) अपने युग में महान माने जाने वाले अरब मनीषी थे। वे अपनी पुस्तक नसीहत अल-मुलूक में लिखते हैं-”अल्लाह प्रशंसनीय है। उसने स्त्री को अठारह प्रकार की सजा दी हैः (1) मासिक धर्म, (2) प्रजनन, (3) माता-पिता से बिछुड़ना और एक अजनबी से निकाह, (4) गर्भ-धारण,(5) अपने ऊपर अधिकार का अभव (अर्थात दूसरों की मातहत रहना), (6) दायभाग में उसका हिस्सा कम होना, (7) उसे आसानी से तलाक दिया जाना किन्तु उसके द्वारा तलाक देने में असमर्थता, (8) मर्द के लिए चार बीवियों का वैध होना किन्तु उसके लिए एक ही पति जायज होना, (9) यह बात कि उसे घर के भीतर परदे में रहना पड़ता है, (10) यह बात कि घर के भीतर भी उसे सर ढके रखना होता है, (11) यह बात कि दो स्त्रियों की गवाही एक पुरुष की गवाही के बराबर है, (12) यह बात की यदि कोई निकट का सम्बन्धी साथ न हो तो वह घर के बाहर नहीं जा सकती, (13) यह बात कि पुरुष लोग जुम्मे के दिन और त्यौहारों के मौकों पर अदा की जाने वाली नमाज में शामिल हो सकते हैं, जबकि वह नहीं हो सकती, (14) शासक तथा न्यायाधीश के पदों के लिए उसकी अपात्रता, (15) यह बात कि पुण्य के एक हजार अवयव हैं जिनमें से स्त्रियों द्वारा केवल एक ही सम्पन्न होता है जबकि नौ-सौ निन्यानवे पुरुषों द्वारा सम्पन्न माने जाते हैं, (16) यह बात कि स्त्री यदि लम्पट हो तो कयामत के दिन शेष मिल्लत को मिलने वाली सजा का आधा भाग ही उसे मिलता है, (17) यह बात कि उनके शौहर मर जाते हैं तो दोबारा शादी करने के पहले उन्हें चार महीने तथा दस दिन तक इन्तजार करना पड़ता है, और (18) यह बात कि यदि उनके शौहर उनको तलाक दे देते हैं तो उन्हें दोबार शादी करने के लिए तीन महीने अथवा तीन मासिक धर्म पूरे होने तक इन्तजार करना पड़ता है।“ (नसीहत अल मुलूक लन्दन 1971, पृ0 164-164)।
  2. ये सभी पर्याय कुरान परिचय नाम की पुस्तक में मिलते हैं। हिन्दी की इस पुस्तक के लेखक तथा प्रकाशक हैं – देव प्रकाश, रतलाम, मध्य प्रदेश।

 

कयामत के दिन मुहम्मद के अनुयायी सब से अधिक

मुहम्मद हमें बतलाते हैं कि ”कयामत के रोज हमारे अनुयायी सबसे ज्यादा होंगे“ (283)। यह तर्क समझ में आता है। हम जानते हैं कि जहन्नुम की आग मुहम्मद के हक में है। यह आग मुहम्मद के विरोधियों को जलाने में व्यस्त रहेगी और जन्नत के लिए सिर्फ मुसलमान बच रहेंगे।

 

मुहम्मद बतलाते हैं-”यहूदियों और ईसाइयों में जो व्यक्ति मेरे बारे में जानता है, पर तब भी उस सन्देश पर ईमान नहीं लाता जिसे लेकर मैं भेजा गया हूँ, और अनास्था की दशा में ही जिन्दगी बिता देता है, वह दोजख की आग में जलने वालों में से एक  होगा“ (284)। यहूदी और ईसाई न केवल अपनी अनास्था के लिए जहन्नुम की आग में जलेंगे, अपितु उन मुसलमानों के बदले में भी काम आयेंगे, जो जहन्नुम भेजे जाने योग्य होंगे। मुहम्मद बतलाते हैं-”कयामत के रोज पहाड़ जैसे पापों वाले मुसलमान आएंगे और अल्लाह उन्हें माफ कर देगा और उनके एवज में यहूदियों और ईसाईयों को जहन्नुम में भेजेगा“ (6668)। संयोगवश, इससे जन्नत में जगह का मसला भी हल हो जायेगा। अनुवादक हमें बतलाते हैं-”ईसाइयों और यहूदियों को दोजख की आग में फेंक दिये जाने पर जन्नत में जगह निकल आयेगी“ (टी0 2-67)।

 

जहन्नुम की आबादी का एक और अहम हिस्सा औरतों का होगा। मुहम्मद कहते हैं-”ऐ औरतों !……. मैने जहन्नुम के बाशिन्दों में तुम्हारा अम्बार देखा।“ एक औरत ने पूछा कि ऐसा क्यों होगा, तो मुहम्मद ने उसे समझाया-“तुम लोग बहुत ज्यादा दुर्वचन बोलती हो और अपने पतियों के प्रति एहसान फरामोश हो। मैने किसी और को (तुम्हारे जैसा) सामान्य बुद्धि से हीन और मज़हबी मामलों में कमजोर और फिर भी बुद्धिमानों से बुद्धिमत्ता छीन लेने वाला नहीं देखा।“ उनमें ”सामान्य बुद्धि की कमी का प्रमाण“ है खुद मुहम्मद द्वारा प्रवर्तित अल्लाह के कानून की यह धारा कि ”दो औरतों की गवाही एक मर्द की गवाही के बराबर है।“ मजहब में उनकी कमजोरी का प्रमाण भी मुहम्मद उन्हें बतलाते हैं-”तुम्हारी कुछ रातें और दिन ऐसे होते हैं जब तुम नमाज नहीं अदा कर पाती और रमजान के महीने में तुम रोजे नहीं रख पाती“ (142)। औरतें कई बार इसलिए यह घोर भयावह दिन (यौम), जिसे कहीं ”हिसाब“ का दिन, कहीं ”छटनी“ (फस्ल) का या ”पुनरुत्थान“ (कियामह) का दिन कहा गया है, तीन सौ से अधिक बार आया है।

 

आखिरी दिन के आ पहुंचने के कई संकेत प्रकट होंगे। ”जब तुम देखो कि एक गुलाम औरत अपने मालिक को जन्म दे रही है-यह एक संकेत है। जब तुम नंगे पांव नंगे लोगों, बहरों और गूंगों को पृथ्वी का शासक देखो-यह कयामत के संकेतों में से एक है। जब तुम काले ऊँटों के चरवाहों को इमारतों में आनन्द करते देखो-यह भी कयामत के संकेतों में से एक है“ (6)। संक्षेप में, जब गरीब और वंचित जन, धरती पर अपना अधिकार पा लें, तब मुहम्मद के अनुसार वह धरती का अंतकाल है।

 

”किताब अल-ईमान“ के अंतिम भाग में 82 हदीसों में कयामत के दिन का विस्तृत विवरण है। मुहम्म्द हमें बतलाते हैं कि इस दिन अल्लाह ”लोगों को इकट्ठा करेंगे“, ”जहन्नुम के ऊपर एक पुल बनाया जायेगा“ और ”मैं (मुहम्मद) तथा मेरी मिल्लत सबसे पहले उस पर से पार होंगे“ (347)। साफ है कि काफिर लोग उस दिन पूरी तरह दुर्दशा को प्राप्त होंगे। पर आसमानी किताब वाले लोग-यहूदी और ईसाई-भी कुछ बेहतर न होंगे। मसलन, ईसाई बुलाए जाएंगे और उनसे पूछा जाएगा- ”तुम किसी उपासना करते थे?“ जब वे जवाब देंगे कि ”अल्लाह के बेटे“ यीशू की, तब अल्लाह उनसे कहेंगे-”तुम झूठे हो। अल्लाह के न तो कोई बीवी है, न बेटा।“ फिर उनसे पूछा जायेगा कि वे चाहते क्या हैं। वे कहेंगे-”ऐ मालिक ! हम प्यासे हैं। हमारी प्यास बुझा।“ उन्हें एक खास तरफ निर्देशित करते हुए अल्लाह कहेंगे-”तुम वहां जाकर पानी क्यों नहीं पी लेते?“ जब वे वहां जायेंगे तो वे पायेंगे कि उन्हें गुमराह किया गया है। वहां पानी मृगमरीचिका मात्र है, वस्तुतः वह जहन्नुम है। तब वे ”आग में गिर जाएंगे“ और नष्ट हो जाएंगे (352)।

 

उस दिन कोई और पैगम्बर या उद्धारक काम न आयेगा, सिवाय मुहम्मद के। लोग आदम के पास जायेंगे और कहेंगे-”अपनी संतति के लिए सिफारिश करो।“ वह जवाब देगा-”मैं इसके काबिल नहीं हूँ। पर तुम इब्राहिम के पास जाओ, क्योंकि वह अल्लाह का दोस्त है।“ वे इब्राहिम के पास जाएंगे। पर वह जवाब देगा-”मैं इसके काबिल नहीं हूँ। पर तुम मूसा के पास जाओ, क्योंकि वह अल्लाह का संभाषी है।“ वे मूसा के पास जाएंगे। पर वह जवाब देगा-”मैं इसके काबिल नहीं हूँ। पर तुम यीशु के पास जाओ, क्योंकि वह अल्लाह की रूह और उनका शब्द है।“ वे यीशु के पास जाएंगे और वह उत्तर देगा-”मैं इसके काबिल नहीं हूं। बेहतर है कि तुम मोहम्मद के पास जाओ।“ तब वे मुहम्मद के पास आयेंगे और मोहम्मद कहेगा-”मैं यह कर सकने में समर्थ हूँ।“ वह अल्लाह से अपील करेगा और उसकी सिफारिश स्वीकार कर ली जाएगी (377)।

 

कई हदीसों (381-396) में मुहम्मद हमें बतलाते हैं कि पैगम्बरों में उन्हीं के पास सिफारिश करने का विशेष सामथ्र्य है, क्योंकि  ”पैगम्बरों में से और कोई पैगम्बर इस तरह प्रमाणित नहीं हुआ, जिस तरह मैं प्रमाणित हुआ हूं“ (383)। यदि यह सत्य है तो उनके इस दावे में कुछ वनज हो जाता है कि अन्य पैगम्बरों ”की अपेक्षा कयामत के दिन उनके अनुयायी सर्वाधिक होंगे।“ उस विशेष हैसियत के कारण (मेरी) मिल्लत के सत्तर हजार लोग बिना कोई हिसाब दिए जन्नत में दाखिल होंगे (418) और ”जन्नत के बाशिन्दों में से आधे मुसलमान होंगे“ (427)। यह देखते हुए कि आस्थारहित, काफिर और बहुदेववादी लोग जन्नत से पूरी तरह बाहर रखे जाएंगे तथा यहूदियों और ईसाइयों का प्रवेश भी वहां वर्जित होगा, जन्नत की बाकी आधी आबादी के बारे में अनुमान लगाना कठिन है।

 

सिफारिश करने का यह विशिष्ट सामथ्र्य मुहम्मद ने कैसे पाया ? इस सवाल का जवाब खुद मुहम्मद देते हैं-”हर एक पैगम्बर की एक प्रार्थना स्वीकृत होती है। पर हर पैगम्बर ने प्रार्थना करने में उतावली बरती। बहरहाल, मैने अपनी प्रार्थना को कयामत के रोज अपना मिल्लत के वास्ते अनुनय के लिए सुरक्षित रखा“ (3689)। अनुवादक हमारे समक्ष इस वक्तव्य को अधिक स्पष्ट करते हुए कहते हैं-”पैगम्बर लोग अल्लाह को प्रिय हैं और उनकी प्रार्थना अक्सर स्वीकार की जाती है। किन्तु पैगम्बर की एक प्रार्थना ऐसी होती है, जो उसकी मिल्लत के बारे में निर्णायक कही जा सकती है। उसके द्वारा ही मिल्लत की किस्मत तय होती है। मसलन, नूह आर्त होकर कह उठे-मेरे मालिक ! जमीन पर एक भी अनास्थावान व्यक्ति मत रहने देना (अलकुरान, 71/26)। मुहम्मद ने अपनी प्रार्थना कयामत के दिन के लिए सुरक्षित रख छोड़ी और वे अपनी मिल्लत की मुक्ति के लिए उसका उपयोग करेंगे“ (टी0 412)

 

नूह द्वारा दिए गए शाप के बारे में जानने का कोई उपाय हमारे पास नहीं है। पर  इस प्रकार का शाप मुहम्मद की विचारधारा के अनुरूप ही है। उदाहरणार्थ विभिन्न कबीलों के बारे में उन के शाप देखें-”ऐ अल्लाह ! मुजार लोगों को बुरी तरह पामाल कर और उनके लिए अकाल रच…. अल्लाह ! लिहयान, रिल जकवान, उसय्या को शाप दे, क्योंकि उन्होंने अल्लाह और रसूल की आज्ञा नहीं मानी“ (1428)।

 

बहरहाल जब काफिर लोग आग में झोंके जा रहे होंगे तब यह जानते हुए भी कि किसी और की सिफारिश काम न आयेगी, मुहम्मद उनकी सिफारिश नहीं करेंगे। ”तुम्हें अपने दुश्मनों को नरक में नहीं डालना चाहिए। लेकिन उन्हें बचाने के लिए कष्ट उठाने की भी जरूरत नहीं है।

लेखक : राम स्वरुप

हदीस : दुष्ट विचार एवं दुष्कर्म

दुष्ट विचार एवं दुष्कर्म

मुसलमान अपने अल्लाह का लाडला बेटा है, साथ ही बिगड़ैल बच्चा भी। उसका अतीत यदि अच्छा नहीं है तो भुला दिया जाता है और भविष्य के बारे में उसे निश्चित आश्वासन दिया जाता है। उसके लिए ऐसी अनेक बातों की इजाजत होती है, जिनकी इजाजत किसी बहुदेववादी को नहीं होती-यहां तक कि आसमानी किताब वाले यहूदी या ईसाई को भी नहीं होती। यीशु ने ”आंखों द्वारा व्यभिचार“ के बारे में कहा और उसे कामुकता के अधिक दृष्टिगोचर रूपों की ही भांति बुरा माना। लेकिन मुहम्मद ने अपने अनुयायियों के लिए बहुत ज्यादा गुंजाइश रखी है-”वास्तव में अल्लाह मेरे अनुयायियों के हृदय में उठने वाले बुरे भावों को तब तक माफ करता रहता है, जब तक कि वे वाणी या आचरण में प्रकट न हो“ (230)। भारत की आध्यात्मिक परम्परा में यही विचार अधिक सार्वभौम तथा कम पक्षपात वाली भाषा में अभिव्यक्त हुआ है। मानवीय दुर्बलताएं जानने के कारण ईश्वर मनुष्यों की चूकें तथा विफलताएं क्षमा कर देता है और उनकी शक्ति तथा सत्प्रवृत्तियों को बढ़ाता है। ईश्वरवाद के प्रति रोजे ज्यादा नहीं रख पाती कि पैगम्बर के हुक्म के अनुसार उनके लिए रोजे से ज्यादा सवाब का काम है अपने पतियों के प्रति अपना फर्ज अदा करना पैगम्बर की बीवी आयशा ने ”अल्लाह के रसूल का लिहाज रखते हुए“ कई बार रोजे नहीं रखे (2550)। पर ऐसा लगता है कि औरतों की खूबी ही उनकी खामी बन जाती है, उनके लिए लानत पूर्वनियत है।1

 

HADEES:BODILY FUNCTIONS

BODILY FUNCTIONS

Now Muhammad takes us to the toilet.  He forbids his followers �to face the qibla [i.e., toward the mosque at Mecca] at the time of excretion or urination, or cleansing with right hand or with less than three pebbles� (504).

Cleansing after excretion must be done an �odd number of times� (460), and one must not use �dung or bone� (505) for this purpose.  There is a story explaining why the use of bones and dung is forbidden.  Muhammad once spent a night with jinns (genii) reciting the QurAn to them.  When they asked him about their provision of food, he told them: �Every bone on which the name of Allah is recited is your provision.  The time it will fall in your hand it would be covered with flesh, and the dung of the camels is fodder for your animals.� He therefore told his followers: �Don�t perform istinjAwith these things for these are the food of your brothers� (903).

He also tells his followers: �When anyone amongst you enters the privy, he must not touch the penis with his right hand� (512).

�Aisha tells us that the �Messenger of Allah loved to start from the right-hand side in his every act, i.e., in wearing shoes, in combing, and in performing ablution� (515).

author : ram swarup

हदीस : इस्लाम से पूर्व के अरब लोग

इस्लाम से पूर्व के अरब लोग

मुस्लिम मीमांसक और लेखक इस्लाम-पूर्व अरब-देश का एक गहन अंधकार मय चित्र प्रस्तुत करने के आदी हैं। वे उसे नैतिक दृष्टि से भ्रष्ट तथा उदारता एवं विशाल-हृदयता से सर्वथा वंचित बतलाते हैं तथा इतिहास के उस कालखंड को ”जाहिलीय्या“ अर्थात ”अज्ञान एवं बर्बरता की दशा“ कहते रहते हैं। उनके अनुसार, प्रत्येक अच्छी बात मुहम्मद के साथ शुरू हुई। परन्तु ऐसी कई हदीस हैं, जो इसके विपरीत स्थिति ही सिद्ध करती हैं। हमें बतलाया जाता है कि हकीम बिन हिज़ाम ने ”अज्ञान की दशा में ही …………….. धार्मिक शुद्धता वाले अनेक कार्य किये“ (222)। एक अन्य हदीस से हमें विदित होता है कि उन्होंने इसी दशा में एक-सौ गुलामों को ”मुक्त किया तथा एक सौ ऊँट दान में दिए“ (225)।

 

सामान्यतः ऐसे सत्कार्यों का पुण्य किसी बहुदेववादी व्यक्ति को नहीं मिलता। पर अगर वह इस्लम अपना लेता है, तब बात ही और हो जाती है। तब उसके कार्यों का सम्पूर्ण स्वरूप बदल जाता है। तब वे व्यर्थ नहीं जाते। वे सुफलदायक हो उठते हैं। उस व्यक्ति को उनका श्रेय मिलता है। मुहम्मद हकीम को भरोसा दिलाते हैं-”तुमने इस्लाम को अपनाया है। पहले के किये गये सभी सत्कार्य तुम्हारे साथ रहेंगे” (223)।

लेखक :  रामस्वरुप

hdees: THE FIVE ACTS (Fitra)

THE FIVE ACTS (Fitra)

There are nine ahAdIs (495-503) on five acts natural to man and proper to Islam: circumcision, shaving the pubes, cutting the nails, plucking the hair under the armpits, and clipping the moustache.

About the moustache and the beard, the Prophet said: �Act against the polytheists, trim closely the moustache and grow beard� (500).  The next hadIs substitutes the word �fire-worshippers� for �polytheists.� The translator provides the rationale for this injunction: �Islam created a new brotherhood on the basis of belief and good conduct. . . . For the identification of faces, the Muslims have been ordered to trim the moustache and wear the beard, so that they may be distinguished from the non-Muslims who grow a moustache and shave beard� (note 471).

author : ram swarup

हदीस : पंथमीमांसा नैतिकता को विकृत करने वाली है

पंथमीमांसा नैतिकता को विकृत करने वाली है

अपनी पंथमीमांसा के आग्रह वाली ऐसी साम्प्रदायिक दृष्टि यदि यत्र-तत्र उल्टी सीधी नैतिकताएं सिखाती दिखे, तो उसमें क्या अचरज। फलतः इस दृष्टि के अनुसार किसी समूचे जनगण को लूट लेना पुण्यकर्म है, यदि वह जनगण बहुदेववादी हो। किन्तु जब लूट का माल मुसलमानों के हाथ में आ जाए तब उसकी चोरी महापातक है। मुहम्मद का एक गुलाम जिहाद में खेत रहा। इस तरह एक शहीद के नाते जन्नत में उसकी जगह अपने-आप तय हो गई। लेकिन मुहम्मद को दिखाई दिया कि ”वह दोजख की आग में जल रहा है, क्योंकि उसने युद्ध में लूटे गये माल में से पोशाक या लबादा चुरा लिया था।“ यह सुन कर कुछ लोग परेशान हो उठे। उनमें से एक ने अनुमानतः इसी किस्म की उठाईगीरी कर रखी थी। वह ”एक या दो तसमें लेकर मुहम्मद के पास आया और बोला-अल्लाह के रसूल, ये मुझे खैबर (एक युद्ध का नाम) के रोज मिले थे। पवित्र पैगम्बर ने कहा-ये (दोजख की) आग की एक डोर है या दो डोरें हैं“ (210)। जैसा कि एक अन्य पाई में कहा गया है, इसका अर्थ यह हुआ कि उस आदमी को उसके द्वारा चुराये गये दो तसमों के बदले परलोक में आग की दो लपटों में जलना पड़ेगा।

 

एक समूचे जनगण की लूट सत्कर्म है, किन्तु लूटे गये माल में से कोई नगण्य वस्तु चुपके से उठा लेना ऐसा प्रचंड नैतिक भ्रष्टाचरण है कि उसके लिए अनन्त आग में जलना होगा। सामान्य प्रलोभनों से प्रेरित हो कर लोग छोटे-मोटे अपराध छोटी-मोटी भूलें ही कर पाते हैं। घोर दुष्कर्मों के करने के लिए एक विचारधारा, एक इलहाम, एक ईश्वर-प्रदत्त मिशन का आश्रय आवश्यक हो जाता है।

लेखक :  रामस्वरुप