दृष्टांत है- मान लीजिए, एक व्यक्ति धनुष बाण ले करके तीर को लकड़ी के खंबे में ठोकना चाहता है। उसकी ऐसी इच्छा है। जैसे बाहर से एक दृष्टांत समझाने के लिए बताया, कि एक लकडी का खम्भा है, वो है- लक्ष्य। और उस लकडी के खम्भे में क्या फेंकना है? तीर। और फेंकने के लिए साधन क्या है? धनुष। ठीक है, तो तीन बात हो गईं। एक तीर, एक धनुष और एक लक्ष्य। ऐसे ही ब्रह्म लक्ष्य है, ब्रह्म तल्लक्ष्य मुच्यते। प्रणव त्र (ओ३म्( धनुष के समान है। ‘प्रणवो धनुः शरो हि आत्मा’- आत्मा जो है, वो तो तीर के समान है। जैसे धनुष में तीर को देखते हैं, और फिर धनुष की रस्सी खींच करके, और तीर को छोड़ करके लक्ष्य तक पहुँंचा देते है। ऐसे ही ओ३म् है- धनुष, धनुष के समान। और जो आत्मा है, वो तीर (ऐरो( के समान है। और ब्रह्म जो है, वो टारगेट है, वो लक्ष्य है। तो ओ३म् के मंत्र से आत्मा का तीर छोड़ो और ब्रह्म में फिट कर दो। यह उस वचन का अभिप्राय है।