हर नया कर्म करते समय मन में पहले शंका उत्पन्न होती है और उसके साथ बाद में भय भी उत्पन्न होता है। ऐसा क्यों?

:- कोई भी नया काम करते हैं तो मन में शंका उत्पन्न होती है, कि-यह ठीक है या गलत। और भय भी लगता है, कि करुँ या न करुँ। अर्थात् सफलता मिलेगी या नहीं ।
स इसका कारण यह है, कि कर्मों के संबंध में हमारी जानकारी कम है। अच्छे से पता नहीं रहता, कि यह काम ठीक है या गलत है। इसलिए हमको शंका होती है, कि करुँ या न करुँ। अथवा हमको जानकारी भी है, कि यह काम ठीक है। और फिर भी हमको शंका होती है। इसका कारण यह हो सकता है, कि आत्मविश्वास की कमी है। हमको अपने पर ही शंका है-पता नहीं कर पाऊँगा या नहीं कर पाऊँगा? फेल तो नहीं हो जाऊँगा? इन दो कारणों को दूर कर दें। यह काम करना ही है, यह काम ठीक है, इसकी जानकारी वेद आदि ग्रंथों से होगी। ईश्वर का बताया हुआ वेद, वही हमारा असली संविधान है। वहाँ से पता लगा लेंगे, कि बात सही है या गलत। इससे आपकी शंका दूर हो जाएगी।
स और दूसरा, अपने अन्दर आत्मविश्वास पैदा कीजिए, कान्फीडेंस लाइए, कि-यह काम ठीक है, मेरी क्षमता के अनुरूप है, मैं यह कर सकता हूँ, मुझमें इतनी क्षमता है। भगवान ने मुझे बहुत शक्ति दी है। बहुत विद्या दी है, बु(ि दी है, इसलिए कर सकता हूँ । तो आप खुद करेंगे। न कोई शंका होगी, न कोई भय लगेगा, कुछ नहीं होगा।
स काम गलत हो, तो डिसीजन (निर्णय( ले लीजिए, कि नहीं करना। यह कानून के विरू( है। करूंगा तो दण्ड मिलेगा। बस सारी शंका, भय खत्म।

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