ध्यान करते समय किस चीज या आकृति का मन में ध्यान किया जाये? उस चीज को या नाम को या भगवान का कहाँ पर ध्यान लगाया जाये। उसका स्थान और उसका स्वरूप बताने की कृपा करें तथा किस आसन में तथा किस समय ध्यान किया जाये?

देखिये, आसन तो यह है, जिसमें हम चौकड़ी मार के बैठें हैं। यह है ‘सरल आसन’, सबसे आसान। इस आसन में भी आप ध्यान कर सकते हैं। फिर एक है ‘स्वस्तिक आसन। ‘ दाँये पाँव को उठाकर के बाँये पाँव की पिंडली पर उल्टा रख लें और बाँये पाँव को इस दाँये पाँव की पिंडली के नीचे रख दें, उल्टा करके। और कमर सीधी, गर्दन सीधी, भुजायें सीधी। यह हो गया स्वस्तिक आसन। इसमें भी बैठ सकते हैं। यह भी सरल है। फिर थोड़ा कठिन ‘पद्मासन’ है। दायाँ पाँव ऊपर उठाओ, बांयी जंघा पर रखो। फिर बाँया पाँव उठाकर दांयी जंघा पर रखो। अब यह थोड़ा कठिन है। इसको ‘पद्मासन’ कहते हैं। किसी-किसी को इसमें बैठने का अभ्यास हो तो इसमें भी ध्यान कर ले और नहीं हो तो कोई बात नहीं।
ध्यान का समय आपकी इच्छा पर है। सुबह चार बजे बैठें, पाँच बजे बैठें, छह बजे बैठें, सात बजे बैठें। दिन निकलने से पहले कर लें, तो अच्छा है। उस समय शोर-शराबा नहीं होता। शांति होती है तो मन अच्छा लगेगा। आसानी से
ध्यान होगा। शाम को भी सूर्यास्त के आसपास का समय ध्यान करने के लिए अच्छा है। इसके अलावा यदि मजबूरी है, जैसे कि कोई आठ बजे ऑफिस से घर आता है तो आठ बजे कर लो। कोई सात बजे आता है तो सात बजे कर लो। नौ बजे आता है तो नौ बजे कर लो और उसको टाइम ही नहीं मिलता है, तो रात को खाना खाके सोने से पहले कर लो। कुछ तो करो, कभी भी ध्यान करो। ध्यान जरूरी है। अगर प्रॉपर टाइम पर बैठ सकते हैं तो बहुत अच्छा है। सही समय सुबह सूर्योदय से पहले और शाम को सूर्यास्त के आसपास है। यदि सही अनुकूल समय नहीं मिलता तो आगे-पीछे करें।
जहाँ आपको मन एकाग्र करने में सुविधा हो, वहाँ पर ध्यान करें। अधिकांश लोगों को मस्तक के बीच में, मन एकाग्र करने में सुविधा रहती है, आसानी होती है। वे आँख बंद करके अपनी अंर्तदृष्टि से मस्तक के बीच के स्थान को देखें। और रूप, रंग, आकृति, लाइट, कुछ नहीं देखनी, सब हटा दीजिये। बिल्कुल अंधेरा बनाईये, जैसे रात को अंधेरा होता है, ऐसा खूब गहरा अंधेरा अपने मन में देखिये। फिर अंधेरे के बाद एक लंबा चौड़ा विस्तृत आकाश देखिये। खाली-खाली स्थान और अंधेरा ये दो चीजें देखिये। यह हो गई ध्यान की तैयारी। अब ईश्वर का ध्यान शुरू करेंगे। पर ध्यान का ‘प्रैक्टिकल’ करने से पहले होती है ‘थ्योरी’। पहले थ्योरोटिकल समझ लो, कि ईश्वर कैसा है? लोगों को यहीं झगड़ा है बहुत। अच्छा यह बताइये, ईश्वर एक है या अनेक? एक है, बस है याद रखना। अब ये प्रैक्टिकल के लिए पहले हम थ्योरी तैयार कर रहे हैं। पहले थ्योरी ठीक करेंगे, फिर प्रैक्टिकल करेंगे। तो ईश्वर एक है। दूसरी बात- एक ईश्वर एक जगह पर रहता है, या सब जगह रहता है? सब जगह रहता है। जो वस्तु सब जगह रहती है, क्या उसकी शक्ल, फोटो, आकृति होनी चाहिये या नहीं होनी चाहिये? नहीं होनी चाहिये। अब देखो, बात साफ हो रही है न। हमारी यह थ्योरी तैयार हो रही है। ईश्वर एक है, वो सब जगह रहता है, उसकी कोई शक्ल नहीं है, वो निराकार है। तीन बात साफ हो गई। मेरे साथ दोहराईये पहली बात क्या थी? ईश्वर एक है। दूसरी बात- ईश्वर सब जगह रहता है और तीसरी बात- ईश्वर निराकार है। अब चौथी बात- ईश्वर चेतन है या जड़? चेतन है। तो यह चौथी बात दिमाग में रखनी है कि ईश्वर चेतन है। गॉड इज ओमनीशियन्ट, ईश्वर सर्वज्ञ है, वो सब कुछ जानता है। वो ईंट, पत्थर की तरह, दीवार की तरह जड़ नहीं है। हमारी आपकी तरह चेतन है, सोचता है, समझता है, सबको देखता है, सुनता है, सबके कर्मों का हिसाब रखता है। तो चौथी बात ईश्वर चेतन है। और पाँचवी बात- ईश्वर में आनंद है या नहीं है? है। बस पाँच बात तैयार रखो, ये थ्योरी हो गई। ईश्वर एक है, सर्वव्यापक है, निराकार है, चेतन है, आनंदस्वरूप है। यह थ्योरी तैयार करके और फिर ध्यान करेंगे। हमने ध्यान के लिए मन को एकाग्र किया और ऐसा सोचा कि चारों तरफ खूब गहरा अंधेरा है, और शून्य आकाश है। कुछ नहीं। इतनी तैयारी करने के बाद अब वो पाँच बातें यहाँ दोहरायेंगे। इस पूरे आकाश में एक ईश्वर है और वो पूरे आकाश में सर्वव्यापक है, फैला हुआ है। वो निराकार है उसकी कोई आकृति नहीं है, कोई शेप नहीं, कोई कलर नहीं, कोई फोटो नहीं, कुछ नहीं वो चेतन है। और आनंद का भंडार है। जैसे समुद्र में पानी ही पानी होता है, ऐसे ही ईश्वर में आनंद ही आनंद है। इस तरह से बैठकर पाँच बातें दोहरायें और फिर ईश्वर का ही चिंतन करें। दूसरी बात बीच में नहीं घुसनी चाहिये। खाने-पीने की बात, शॉपिंग की बात, टेलीफोन की बात, बच्चे के स्कूल की फीस की बात, लड़ाई-झगड़े की बात, मुकदमे की बात बीच में कोई नहीं आनी चाहिये। बस यही पॉच बातें दोहराइये। और फिर इसके बाद ओ३म् का जप कर सकते हैं। ओ३म् का जप अर्थ सहित करें। केवल ओ३म् शब्द बोलें, फिर उसका अर्थ बोलें। दूसरा विकल्प है- ओ३म् के साथ ईश्वर का एक गुण जोड़ दें। जैसे- ‘ओ३म् आनंदः’। यह एक मंत्र हो गया। इस तरह से मंत्र बोलें, फिर उसका अर्थ बोलें। तीसरा विकल्प- फिर गायत्री मंत्र का पाठ करें, वो भी अर्थ सहित करें। चौंथा विकल्प- वैदिक संध्या के मंत्रों से ईश्वर का ध्यान करें। मंत्र भी बोलें। मन में, एक-एक शब्द का अर्थ भी दोहरायें, और फिर उसका भावार्थ भी दोहरायें। इस तरह से ईश्वर का ध्यान करना चाहिए। कोई लाइट, कोई आकृति, कोई फोटो, कोई गुरू जी का चित्र कुछ नहीं रखना। कई लोग गुरूजी का ही ध्यान करते हैं। कोई उनका फोटो लगा लेता है, उसको देखता रहता है। फिर आँख बंद करके उसी का ध्यान करता रहता है। ये आपको मुक्ति नहीं दिलाने वाले। ये जो शरीरधारी हैं,
गुरू इनमें से कोई आपको मुक्ति दिलाने वाला नहीं है। ये सब मनुष्य लोग
हैं। इनमें से कोई परमात्मा नहीं, किसी के पास शक्ति नहीं, किसी के अधिकार में मोक्ष नहीं। मोक्ष केवल सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान परमात्मा के हाथ में है। अगर आपको मोक्ष चाहिये, आनंद चाहिये तो जैसे अभी हमने थ्योरी पर विचार किया, ऐसे ही ईश्वर का ध्यान करना है और किसी का नहीं।

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