वरदान और श्राप देना संभव है। पर वैसा नहीं जैसा आपने पुराणों में पढ़ रखा है, या पौराणिक कथाओं में सुन रखा है कि – ” जाओ, तुम्हें कोई नहीं मार सकेगा, तुम अमर हो गए हो।” सृष्टि के नियम के विरु( वरदान गलत हैं। ऐसे वरदान नहीं होते हैं।
प्रकृति के नियम से विरु( जो बातें हैं, इस तरह का न वरदान होता है और न श्राप होता है। सृष्टि नियम के अनुकूल वरदान भी होता है और श्राप भी होता है।
वरदान किसको कहते हैं? आशीर्वाद का नाम वरदान हैं। )षि-मुनि जी क्या कहते हैंः-
“अभिवादनशीलस्य नित्यं वृ(ोपसेविनः।
चत्वारि तस्य बर्(न्त आयुर्विद्या यशो बलम्।।”
यह वरदान है कि – ”जो बड़ों का आदर सम्मान करते हैं, माता-पिता को, गुरुजनों को नमस्ते करते हैं, उनके आदेश का पालन करते हैं, उनकी सेवा करते हैं, उनकी चार चीजें बढ़ती हैं। वे हैं – आयु, विद्या, यश और बल।” माता-पिता उनको आशीर्वाद देते हैं, गुरुजन आशीर्वाद देते हैं कि बड़ी उम्र वाले हो, खूब फलो-फूलो, आगे बढ़ो, उन्नाति करो, सुखी रहो। ऐसा वरदान ठीक है।
श्राप क्या है? एक व्यक्ति ने अपराध किया और उसको कहा- देख, तूने अपराध किया है, तुझे दंड मिलेगा। इसे जेल में डाल देना चाहिए। ऐसे ही किसी ने उसको डाँट लगा दी। अब फिर वह बाद में पकड़ा भी गया, उस पर केस चला और उसको जेल भी हो गयी। उसका श्राप सि( हो गया। उसने सच बात कही।
अपराधी को अपराध से बचाने के लिए अथवा उसको समझाने के लिए व्यक्ति उसको डाँटता है, रोकता है। फिर भी वह नहीं मानता है तो फिर उसको कहता है कि – देख तू नहीं मानता, तुझे दंड मिलेगा। और वो तो होता ही है।
कुछ काल्पनिक श्राप ऐसे भी बोले जाते हैं। एक मनुष्य था, वह गड़बड़ यानी बुरे काम करता था, उसको श्राप दिया – तू अभी-अभी यहाँ पर सुअर बन जा, तू अभी-अभी इसी जन्म में कुत्ता बन जा। ऐसा संभव नहीं होगा।
व्यक्ति इसी जन्म में तो कुत्ता नहीं बन सकता। हाँ, मरने के बाद भले ही वह बन जाए। भगवान उसको कर्म के अनुसार दंड दे देंगे, वो अलग बात है, पर जीते जी इसी जन्म में उसको तोड़-मरोड़ कर बिल्ली, कुत्ता नहीं बनाया जा सकता। इस तरह के कोई श्राप आपने कथाओं में सुने हों तो वो गलत हैं।