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आचार्यों द्वारा कुमार का गर्भ में धारण :रामनाथ विद्यालंकार

आचार्यों द्वारा कुमार का गर्भ में धारण

ऋषिः वामदेवः। देवता पितरः। छन्दः निवृद्आर्षीगायत्री।

आर्धत्तपितरोगर्भकुमारंपुष्करस्रजम्।यथेहपुरुषोऽसत्॥

-यजु० २। ३३ |

हे ( पितर:१) पालनकता गुरुजनो! आचार्यो ! आप ( पुष्करस्त्रजं कुमारं ) कमल फूलों की माला पहने हुए इस कुमार को ( गर्भम् आधत्त ) गर्भ रूप में धारण करो, ( यथा ) जिससे यह (इह ) यहाँ, गुरुकुल में ( पुरुषः ) विद्वान् पुरुष ( असत्) ही जाए।

वेद के आदेश और अनुभवी शिक्षाविज्ञों के अनुभव के अनुसार राष्ट्र में बालक-बालिकाओं की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। एक महान् शिक्षाशास्त्री के वचन हैं—“इसमें राजनियम और जातिनियम होना चाहिए कि पाँचवें अथवा आठवें वर्ष से आगे कोई अपने लड़कों और लड़कियों को घर में न रख सके, पाठशाला में अवश्य भेज देवे। जो न भेजे वह दण्डनीय हो ।” जब बालक या बालिका गुरुकुल, विद्यालय या पाठशाला में विद्या पढ़ने आचार्य या आचार्या के पास जाते हैं, तब आचार्य या आचार्या उनका उपनयन संस्कार करते हैं।

अथर्ववेद के ब्रह्मचर्य सृक्त में लिखा है कि ”जब आचार्य ब्रह्मचारी का उपनयन संस्कार करता है, तब वह उसे अपने गर्भ में धारण करता है।” प्रस्तुत मन्त्र में पितरः’ को सम्बोधन है। ‘पितर:’ को अर्थ पालनकर्ता गुरुजन और आचार्यगण है। माता-पिताअपने बालक को स्वच्छ वस्त्र पहना कर, उसके गले में कमलफूलों की माला डाल कर गुरुकुल में प्रवेशार्थ उपनयन संस्कार के लिए आचार्य के समीप लाये हैं। वे बालक को आचार्यों के हाथों में सौंपते हुए कहते हैं-‘ हे आचार्य आदि गुरुजनो ! कमल-फूलों की माला धारण किये हुए इस कुमार को आप अपने गर्भ में धारण कीजिए।’

गर्भ में धारण करना सामीप्य-सम्बन्ध का प्रतीक है। जैसे गर्भस्थ सन्तान का माता के साथ अतिनिकट का सम्बन्ध होता है, ऐसे ही कुमार बालक या ब्रह्मचारी का आचार्य तथा गुरुजनों के साथ निकट का सम्बन्ध रहना चाहिए। निकटता में रह कर ही गुरुजन विद्यार्थी की शिक्षा की ओर अधिक ध्यान दे सकते हैं, उसके गुण-दोषों को देख सकते हैं तथा गुणों को प्रोत्साहित एवं दोषों को दूर कर सकते हैं। पाठ्यपुस्तकों द्वारा अध्यापन भी निकटता की अपेक्षा रखता है। पाठभूल जाने पर या कोई शङ्का होने पर तुरन्त छात्र गुरुजनों से पूछ सकता है। गुरुजन छात्र को अपने पास रख कर उसकी शारीरिक, मानसिक और आत्मिक उन्नति पर भी ध्यान दे सकते हैं । गर्भ में धारण करने का लाभ क्या होगा इस विषय में मन्त्र कह रहा है कि यह अशिक्षित कुमार गुरु-सान्निध्य में शिक्षित होकर सत्पुरुष तथा उत्तम नागरिक बन जायेगा।

इस मन्त्र के भावार्थ में भाष्यकार” लिखते हैं—” विद्वानों और विदुषियों को चाहिए कि विद्यार्थी कुमारों और विद्यार्थिनी कुमारियों को विद्या देने के लिए गर्भ के समान धारण करें । जैसे गर्भ में देह क्रम-क्रम से बढ़ता है, वैसे अध्यापक लोगों को चाहिए कि सुशिक्षा से ही ब्रह्मचारी, कुमार वा कुमारी की सविद्या में वृद्धि करें तथा उनका पालन करें, जिससे वे विद्या के योग से धर्मात्मा और पुरुषार्थ युक्त होकर सदैव सुखी हों।”

आचार्यों द्वारा कुमार का गर्भ में धारण

पाद-टिप्पणियाँ

१. (पितरः) ये पान्ति विद्यान्नादिदानेन, तत्सम्बुद्धौ–द०भा०।

२. विद्याग्रहणार्था स्रग् धारिता येन तम् कुमारं ब्रह्मचारिणम्-द०भा० ।

३. असत् भवेत्-अस भुवि, अदादिः, लेट् लकार।

४. स्वामी दयानन्द सरस्वती ।

आचार्यों द्वारा कुमार का गर्भ में धारण